गुरुवार, 23 मई 2013

एक देश...दो प्रदेश ?

आज दो खबरें एक जैसी एक साथ पढ़ीं मगर दोनों में जमीन आसमान का अंतर।एक में राजनीतिक इच्‍छाशक्‍ति लाजवाब तो दूसरे में इसी शक्‍ति के क्षय से पैदा हुआ विक्षोभ।
मेरी तवज्‍जो पहली खबर पर पहले है कि -
एशिया प्रशांत क्षेत्र से केरल के मुख्‍यमंत्री ओमन चांडी को 'संयुक्‍त राष्‍ट्र का जनसेवा पुरस्‍कार' मिला है । यह पुरस्‍कार उन्‍हें राज्‍य में जनसंपर्क कार्यक्रम शुरू करने के लिए मिला जिसके ज़रिये वो राज्‍य में लोगों की शिकायतों के समाधान के लिए सीधे मिलते हैं और इससे भ्रष्‍टाचार रोकने और उससे मुकाबला करने में उन्‍हें मदद भी मिली। नतीजा ये हुआ कि जो राज्‍य अभी तक सिर्फ हाई लिटरेसी रेट के लिए जाना जाता था वो अब जनसामान्‍य की सुविधाओं में भी अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर तक अपनी ख्‍याति पहुंचा चुका है । यह हुआ तभी जब राजकीय इच्‍छाशक्‍ति जागृत हुई और उसे किसी अंजाम तक पहुंचाने का हौसला भी जागा।
दूसरी खबर उस राज्‍य के मुखिया का दर्द है जहां से कभी राष्‍ट्रीय राजनीति को संचालित किया जाता था। संचालित आज भी किया जाता है मगर प्रदेश की तरक्‍की के लिए नहीं भ्रष्‍टाचार की हदें पार करने की होड़ में प्रथम आने के लिए। जी हां, मैं उत्‍तरप्रदेश और इसके मुखिया अखिलेश यादव की ही बात कर रही हूं। कल लखनऊ में आयोजित इंडियन इंडस्‍ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) के लघुउद्यमियों को संबोधित
करते हुये अखिलेश यादव ने प्रदेश के अफसरों पर काम न करने और हर काम को लटकाये रखने की प्रवृत्‍ति पर न सिर्फ रोष जताया बल्‍कि स्‍वयं उनके काम को भी पांच महीने तक लटकाये जाने की सच्‍चाई बयां की। यह तो वो सच था जो इस बड़े प्रदेश के सबसे ताकतवर इंसान ने बताया। आम जनता का सच तो और भी क्रूर है जो किसी भी कार्यालय में जाने से पहले ही ''ऊपरी तौर'' पर ''ले.. दे.. के..'' निपटाने को बाध्‍य कर देता है । अगर बदकिस्‍मती से बात ना बन सके तो ''पेंडिंग'' में डाल जिंदगी भर जूझने को छोड़ देता है ।
ज़मीर के मरने की कथा इतनी लंबी हो चली है इस कथित उत्‍तम (उत्‍तर) प्रदेश में कि आदि और अंत जिस छोर से शुरू होता है उसी छोर पर आकर खत्‍म होता दिखता है । अच्‍छा है कि अब यह मुख्‍यमंत्री को भी दिखा। हालांकि मुलायम सिंह को भी दिखा था तभी तो उन्‍होंने नकेल कसने की कई बार नसीहत भी दी और इसका मज़ाक भी उड़ा। तो वो सब यूं ही नहीं था। वो जो सिर्फ खबरें थीं कि नौकरशाही अखिलेश सरकार को फेल करने में लगी है , इसे कल अखिलेश ने ही सही साबित कर दिया।
बहरहाल प्रदेश में इन बदतर हालातों की सौगात तो प्रदेश के ही पुराने राजनैतिज्ञों से मिली है जिससे पार जाने के लिए अखिलेश यादव को अपनी पार्टी, संगठन के साथ वो इच्‍छाशक्‍ति भी मौजूं करनी होगी जिसे सफलता के पैमाने पर नहीं बतौर एक कोशिश के तौर पर देखा जाये और सराहा भी जाये। अव्‍वल तो सराहना अखिलेश यादव की इसलिए भी की जानी चाहिए कि वे सबकुछ स्‍वीकार कर चल रहे हैं, नकार नहीं रहे और ना ही हांकते नज़र आ रहे हैं।
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि जो कुछ प्रयास करके केरल के ओमन चांडी को संयुक्‍त राष्‍ट्र का पुरस्‍कार मिला उसे उत्‍तर प्रदेश में लागू करना टेढ़ा काम तो है मगर मुश्‍किल अभी भी नहीं। संभावना है ...क्‍योंकि हालात बदलने को ये नई पीढ़ी कोशिश तो करती नज़र आ रही है।
अभी के लिए बस इतना ही आशावाद काफी है ।
-अलकनंदा सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें