उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ में इस बार धर्म की जिस गंगा को हम प्रत्यक्ष बहते देख रहे हैं, धर्म के उस सनातन स्वरूप को लेकर लगभग हर धार्मिक चैनल 24 घंटे एक से बढ़ कर एक आख्यान-व्याख्यान पेश कर रहा है। दूसरी ओर बड़े-बड़े मठाधीश और महामंडलेश्वर व शंकराचार्य अपनी बेढंगी वेशभूषा और स्टाइल को लेकर चर्चा का विषय बने हुए हैं।
सिंहस्थ कुंभ में ऐसी ही एक चर्चा के केंद्रबिन्दु बने हुए हैं जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वरों में से एक पायलट बाबा जिनके 17 शिष्य भी महामंडलेश्वर हैं और धर्म-आध्यात्म के क्षेत्र में कई जनकल्याणकारी काम कर रहे हैं। दरअसल, पायलट बाबा अपनी विदेशी शिष्याओं को लेकर चर्चा में हैं।
सिंहस्थ में यूं तो पायलट बाबा और उनकी विदेशी शिष्याओं ने काफी पहले से डेरा जमा लिया था लेकिन इस बीच अचानक उनकी जापानी शिष्या और महामंडलेश्वर केको आइकावा ने सिंहस्थ छोड़ दिया और जापान चली गईं। महामंडलेश्वर केको आइकावा इंटरनेशनल एजुकेशन संस्था की वाइस प्रेसीडेंट हैं। उनकी संस्था पर कम्प्यूटर एजुकेशन के नाम से देशभर में 500 करोड़ रुपए की ठगी करने का आरोप है। संस्था ने सिर्फ एक रुपए में कम्प्यूटर की शिक्षा देने के नाम पर देशभर में विभिन्न संस्थाओं को 50-50 हजार रुपए लेकर फ्रेंचाइजी दी थी।
केको आइकावा की इस संस्था ने कम्प्यूटर शिक्षा का सारा खर्चा वहन करने का दावा किया था लेकिन फ्रेंचाइजी के नाम पर पैसे लेने के बाद कोई शिक्षा नहीं दी गई। देशभर में पीड़ित लोगों ने इस इंटरनेशनल एजुकेशन संस्था के खिलाफ डेढ़ दर्जन से ज्यादा केस दर्ज कराए थे। कहा जा रहा है यह मामला फिर से उछलने के बाद कथित तौर पर केको आइकावा ने सिंहस्थ शिविर छोड़ दिया। अब सवाल यह है कि यदि आरोप बेबुनयिाद हैं तो आखिर पायलट बाबा की यह जापानी शिष्या इस तरह अचानक गायब क्यों हो गई।
पायलट बाबा की यह शिष्या महामंडलेश्वर केको आइकावा पिछले सिंहस्थ ( 2004) में के दौरान भी चर्चाओं में थीं क्योंकि तब उन्होंने बाबा के शिविर में ही समाधी लगाई थी। जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर पायलट बाबा ने ही आइकावा को महामंडलेश्वर की उपाधि दिलवाई थी। यह बात अलग है कि इस बार आइकावा गलत वजहों से सुर्खियों में हैं।
पायलट बाबा ने अपनी सफाई में इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि आइकावा माता की तबियत ठीक नहीं होने की वजह से वह दिल्ली गई हैं। पायलट बाबा ने कुछ लोगों पर संस्था को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि संस्था अपना काम कर रही है।
इन आरोपों-प्रत्यारोपों से एक बात तो निश्चित है कि कहीं कोई चिंगारी तो है, जिससे धुंआ उठ रहा है। हममें से अधिकांश लोग जानते हैं कि धर्म की आड़ आजकल ''धंधे'' के लिए बड़ी मुफीद बनी हुई है, ऐसे में आइकावा माता हों या स्वयं पायलट बाबा, किसी को भी पूरी तरह दूध का धुला नहीं माना जा सकता। इसके अलावा भी अनेक प्रश्न सिंहस्थ में तैर रहे हैं।
ऐसे में उन सब तथाकथति भक्तों को भी सोचना होगा जो बड़े पदवीधारी इन बाबाओं के यहां बिना यह सोचे-समझे दंडवत करते हैं, शीश नवाते हैं कि वह इस काबिल हैं भी या नहीं। एक लोकोक्ति है- पानी पीजे छान के, गुरू कीजै जान के। आजकल तो जानना और भी जरूरी हो गया है।
पायलट बाबा और आइकावा तो बस एक उदाहरणभर हैं, वरना सोचिए कि जिस देश में बुंदेलखंड, लातूर और तेलंगाना की भूमि प्यासी हो, उस देश में बेहद लग्जरी गाड़ियों और मिनरल वॉटर पीने वाले बाबाओं को तो साक्षात् ईश्वर वैसे ही मिला हुआ है, वे ही सही मायनों में उपदेश दे सकते हैं कि जो मिल रहा है उसी में खुश रहो क्योंकि उन्हें तो सबकुछ ''मिल'' रहा है। उन्हें दो जून के दो ग्रास के लिए हाड़ मांस नहीं गलाना पड़ रहा। धर्म की ये व्याख्या आम लोगों को इसीलिए लुभाती है कि वो उसकी तह में जाने के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं निकाल पाते और जो धर्म पर चलने की बात कहता है (आचरण नहीं करता), वो उसे ही देवदूत की भांति पूजने लगते हैं तथा स्वयं अपने ही हाथों से किसी पायलट बाबा को या किसी आइकावा को गढ़ देते हैं।
यह बात हमें समझ लेनी चाहिए कि जो ईश्वर को खोजने स्वयं निकले हों या खोजने का नाटक कर रहे हों, वो भला किस तरह अपने अनुयायियों को ईश्वर के मार्ग पर चलने को कहेंगे। उन्हें तो ट्रस्ट, ऑरगेनाइजेशन, इंटरनेशनल संस्थाएं, धर्मार्थ चलाए जा रहे आलीशान आश्रम और मिलेनियर शिष्य अपने ऐसेट्स के रूप में दिखते हैं।
सिर्फ चंद दिनों तक घर, परिवार, समाज तथा भौतिक सुखों के त्याग का नाटक करके बेहिसाब सुख-सुविधाएं जुटा लेने वाले ये तथाकथित साधु-संत यदि वाकई ईश्वर के निकट होते तो उन्हें न शिष्य-शिष्याओं के किसी लाव-लश्कर की जरूरत होती और न उन सामाजिक भक्तों की जो अनैतिक तरीकों से पूंजी एकत्र करके ईश्वर की जगह इनके चरणों में शांति तलाशते हैं।
अनैतिक तरीकों से संप्पति जुटा लेने वाले बाबाओं के ये भक्त इतना भी नहीं सोचते कि जिनका अपना जीवन अशांति से भरा पड़ा है, वह क्या तो किसी को शांति का मार्ग बताएंगे और क्या धर्म का मार्ग दिखाएंगे।
- अलकनंदा सिंह
सिंहस्थ कुंभ में ऐसी ही एक चर्चा के केंद्रबिन्दु बने हुए हैं जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वरों में से एक पायलट बाबा जिनके 17 शिष्य भी महामंडलेश्वर हैं और धर्म-आध्यात्म के क्षेत्र में कई जनकल्याणकारी काम कर रहे हैं। दरअसल, पायलट बाबा अपनी विदेशी शिष्याओं को लेकर चर्चा में हैं।
सिंहस्थ में यूं तो पायलट बाबा और उनकी विदेशी शिष्याओं ने काफी पहले से डेरा जमा लिया था लेकिन इस बीच अचानक उनकी जापानी शिष्या और महामंडलेश्वर केको आइकावा ने सिंहस्थ छोड़ दिया और जापान चली गईं। महामंडलेश्वर केको आइकावा इंटरनेशनल एजुकेशन संस्था की वाइस प्रेसीडेंट हैं। उनकी संस्था पर कम्प्यूटर एजुकेशन के नाम से देशभर में 500 करोड़ रुपए की ठगी करने का आरोप है। संस्था ने सिर्फ एक रुपए में कम्प्यूटर की शिक्षा देने के नाम पर देशभर में विभिन्न संस्थाओं को 50-50 हजार रुपए लेकर फ्रेंचाइजी दी थी।
केको आइकावा की इस संस्था ने कम्प्यूटर शिक्षा का सारा खर्चा वहन करने का दावा किया था लेकिन फ्रेंचाइजी के नाम पर पैसे लेने के बाद कोई शिक्षा नहीं दी गई। देशभर में पीड़ित लोगों ने इस इंटरनेशनल एजुकेशन संस्था के खिलाफ डेढ़ दर्जन से ज्यादा केस दर्ज कराए थे। कहा जा रहा है यह मामला फिर से उछलने के बाद कथित तौर पर केको आइकावा ने सिंहस्थ शिविर छोड़ दिया। अब सवाल यह है कि यदि आरोप बेबुनयिाद हैं तो आखिर पायलट बाबा की यह जापानी शिष्या इस तरह अचानक गायब क्यों हो गई।
पायलट बाबा की यह शिष्या महामंडलेश्वर केको आइकावा पिछले सिंहस्थ ( 2004) में के दौरान भी चर्चाओं में थीं क्योंकि तब उन्होंने बाबा के शिविर में ही समाधी लगाई थी। जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर पायलट बाबा ने ही आइकावा को महामंडलेश्वर की उपाधि दिलवाई थी। यह बात अलग है कि इस बार आइकावा गलत वजहों से सुर्खियों में हैं।
पायलट बाबा ने अपनी सफाई में इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि आइकावा माता की तबियत ठीक नहीं होने की वजह से वह दिल्ली गई हैं। पायलट बाबा ने कुछ लोगों पर संस्था को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि संस्था अपना काम कर रही है।
इन आरोपों-प्रत्यारोपों से एक बात तो निश्चित है कि कहीं कोई चिंगारी तो है, जिससे धुंआ उठ रहा है। हममें से अधिकांश लोग जानते हैं कि धर्म की आड़ आजकल ''धंधे'' के लिए बड़ी मुफीद बनी हुई है, ऐसे में आइकावा माता हों या स्वयं पायलट बाबा, किसी को भी पूरी तरह दूध का धुला नहीं माना जा सकता। इसके अलावा भी अनेक प्रश्न सिंहस्थ में तैर रहे हैं।
ऐसे में उन सब तथाकथति भक्तों को भी सोचना होगा जो बड़े पदवीधारी इन बाबाओं के यहां बिना यह सोचे-समझे दंडवत करते हैं, शीश नवाते हैं कि वह इस काबिल हैं भी या नहीं। एक लोकोक्ति है- पानी पीजे छान के, गुरू कीजै जान के। आजकल तो जानना और भी जरूरी हो गया है।
पायलट बाबा और आइकावा तो बस एक उदाहरणभर हैं, वरना सोचिए कि जिस देश में बुंदेलखंड, लातूर और तेलंगाना की भूमि प्यासी हो, उस देश में बेहद लग्जरी गाड़ियों और मिनरल वॉटर पीने वाले बाबाओं को तो साक्षात् ईश्वर वैसे ही मिला हुआ है, वे ही सही मायनों में उपदेश दे सकते हैं कि जो मिल रहा है उसी में खुश रहो क्योंकि उन्हें तो सबकुछ ''मिल'' रहा है। उन्हें दो जून के दो ग्रास के लिए हाड़ मांस नहीं गलाना पड़ रहा। धर्म की ये व्याख्या आम लोगों को इसीलिए लुभाती है कि वो उसकी तह में जाने के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं निकाल पाते और जो धर्म पर चलने की बात कहता है (आचरण नहीं करता), वो उसे ही देवदूत की भांति पूजने लगते हैं तथा स्वयं अपने ही हाथों से किसी पायलट बाबा को या किसी आइकावा को गढ़ देते हैं।
यह बात हमें समझ लेनी चाहिए कि जो ईश्वर को खोजने स्वयं निकले हों या खोजने का नाटक कर रहे हों, वो भला किस तरह अपने अनुयायियों को ईश्वर के मार्ग पर चलने को कहेंगे। उन्हें तो ट्रस्ट, ऑरगेनाइजेशन, इंटरनेशनल संस्थाएं, धर्मार्थ चलाए जा रहे आलीशान आश्रम और मिलेनियर शिष्य अपने ऐसेट्स के रूप में दिखते हैं।
सिर्फ चंद दिनों तक घर, परिवार, समाज तथा भौतिक सुखों के त्याग का नाटक करके बेहिसाब सुख-सुविधाएं जुटा लेने वाले ये तथाकथित साधु-संत यदि वाकई ईश्वर के निकट होते तो उन्हें न शिष्य-शिष्याओं के किसी लाव-लश्कर की जरूरत होती और न उन सामाजिक भक्तों की जो अनैतिक तरीकों से पूंजी एकत्र करके ईश्वर की जगह इनके चरणों में शांति तलाशते हैं।
अनैतिक तरीकों से संप्पति जुटा लेने वाले बाबाओं के ये भक्त इतना भी नहीं सोचते कि जिनका अपना जीवन अशांति से भरा पड़ा है, वह क्या तो किसी को शांति का मार्ग बताएंगे और क्या धर्म का मार्ग दिखाएंगे।
- अलकनंदा सिंह
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