शुक्रवार, 7 जनवरी 2022

वो अमृता... ज‍िसे हम अंडरएस्‍टीमेट करते रहे


 आज कि‍सी खास व‍िषय पर ल‍िखने का मन नहीं है। कोरोना को झेलते झेलते 2021 भी व‍िदा हो गया और कोरोना के नए वेरि‍एंट ओमीक्रोन की आमद के साथ ही 2022 में कदम रखा मगर कुछ "खास" नहीं ल‍िख पाई। इस बीच एक बड़ा सबक म‍िला। दरअसल, मेरे घर में "बस यूं ही" उग आई ग‍िलोय (अमृता) की बेल ने बताया क‍ि हम ज‍िन्हें अंडरएस्‍टीमेट कर नज़रंदाज़ कर देते हैं, वे क‍ितने कीमती होते हैं। तो सोचा... क‍ि क्‍यों ना आज इस बेजोड़ दवा से जुड़े अपने व पूरे पर‍िवार को हुए फायदों के बारे में बताया जाये। 

हां, आज जब सोचती हूं तो झे अपनी अज्ञानता पर क्षोभ होता है क‍ि लगभग दो साल तक मैं इसके फायदों से अनजान कैसे रही, या यूं कहें क‍ि इसे कभी गंभीरता से क्यों  नहीं ल‍िया। जो रोग दो साल पहले ठीक हो सकते थे और मेरा शारीरिक, मानसिक व आर्थ‍िक नुकसान कम हो सकता था, उस पर मेरी लापरवाही ही हावी रही।    


लगभग दो तीन साल पहले इस अमृता बेल ने हमारे लॉन में जब अपनी जगह बनाई, तब पहले पहल मैं इसे मात्र सजावटी बेल समझी फि‍र अध्‍ययन क‍िया तो पता चला क‍ि यह स्‍वास्‍थ्‍य के ल‍िए अमृत समान काम करती है मगर फिर भी महज पढ़कर छोड़ द‍िया। इस बार दशहरे पर इसने घर की पूरी टेरेस पर अपना  साम्राज्‍य स्‍थाप‍ित कर ल‍िया। अपने घर को पौधों से सजाना मुझे बेहद पसंद है परंतु इसके इस तरह बेतरतीबी से फैलते जाने पर मैं परेशान थी, इसे अपने घर की सजावट में बाधा समझने लगी और इसे छंटवा द‍िया, छांटी गई बेल को छत पर यूं ही डाले रखा। दशहरे से दीपावली आ गई। इसी बीच एक द‍िन व‍िचार आया क‍ि क्‍यों ना इसे उबाल कर काढ़ा बनाऊं और सेवन कर देखूं। मैंने अपना "प्रयोग" शुरू कि‍या, और जैसा क‍ि इसका नाम है इसने मेरे यकीन से आगे बढ़कर काम कि‍या। फि‍र तो मैंने पूरे पर‍िवार को देना शुरू कर द‍िया और देखते ही देखते द‍िनचर्या की शुरुआत ग‍िलोय से होने लगी।

ग‍िलोय के सेवन ने बताया क‍ि रक्‍तव‍िकार, डायब‍िटीज, क‍िडनी, ब्‍लडप्रेशर, त्‍वचा व माहवारी, मेनोपॉज संबंधी परेशान‍ियां, इनडाइजेशन, ब्‍लोट‍िंग, एस‍िड‍िटी, जुकाम, खांसी, एलर्जी व हाथ पैरों का फटना व दर्द तथा सूजन और मोटापा  आद‍ि में क‍िस तरह इस मामूली सी द‍िखने वाली बेल ने महज दो महीनों के सेवन से छूमंतर कर द‍िया। 

अभी तक तो सुना और पढ़ा था परंतु जब स्‍वयं परखा तब मता लगा कि आखिर इसे अमृता क्‍यों कहते  हैं 1 

इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है। इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं पत्तों का नहीं, उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है।
डंडी को ऐसे  भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें, हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी।
इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते . toxins खत्म हो जाते हैं , और बुखार तो बिलकुल नहीं आता। पुराने से पुराना बुखार खत्म हो जाता है।
इससे पेट की बीमारी, दस्त,पेचिश,  आंव, त्वचा की बीमारी, liver की बीमारी, tumor, diabetes, बढ़ा हुआ E S R, टी बी, white discharge, हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं ।

आज भी ये घर में द‍िन के शुरुआत की अहम कड़ी बनी हुई है। आश्‍चर्य होता है ये देखकर क‍ि सच में एक औषध‍ि इतने रोगों में कैसे कारगर हो सकती है परंतु अब मेरा और मेरे पर‍िवार का स्‍वास्‍थ्‍य इसका जीवंत उदाहरण है। 

अमूमन तो मानव व्‍यवहार में एक कमी होती है क‍ि यद‍ि आप क‍िसी रोगी को अपनी ओर से उसका इलाज़ बताएंगे तो वह उसे "हल्‍के" में लेता है और हजारों की दवाइयों पर उसे पूरा भरोसा होता है क‍ि ये ठीक कर ही देंगी जबक‍ि होता उल्‍टा ही है। प्रत्‍यक्षत: एलोपैथ‍िक दवाइयां ठीक करती प्रतीत तो होती हैं परंतु वे साथ ही साथ अनेक साइड इफेक्‍ट भी "र‍िटर्न ग‍िफ्ट" के रूप में देकर जाती हैं। 

अब जबक‍ि मैं सबको बीमारी को ठीक करने के उपाय बताती हूं तब मालूम हो रहा है क‍ि आख‍िर क्‍यों डॉक्‍टर्स बीमारी को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं, क्‍योंक‍ि बीमारी को जब तक प्रोपेगंडा बतौर पेश ना क‍िया जाए तब तक लोग ना तो इलाज़ की गंभीरता समझते हैं और ना ही खासकर देशी इलाज़ की महत्‍ता को।

टेकन फॉर ग्रांटेड लेने की अपनी आदत ने हमें दवाइयों पर न‍िर्भर कर द‍िया है। हम आसान जीवन जीना ही भूल चुके हैं, बीमारी में भी थ्र‍िल खोजते हैं। 

   हालांक‍ि मैं प्रयास कर रही हूं क‍ि इसकी उपयोग‍ि‍ता सभी को बताऊं और आज इसके बारे में ल‍िखने का कारण भी यही है, परंतु दुख तब होता है जब लोग जानते बूझते हुए घर में उगाई जा सकने वाली इस बहुमूल्‍य औषध‍ि की उपेक्षा करते हैं। आज कौन सा ऐसा घर है जहां रक्‍तव‍िकार, डायब‍िटीज, क‍िडनी, ब्‍लडप्रेशर, त्‍वचा जैसी अन्‍य अनेक बीमार‍ियां नहीं है।   

 मेरा अनुमान है क‍ि हम सभी ने इस महामारी से क‍ितना नुकसान हुआ और आगे क‍ितना आगे हो सकता है या होने वाला है जैसे व‍िषयों पर रात द‍िन चर्चा की होगी, ये चर्चा अब भी ओमीक्रोन को लेकर चल ही रही है परंतु एक बात मेरे मन को इस पूरे दौर में खटकती रही, वह यह क‍ि हमारे अपने घरों में रोग की क‍िसी भी व‍िभीष‍िका से लड़ने के पर्याप्‍त साधन होते हुए भी हमने ना तो इनका मोल समझा और ना ही इन्‍हें अपनाया।

हमारे ब्रज में कहावत है क‍ि 'घर का जोगी जोगना, आनगांव का स‍िद्ध' अर्थात् घर के योगी (ज्ञानी) के ज्ञान को जीरो और दूसरों के ज्ञान को स‍िर माथे लेना, अब छोड़ना होगा। 

इसे लेने का एक ही तरीका मैंने आजमाया और वह ऊपर दी गई कई बीमार‍ियों में एकदम सटीक बैठा है। तो अगर आपको कहीं ग‍िलोय की बेल (आजकल ठंड के कारण सूखी हुई-मुरझाई हुई सी पत्‍तों से व‍िहीन) अगर कहीं द‍िखे तो कोश‍िश करके इसके लाभ उठाने से ना चूकें। 


लेने का सबसे आसान तरीका---(प्रत‍ि व्‍यक्‍त‍ि)


ग‍िलोय की बेल के तने के मध्‍यमा उंगली के बराबर छोटे छोटे टुकड़े कर लें, और अच्‍छी तरह कूट लें (अदरक की भांति), अब प्रत‍ि व्‍यक्‍त‍ि के ह‍िसाब से दो टुकडों को एक ग‍िलास पानी में धीमी आंच पर उबालें, पानी जब आधा हो जाये यान‍ि आधा ग‍िलास हो जाये तब इसे दि‍न में द‍िन में दो बार लें अर्थात् लगभग चौथाई कप एक बार में लें। सुबह खाली पेट व रात्र‍ि को सोते समय, चाहें तो थोड़ा सादा पानी मि‍ला लें ताक‍ि इसकी जो कड़वाहट बाकी हो वो कम लगे। 

एक और बात कि इसका विशुद्ध रूप में सेवन ज्‍यादा लाभदायक होता है ना कि इसकी गोलियां या वटी के रूप में::: 

इसके साथ-साथ सामान्‍य योगासन करेंगे तो सोने पै सोहागा सिद्ध होगी।

: अलकनंदा सिंह

16 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई गिलोय (अमृता) जथा नाम तथा गुण साबित हुई मेरे अनुभव में भी...
    बहुत ही सारगर्भित लेख गिलोय की उपयोगिता और सैवन विधि की विस्तृत जानकारी के साथ।

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    1. धन्‍यवाद सुधा जी, परंतु दुख इस बात का है कि पुरानी पीढ़ी ने भी इसे लेकर कुछ नहीं किया।

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  2. गिलोय के बारे में बहुत ही उपयुक्त जानकारी दी है आपने।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (9-1-22) को "वो अमृता... ज‍िसे हम अंडरएस्‍टीमेट करते रहे"'(चर्चा अंक-4304)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. गिलोय (अमृता) के विषय में उपयोगी जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अलकनंदा जी.
    गिलोय की मधुमेह के उपचार में भी बहुत उपयोगिता है.

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  5. आदरणीया अलकनंदा जी, गिलोय के बारे में अत्यंत उपयोगी जानकारी देने के लिए हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

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  6. उपयोगी लेख अलकनंदा जी,बस जगे हुओं को जगाना दुस्साध्य होता है, हमारी मानसिकता एलोपैथी में उलझ गई है और इस कदर उलझी है कि पास पड़ी अमृत प्याली तक नहीं दिखती और हम श्वासों के लिए भटकते फिरते हैं।
    बहुत बहुत बहुत उपयोगी लेख ।
    निरन्तर ऐसे आलेख देते रहें।
    साधुवाद।

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    1. धन्‍यवाद कुसुम जी, इतनी शानदार टिप्‍प्‍णी के लिए

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  7. गिलोय के बारे में बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आपने दी।

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