रविवार, 14 जुलाई 2013

दरकते मुखौटों का लाक्षागृही षड्यंत्र

मुखौटे दरक रहे हैं। आकांक्षाएं धूमिल हुई जा रही हैं। भस्‍मासुरों ने अपने ही प्रदेश को लाक्षागृह बनाने का षड्यंत्र जो रच दिया है, विघटनकारी आतताई तो पहले से मौज़ूद थे, अब जेल में बैठे घोटालबाजों को हेर-फेर कर सत्‍ता में लाया जा रहा है....उत्‍तर प्रदेश के राजनैतिक अवसान की पराकाष्‍ठा है ये।
यूं भी कहते हैं कि राजनीति में आस्‍थाएं टूटते और पाला बदलते देर नहीं लगती मगर इस प्रक्रिया में हमाम का जो सीन जनता के सामने आता है वह बेहद पीड़ादायक है।
कल जब एनआरएचएम घोटाले की बड़ी मछली बाबूसिंह कुशवाहा की पत्‍नी व भाई को समाजवादी पार्टी में शामिल किया गया तो घोटाले से जुड़ी हर घटना याद आ गई। याद आ गया कि किस तरह करोड़ों के इस घोटाले को ऑफीसर्स की मदद से पूरे प्रदेश के हर जिले तक फैला दिया गया। अब उसकी फांसें सीबीआई जांच के ज़रिये निकालने की कोशिश की जा रही है और ऐसे में घोटाले के सूत्रधार बाबूसिंह कुशवाहा के परिवार को सीधे-सीधे सत्‍ता का लगभग हिस्‍सा ही बना लेना ये सोचने पर विवश करता है कि प्रदेश का भविष्‍य क्‍या होने वाला है।
मुग़ालते में हैं वे युवा जिन्‍होंने अखिलेश के मुख्‍यमंत्री बनते ही उनसे तमाम आशाएं संजो लीं थीं कि अब उनके प्रदेश को भी खुशहाली का दीदार होगा। प्रशासनिक और राजनैतिक दोनों स्‍तर पर प्रदेश की जनता को आखिर मिला क्‍या?
'भैयाजी' और 'नेताजी' की अपनी मजबूरियां.. असुरक्षा का माहौल और चौतरफा बदइंतज़ामियों का आलम। उस पर अब बाबूसिंह कुशवाहा के परिवार को सपा में शामिल किये जाने के बाद यह सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि समाजवाद के मुखौटे किस तरह जनता से धोखा करने के आदी हैं।
कौन नहीं जानता कि खुद मुलायम सिंह व अखिलेश के खिलाफ आय से अधिक संपत्‍ति के मामले चल रहे हैं और उन्‍हीं मामलों से कांग्रेस ने उनकी प्रतिबद्धता अपनी मुठ्ठी में कर रखी है...बाकी न्‍यूक्‍लियर डील से लेकर ममता बनर्जी से मुंह फेरने तक का ड्रामा सिर्फ और सिर्फ खुद को बचाये रखकर केंद्र से मिल रहे अनुदानों को ठिकाने लगाने तक सीमित है। तभी तो प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही का नाम आते ही दोनों अपने-अपने सुर में ''क्‍या करें कोई सुनता ही नहीं'' कहकर पल्‍ला झाड़ लेते हैं । क्‍या किसी प्रदेश के लिए शासकवर्ग की ये बेचारगी सही मानी जानी चाहिए।
बाबूसिंह कुशवाह के परिवार को समाजवादी बनाये जाते वक्‍त के तमाशे की एक बात गौर करने लायक जरूर है। वह यह कि जिस समय यह तमाशा चल रहा था, स्‍वयं मुलायम सिंह पार्टी कार्यालय में मौज़ूद थे मगर सारी औपचारिकताएं पार्टी प्रवक्‍ता व कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी ने पूरी करवाईं।
फिलहाल तो यह देखना बाकी है कि बाबूसिंह कुशवाहा नाम के आफ्टर इफेक्‍ट्स क्‍या होंगे और मतिभ्रम के रोगी मुलायम सिंह को क्‍या रिज़ल्‍ट्स देकर जायेंगे।
 - अलकनंदा सिंह

4 टिप्‍पणियां:

  1. ये सब आपाद मस्तक भष्टाचार में डूबे हुए है इनसे कोई उम्मीद रखना मुर्खता है
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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  2. मुलायम का समाजवाद , समाजवाद का भारत का अपना ठेठ देशी नवीनतम संस्करण है.न तो यह किसी राजनितिक पुस्तक में मिलेगा न इसका मॉडल अन्यत्र किसी देश में.इसी समाजवादी घोड़े की पीठ पर बैठकर अगले चुनाव में पी एम् बन्ने का सपना भी पाल रहें हैं.जहाँ तक आफ्टर इफेक्ट्स की बात है वह आप भूल जाइये.शायद कुछ दिन बाद आप जैसे विज्ञ विचारक समाजवाद के इस स्वरुप को पुस्तकों में न पा कर "अपराधी समाजवाद "का नाम दे दें.

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