शनिवार, 13 अप्रैल 2024

13 अप्रैल 1984: जब भारत ने सैन्य अभियानों के इतिहास में लिखा स्वर्णिम अध्याय


 13 अप्रैल 1984 का वो दिन, जब भारत ने सैन्य अभियानों के इतिहास में सफलता का ऐसा स्वर्णिम अध्याय लिखा जो बीते चार दशक से एक-एक भारतीय को रोमांचित कर रहा है। सियाचिन में चला 'ऑपरेशन मेघदूत' सैन्य इतिहास की एक अविस्मरणीय गाथा है। ऑपरेशन भले ही 1984 में हुआ लेकिन इसकी भूमिका भारत के विभाजन के वक्त ही लिखी गई और पटकथा का बड़ा अंश कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों के वक्त लिखा गया। 

दरअसल, इस युद्ध के बाद 1949 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच कराची समझौता हुआ। इसके अनुसार अविभाजित कश्मीर में एक युद्धविराम रेखा (सीएफएल) पर सहमत हुए। युद्धविराम रेखा का सबसे पूर्वी हिस्सा एनजे9842 नामक एक बिंदु से आगे खींची गई थी। तब केवल इतना कहा गया था कि एनजे9842 से यह रेखा 'उत्तर से ग्लेशियरों तक' चलेगी, सियाचिन ग्लेशियर, रिमो और बाल्टोरो होकर। 
समझौते में शामिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सचिव रहे स्वर्गीय लेफ्टिनेंट जनरल एस के सिन्हा ने बाद में लिखा, 'उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि एनजे9842 से आगे की ऊंचाइयों पर सैन्य अभियान हो सकते हैं। किसी भी मामले में युद्धविराम रेखा बिल्कुल अस्थायी थी। जनमत संग्रह के बाद यह अप्रासंगिक हो जाएगी। इस प्रकार, हमने एनजे9842 से उत्तर की ओर ग्लेशियरों तक एक सीधी रेखा खींची। घटना के बाद बुद्धिमान होना आसान है। यह बेहतर होता अगर एनजे9842 से आगे की रेखा को अस्पष्ट नहीं छोड़ा जाता।' 
1982 में जब लेफ्टिनेंट जनरल चिब्बर उत्तरी सेना कमांडर थे, तो उन्हें पाकिस्तानी सेना का एक विरोध पत्र दिखाया गया जिसमें भारत को सियाचिन से बाहर रहने की चेतावनी दी गई थी। सेना ने कड़े शब्दों में इसका विरोध दर्ज कराया और 1983 की गर्मियों के दौरान ग्लेशियर पर गश्त जारी रखने का फैसला किया। जून और सितंबर 1983 के बीच सेना के दो मजबूत गश्ती दलों ने ग्लेशियर का दौरा किया जिनमें से दूसरे ने एक छोटी सी झोपड़ी बना ली। तब पाकिस्तानी पक्ष इसका जोरदार विरोध किया। फिर दोनों पक्षों के बीच विरोध पत्रों और जवाबी पत्रों का सिलसिला सा चलता रहा। 
इस दौरान भारतीय सेना समझ गई थी कि पाकिस्तान की नीयत खराब है। यह भी पता चल गया कि पाकिस्तानी सेना सियाचिन ग्लेशियर पर धावा बोलने की तैयारी में है। खुफिया रिपोर्टों में सियाचिन की ओर पाकिस्तानी सैनिकों की आवाजाही की बात आ रही थी। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ को पता चला कि पाकिस्तानी सेना यूरोप से बड़ी मात्रा में ऊंचाई वाले गियर खरीद रही है। पाकिस्तान की मंशा उजागर होने के बाद भारत ने पाकिस्तान को सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने से रोकने के लिए 'ऑपरेशन मेघदूत' लॉन्च किया जिसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मंजूरी दी थी। 
एक बार भारतीय सेना को इशारा मिल जाए तो भला कौन सी चुनौती है जिसे मात नहीं दी जा सकती! तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल मनोहर लाल छिब्बर, ले. ज. पीएन हून और ले. ज. शिव शर्मा के नेतृत्व में भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू कर दिया। साल्टोरो रिज पर कब्जे के लिए 10 से 30 अप्रैल के बीच किसी भी दिन ऑपरेशन शुरू करने की योजना बनी। इसका नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई ब्रिगेडियर विजय चन्ना को। उन्होंने 13 अप्रैल की तारीख चुनी। वह बैसाखी का दिन था। पाकिस्तानी सेना ने शायद ही सोचा होगा कि भारत इस दिन ऑपरेशन शुरू करने वाला है। 
इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी चुनौती थी खराब मौसम और अत्यधिक ठंड, जहां तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इसके अलावा ऑक्सीजन की कमी और बर्फीली हवाएं जानेलवा सिद्ध हो सकती थीं। फिर भी भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और उत्कृष्ट रणनीति से इन कठिनाइयों का सामना किया।
पहले चीता हेलीकॉप्टर ने 13 अप्रैल को सुबह 5.30 बजे कैप्टन संजय कुलकर्णी और एक सैनिक को लेकर बेस कैंप से उड़ान भरी। दोपहर तक 17 ऐसी उड़ानें भरी गईं और 29 सैनिकों को बिलाफोंड ला में उतारा गया। जल्द ही, मौसम खराब हो गया और पलटन मुख्यालय से कट गई। तीन दिनों के बाद संपर्क स्थापित हुआ, जब पांच चीता और दो एमआई-8 हेलीकॉप्टरों ने 17 अप्रैल को सिया ला के लिए रिकॉर्ड 32 उड़ानें भरीं। इस तरह, सबसे पहले बिलाफोंड ला और सिया ला की चोटियों पर भारत का फिर से कब्जा हो गया, जिससे पाकिस्तानी सेना के लिए इन रणनीतिक स्थलों तक पहुंच पाना नामुमकिन हो गया। 
उसके बाद तो जल्द ही पूरे ग्लेशियर को सुरक्षित कर लिया गया। लेफ्टिनेंट जनरल चिब्बर ने एक आधिकारिक नोट में लिखा, 'दो मुख्य दर्रे बंद कर दिए गए। दुश्मन को पूरी तरह से आश्चर्यचकित कर दिया गया और लगभग 3,300 वर्ग किमी का क्षेत्र, जिसे पाक और यूएसए की ओर से प्रकाशित मानचित्रों पर अवैध रूप से पीओके के हिस्से के रूप में दिखाया गया था, अब हमारे नियंत्रण में था। दुश्मन को कब्जा करने के उनके प्रयास में पहले ही रोक दिया गया था।' ग्लेशियर पर आज भी कब्जा है। 
ऑपरेशन मेघदूत भारतीय सैन्य इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है। यह वीरता, कुशलता और रणनीतिक सोच का एक प्रतीक है। इस ऑपरेशन ने भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत किया और पाकिस्तान की आक्रामकता को रोकने में मदद की। यह भारतीय सेना की वीरता और कुशलता का प्रतीक है। आज भी सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का नियंत्रण बना हुआ है, जो ऑपरेशन मेघदूत की ही देन है। 13 अप्रैल हमेशा भारतीय सेना के वीर जवानों की बहादुरी और बलिदान को याद दिलाता रहेगा।

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