बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

ब्रज का सांझी उत्सव, आज हुआ समापन, सूखे रंगों की साँझी ने मनमोहा

 वृन्दावन के मंदिरों में आजकल तरह-तरह की सांझी उत्सव सज रही है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से सांझी उत्सव प्रारंभ होता है जो कि भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (श्राद्धपक्ष में 15 दिनों ) तक चलता है। आज इसका समापन हो गया है। 

ये देख‍िए सूखे रंगों की साँझी






'जुगल जोड़ी', 'श्रीकृष्ण रास' और 'श्रीराम का राजतिलक', ये तीनों सूखे रंगों की पारम्परिक साँझी ग्वालियर के युवा कलाकार यमुनेश नागर ने बनाई हैं। प्रत्येक साँझी में ६ से ८ साँचे, एक के बाद एक रख कर, अलग अलग रंग डाले गये हैं।

यमुनेश नागर ग्वालियर आकाशवाणी पर बी हाई ग्रेड का पखावज वादक भी हैं।


ये है सांझी उत्सव मनाने का असली कारण

वैष्णव जन के हर घर के आंगन और तिबारे में बनाने की परंपरा है। राधारानी अपने पिता वृषभान के आंगन में सांझी पितृ पक्ष में प्रतिदिन सजाती थी। उनके भाई एवं परिवार का मंगल हो इसके लिए फूल एकत्रित करते थे और इसी बहाने श्री राधा कृष्ण का मिलन होता था। कन्याएं एवं रसिक भक्त जन आज भी पितृ पक्ष में अपने घरों में गाय के गोबर से सांझी सजाती हैं। इसमें राधा कृष्ण की लीलाओं का चित्रण अनेक संम्प्रदाय के ग्रंथों में मिलता है। ऐसा विश्वास है कि श्री राधा कृष्ण उनकी सांझी को निहारने के लिए अवश्य आते हैं।


शुरू में पुष्प और सूखे रंगों से आंगन को सांझी से सजाया जाता था। अब समय के साथ सांझी सिर्फ सांकेतिक रह गई है। 

सरस माधुरी काव्य में सांझी का कुछ इस तरह उल्लेख किया गया है। 

सलोनी सांझी आज बनाई, 

श्यामा संग रंग सों राधे, रचना रची सुहाई। 

सेवा कुंज सुहावन कीनी, लता पता छवि छाई। 

मरकट मोर चकोर कोकिला, लागत परम सुखराई।

- अलकनंदा स‍िंंह 

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