रविवार, 30 अक्टूबर 2022

स्टांप पेपर पर लड़कियों की नीलामी: राजस्‍थान में बच्चियों की 'नीलामी' के सच का पूरा काला चिट्ठा


 अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत समेटे राजस्थान कई सदियों से अपनी वीरता, शौर्य, पराक्रम, भक्ति और सौदर्य के लिए दुनियाभर में विख्यात रहा है। रियासतकालीन शहरों और यहां की विरासत को निहारने आज भी देसी-विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है। लेकिन सप्ताह भर से मरुधरा की अलग ही तस्वीर मीडिया रिपोर्ट्स में पेश की जा रही है। इन रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कई इलाकों में आज भी यहां लड़कियों की नीलामी होती हैं। बच्चियों का सौदा किया जाता है। दबाव बनाने के लिए महिलाओं से दुष्कर्म और स्टाम्प पेपर पर खरीद-फरोख्त होती है। देर से ही सही एक दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी चुप्पी तोड़ी और मामले की जांच पड़ताल की बात कर सच तक पहुंचने और कारगुजारी करने वालों को नहीं बख्शने की बात कही। राष्ट्रीय महिला आयोग, विपक्षी दल, सामाजिक संगठनों ने भी पूरजोर आवाज उठाई। सच क्या है? जानने के लिए राजस्थान राज्य महिला आयोग ने जिला कलेक्टर और एसपी से रिपोर्ट भी तलब की। हुआ भी कुछ ऐसा ही। शनिवार को पुलिस के मुखिया डीजीपी एमएल लाठर और जिला कलेक्टर आशीष मोदी ने इस पूरे मामले की जानकारी देते हुए कई खुलासे किए।

पुलिस ने माना ऐसा हुआ, तीन साल पहले 25 लोगों के खिलाफ जुर्म साबित
राजस्थान के पुलिस महानिदेशक पुलिस महानिदेशक एमएल लाठर ने शनिवार को कहा कि 'पहले कुछ समाज विशेष में घर की महिलाओं से वेश्यावृत्ति कराए जाने जैसी सामाजिक कुरीति व्याप्त थी। वर्तमान में राजस्थान पुलिस की ओर से ऐसी अनैतिक गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखकर इन घटनाओं पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा चुका है। इन अवांछित गतिविधियों के संबंध में सूचना प्राप्त होते ही पुलिस ने तुरंत विधिक कार्रवाई अमल में लाई जा रही है।' मीडियो रिपोर्ट्स वाला मामला 3 साल पुराना है। कथित मामले में दो पीड़ित लड़कियों को अजमेर के नारी निकेतन में रखा गया है। 2019 में इस मामले में 25 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अदालत में जुर्म साबित किया जा चुका है। 
बच्चियों की खरीद-फरोख्त की सूचना पर पुलिस ने शुरू की निगरानी
पुलिस महकमे के मुखिया ने बताया महिलाओं राज्य के विरुद्ध घटित अपराधों पर राजस्थान पुलिस अत्यंत संवेदनशील है। महिला अत्याचार से संबंधित प्रकरणों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है। इन अपराधों की रोकथाम एवं अनुसंधान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। महिलाओं एवं नाबालिगों की खरीद-फरोख्त संबंधी समाचार सामने आने के बाद लाठर ने बताया कि महिलाओं एवं नाबालिगों की खरीद-फरोख्त एवं अनैतिक कार्य कराए जाने के संबंध में संवेदनशील स्थानों पर लगातार पुलिस निगरानी रख आसूचना एकत्रित कर रही है। 
लड़कियों की नीलामी या खरीद-फरोक्त आम थी, फिर चलाया ऑपरेशन गुड़िया
पुलिस के बयान अनुसार इलाके में कुछ समाज विशेष के परिवारों में महिलायों से गलत काम कराया जाता था। ऐसी परम्परा कई वर्षों से चली आ रही थी। इस तबके में इस तरह के अपराधों के खिलाफ पुलिस ने साल 2019 में अभियान भी चलाया। लड़कियों की खरीद-फरोख्त के संबंध में यह अभिया भीलवाड़ा जिले में ऑपरेशन गुड़िया के नाम से चलाया गया था।
बच्चियों को किडनैप कर अड्‌डों पर पहुंचा जाता, जवान होने की दवा खिलाई जाती
पुलिस के बयानों में कई खुलासे हुए हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि बच्चियों को किडनैप कर उन्हें अड्‌डों पर लाया जाता था। इन्हीं अड्‌डों पर बच्चियों को जवान बनाने के लिए दवाइयां दी जाती। फिर जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया जाता। पुलिस के बयान में यह भी बताया गया है कि पुलिस टीम ने अपह्रत बच्चियों को अपहरणकर्ताओं से खरीद वेश्यावृत्ति करवाने वाले आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया है।
भीलवाड़ा और अजमेर के 5 अड्‌डों पर धकेला जाता
बच्चियों और महिलाओं को आरोपी भीलवाड़ा और अजमेर के अड्‌डों पर पहुंचाते। इन अड्‌डों में भीलवाड़ा का इटुन्दा, पंढेर और हनुमान नगर शामिल है। वहीं अजमेर के सांवर थाना क्षेत्र का नापाखेडा और जसवंत नगर में भी वेश्यावृत्ति के अड्डा संचालित हो रहा था। इन्हीं अड्डों पर किडनैप कर लाई गई बच्चियों को दवाओं के जरिए से जवान बनाया जाता और फिर वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेला जाता।
मुंबई, एमपी और यूपी तक जुड़े हैं तार, 7 बच्चियों को छुड़ाया गया
बच्चियों और महिलाओं के जिस्मफरोशी के दलदल में धकेलने वाले गिरोह के बारे में पुलिस ने कई ओर खुलासे किए हैं। पुलिस जांच के हवाले से बताया गया है कि गिरोह के तार राजस्थान के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र से जुड़े थे। तीन साल पहले हुई कार्रवाई के दौरान इन राज्यों के कई स्थानों पर दबिश दी गई थी। नाबालिग समेत सात पीड़ित बच्चियों को दस्तयाब कर लड़कियां खरीदने एवं बेचने वाले कई आरोपियों को गिरफ्तार कर जांच के बाद 25 आरोपियों के खिलाफ अदालत में चालान पेश किया गया।
पुलिस की पड़ताल में अब और हो सकते हैं खुलासे
पुलिस ने अब तक 2019 के ऑपरेशन गुड़िया और 7 बच्चियों के रेस्क्यू का जिक्र किया है। यह भी बताया है कि 25 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन ताजा मीडिया रिपोर्ट्स की पड़ताल अभी बाकी है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो 2019 जैसे हालात अब भी कई पिछड़े इलाकों में हो सकते हैं। एक रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि स्टांप पेपर पर लड़कियों की नीलामी की जा रही है और जाति पंचायतों के फरमान पर महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान राज्य महिला आयोग ने इस बारे में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट पर भीलवाड़ा जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से लड़कियों की नीलामी को लेकर तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।

-Compiled

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

करवा चौथ: दर्पण के उस पार का सच कुछ और भी है

देश, समाज और रिश्‍ते..सबकी मजबूती और गहराई उसकी जड़ों से मापी जाती है...जड़ों की मजबूती जिस रूप में इन्‍हें थामती हैं, वे उसी तर्ज पर आगे बढ़ते हैं। यह सतत प्रक्रिया है कि परिवार से समाज और इससे फिर देश तक की समृद्धि का आंकलन उसकी जड़ों के आधार पर ही किया जाता है।

इसमें आश्‍चर्य नहीं कि जड़ों को क्‍यों 'स्‍त्रीलिंग' माना गया, कारण साफ है कि स्‍त्री परिवार की जड़ होती है क्‍योंकि परिवार में हर संबंध का आधार स्‍त्री से प्रारंभ होकर उसके व्यवहार से तय होता है। इसीलिए सारे तीज-त्‍यौहार स्‍त्रियों को केंद्र मानकर बने, और इनका पालन भी स्‍त्रियों के ही जिम्‍मे रहा क्‍योंकि वह जड़ ही होती है जो तने को संबल देकर वटवृक्ष तक बनाती है, करवा चौथ भी ऐसे त्‍यौहारों में से एक है। 

वर्तमान में करवा चौथ से रूप को देखकर कई विचार मन में आ रहे हैं, कुछ धार्मिक तो कुछ सामाजिक, कभी सोचती हूं कि लीक पर चलकर सब कुछ जस का तस मानती चलूं, मगर मन विद्रोह करता है क्‍योंकि जिस उद्देश्‍य के साथ ये त्‍यौहार पवित्रता और प्रेम को साथ लेकर चला आज वह अपने अत्‍यंत विध्‍वंसक रूप में हमारे सामने है।

परिवार में आपसी प्रेम और मन की स्‍थिरता के लिए भगवान शिव, माता गौरी व भगवान गणेश की आराधना का ये पर्व आज एकमात्र पति-पत्‍नी के उस प्रेम में समेट दिया गया है जो बाजार के हाथों की कठपुतली बना हमारे सामने है। पढ़ी लिखी स्‍त्रियों द्वारा भी परंपरा के नाम पर इसे ''बस यूं ही'' मनाया जाता रहा। इसके व्रत का वास्‍तविक उद्देश्‍य तो गायब ही हो गया है। 

हालत अब ये हो गई है कि व्रत से एक दिन पहले किसी रेस्‍टोरेंट में जाकर भरपूर खाना, फिर रोज़ा की भांति 'सरगी' के नाम पर सुबह उठकर खा लेना, महंगे गिफ्ट की लालसा, सारे दिन टीवी या मनोरंजन के अन्‍य साधन पर समय व्‍यतीत करना आदि ...सब कुछ होता है, जो नहीं होता वह है भगवान की आराधना...। 

कहा जाता है कि करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं निर्जला रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर या होने वाले पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। फिर रात के समय चंद्रमा को अर्घ्‍य देने के बाद ही यह व्रत संपन्‍न होता है। 

परंतु जो कुछ दिख रहा है उसे भी झुठलाया नहीं जा सकता। कैसे आंखें फेर लें हम, क्‍या बस इसलिए चुप रहें कि कोई हमें नास्‍तिक कहकर आलोचना ना कर दे। इस कटु सत्‍य को नकारने का ही नतीज़ा है कि परिवार की जड़ें कमजोर हो चुकी हैं, हर तीसरा घर छिन्‍नभिन्‍न हो रहा है। तलाक के मामले बेतहाशा बढ़ रहे हैं। संपत्‍तियों के लिए पति-पत्‍नी के बीच 'सौदेबाजी' और ब्‍लैकमेलिंग आज का एक 'कड़वा और घिनौना' सच है जो उत्‍तरोत्‍तर बढ़ ही रहा है। जब धन का बोलबाला होता है तो आध्‍यात्‍मिकता यूं भी तिरोहित हो जाती है।  

स्‍त्रियों की आर्थिक सबलता हमें एक बढ़ते वृक्ष की तरह दिख तो रही है परंतु उसकी जड़ें लगातार खोदी जा रही हैं। वे जड़ें जो मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक हैं, जिनकी कि स्‍त्रियां स्‍वयं संवाहक हैं। 

बेहतर हो कि प्रेम और आस्था के इस पर्व करवाचौथ पर बाहरी सुंदरता चमकाने की बजाय भीतरी सुंदरता अर्थात् आध्‍यात्‍मिकता की ओर ले जाया जाये ताकि हम परिवार की जड़ों को मजबूत कर सकें। स्‍त्रियों के लिए करवाचौथ तो एक माध्‍यम है कर्तव्‍यों वाली अपनी जड़ों की ओर देखने का कि बाहरी सजावट से नहीं आध्‍यात्‍मिक चिंतन और आराधना से ही परिवार और पति-पत्‍नी सुखी रह सकते हैं। परिस्‍थितियों को बिगाड़ने में समय नहीं लगता सुधारने में लगता है, फिर भी मैं आशावान हूं कि ये यदि ऐसा हो पाता है तो बेहतर समाज और देश के लिए यह निश्‍चित ही एक उपलब्‍धि होगी।

- अलकनंदा सिंह

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022

भेदभाव का खुला दस्तावेज है वक्फ अधिनियम 1995

 

1954 में वक्फ की संपत्ति और उसके रखरखाव के लिए वक्फ एक्ट-1954 बनाया गया था। कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे। देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। 1995 में वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी गईं। कानून कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे, तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा।

यदि दावा गलत है तो संपत्ति के मालिक को इसे सिद्ध करना होगा। 2013 में फिर इसमें संशोधन किए गए। अब वक्फ बोर्ड और वक्फ की संपत्तियां फिर चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने वक्फ की संपत्तियों का सर्वे कराने का निर्णय लिया है। देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास है। इसकी संपत्तियां आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। पिछले 13 साल में वक्फ की संपत्ति करीब दोगुनी हो गई है। ऐसे कई तथ्य हैं, जो इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। जब यह कानून बना था, तब इसे लेकर भले ही कुछ तार्किक कारण रहे हों, लेकिन आज यह पूरी तरह से कब्जे और वसूली का माध्यम बनता दिख रहा है। ऐसे में वर्तमान देश-काल और परिस्थिति में वक्फ कानून और उसके अधिकारों की सामयिकता और संवैधानिकता की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

वक्फ अधिनियम 1995 की संवैधानिकता को चुनौती
वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दी थी। अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के लिए स्थानांतरण याचिका दी है। याचिका में उन्होंने इस अधिनियम को संविधान के विभिन्न प्रविधानों की कसौटी पर परखा है। यह अधिनियम धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है। वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है। यह पंथनिरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है।

यदि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात करता है, तो इसमें अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोगों के लिए समानता होनी चाहिए, किंतु यह केवल मुस्लिम समुदाय के लिए है।

यदि यह अधिनियम अनुच्छेद 29 व 30 के तहत अल्पसंख्यकों के हित की रक्षा की बात करता है, तो इसमें जैन, बौद्ध, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं है।

इंडियन ट्रस्टीज एक्ट 1866, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, चैरिटेबल एंडामेंट एक्ट 1890, आफिशियल ट्रस्टीज एक्ट 1913 और चैरिटेबल एंड रिलीजियस एक्ट 1990 जैसे अधिनियमों के तहत सभी समुदायों से जुड़े ट्रस्ट व दान आदि का प्रबंधन किया जाता है। इन सभी को साथ लाने के बजाय एक धर्म पर केंद्रित वक्फ कानून बना दिया गया।

न्याय की व्यवस्था के विरुद्ध
संविधान ने तीन तरह के न्यायालयों की व्यवस्था की है। अनुच्छेद 124-146 के तहत संघीय न्यायपालिका, अनुच्छेद 214-231 के तहत हाई कोर्ट और अनुच्छेद 233-237 के तहत अधीनस्थ न्यायालय। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि सभी तरह के नागरिक विवाद संविधान के तहत बनी न्यायपालिकाओं में ही सुलझाए जाएं। ऐसे में वक्फ ट्रिब्यूनल को लेकर इस अधिनियम में की गई व्यवस्था संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है।

अनुच्छेद 27 का स्पष्ट उल्लंघन
वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता, मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुतावल्ली होते हैं। इन सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है, जबकि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं। दूसरी ओर, केंद्र व राज्य सरकारें देश के चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं, लेकिन उनके लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं है। यह अनुच्छेद 27 का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि के लिए हो।

वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकार
वक्फ अधिनियम, 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें, जो एक बार फिर समानत को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन है।

संपत्ति के अधिकार भी सुरक्षित नहीं
अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नहीं। यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह संबंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल कर लिया जाए। यानी संपत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है। यह अनुच्छेद 14, 15, 26, 27, 300-ए का उल्लंघन है।

लिमिटेशन एक्ट से भी छूट
वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है। इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है।

दीवानी अदालतों की सीमा से भी बाहर
धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन करते हुए विवादों की सुनवाई के मामले में दीवानी अदालतों का अधिकार छीन लिया गया है। संसद के पास ऐसा अधिकार नहीं है जिसके तहत वह ऐसा ट्रिब्यूनल गठित कर दे, जिससे न्याय व्यवस्था को लेकर संविधान के अनुच्छेद 323-ए का उल्लंघन होता हो। वक्फ बोर्ड को कई ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जो इसी तरह के अन्य ट्रस्ट या सोसायटी के पास नहीं हैं।