अतुल सुभाष, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे, ने हाल ही में आत्महत्या कर ली। उनकी खुदकुशी के पीछे उनकी पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज उत्पीड़न के आरोपों को बताया जा रहा है। बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले 34 साल के इंजीनियर अतुल सुभाष पर कई मुकदमे चल रहे थे. इनमें भरण पोषण, दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और तलाक के मामले शामिल थे. आत्महत्या से पहले अतुल सुभाष ने एक घंटे से ज्यादा समय का वीडियो संदेश जारी किया था और 23 पेज का सुसाइड नोट भी लिखा. यही नहीं अतुल सुभाष ने न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने पत्नी निकिता सिंघानिया, सास, साले और उनके मामले की सुनवाई कर रही जज पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं. अतुल सुभाष की आत्महत्या के साथ ही एक सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या हमारे देश में पुरुषों के लिए इस तरह के मामलों में कोई कानून नहीं है.
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न (धारा 498ए) के बढ़ते दुरुपयोग को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में कानून का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की ही वकील और तमाम पति-पत्नी के मामलों को देख चुके आजाद खोखर ने बताया कि लोअर ज्यूडिशरी एक तरफा काम करती है. कई बार वह सिर्फ महिलाओं के हक में ही बात करती है. चाहे उन्हें तमाम बार यह दिशा निर्देश क्यों ना मिले हों कि वो पति-पत्नी के मामलों में दोनों की सुने और सही सुनवाई करे. इसके बाद जिला स्तर तक सिर्फ एकतरफा फैसला होता है. लोअर ज्यूडिशरी पुरुषों की बातों को एक तरफ से नजरअंदाज कर देते हैं. यही वजह है कि अतुल सुभाष जैसे आत्महत्या के मामले होते रहते हैं. लोअर ज्यूडिशरी की सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट या किसी भी न्यायालय द्वारा मॉनिटरिंग होनी चाहिए, क्योंकि उस स्तर पर कहीं ना कहीं एक तरफा ही काम होता है और महिलाओं के हक में ही सारी सुनवाई होती है.
हालांकि अदालत ने इस मामले को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि बिना ठोस सबूत के आरोप लगाना निर्दोष लोगों को मानसिक और सामाजिक रूप से प्रभावित करता है।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों में बिना ठोस सबूत के पति और उनके परिवार के खिलाफ आरोपों को प्राथमिक स्तर पर ही रोक देना चाहिए। वैवाहिक विवादों में परिवार के सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति पर अदालत ने चिंता व्यक्त की। पीठ ने स्पष्ट किया कि अस्पष्ट और सामान्य आरोपों को आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए को दहेज उत्पीड़न और क्रूरता रोकने के उद्देश्य से लागू किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को त्वरित न्याय प्रदान करना और ससुराल में होने वाले अत्याचार को खत्म करना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल के वर्षों में इस प्रावधान का दुरुपयोग बढ़ रहा है।
अदालत ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवादों में आईपीसी की धारा 498ए का इस्तेमाल व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने और पति एवं उनके परिवार को परेशान करने के लिए किया जा रहा है। अदालत ने इस प्रवृत्ति को रोकने की जरूरत पर जोर दिया।
वैवाहिक विवादों में सावधानी की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का इस्तेमाल किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान करने के लिए न हो। साथ ही, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी महिला जो वास्तव में उत्पीड़न का शिकार है, उसे अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है।
1. धारा 498ए क्या है?
धारा 498ए भारतीय दंड संहिता का प्रावधान है, जो दहेज उत्पीड़न और वैवाहिक क्रूरता से महिलाओं की सुरक्षा के लिए लागू किया गया है।
2. दहेज उत्पीड़न मामलों में सबसे बड़ी समस्या क्या है?
इन मामलों में अक्सर बिना सबूत के पति और उनके परिजनों के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं, जिससे निर्दोष लोग परेशान होते हैं।
3. अदालतें दहेज उत्पीड़न मामलों में क्या कदम उठा रही हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में ठोस सबूत और विशिष्ट आरोपों के बिना कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी वैवाहिक विवादों में कानून का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष व्यक्तियों की सुरक्षा पर जोर दिया है।
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पति भी कर सकता है मेंटेनेंस की मांग
आजाद खोखर ने बताया कि हिंदू मैरिज एक्ट में पति-पत्नी किसी के लिए कोई भेदभाव नहीं है. दोनों के लिए सामान्य न्याय है, लेकिन कई बार पुरुष सही वकील या सही सिस्टम को नहीं समझ पाते हैं जिस वजह से वो परेशान हो जाते हैं. पुरुष और महिला दोनों के मेंटेनेंस की व्यवस्था हिंदू मैरिज एक्ट में है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस है कि अगर पत्नी कमा रही है तो भी वह मेंटेनेंस मांग सकती है. इसी तरह पति भी मेंटेनेंस मांग सकता है. मुंबई हाई कोर्ट ने 2015 में पत्नी द्वारा पति को 3,000 रुपये महीने अंतरिम भरण पोषण के तौर पर देने के निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-25 के तहत पति पत्नी दोनों को एक दूसरे से भरण पोषण मांगने का अधिकार है.
क्या है घरेलू हिंसा का कानून?
अगर पति को लग रहा है कि पत्नी ने झूठा केस किया है या झूठे मामलों में फंसा रही है, उसके पूरे परिवार को घसीट लिया गया है तो पति सबूत के साथ थाने में जाकर पत्नी के खिलाफ और उसके परिवार के खिलाफ प्रताड़ना का केस कर सकता है. हालांकि पत्नी के पास घरेलू हिंसा का कानून है, पति के लिए वैसा कोई कानून आज तक बना ही नही है. घरेलू हिंसा से सुरक्षा का कानून सिर्फ पत्नी के लिए है, पति के लिए नहीं. हालांकि इसे मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में लिया जाएगा. जिसके आधार पर पति अपनी पत्नी से तलाक की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है, सेक्शन 498a के तहत.
- अलकनंदा सिंंह