मंगलवार, 3 सितंबर 2024

क्या आप जानते हैं, शाम को फूलों पर बैठी हुई मधुमक्खियाँ बूढ़ी मधुमक्खियाँ होती हैं

 

क्या आप जानते हैं, शाम को फूलों पर बैठी हुई मधुमक्खियाँ बूढ़ी मधुमक्खियाँ होती हैं। 🐝🐝

बूढ़ी और बीमार मधुमक्खियाँ दिन के अंत में छत्ते में वापस नहीं आती हैं। वे रात को फूलों पर बिताती हैं, और अगर उन्हें फिर से सूर्योदय देखने का मौका मिलता है, तो वे पराग या अमृत को कॉलोनी में लाकर अपनी गतिविधि फिर से शुरू कर देती हैं। वे यह महसूस करते हुए ऐसा करती हैं कि अंत निकट है। कोई भी मधुमक्खी छत्ते में मरने का इंतज़ार नहीं करती ताकि दूसरों पर बोझ न पड़े। तो, अगली बार जब आप रात के करीब आते हुए किसी बूढ़ी छोटी मधुमक्खी को फूल पर बैठे हुए देखें... . . .मधुमक्खी को उसकी जीवन भर की सेवा के लिए धन्यवाद दें🐝❣️🐝


मधुमक्खियों से जुड़ी कुछ और बातें: 
 
मधुमक्खियां आमतौर पर अंडाकार आकार की होती हैं और इनका रंग सुनहरा-पीला और भूरे रंग की पट्टियों वाला होता है. 
 
मधुमक्खियां संघ बनाकर रहती हैं और हर संघ में एक रानी, कई सौ नर, और बाकी श्रमिक होते हैं. 
 
मधुमक्खियां नृत्य के ज़रिए अपने परिवार के सदस्यों को पहचानती हैं. 
 
मधुमक्खियां लीची, कॉफ़ी, और कोको जैसे फूलों के परागण में अहम भूमिका निभाती हैं. 
 
मधुमक्खियां चीनी की चाशनी खाना पसंद करती हैं. 
 
मधुमक्खियां अक्टूबर से दिसंबर के बीच अंडे देती हैं. 
 
मधुमक्खियां ज़्यादातर तभी हमला करती हैं जब उन्हें खतरा महसूस होता है. 
 
मधुमक्खियां विषैला डंक मारती हैं.

रविवार, 1 सितंबर 2024

ना उम्र की सीमा हो.... तुर्की की दादी-नानियों का थिएटर ग्रुप जो पर्यावरण बचाने को आगे आया


 तुर्की के छोटे से कस्बे अरलंस्कॉय की 62 साल की दादी मां इन दिनों पूरे देश में चर्चा हैं। इसकी वजह है- उनके द्वारा शुरू किया गया थियेटर ग्रुप। इस ग्रुप में सभी महिलाएं हैं। ग्रुप क्लाइमेट चेंज को लेकर जागरुकता लाने के लिए अलग-अलग जगह पर नाटक का मंचन करता है। इन दिनों ये महिलाएं अपने नए नाटक 'मदर, द स्काय इज पीयर्स्ड की रिहर्सल में व्यस्त हैं। इस महिला थियेटर ग्रुप की प्रमुख उम्मिये कोकाक चाहती हैं कि दुनियाभर में लोग इस समस्या को समझें और गंभीरता से लें। 

कोकाक के काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना जाता है। 2013 में तुर्की की महिलाओं पर फिल्म के लिए न्यूयॉर्क फेस्टिवल में अवॉर्ड भी मिला था। कोकाक फुटबॉलर क्रिस्टिआनो रोनाल्डो के साथ एड कर चुकी हैं। 

नाटकों का मकसद धारणा बदलना है



कोकाक के मुताबिक, ‘‘क्लाइमेट चेंज सिर्फ उनके कस्बे की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है। मैं इस समस्या को लेकर जितनी जोर से आवाज उठा सकती हूं, उठाऊंगी। ये दुनिया हमारी भी है। इसे बेहतर देखभाल की जरुरत है। दरअसल, कोकाक इससे पहले भी नाटक लिखती रही हैं। उनके नाटकों का उद्देश्य धारणाओं को बदलना रहता है। इससे पहले उन्होंने गरीबी, अल्जाइमर रोग, घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर नाटक लिखे हैं। तुर्की के टीवी ड्रामा पर इनकी खासी चर्चा हुई है।’’

महिलाओं की बात सुनी जानी चाहिए



कोकाक का अरलंस्कॉय आना शादी के बाद हुआ। वहां पर उन्होंने देखा कि महिलाएं घर और खेतों में बराबरी से काम करती हैं। उन्हें लगा कि यह ठीक नहीं हैं, इन महिलाओं की बात सुनी जानी चाहिए। वो काफी समय से इस पर काम कर थी। थियेटर ग्रुप इसी का नतीजा है। गांव में कोई हॉल या सेट तो था नहीं, इसलिए कोकाक ने घर के गार्डन में ही रिहर्सल शुरू करवा दीं। धीरे-धीरे इस ग्रुप की चर्चा पूरे तुर्की में फैल गई। अब लोग इन दादी-नानियों को स्थानीय स्तर पर नाटक मंचन के लिए बुलाने लगे हैं। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो खूब शेयर हो रहे हैं।

- अलकनंंदा स‍ि‍ंह