दिल्ली में कुलदीप सेंगर को अंतरिम जमानत मिलने के बाद से सियासती गिद्ध फिर से रेपकेस में अपना एजेंडा ढूढ़ लाए जबकि केस अभी कोर्ट में है। मगर हाथरस रेप केस की भांति इसमें भी प्रधानी चुनावों की रंजिश के तहत आरोप प्रत्यारोप लगे। कुछ सच वाले बिंदु ये भी हैं, ज़रा गौर से पढ़ें।
रेप केस में किसी को कैसे फंसाया जाता है इसका क्लासिक उदाहरण उन्नाव मामला है। आरोप लगाने वाली लड़की अपना पहला बयान दर्ज कराती है। पूरी घटना विस्तार में बताती है। इसका-उसका नाम बताती है। कहीं भी मुख्य आरोपी शुभम सिंह की बहन नाम नहीं आता। फिर अचानक उसे और बयान दर्ज कराने वालों याद आता है कि शुभम की बहन को भी फंसाना है। तो एक लाईन लिखवा दी जाती है कि इस सबमें शुभम की बहन भी शामिल थी। फिर ये लाइन बढ़वाने वालों को याद आता है कि कैसे शामिल थी, उसका रोल क्या था ये तो पहले बताया ही नहीं। तो एक शब्द "बराबर" बीच में घुसाया जाता है।
पहले नहीं लिखा था तो caret (^) लगा कर लिखना पड़ता है। "बराबर" शब्द घुसाए जाने के बाद अब शुभम की बहन का रोल तथाकथित रूप से रेप करने वालों के जितना ही हो गया।
हमारे कानून के अनुसार लड़की का इतना बयान किसी को आरोपी बनाने के लिए काफी होता है। पुलिस अधिकारी भी लड़की के बयान के आधार पर चार्जशीट लगा देते हैं क्योंकि उन्हें डर रहता है कि उन पर किसी को बचाने का आरोप लग जाएगा। तो शुभम की बहन भी आरोपी बन गई।
लड़की को कांफिडेंस आ गया कि इतनी आसानी से किसी को फंसाया जा सकता है तो कुछ महीने बाद उसने कुलदीप सिंह सेंगर का नाम भी बढ़ा दिया। प्रियंका गांधी ने "लड़की हूं लड़ सकती हूं" वाला तमाशा शुरू कर दिया। अब जरा कोई बताए कि क्या शुभम की बेकुसूर बहन लड़की नहीं थी?

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