गुरुवार, 10 नवंबर 2022

क्‍या है छावला रेप एंड मर्डर केस, जिसके सभी आरोपी सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गए ?


 10 साल पुराने 19 साल की एक युवती से बलात्कार और उसकी हत्या वाला छावला रेप एंड मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर 2022 को फैसला सुनाते हुए  तीनों आरोपियों को रेप और मर्डर के आरोप से बरी कर दिया। ज़ाहिर है कि लोग तो गुस्‍से में आने ही थे। आखिर इतने जघन्य अपराध के मामले में कोई दोषी क्‍यों नहीं पाया गया, सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ कहा है, उससे पता चलता है कि इस केस की पूरी जांच में ही गलतियां हुईं और फिर सुनवाई में भी यही हाल रहा।


आइए देखते हैं कि छावला रेप एंड मर्डर केस क्या है?

9 फरवरी साल 2012, युवती अपने ऑफिस से लौट रही थी। कुतुब विहार इलाके से तीन लोगों ने उसे किडनैप कर लिया। शिकायत होने पर पश्चिम दिल्ली के छावला पुलिस स्टेशन में अपहरण का मामला दर्ज किया गया। 13 फरवरी को पुलिस ने तीन आरोपियों को अरेस्ट किया। उनकी कार जब्त की। युवती का क्षत-विक्षत शव हरियाणा में रेवाड़ी जिले के रोढाई गांव के एक खेत में मिला, ऐसा पुलिस ने बताया था।

छावला रेप मामले में ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में क्या हुआ? 

26 मई 2012 को निचली अदालत ने तीनों आरोपियों के खिलाफ किडनैपिंग, रेप, मर्डर और दूसरे अपराधों में आरोप तय किए। करीब दो साल बाद 13 फरवरी को कोर्ट ने तीनों आरोपियों को रेप और मर्डर का दोषी करार दिया। उसी साल 19 फरवरी को सुनाए गए फैसले में अदालत ने कहा था कि दोषियों पर कोई रहम नहीं की जा सकती, लिहाजा फांसी की सजा सुनाई जा रही है।

इस फैसले के खिलाफ दोषियों ने अपील की, लेकिन हाई कोर्ट ने उसी साल अगस्त में अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत से सुनाई गई फांसी की सजा सही है। उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। पूरी सुनवाई के बाद 7 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने आरोपियों को बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने उठाए जो सवाल

कोर्ट ने कहा कि किसी भी जांच अधिकारी ने आरोपियों की टेस्ट-आइडेंटिफिकेशन परेड नहीं कराई। लिहाजा आरोपियों की शिनाख्त ठीक तरीके से तय नहीं हो सकी।

कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इंडिका कार 13 फरवरी 2012 को जब्त की और कहा कि इसी कार में पीड़िता को किडनैप किया गया था, लेकिन किसी भी गवाह ने इस कार का रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं देखा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीट कॉन्सटेबल्स से पूछताछ और जिरह नहीं की गई, जिससे ‘आरोपियों की गिरफ्तारी की पूरी कहानी शक के दायरे में आ गई।’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन हालात में आरोपियों को अरेस्ट किया गया और कार को जब्त किया गया, उससे ‘अभियोजन पक्ष की ओर से पेश की गई स्टोरी पर गहरे शक पैदा होते हैं।’ कोर्ट ने कहा कि इस बात का सबूत भी साफ नहीं है कि जिस जगह पर पीड़िता का शव मिलने की बात बताई गई, वहां सबसे पहले कौन पहुंचा था।

पुलिस ने कहा था कि पीड़िता का शव रेवाड़ी जिले के गांव के एक खेत में तीन दिनों तक पड़ा रहा। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शव के सड़ने के कोई संकेत नहीं मिले थे और इस बात की गुंजाइश बेहद कम है कि तीन दिनों तक खेत में खुले पड़े रहने पर भी शव को कोई न देखे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष का पूरा केस ‘परिस्थितियों से जुड़े सबूत’ पर टिका था। जो सबूत पेश किए गए, उनको ‘परिस्थितियों से मिलाकर’ देखने पर साबित होता है कि अभियोजन पक्ष आरोपियों का दोष साबित करने में नाकाम रहा। ‘दोष सिद्ध करने के लिए जिन परिस्थितियों का हवाला दिया जाता है, उनसे एक कंप्लीट चेन बननी चाहिए। ऐसी चेन जिससे इस नतीजे पर पहुंचने में कोई शंका न रह जाए कि अपराध आरोपियों ने ही किया था, किसी और ने नहीं। परिस्थितियों से जुड़े सबूत इस तरह कंप्लीट होने चाहिए कि आरोपियों के दोषी होने के सिवा और किसी हाइपोथेसिस की बात ही न हो पाए।’

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों और पीड़िता की डीएनए प्रोफाइलिंग और मैचिग के लिए सैंपल कलेक्शन, स्टोरेज और उसकी जांच के बारे में भी सवाल उठाए। आरोपियों और पीड़िता के सभी सैंपल जांच एजेंसी ने 14 फरवरी और 16 फरवरी 2012 को लिए थे। ये सैंपल जांच के लिए 27 फरवरी 2012 को लैबोरेटरी भेजे गए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कलेक्शन से लेकर लैबोरेटरी में भेजे जाने के बीच सैंपल ‘पुलिस स्टेशन के मालखाना में पड़े रहे। ऐसे हालात में नमूनों से छेड़छाड़ की आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता। न तो ट्रायल कोर्ट और न ही हाई कोर्ट ने इस बात की जांच की थी कि डीएनए रिपोर्ट्स के नतीजों का आधार क्या था। न ही उन्होंने यह देखा कि जांच करने वाले एक्सपर्ट ने सही तरीका अपनाया या नहीं। ऐसा कोई सबूत सामने नहीं था, लिहाजा डीएनए प्रोफाइलिंग से जुड़ी सारी रिपोर्ट संदेह के दायरे में आ गईं, खासतौर से यह देखते हुए कि जांच के लिए भेजे गए नमूनों का कलेक्शन और उनको सील करने की प्रक्रिया भी शक के दायरे में है।’

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की मदद के लिए नियुक्त की गईं वकील सोनिया माथुर ने डीएनए रिपोर्ट पर सवाल उठाए थे। माथुर का कहना था कि नमूनों की कलेक्शन प्रक्रिया शक के घेरे में है। उनका कहना था कि फोरेंसिक एविडेंस न तो वैज्ञानिक और न ही कानूनी रूप से साबित होता है, लिहाजा इसे आरोपियों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी सोनिया माथुर की इस राय से इत्तिफाक जताया।

पुलिस ने जो इंडिका कार जब्त की थी, उसकी सीट कवर पर मिले खून के धब्बों और सीमेन को जांच के लिए CFSL भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने ब्लडस्टेन और सीमेन को जांच के लिए भेजे जाने के ब्योरे को भरोसे लायक नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई साफ सबूत नहीं है कि जब्त किए जाने के बाद से जांच के लिए CFSL भेजे जाने तक कार किसके पास थी। यह भी साफ नहीं था कि इस दौरान कार को सील किया गया था या नहीं।

अभियोजन पक्ष ने कहा था कि पीड़िता के शव से आरोपी का बाल मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दावा विश्वास करने लायक नहीं दिखता। कोर्ट ने कहा कि दावा किया जा रहा है कि बाल पीड़िता के शव से मिला, लेकिन वह शव खेत में करीब तीन दिन और तीन रात तक खुले में पड़ा था।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत में हुई सुनवाई के बारे में भी काफी कुछ कहा। आइए देखते हुए कोर्ट ने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने सचाई तक पहुंचने के प्रयास नहीं किए। बेंच ने कहा कि ट्रायल के दौरान ‘कई बड़ी गलतियां’ हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन एविडेंस एक्ट का सेक्शन 165 जज के सवाल पूछने के अधिकार से जुड़ा है और यह सेक्शन ट्रायल कोर्ट को इस बात का ‘असीमित अधिकार’ देता है कि वह सच तक पहुंचने के लिए सुनवाई के किसी भी चरण में गवाहों से कोई भी सवाल पूछ सकता है। बेंच ने कहा, ‘कई फैसलों में यह बात कही जा चुकी है कि जज से चुपचाप अंपायरिंग करने की अपेक्षा नहीं की जाती है। इसके बजाय यह उम्मीद की जाती है कि जज ट्रायल में सक्रियता दिखाएंगे और सही नतीजे पर पहुंचने के लिए गवाहों से सवाल करेंगे।’

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की गिरफ्तारी से लेकर सैंपल कलेक्शन सहित पूरी जांच प्रक्रिया में गलतियां पाईं। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत में हुए ट्रायल पर भी सवाल उठाए। आखिर में इस साल 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाहों से ठीक से जिरह नहीं की गई थी और आरोपियों को निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार से वंचित रखा गया।

कुलमिलाकर देश में कानून का राज स्‍थापित करने का सपना हमें बहुत दूर दिखाई देता है क्‍योंकि न्‍याय की आस को धूमिल करने की उतनी ही दोषी हैं जितनी कि पुलिस कार्यवाही।  है ना कमाल की बात आरोपियों को बचने का हरसंभव प्रयास करती दिखती ये संस्‍थाऐं पूरे सिस्‍टम का मखौल उड़ा रही हैं और हम अब भी चुप हैं।

Compiled: Legend News 

रविवार, 30 अक्टूबर 2022

स्टांप पेपर पर लड़कियों की नीलामी: राजस्‍थान में बच्चियों की 'नीलामी' के सच का पूरा काला चिट्ठा


 अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत समेटे राजस्थान कई सदियों से अपनी वीरता, शौर्य, पराक्रम, भक्ति और सौदर्य के लिए दुनियाभर में विख्यात रहा है। रियासतकालीन शहरों और यहां की विरासत को निहारने आज भी देसी-विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है। लेकिन सप्ताह भर से मरुधरा की अलग ही तस्वीर मीडिया रिपोर्ट्स में पेश की जा रही है। इन रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कई इलाकों में आज भी यहां लड़कियों की नीलामी होती हैं। बच्चियों का सौदा किया जाता है। दबाव बनाने के लिए महिलाओं से दुष्कर्म और स्टाम्प पेपर पर खरीद-फरोख्त होती है। देर से ही सही एक दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी चुप्पी तोड़ी और मामले की जांच पड़ताल की बात कर सच तक पहुंचने और कारगुजारी करने वालों को नहीं बख्शने की बात कही। राष्ट्रीय महिला आयोग, विपक्षी दल, सामाजिक संगठनों ने भी पूरजोर आवाज उठाई। सच क्या है? जानने के लिए राजस्थान राज्य महिला आयोग ने जिला कलेक्टर और एसपी से रिपोर्ट भी तलब की। हुआ भी कुछ ऐसा ही। शनिवार को पुलिस के मुखिया डीजीपी एमएल लाठर और जिला कलेक्टर आशीष मोदी ने इस पूरे मामले की जानकारी देते हुए कई खुलासे किए।

पुलिस ने माना ऐसा हुआ, तीन साल पहले 25 लोगों के खिलाफ जुर्म साबित
राजस्थान के पुलिस महानिदेशक पुलिस महानिदेशक एमएल लाठर ने शनिवार को कहा कि 'पहले कुछ समाज विशेष में घर की महिलाओं से वेश्यावृत्ति कराए जाने जैसी सामाजिक कुरीति व्याप्त थी। वर्तमान में राजस्थान पुलिस की ओर से ऐसी अनैतिक गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखकर इन घटनाओं पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा चुका है। इन अवांछित गतिविधियों के संबंध में सूचना प्राप्त होते ही पुलिस ने तुरंत विधिक कार्रवाई अमल में लाई जा रही है।' मीडियो रिपोर्ट्स वाला मामला 3 साल पुराना है। कथित मामले में दो पीड़ित लड़कियों को अजमेर के नारी निकेतन में रखा गया है। 2019 में इस मामले में 25 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अदालत में जुर्म साबित किया जा चुका है। 
बच्चियों की खरीद-फरोख्त की सूचना पर पुलिस ने शुरू की निगरानी
पुलिस महकमे के मुखिया ने बताया महिलाओं राज्य के विरुद्ध घटित अपराधों पर राजस्थान पुलिस अत्यंत संवेदनशील है। महिला अत्याचार से संबंधित प्रकरणों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है। इन अपराधों की रोकथाम एवं अनुसंधान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। महिलाओं एवं नाबालिगों की खरीद-फरोख्त संबंधी समाचार सामने आने के बाद लाठर ने बताया कि महिलाओं एवं नाबालिगों की खरीद-फरोख्त एवं अनैतिक कार्य कराए जाने के संबंध में संवेदनशील स्थानों पर लगातार पुलिस निगरानी रख आसूचना एकत्रित कर रही है। 
लड़कियों की नीलामी या खरीद-फरोक्त आम थी, फिर चलाया ऑपरेशन गुड़िया
पुलिस के बयान अनुसार इलाके में कुछ समाज विशेष के परिवारों में महिलायों से गलत काम कराया जाता था। ऐसी परम्परा कई वर्षों से चली आ रही थी। इस तबके में इस तरह के अपराधों के खिलाफ पुलिस ने साल 2019 में अभियान भी चलाया। लड़कियों की खरीद-फरोख्त के संबंध में यह अभिया भीलवाड़ा जिले में ऑपरेशन गुड़िया के नाम से चलाया गया था।
बच्चियों को किडनैप कर अड्‌डों पर पहुंचा जाता, जवान होने की दवा खिलाई जाती
पुलिस के बयानों में कई खुलासे हुए हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि बच्चियों को किडनैप कर उन्हें अड्‌डों पर लाया जाता था। इन्हीं अड्‌डों पर बच्चियों को जवान बनाने के लिए दवाइयां दी जाती। फिर जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया जाता। पुलिस के बयान में यह भी बताया गया है कि पुलिस टीम ने अपह्रत बच्चियों को अपहरणकर्ताओं से खरीद वेश्यावृत्ति करवाने वाले आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया है।
भीलवाड़ा और अजमेर के 5 अड्‌डों पर धकेला जाता
बच्चियों और महिलाओं को आरोपी भीलवाड़ा और अजमेर के अड्‌डों पर पहुंचाते। इन अड्‌डों में भीलवाड़ा का इटुन्दा, पंढेर और हनुमान नगर शामिल है। वहीं अजमेर के सांवर थाना क्षेत्र का नापाखेडा और जसवंत नगर में भी वेश्यावृत्ति के अड्डा संचालित हो रहा था। इन्हीं अड्डों पर किडनैप कर लाई गई बच्चियों को दवाओं के जरिए से जवान बनाया जाता और फिर वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेला जाता।
मुंबई, एमपी और यूपी तक जुड़े हैं तार, 7 बच्चियों को छुड़ाया गया
बच्चियों और महिलाओं के जिस्मफरोशी के दलदल में धकेलने वाले गिरोह के बारे में पुलिस ने कई ओर खुलासे किए हैं। पुलिस जांच के हवाले से बताया गया है कि गिरोह के तार राजस्थान के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र से जुड़े थे। तीन साल पहले हुई कार्रवाई के दौरान इन राज्यों के कई स्थानों पर दबिश दी गई थी। नाबालिग समेत सात पीड़ित बच्चियों को दस्तयाब कर लड़कियां खरीदने एवं बेचने वाले कई आरोपियों को गिरफ्तार कर जांच के बाद 25 आरोपियों के खिलाफ अदालत में चालान पेश किया गया।
पुलिस की पड़ताल में अब और हो सकते हैं खुलासे
पुलिस ने अब तक 2019 के ऑपरेशन गुड़िया और 7 बच्चियों के रेस्क्यू का जिक्र किया है। यह भी बताया है कि 25 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन ताजा मीडिया रिपोर्ट्स की पड़ताल अभी बाकी है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो 2019 जैसे हालात अब भी कई पिछड़े इलाकों में हो सकते हैं। एक रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि स्टांप पेपर पर लड़कियों की नीलामी की जा रही है और जाति पंचायतों के फरमान पर महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान राज्य महिला आयोग ने इस बारे में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट पर भीलवाड़ा जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से लड़कियों की नीलामी को लेकर तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।

-Compiled

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

करवा चौथ: दर्पण के उस पार का सच कुछ और भी है

देश, समाज और रिश्‍ते..सबकी मजबूती और गहराई उसकी जड़ों से मापी जाती है...जड़ों की मजबूती जिस रूप में इन्‍हें थामती हैं, वे उसी तर्ज पर आगे बढ़ते हैं। यह सतत प्रक्रिया है कि परिवार से समाज और इससे फिर देश तक की समृद्धि का आंकलन उसकी जड़ों के आधार पर ही किया जाता है।

इसमें आश्‍चर्य नहीं कि जड़ों को क्‍यों 'स्‍त्रीलिंग' माना गया, कारण साफ है कि स्‍त्री परिवार की जड़ होती है क्‍योंकि परिवार में हर संबंध का आधार स्‍त्री से प्रारंभ होकर उसके व्यवहार से तय होता है। इसीलिए सारे तीज-त्‍यौहार स्‍त्रियों को केंद्र मानकर बने, और इनका पालन भी स्‍त्रियों के ही जिम्‍मे रहा क्‍योंकि वह जड़ ही होती है जो तने को संबल देकर वटवृक्ष तक बनाती है, करवा चौथ भी ऐसे त्‍यौहारों में से एक है। 

वर्तमान में करवा चौथ से रूप को देखकर कई विचार मन में आ रहे हैं, कुछ धार्मिक तो कुछ सामाजिक, कभी सोचती हूं कि लीक पर चलकर सब कुछ जस का तस मानती चलूं, मगर मन विद्रोह करता है क्‍योंकि जिस उद्देश्‍य के साथ ये त्‍यौहार पवित्रता और प्रेम को साथ लेकर चला आज वह अपने अत्‍यंत विध्‍वंसक रूप में हमारे सामने है।

परिवार में आपसी प्रेम और मन की स्‍थिरता के लिए भगवान शिव, माता गौरी व भगवान गणेश की आराधना का ये पर्व आज एकमात्र पति-पत्‍नी के उस प्रेम में समेट दिया गया है जो बाजार के हाथों की कठपुतली बना हमारे सामने है। पढ़ी लिखी स्‍त्रियों द्वारा भी परंपरा के नाम पर इसे ''बस यूं ही'' मनाया जाता रहा। इसके व्रत का वास्‍तविक उद्देश्‍य तो गायब ही हो गया है। 

हालत अब ये हो गई है कि व्रत से एक दिन पहले किसी रेस्‍टोरेंट में जाकर भरपूर खाना, फिर रोज़ा की भांति 'सरगी' के नाम पर सुबह उठकर खा लेना, महंगे गिफ्ट की लालसा, सारे दिन टीवी या मनोरंजन के अन्‍य साधन पर समय व्‍यतीत करना आदि ...सब कुछ होता है, जो नहीं होता वह है भगवान की आराधना...। 

कहा जाता है कि करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं निर्जला रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर या होने वाले पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। फिर रात के समय चंद्रमा को अर्घ्‍य देने के बाद ही यह व्रत संपन्‍न होता है। 

परंतु जो कुछ दिख रहा है उसे भी झुठलाया नहीं जा सकता। कैसे आंखें फेर लें हम, क्‍या बस इसलिए चुप रहें कि कोई हमें नास्‍तिक कहकर आलोचना ना कर दे। इस कटु सत्‍य को नकारने का ही नतीज़ा है कि परिवार की जड़ें कमजोर हो चुकी हैं, हर तीसरा घर छिन्‍नभिन्‍न हो रहा है। तलाक के मामले बेतहाशा बढ़ रहे हैं। संपत्‍तियों के लिए पति-पत्‍नी के बीच 'सौदेबाजी' और ब्‍लैकमेलिंग आज का एक 'कड़वा और घिनौना' सच है जो उत्‍तरोत्‍तर बढ़ ही रहा है। जब धन का बोलबाला होता है तो आध्‍यात्‍मिकता यूं भी तिरोहित हो जाती है।  

स्‍त्रियों की आर्थिक सबलता हमें एक बढ़ते वृक्ष की तरह दिख तो रही है परंतु उसकी जड़ें लगातार खोदी जा रही हैं। वे जड़ें जो मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक हैं, जिनकी कि स्‍त्रियां स्‍वयं संवाहक हैं। 

बेहतर हो कि प्रेम और आस्था के इस पर्व करवाचौथ पर बाहरी सुंदरता चमकाने की बजाय भीतरी सुंदरता अर्थात् आध्‍यात्‍मिकता की ओर ले जाया जाये ताकि हम परिवार की जड़ों को मजबूत कर सकें। स्‍त्रियों के लिए करवाचौथ तो एक माध्‍यम है कर्तव्‍यों वाली अपनी जड़ों की ओर देखने का कि बाहरी सजावट से नहीं आध्‍यात्‍मिक चिंतन और आराधना से ही परिवार और पति-पत्‍नी सुखी रह सकते हैं। परिस्‍थितियों को बिगाड़ने में समय नहीं लगता सुधारने में लगता है, फिर भी मैं आशावान हूं कि ये यदि ऐसा हो पाता है तो बेहतर समाज और देश के लिए यह निश्‍चित ही एक उपलब्‍धि होगी।

- अलकनंदा सिंह

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022

भेदभाव का खुला दस्तावेज है वक्फ अधिनियम 1995

 

1954 में वक्फ की संपत्ति और उसके रखरखाव के लिए वक्फ एक्ट-1954 बनाया गया था। कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे। देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। 1995 में वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी गईं। कानून कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे, तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा।

यदि दावा गलत है तो संपत्ति के मालिक को इसे सिद्ध करना होगा। 2013 में फिर इसमें संशोधन किए गए। अब वक्फ बोर्ड और वक्फ की संपत्तियां फिर चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने वक्फ की संपत्तियों का सर्वे कराने का निर्णय लिया है। देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास है। इसकी संपत्तियां आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। पिछले 13 साल में वक्फ की संपत्ति करीब दोगुनी हो गई है। ऐसे कई तथ्य हैं, जो इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। जब यह कानून बना था, तब इसे लेकर भले ही कुछ तार्किक कारण रहे हों, लेकिन आज यह पूरी तरह से कब्जे और वसूली का माध्यम बनता दिख रहा है। ऐसे में वर्तमान देश-काल और परिस्थिति में वक्फ कानून और उसके अधिकारों की सामयिकता और संवैधानिकता की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

वक्फ अधिनियम 1995 की संवैधानिकता को चुनौती
वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दी थी। अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के लिए स्थानांतरण याचिका दी है। याचिका में उन्होंने इस अधिनियम को संविधान के विभिन्न प्रविधानों की कसौटी पर परखा है। यह अधिनियम धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है। वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है। यह पंथनिरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है।

यदि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात करता है, तो इसमें अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोगों के लिए समानता होनी चाहिए, किंतु यह केवल मुस्लिम समुदाय के लिए है।

यदि यह अधिनियम अनुच्छेद 29 व 30 के तहत अल्पसंख्यकों के हित की रक्षा की बात करता है, तो इसमें जैन, बौद्ध, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं है।

इंडियन ट्रस्टीज एक्ट 1866, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, चैरिटेबल एंडामेंट एक्ट 1890, आफिशियल ट्रस्टीज एक्ट 1913 और चैरिटेबल एंड रिलीजियस एक्ट 1990 जैसे अधिनियमों के तहत सभी समुदायों से जुड़े ट्रस्ट व दान आदि का प्रबंधन किया जाता है। इन सभी को साथ लाने के बजाय एक धर्म पर केंद्रित वक्फ कानून बना दिया गया।

न्याय की व्यवस्था के विरुद्ध
संविधान ने तीन तरह के न्यायालयों की व्यवस्था की है। अनुच्छेद 124-146 के तहत संघीय न्यायपालिका, अनुच्छेद 214-231 के तहत हाई कोर्ट और अनुच्छेद 233-237 के तहत अधीनस्थ न्यायालय। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि सभी तरह के नागरिक विवाद संविधान के तहत बनी न्यायपालिकाओं में ही सुलझाए जाएं। ऐसे में वक्फ ट्रिब्यूनल को लेकर इस अधिनियम में की गई व्यवस्था संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है।

अनुच्छेद 27 का स्पष्ट उल्लंघन
वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता, मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुतावल्ली होते हैं। इन सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है, जबकि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं। दूसरी ओर, केंद्र व राज्य सरकारें देश के चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं, लेकिन उनके लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं है। यह अनुच्छेद 27 का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि के लिए हो।

वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकार
वक्फ अधिनियम, 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें, जो एक बार फिर समानत को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन है।

संपत्ति के अधिकार भी सुरक्षित नहीं
अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नहीं। यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह संबंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल कर लिया जाए। यानी संपत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है। यह अनुच्छेद 14, 15, 26, 27, 300-ए का उल्लंघन है।

लिमिटेशन एक्ट से भी छूट
वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है। इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है।

दीवानी अदालतों की सीमा से भी बाहर
धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन करते हुए विवादों की सुनवाई के मामले में दीवानी अदालतों का अधिकार छीन लिया गया है। संसद के पास ऐसा अधिकार नहीं है जिसके तहत वह ऐसा ट्रिब्यूनल गठित कर दे, जिससे न्याय व्यवस्था को लेकर संविधान के अनुच्छेद 323-ए का उल्लंघन होता हो। वक्फ बोर्ड को कई ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जो इसी तरह के अन्य ट्रस्ट या सोसायटी के पास नहीं हैं।


मंगलवार, 13 सितंबर 2022

काशी विश्वनाथ एक्ट-1983, जिसका सहारा लेने की मुस्लिम पक्षकारों ने की कोशिश

 


 ज्ञानवापी मस्जिद केस में देवी श्रृंगार गौरी की दैनिक पूजा का अधिकार दिए जाने संबंधी याचिका को वाराणसी कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही मुस्लिम पक्षकारों की ओर से केस की सुनवाई की पोषणीयता पर बहस के दौरान तीन एक्ट को आधार बनाया गया। इसके आधार पर हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज करने का अनुरोध किया गया है। इसमें प्लेसेजे ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, वक्फ एक्ट 1985 और काशी विश्वनाथ एक्ट 1983 शामिल था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट और वक्फ एक्ट की चर्चा काफी हो चुकी है। राम मंदिर आंदोलन के बाद प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को संसद से पास कया गया। इसमें देश में मौजूद धार्मिक ढांचों को 15 अगस्त 1947 के बाद की स्थिति में बदलाव नहीं किए जाने की बात कही गई। हालांकि, बाबरी मस्जिद को इस मामले में अपवाद माना गया। वक्फ एक्ट 1985 के तहत मुस्लिम धर्म की संपत्ति पर कोई भी दावा दूसरे धर्म के लोग नहीं कर सकते हैं। इन दोनों एक्ट के अलावा काशी विश्वनाथ एक्ट 1983 का भी सहारा मुस्लिम पक्षकारों ने लिया। इस एक्ट में साफ है कि काशी विश्वनाथ कमेटी में केवल हिंदू ही कार्यवाहक होंगे। ऐसे में मुस्लिम धर्मस्थल पर दावा किस आधार पर किया जा रहा है। हालांकि, कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकारों की तीनों एक्ट की व्याख्या को सही नहीं माना और हिंदू पक्षकारों की ओर से माता श्रृंगार गौरी की दैनिक पूजा संबंधित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकृत कर लिया।

क्या है काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत 13 अक्टूबर 1983 को काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट को लागू किया गया। यूपी विधानमंडल की ओर से पास इस एक्ट को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद एक्ट को प्रभावी किया गया। यह वर्ष 1983 के एक्ट संख्या 29 के रूप में भी जाना जाता है। इस एक्ट के जरिए काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके विन्यास के समुचित एवं बेहतर प्रशासन की व्यवस्था की गई है। साथ ही, मंदिर से संबद्ध या अनुषांगिक विषयों की व्यवस्था भी की गई है। इस अधिनियम में 13 जनवरी 1984, 5 दिसंबर 1986, 2 फरवरी 1987, 6 अक्टूबर 1989, 16 अगस्त 1997, 13 मार्च 2003 और 28 मार्च 2013 को संशोधन भी हुए हैं।
अधिनियम के प्रभाव की विस्तार से व्याख्या की गई है। एक्ट की धारा या उप धारा में निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही बदलाव या संशोधन किया जा सकता है। इस एक्ट का प्रभाव किसी अन्य नियम, प्रथा, रूढ़ि या विधि के प्रभावी होने के बाद भी बना रहेगा। किसी कोर्ट के निर्णय, डिग्री या आदेश या फिर किसी कोर्ट की ओर से निश्चित की गई किसी योजना में मंदिर से संबंधित कोई बात होने के बाद भी काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट प्रभावी रहेगा। डीड या डॉक्यूमेंट के सामने आने के बाद भी इस एक्ट को प्रभावित नहीं किए जाने की बात कही गई है।
मुस्लिम पक्ष की ओर से दी गई दलील में एक्ट की धारा 3 का जिक्र किया गया। इसमें साफ है कि एक्ट के अधीन कार्य करने वाले हिंदू होंगे। चूंकि, हिंदू पक्ष का दावा है कि देवी श्रृंगार गौरी की प्रतिमा का दावा ज्ञानवापी परिसर में किया जा रहा है। ऐसे में इस पर हिंदू पक्ष किस प्रकार दावा कर सकता है। एक्ट की धारा 3 में साफ किया गया है कि न्यास परिषद, कार्यपालक समिति के सदस्य, मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मंदिर के कर्मचारी का हिंदू होना जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति हिंदू न रहे, यानी धर्म परिवर्तन कर ले तो उसे पद से हटा दिया जाएगा।
एक्ट में स्थायी व अस्थायी संपत्ति का जिक्र
एक्ट की धारा 5 में मंदिर की संपत्ति का जिक्र किया गया है। इसमें मंदिर में पूजा-पाठ, सेवा, कर्मकांड, समारोह या धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन को लेकर फीस या दान का जिक्र किया गया है। साथ ही, मंदिर में प्रतिष्ठित देवताओं की प्रतिमा, मंदिर परिसर, मंदिर सीमा के भीतर किसी भी व्यक्ति की ओर से किए जाने जाने वाले दान पर एक्ट के तहत मंदिर प्रबंधन का अधिकार होने की बात कही गई है। देवी श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए वर्ष 1993 से साल में दो बार खोला जा रहा है।
मंदिर की संपत्ति पर कब्जे का है अधिकार
एक्ट के तहत मंदिर की संपत्ति पर न्यास परिषद को संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई है। एक्ट की धारा 13 की उपधारा 1 में साफ किया गया है कि मंदिर और उसके विन्यास, मंदिर के तहत आने वाली चल और अचल संपत्ति, द्रव्य (पैसे), मूल्यवान वस्तु, आभूषण, अभिलेख, दस्तावेज, भौतिक पदार्थ पर न्याय परिषद का अधिकार रहेगा। न्यास परिषद मंदिर के तहत आने वाली अन्य संपत्तियों को कब्जे में लेने और रखने की हकदार होगी।
धारा 13 की उप धारा 2 के तहत प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति मंदिर की संपत्ति को अपने अधीन नहीं रख सकता है। अगर किसी भी व्यक्ति के कब्जे में, अभिरक्षा में या नियंत्रण में मंदिर की कोई संपत्ति है तो उसे मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के समक्ष पेश करना होगा। इसमें चल और अचल दोनों संपत्ति का जिक्र है।
मंदिर संपत्ति पर कब्जा को लेकर है दंड का प्रावधान
मंदिर की संपत्ति को लेकर ऐक्ट की धारा 13 की उप धारा 2 में विशेष रूप से जानकारी दी गई है। एक्ट के अध्याय 6 की धारा 34 में साफ किया गया है कि कोई भी इसका उल्लंघन करता तो उसके खिलाफ दंड का प्रावधान है। इस एक्ट के तहत न्यास परिषद या मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की ओर से या प्राधिकार के अधीन कब्जा लिए जाने में कोई प्रतिरोध या अवरोध उत्पन्न करता है। ऐसी कार्रवाई करने वालों को जेल भेजा जा सकता है। इस प्रकार के मामलों में एक साल तक की कैद का प्रावधान है। इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
ज्ञानवापी मामले में बना आधार
ज्ञानवापी केस में जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से अपनी दलील में काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट का जिक्र किया गया तो हिंदू पक्ष की ओर से इस पर आवाज उठने लगी है। वाराणसी कोर्ट के वकीलों का कहना है कि एक्ट को ही आधार मानें और साक्ष्यों को देखें तो ज्ञानवापी परिसर काशी विश्वनाथ मंदिर के दायरे में आता है। वजुखाने में शिवलिंग और माता श्रृंगार गौरी इसका उदाहरण हैं। एक्ट की धारा 13 की उप धारा 2 के तहत इस संपत्ति को अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी को काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ के समक्ष पेश कर देना चाहिए।
इन एक्ट की भी हुई चर्चा
मस्जिद परिसर में देवी श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार के मामले में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने दो अन्य एक्ट की भी चर्चा की थी। आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991: 1991 में जब राम मंदिर आंदोलन और राम मंदिर को लेकर पूरे देश में विवाद चरम पर था। उस समय इस एक्ट की जरूरत दिखी। तत्कालीन पीएम पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार की ओर से देश की संसद में इस एक्ट को पेश किया गया। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है। राम मंदिर आंदोलन के काल में कई पूजा स्थलों के स्वरूप को बदलने की कोशिश हुई थी। ऐसे में इस कानून की मदद से उस पर काबू पाया गया।
एक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान किया गया। कहा गया है कि अगर कोई भी इसके उल्लंघन का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। इस कानून के सबडिवीजन भी हैं। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां पर मुस्लिम समुदाय दशकों से नमाज पढ़ रहा है इसलिए ये याचिका सुनवाई योग्य है ही नहीं। अगर ऐसा हुआ तो वो प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन होगा।
वक्फ बोर्ड ऐक्ट 1985: वक्फ बोर्ड एक्ट के आधार पर भी मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला जज से हिंदू महिलाओं महिलाओं की अपील खारिज करने की मांग की थी। इस कानून में कहा गया है कि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। इस स्थिति में कोई भी लीगल प्रोसिडिंग सेंट्रल वक्फ ट्रिब्यूनल बोर्ड लखनऊ ही कर सकता है। मतलब मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद परिसर को अपनी संपत्ति बनाते हुए दलील दी। अंजुमन इंतेजामिया कमेटी का कहना था कि इस मामले की सुनवाई हो ही नहीं सकती है। उनका कहना था कि यह वक्फ बोर्ड का मामला है।
इस पर वाराणसी जिला जज ने कहा कि याचिका दायर करने वाली महिलाएं मुस्लिम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मां श्रृंगार गौरी स्थल में पूजा अर्चना करने का अधिकार वक्फ बोर्ड कानून में कवर नहीं होता। इस आधार पर कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया।

शनिवार, 10 सितंबर 2022

श्री वृन्दावन धाम के सप्त देवालय, जहां श्रीकृष्ण के हैं विशेष 7 श्रीविग्रह

यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है।

श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर,बिहारी जी की बगीची, लता भवन (प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा) आरक्षित वनी के रूप में दर्शनीय हैं ।

वृंदावन में तकरीबन 5000 छोटे-बड़े मंदिर हैं. कुछ मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराने हैं वर्ष 1515 में महाप्रभु चैतन्य ने यहां के कई मंदिरों की खोज की थी. तब से लेकर अब तक कई मंदिर नष्ट हो चुके हैं और कई नए बने

आज हम आपको 7 भगवान कृष्ण के श्रीविग्रहों बारे में बता रहे हैं, जिनका संबंध वृंदावन धाम से है। इन 7 श्रीविग्रहों में से 3 आज भी वृंदावन धाम के मंदिरों में स्थापित हैं, वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं-

1. भगवान गोविंद देवजी, जयपुर

रूप गोस्वामी को ये श्रीविग्रह वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि. सं. 1592 (सन् 1535) में मिली थी। उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस श्रीविग्रह को स्थापित किया। इनके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंदजी की सेवा पूजा संभाली, उन्हीं के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंदजी का भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर में गोविंद जी 80 साल विराजे। औरंगजेब के शासनकाल में ब्रज पर हुए हमले के समय गोविंदजी को उनके भक्त जयपुर ले गए, तब से गोविंदजी जयपुर के राजकीय (महल) मंदिर में विराजमान हैं।

2. भगवान मदन मोहनजी, करौली

यह श्रीविग्रह अद्वैतप्रभु को वृंदावन में कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। उन्होंने सेवा-पूजा के लिए यह श्रीविग्रह मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांगकर सनातन गोस्वामी ने वि.सं. 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित की। बाद में क्रमश: मुलतान के नमक व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहां मदनमोहनजी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय इन्हें भी भक्त जयपुर ले गए पर कालांतर में करौली के राजा गोपालसिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहनजी को स्थापित किया। तब से मदनमोहनजी करौली (राजस्थान) में ही दर्शन दे रहे हैं।

3. भगवान गोपीनाथजी, जयपुर.

भगवान श्रीकृष्ण का ये श्रीविग्रह संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस श्रीविग्रह को निधिवन के पास विराजमान कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद में रायसल राजपूतों ने यहां मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इनको भी जयपुर ले जाया गया, तब से  भगवान गोपीनाथजी वहां पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।

4. भगवान जुगलकिशोर जी, पन्ना.

भगवान श्रीकृष्ण का ये श्रीविग्रह हरिरामजी व्यास को वि.सं. 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यासजी ने उस श्रीविग्रह को वहीं प्रतिष्ठित किया। बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। यहां भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षों तक बिराजे पर मुगलिया हमले के समय जुगलकिशोरजी को उनके भक्त ओरछा के पास पन्ना ले गए। पन्ना (मध्य प्रदेश) में आज भी पुराने जुगलकिशोर मंदिर में दर्शन दे रहे हैं।

5. भगवान राधारमणजी, श्री वृंदावन धाम

श्रीला गोपाल भट्ट गोस्वामी को गंडक नदी में एक शालिग्राम शिला मिला। वे उसे वृंदावन ले आए और केशीघाट के पास मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया। भक्त के द्वारा दिए वस्त्रों को धारण न करा पाना और एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्रामजी तो ऐसे लगते हैं मानो कढ़ी में बैगन पड़े हों। यह सुनकर गोस्वामीजी बहुत दुखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से भगवान राधारमण का दिव्य श्रीविग्रह प्रकट हो गया। यह दिन वि.सं. 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा का था। वर्तमान मंदिर में इनकी प्रतिष्ठापना सं. 1884 में की गई.

श्री वृन्दावन धाम में मुगलिया हमलों के बावजूद यही एक मात्र श्रीविग्रह है, जो वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गए इन्हें भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। सबसे विशेष बात यह है कि जन्माष्टमी को जहां दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव पूजा-अर्चना, आरती होती है, वहीं राधारमणजी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है, मान्यता है ठाकुरजी अत्यंत सुकोमल होते हैं उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं.

6. भगवान राधाबल्लभजी, वृंदावन धाम

परम भगवान श्रीकृष्ण का यह श्रीविग्रह हित हरिवंशजी को दहेज में मिला था। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गांव में आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (संवत् 1591) और बाद में सुंदरलाल भटनागर (कुछ लोग रहीम को यह श्रेय देते हैं) द्वारा बनवाए गए लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में राधाबल्लभजी प्रतिष्ठित हुए।

मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हें कामा (राजस्थान) ले गए थे। वि.सं. 1842 में एक बार फिर भक्त इस श्रीविग्रह को वृंदावन ले आए और यहां नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया, तब से भगवान  राधाबल्लभजी जी यहीं विराजमान है।

7. भगवान बांकेबिहारीजी, श्री वृंदावन धाम

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को संगीत के मुख्य आचार्य स्वामी हरिदासजी महाराज के  हरिभक्ति ,आराधना को साकार रूप देने के लिए भगवान बांकेबिहारीजी निधिवन में प्रकट हो गए। स्वामीजी ने इस श्रीविग्रह को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलों के आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर ले गए। वृंदावन के भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि.सं. 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तब से यहीं भक्तों को दर्शन दे रहे हैं।

भगवान बिहारीजी का प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ साल में एक दिन ही ठाकुर के चरण दर्शन होते है, साल में एक बार ही ठाकुर बंशी धारण करते हैं | यहां साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होता है, जबकि वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने का परंपरा है।

-अलकनंदा सिंंह

बुधवार, 7 सितंबर 2022

निम्बार्क संप्रदाय: जहां कृष्‍ण के प्रति 'सखी प्रेम' ही जीवन का सत्य है


 सनातन धर्म के कई संप्रदायों का आधार सूत्र वैष्णव भक्ति है. सबसे प्राचीनतम संप्रदायों में से एक निम्बार्क संप्रदाय इन्हीं में से एक है, इसमें प्रेम के सिद्धांतों को ही मान्यता प्राप्त है अर्थात ईश्वर का प्रेम-दर्शन ही इस संप्रदाय का मूल आधार है. यह संप्रदाय प्रेम के स्वरूप श्री सर्वेश्वरी राधा और श्री सर्वेश्वर कृष्ण को अनन्य रूप से पूजती है. 

वहीं, प्रेम के तीसरे स्वरूप को इस संप्रदाय में सखीजन कहते हैं. निम्बार्क संप्रदाय में सखी प्रेम को ही जीवन का सत्य समझा जाता है. सरल शब्दों में कहें तो, इस संप्रदाय में श्री राधा और श्री कृष्ण के साथ साथ राधा रानी की सखियाँ भी देवी तुल्य हैं जिनका पूजन आवश्यक है. इन्हीं सब लीलाओं को अपनी काव्य रचनाओं में स्वामी हरिदास जी ने पिरोया है.

इतिहासकारों के अनुसार, स्वामी हरिदास का जन्म 3 सितंबर, 1478 को हुआ था. उनका जन्म वृंदावन के राजपुर नाम के गांव में हुआ था. वे सनाढ्य जाति से थे और उनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम चित्रादेवी था. माना जाता है कि स्वामी हरिदास भी अन्य की भांति ही ग्रहस्थी थे लेकिन एक दिन अचानक दीपक से पत्नी के जलकर मर जाने के वियोग में वे वृंदावन जाकर रहने लगे और उन्होंने विरक्त संन्‍यास धारण कर लिया.  

ऐसा भी माना जाता है कि स्वामी हरिदास की उपासना से प्रसन्न होकर बांकेबिहारी की मूर्ति का प्राकट्य हो हुआ था जो आज भी वृंदावन में विराजमान है और पूजी जाती है. हरिदास महान संगीतज्ञ भी थे और तानसेन उनके ही परम शिष्य थे. इतिहास में दर्ज है कि हरिदास जी की मृत्यु 95 वर्ष की आयु में 1573 के आसपास हुई थी. 

स्वामी हरिदास ने हरि को स्वतंत्र और जीव को भगवान के अधीन मानकर अपनी रचनाएं की, अपनी रचनाओं में राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जो हृदय को भाव विभोर कर देने वाली हैं.

स्वामी हरिदास के पदों से कृष्ण के चंदन सी सौंधी महक आती है।

जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु, और बात सब बादि
दिवस चारि को हला भला, तू कहा लेइगो लादि
मायामद, गुनमद, जोबनमद, भूल्यो नगर बिबादि
कहि 'हरिदास लोभ चरपट भयो, काहे की लागै फिरादि

(जब तक ज़िंदा रहूं तब तक हरि यानी कृष्ण का नाम भजूं और बाकी सब काम बाद में हैं) इस प्रकार के भावों से साथ भक्ति-पदों की रचना करने वाले हरिदास ब्रज व कृष्ण से अत्यंत ही निकट थे। 

ज्यौंहिं ज्यौंहिं
वृन्दावन में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को यहां पर प्रकट करने का श्रेय स्वामी हरिदास को ही जाता है। वृन्दावन में उन्होंने निधिवन को अपनी स्थली बनाया था और आज भी निधिवन में एक जगह पर हरिदास का समाधि स्थल है। कहते हैं कि हरिदास को भगवान ने अपनी युगल छवि के दर्शन दिए थे।

ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं,त्योंहीं त्योंहीं रहियत हौं, हे हरि
और अपरचै पाय धरौं सुतौं कहौं कौन के पैंड भरि
जदपि हौं अपनों भायो कियो चाहौं,कैसे करि सकौं जो तुम राखौ पकरि
कहै हरिदास पिंजरा के जानवर लौं तरफराय रह्यौ उडिबे को कितोऊ करि

(जैसे जैसे तुम रखते हो, हम वैसे ही रहते हैं, हे हरि। यहां पिंजड़ के जानवर का अर्थ आत्मा से है जो मुक्ति के लिए तड़पड़ा रही है)

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री
हरिदास जी के संगीत की भी इतनी ख़्याति थी कि तानसेन व बैजू बावरा उनके शिष्य थे। अकबर भी भेष बदलकर हरिदास का संगीत सुनने के लिए आते थे। स्वामी ब्रज में पूरी तरह से रम चुके थे, उन्होंने कृष्ण की भक्ति पर पद लिखे, ब्रजभाषा में लिखे व अपना सम्पूर्ण जीवन भी ब्रज क्षेत्र में ही बिताया। 

स्वामी हरिदास के कुछ और पद

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय दीन द्वार आयो
कृपा भरि नैन कोर देखिये जु मेरी ओर जनम जनम सोधि सोधि चरन कमल पायो

कीरति चहुँ दिसि प्रकास दूर करत विरह ताप संगम गुन गान करत आनंद भरि गाऊँ
विनती यह यह मान लीजे अपनो हरिदास कीजे चरन कमल बास दीजे बलि बलि बलि जाऊँ

(यहां स्वामी हरिदास ईश्वर की कृपा मानते हैं कि वह उनके द्वार पर आए। हरिदास विनती करते हैं कि ईश्वर उन्हें अपना बना ले)

- अलकनंदा सिंह

सोमवार, 22 अगस्त 2022

डॉक्टर और दवा कंपनियों का नेक्‍सस, रिश्‍वत के हर गुर मार्केटिंग ट्रिक्‍स के नाम पर


 फार्मास्युटिकल कंपनियों और डॉक्टरों का गठजोड़ (Nexus of Pharmaceutical Companies and Doctors) बहुत पुराना है। कंपनियां अपनी महंगी दवाएं लिखने के लिए डॉक्टरों को न केवल मोटी रिश्वत देती हैं, बल्कि उन्हें महंगे उपहार और परिवार सहित विदेश में छुट्टियों तक का भी ऑफर देती हैं। आलीशान होटलों में परिवार सहित पार्टी, कीमती शराब या महंगे मोबाइल फोन देना आम है। दवाओं के प्रमोशन का ये अनैतिक खर्च भी मरीजों को महंगी दवा के तौर पर उठाना पड़ता है। कोई पुख्ता और स्पष्ट कानून न होने की वजह से कंपनियां, दवाईयों को मनचाही कीमतों पर बेचती हैं।

दवा कंपनियों की इस मनमानी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) की पीठ इस पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि डोलो-650 मिलीग्राम टैबलेट (Dolo 650mg Tablet) लिखने के लिए कंपनी ने डॉक्टरों को 1000 करोड़ रुपये के उपहार बांट दिए। याचिका में दवा कंपनियों की तरफ से डॉक्टरों को दिए जाने वाले उपहारों का मामला उठाया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से 10 दिन में जवाब मांगा है। इससे दवा कंपनियों की मनमानी पर लगाम लगने की उम्मीद जगी है। अगर ऐसा होता है तो ये देशभर के मरीजों के लिए बड़ी राहत होगी।

इसलिए जेनेरिक दवा नहीं लिखते डॉक्टर

बाजार में महंगी कीमतों पर जो ब्रांडेड दवाइयां बिक रही हैं, वही दवाइयां जेनेरिक मेडिकल स्टोर पर बहुत कम कीमत में उपलब्ध हैं। कई बार डॉक्टरों को जेनेरिक दवाई लिखने के निर्देश जारी हुए, लेकिन जवादेही तय न होने के कारण प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले अथवा प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर इसकी अनेदेखी करते हैं। दवा कंपनियों से मिलने वाले मोटे मुनाफे और महंगे उपहारों के लालच में ज्यादातर डॉक्टर जेनेरिक की जगह किसी बड़ी दवा कंपनी की महंगी दवा ही लिखते हैं।

दवा विक्रेता भी इस खेल में हैं शामिल

दवा व्यवसाय से जुड़े लोगों के अनुसार, केमिस्ट भी इस खेल का हिस्सा हैं। अमूमन दवा विक्रेताओं को कंपनियों की तरफ से महंगे उपहार तो नहीं दिए जाते, लेकिन उन्हें इन कंपनियों की दवा बेचने पर मोटा मुनाफा मिलता है। मसलन 20 रुपये की जेनेरिक दवा पर अगर 20 फीसद कमीशन है तो विक्रेता को मात्र चार रुपये का मुनाफा होगा। इसी मार्जिन पर अगर दुकानदार ब्रांडेड दवा बेचे, जिसकी कीमत 200 रुपये है तो उसे 40 रुपये का मुनाफा होगा। कई बार ऐसा भी होता है कि दवा विक्रेता और डॉक्टर आपस में गठजोड़ कर लेते हैं। ऐसे में मरीज को उसी विक्रेता से दवा लेनी पड़ती है। इसमें दवा कंपनी से जो कमीशन/रिश्वत मिलता है, उसमें डॉक्टर और दवा विक्रेता दोनों का हिस्सा होता है।

ब्रांडेड से अच्छी हैं जेनेरिक दवाएं

जेनेरिक दवाएं बहुत सस्ती हैं और इनकी गुणवत्ता महंगी ब्रांडेड दवाईयों से कहीं अच्छी है। जेनेरिक दवाईयां सस्ती हैं और इस पर कमीशन भी फिक्स है, इसलिए मुनाफा कम होता है। हालांकि सरकारी सब्सिडी से इसकी भरपाई आराम से हो जाती है।

जनऔषधी केंद्रों पर भी ब्रांडेड दवाईयों का खेल

प्रधानमंत्री जनऔषधी परियोजना के तहत चल रही कुछ दवा दुकानों पर भी ब्रांडेड दवाईयों का खेल कुछ अलग अंदाज में चल रहा है। ऐसे दुकानदार जनऔषधी केंद्र का बोर्ड लगाकर मरीजों को आकर्षित करते हैं और जब वह दवा लेने जाते हैं तो उन्हें ब्रांडेड कंपनी की दवा पकड़ा दी जाती है। जैसे किसी जेनेरिक दवा की कीमत तीन रुपये है। ब्रांडेड कंपनी भी वही दवा बना रही है, जिस पर अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) 30 रुपये लिखा है, लेकिन दुकानदार को ये दवा पांच-छह रुपये में कंपनी से मिल रही है। दुकानदार ऐसी दवाओं पर 25 से 50 फीसद की छूट का ऑफर देता है। इसके बावजूद जेनेरिक दवा के मुकाबले इस तरह की ब्रांडेड दवाओं में दुकानदार को काफी ज्यादा मुनाफा मिलता है।

दवा की कीमतें तय करने का ठोस नियम नहीं

केंद्र सरकार का औषध विभाग (Department of Pharmaceuticals) देश में दवाईयों की कीमत निर्धारित करता है। हालांकि, इसे लेकर ठोस नियम नहीं है। दवा कंपनियों निमयों में शिथिलता का फायदा उठाकर मनमानी कीमत वसूलती हैं। औषध विभाग बेसिक दवाईयों की कीमत निर्धारित करती है, जो किसी भी इलाज के लिए जरूरी होती है। फार्मा कंपनियां इन दवाओं में कोई एक-दो अतिरिक्त साल्ट जोड़कर उसे निर्धारित कैटेगरी से बाहर कर लेती है और फिर उसकी मनमानी कीमत वसूलती हैं। भले दवा में मौजूद वो अतिरिक्त साल्ट इलाज के लिए जरूरी हो या न हो। पुख्ता कानून न होने की वजह से दवा कंपनियां खुलेआम मनमानी करती हैं।

बड़े निजी अस्पताल भी इस गठजोड़ का हिस्सा हैं

एक बड़ी कंपनी के चिकित्सा प्रतिनिधि (Medical Representatives) बताते हैं कि जब भी आप किसी बड़े प्राइवेट अस्पताल में जाते हैं, डॉक्टर अमूमन आपको वही दवा लिखेगा, जो उस अस्पताल के मेडिकल स्टोर पर ही मिलेगी। कई बार मरीजों से कहा जाता है कि वह अस्पताल की फार्मेसी से ही दवा लेकर डॉक्टर को दिखा दें, ताकि कोई असमंजस न रहे या कोई और बहाना बनाते हैं। अस्पताल की फार्मेसी उस दवा को बिना किसी छूट के प्रिंट रेट पर बेचती है, जबकि वही दवा किसी अन्य केमिस्ट शॉप में डिस्काउंटेड रेट पर उपलब्ध हो सकती है। ऐसा उस दवा पर मिलने वाले मोटे मुनाफे के लिए किया जाता है। साथ ही पिछले कुछ वर्षों से लगभग सभी प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों का पर्चा (Prescription) स्कैन या कार्बन कॉपी किया जाने लगा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इससे उन मरीजों को फायदा मिलता, जो पर्चा भूल जाते हैं। साथ ही अस्पताल में मरीजों का रिकॉर्ड मौजूद रहता है। लेकिन पर्चे स्कैन करने के पीछे भी एक बड़ा खेल है। दरअसल इन्हीं स्कैन पर्चों के जरिए दवा कंपनियों को दिखाया जाता है उनकी कितनी दवा लिखी गई है।

सरकार की जानकारी में है पूरा मामला

8 जनवरी 2019 को कर्नाटक के कांग्रेसी सांसद केसी रामामूर्ति (KC Ramamurthy) ने राज्यसभा में ये मुद्दा उठाया था। उन्होंने सरकार से ऐसी कंपनियों की जानकारी मांगी थी जो डॉक्टरों को रिश्वत देती हैं और ये भी पूछा था कि इन कंपनियों अथवा डॉक्टरों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई। इस पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने बताया था, 'डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्युटिकल्स' (The Department of Pharmaceuticals - DoP) को दवा कंपनियों के खिलाफ इस तरह की कुछ शिकायतें प्राप्त हुई हैं। जिस पर जांच जारी है। साफ है कि दवा कंपनियों की इस मनमानी और अनैतिक व्यापार से सरकार भी वाकिफ है।

आरटीआई में कंपनियों का नाम तो मिला, लेकिन कार्रवाई की जानकारी नहीं

डाउन टू अर्थ संस्था ने इस मुद्दे पर 23 जनवरी 2019 को डीओपी (DoP) में आरटीआई लगा 2015 से अनैतिक व्यापार करने वाली दवा कंपनियों की सूची और उनके खिलाफ हुई कार्रवाई का ब्यौरा मांगा। 14 फरवरी 2019 को जवाब में 20 कंपनियों का नाम तो बताया गया, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई की कोई जानकारी नहीं दी गई। ये शिकायतें वर्ष 2016 की थीं। आरटीआई में डॉक्टरों का नाम नहीं था। संस्था ने इसके बाद भी कई स्तर पर आरटीआई व अपील दाखिल की, लेकिन उसे कंपनियों व डॉक्टरों के खिलाफ की गई कार्रवाई से संबंधित कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। 15 मई 2019 को संस्था ने अपनी वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित करते हुए दवा कंपनियों और डॉक्टरों के इस गठजोड़ को सामने लाने का प्रयास किया। लेख के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में कई लोगों ने पुख्ता साक्ष्यों संग डीओपी में शिकायत दर्ज कराई है। बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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रविवार, 7 अगस्त 2022

कलात्मकता व अश्लीलता में फर्क पर क्या कहता है कानून?


 पिछले दिनों जबसे एक्टर रणवीर सिंह की न्यूड फोटो सामने आई। उसके बाद से यह सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसी फोटो खिंचवाना और उसे शेयर करना अपराध है? 

सवाल इसलिए उठा क्योंकि एक्टर के खिलाफ केस दर्ज हुआ है। जानते हैं कि इस मामले में कानून क्या कहता है और कलात्मकता व अश्लीलता में क्या फर्क है? 
एक्टर रणवीर सिंह ने न्यूड फोटोशूट करवाया और फोटो सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर कीं। इसके बाद मुंबई में रणवीर सिंह के खिलाफ एक शख्स ने शिकायत की और एक्टर के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। 
ऐसी तस्वीरों से बच्चों पर निगेटिव असर पड़ेगा
शिकायती का कहना था कि भारत सांस्कृतिक विरासत वाला देश है और ऐसी तस्वीरों से बच्चों पर निगेटिव असर पड़ेगा। बताया जाता है कि रणवीर सिंह ने किसी विदेशी मैगजीन के लिए यह फोटोशूट करवाया है। शिकायत के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा-292, 293 व आईटी एक्ट की धारा 67 ए के तहत केस दर्ज किया है। 
अश्लीलता के मामले में क्या है कानून
कानूनी जानकारों के मुताबिक आईपीसी में और आईटी एक्ट में अश्लीलता करने या फैलाने वालों के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कर केस चलाने का प्रावधान है। आईपीसी की धारा-292, 293, 294 के अलावा आईटी एक्ट -67 व 67ए के तहत केस दर्ज हो सकता है। एडवोकेट मनीष भदौरिया ने कहा कि आईपीसी की धारा-292 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी तरह की अश्लील सामग्री, किताब आदि बेचता है या बांटता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर पहली बार में 5 साल तक कैद हो सकती है। 
आईपीसी की धारा-293 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स 20 साल से कम उम्र के शख्स को अश्लील सामग्री या किताब देता या बेचता है तो 3 साल तक कैद हो सकती है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 7 साल तक कैद और दो हजार रुपये तक जुर्माना भी हो सकता है। 
आईपीसी की धारा-294 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स पब्लिक प्लेस पर अश्लील हरकत करता है या अश्लील गाने गाता है या अश्लील भाषा का इस्तेमाल करता है तो दोषी पाए जाने पर 3 महीने तक कैद की सजा हो सकती है। 
आईटी एक्ट में क्या है प्रावधान
सोशल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अगर कोई शख्स अश्लील कंटेंट को सर्कुलेट करता है या उसे प्रकाशित या प्रसारित करता है तो आईटी एक्ट के तहत मुकद्दमा होगा। मौजूदा मामले में भी सोशल मीडिया के जरिये कंटेंट सर्कुलेट किया गया है, ऐसे में आईटी एक्ट की धारा-67 व 67 ए लगती है। आईपीसी की धारा-67 में कहा गया है कि अगर कोई शख्स अश्लील मैटेरियल (वासना वाले या कामुमता आदि वाले कंटेंट) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रसारित करता है तो वह अपराध है। पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 साल कैद और 5 लाख रु. तक जुर्माना, दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 5 साल तक कैद और 10 लाख तक जुर्माना देना पड़ सकता है। आईटी एक्ट -67 ए के मुताबिक कोई भी कंटेट जो सेक्शुअलिटी की हरकत को दर्शाता हो और उसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रसारित या प्रकाशित किया जाता है तो दोषी शख्स को सजा हो सकती है। पहली बार में 5 साल कैद और 10 लाख रु. तक जुर्माना और दूसरी बार दोषी करार दिया गया तो 7 साल तक कैद व जुर्माना हो सकता है। यह मामला गैर जमानती अपराध है। 
अश्लीलता और कलात्मकता में क्या फर्क है?
कला और अश्लीलता के पैमाने समय और समाज के अनुसार बदलते रहते हैं। आईपीसी कानून में अश्लीलता क्या है और क्या कलात्मकता है इसे सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में समझाया है। एडवोकेट विराग गुप्ता बताते हैं कि कलात्मकता के साथ उसकी पृष्ठभूमि होती है जबकि अश्लीलता विशुद्ध बाजारु होती है। अश्लीलता शब्द व्यापक है और उस दायरे में सब-कुछ आ जाता है। कौन-सा कंटेट कलात्मकता वाला श्रृंगारिक मैटेरियल है और कहां कामोत्तेजक भाव है, अदालत केस दर केस इसे देखती है।

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

विवाह और गर्भ के नाम पर ब्‍लैकमेलिंग का नया धंधा


 










देश आजादी का अमृत महोत्‍सव मना रहा है। चारों ओर समाज के विभिन्‍न तबकों के सशक्‍तीकरण की बात हो रही है, ऐसे में महिला सशक्‍तीकरण की बात ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। हालांकि इस सशक्‍तीकरण की बात करते करते हम कर्तव्‍यों को किस बेदर्दी से तिलांजलि देते जा रहे हैं, इसके कुछ उदाहरण जो मेरे सामने आए उन्‍होंने मुझे व्‍यथित कर दिया... कि क्‍या सच में हमने इसी आधुनिकता और सभ्‍य समाज को सुसंस्‍कृत बनाने के लिए महिलाओं के अधिकारों की बात कर कर के उन्‍हें सशक्‍त बनाने का बीड़ा उठाया था। 

ये वो उदाहरण हैं जो समाज में महिलाओं को ''बेचारी'' के टैग से तो बाहर निकाल रहे हैं परंतु साथ ही साथ अपराधी भी बना रहे हैं, एक ऐसा अपराधी जो समाज को हिलाकर रख दे। 

जो मां शब्‍द को ही अपमानित कर दे, जो रिश्‍तों को इस तरह घायल करे कि फिर कोई पुरुष किसी महिला पर, मां पर, बेटी और बहू पर विश्‍वास ही ना कर सके। इतना ही नहीं तमाम मानसिक विकारों को जन्‍म दे दे। 

अभी तक आपने ऐसी दुल्‍हनों के बारे में सुना होगा जो शादी कर ठगी करती रहीं, परंतु ऐसी विवाहिताओं के बारे में नहीं सुना होगा जो अपनी प्रेगनेंसी को ही ठगने का हथियार बना लें। इसके अलावा ऐसे भी केस हैं जिनमें तलाक के बहाने पुरुषों से अच्‍छा खासा धन ऐंठा गया। ये तो विवाह के बाद आने वाले मामले हैं, जबकि विवाह से पहले भी लड़कियां फेक रेप, सेक्‍सुअल एक्‍सटॉर्शन, शादी के बहाने रेप जैसे ब्‍लैकमेलिंग के ऐसे हथकंडे अपनाने लगी हैं जिनसे सिर्फ और सिर्फ आम महिलाओं को ही नुकसान उठाना पड़ेगा।

आधुनिकता और सशक्‍तीकरण के नाम पर जिस तरह समाज की सांस को ही घोट देने का कुचक्र रचा जा चुका है, उसने हमारे बीच से ही कुपुत्रियों, कुमाताओं और पत्‍नी होने का बाजार सजाए बैठी महिलाओं के कुत्‍सित प्रयासों द्वारा अपराध की एक पूरी दुनिया बना दी गई है।  
चलिए अब सुनाती हूं वे मामले जिन्‍होंने मुझे ये सब लिखने को बाध्‍य किया।  

एक महिला वकील द्वारा दिए तथ्‍यों के बाद इन मामलों को आपके समक्ष ला रही हूं।   


केस नं. एक- 
दो साल की शादी के बाद जब महिला गर्भवती हुई तो इसके तुरंत बाद उसके माता-पिता ने पति यानि दामाद पर दबाव डाला कि वह अपनी सारी प्रॉपर्टी गर्भवती पत्‍नी के नाम कर दे , शर्त ये थी ऐसा ना करने पर वह उस बच्‍चे को पैदा नहीं करेगी। परंतु ऐसा हो ना सका, अबॉर्शन कराने की धमकी ने पति के कान खड़े कर दिए और उसने अपनी प्रॉपर्टी पत्‍नी के नाम नहीं की। नतीजतन महिला ने अबॉर्शन करा दिया। साथ ही माता पिता के साथ जाकर उस पति के खिलाफ दहेज के लिए उत्‍पीड़न और घरेलू हिंसा की धाराओं में केस दर्ज करा दिया। अब पति अपनी नौकरी, माता पिता की देखभाल के साथ साथ कोर्ट की तारीखें अटेंड कर रहा है।   


केस नं. दो-  

महिला वकील केस नं. एक को लेकर हतप्रभ थीं कि एक अन्‍य मामले में एक और महिला ने ऐसी ही कहानी के साथ उनसे संपर्क किया। उस महिला ने बताया कि उसके भाई की पत्नी ने शर्त रखी है कि जब वह अपने माता-पिता को छोड़ देगा, संपत्ति उसके नाम पर स्थानांतरित कर देगा और उसकी तलाकशुदा बहन का नाम वसीयत से हटा दिया जाएगा, उसके बाद ही वह उसके बच्चे को जन्म देगी। इनकी भी शादी को मात्र डेढ़ साल ही हुए हैं। उनका भाई इकलौता है और एकमात्र कमाने वाला। माता पिता वृद्धावस्‍था पेंशन तो ले रहे हैं परंतु शारीरिक रूप से असहाय है, ऐसे में घर का हाल क्‍या होगा, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। 


केस नं. तीन-

इस मामले में पत्नी दिल की मरीज है लेकिन फिर भी वह अपने नाम पर पति की संपत्ति चाहती है। पत्‍नी के माता -पिता बेटी की देखभाल के नाम पर उसके साथ ही रहते हैं, और हरसंभव दबाव बनाए हुए हैं, अन्‍यथा की स्‍थिति में तलाक और पत्‍नी की देखभाल में लापरवाही के लिए केस करने की धमकी दे रहे हैं। 


केस नं. 4- 

महिला ने पति से लगभग दो दशक बाद सिर्फ इसलिए तलाक मांगा है क्‍योंकि पति उसे उसकी मर्जी के अनुसार अन्‍य व्‍यक्‍तियों के साथ संबंध रखने को मना करता है। इसमें भी महिला का साथ उसके मायके वाले दे रहे हैं, हालांकि सच वो भी जानते हैं परंतु जानते बूझते हुए आत्‍मघात करने वालों को कोई भला कैसे रोक सकता है।  

उक्‍त सभी केसों में जहांतक बात वकील की है तो वकील तो केस लड़ेगी ही, परंतु वो भी अधिक दुखी इस बात से थी कि ये आधुनिक व युवा महिलाओं द्वारा पति और उसके घरवालों पर इस तरह के मानसिक अत्‍याचार में उनके अपने माता-पिता ही सहभागी बन रहे हैं।  वे एक-एक करके तभी जागेंगे जब उनका कोई अपनों का कोई इस जाल में फंस जाएगा और उनके परिवारों को तकलीफ होने लगेगी। मुझे लगता है कि यह अगले 15-20 वर्षों में काफी हद तक तय हो जाएगा, मगर ये तय है कि हमारी पूरी की पूरी एक पीढ़ी को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

कोरोनाकाल में हमने अच्‍छी तरह देखा था 'परिवार' नामक संस्‍था की ताकत को परंतु उक्‍त केस इसे हर हाल में खाई में ही डालेंगे। 

आम बोलचाल की भाषा में ऐसे पीड़क लोगों को गोल्ड डिगर्स कहा जाता है जो मात्र पैसे के लिए सारे रिश्‍तों का बाजार लगाकर मोलभाव करते हैं। ये हमारी कल्पना से भी परे की बात है। कम से कम उस समाज में तो है ही जो अभी तक महिला को सम्‍मान देता आया है, उसके अधिकारों के लिए लड़ता आया है।  स्‍थिति और बदतर हो इससे पहले ही दहेज व शोषण विरोधी कानूनों की एक बार फिर समीक्षा होनी चाहिए ताकि न्‍याय उस पक्ष को भी मिले जिसपर अभी तक शोषक होने का टैग लगा हुआ है और वो इसी टैग का खामियाजा भुगत भी रहा है और महिला-पुरुष के बीच परिवार बनाने वाले तमाम विश्‍वासों होते देखने की एक बड़ी कीमत चुका रहा है। 

-अलकनंदा सिंह 

शनिवार, 23 जुलाई 2022

आखिर कैसे खुला पश्‍चिम बंगाल में हुए SSC घोटाले का राज?


 पश्चिम बंगाल सरकार एक घोटाले की वजह से फंसती नजर आ रही है। स्कूल सेवा आयोग SSC के तहत श‍िक्षा विभाग में ग्रुप सी और डी की भर्तियों के दौरान हुए घोटाले को लेकर राज्‍य सरकार में मंत्री पार्थ चटर्जी को ईडी (ED) ने ग‍िरफ्तार कर लिया है। ईडी की टीम ने पार्थ चटर्जी की नजदीकी अर्पिता मुखर्जी के घर से अब तक 21 करोड़ रुपए कैश बरामद किये हैं। 22 जुलाई को हुई कार्रवाई में पार्थ से रातभर पूछताछ की गई जिसके बाद उन्‍हें और अर्पिता को 23 जुलाई को ग‍िरफ्तार कर लिया गया। ईडी ने ये कार्रवाई घोटाले को लेकर ही की। इस स्‍कैम की जांच सीबीआई को सौंपी गई है। ईडी घोटाले में पैसों की लेनदेन को लेकर जांच कर रही है। लेकिन SSC Scam है क्‍या और इसका राज कैसे खुला?

क्‍या है पश्चिम बंगाल का एसएससी घोटाला?
राज्‍य के माध्यमिक श‍िक्षा बोर्ड के तहत श‍िक्षण और गैर श‍िक्षण पदों पर नियुक्‍तियों के लिए स्‍कूल सेवा आयोग ने (WBSSC) वर्ष 2016 में परीक्षा आयोजित की। पर‍िणाम आया 27 नवंबर 2017 को। पर‍िणाम लिस्‍ट में एक परीक्षार्थी बबीता सरकार का भी नाम टॉप 20 में था और उन्‍हें 77 नंबर मिले थे, लेकिन बाद में आयोग ने यह सूची रद्द कर दी। इसके बाद जब दूसरी सूची आई तो उसमें बबीता का नाम वेटिंग लिस्‍ट में चला गया लेकिन उनसे 16 नंबर कम (61 नंबर) पाने वालीं शिक्षा राज्य मंत्री परेश अधिकारी की बेटी का नाम सबसे ऊपर आ गया। घोटाले की परत यहीं से खुलनी शुरू हुई।
बबिता के पिता हाई कोर्ट चले गये। उन्‍होंने दावा किया कि भर्ती परीक्षा में अधिकारी की बेटी के मुकाबले ज्यादा अंक लाने के बावजूद उसे नौकरी नहीं दी गई। याचिकाकर्ता ने बताया क‍ि उसकी बेटी को 77 नंबर मिले थे लेकिन उसकी बेटी का नाम मेरिट लिस्‍ट में आया ही नहीं, जबकि उससे कम 61 अंक पाने वाली मंत्री की बेटी का नाम सबसे ऊपर रहा और उसे नौकरी मिल गई। 
कोर्ट ने मामले को संज्ञान में लिया और जांच के लिए न्‍यायमूर्ति (रिटायर्ड) रंजीत कुमार बाग की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में घोटाले में शामिल तत्‍कालीन अध‍िकारियों के ख‍िलाफ मुकद्दमा चलाने की सिफारिश की।
एसएससी घोटाला हुआ कैसे?
घोटाले में शामिल अध‍िकारियों ने बड़ी चालाकी से इस धांधली को अंजाम दिया। जांच में पता चला क‍ि अधिकारियों ने चुनिंदा उम्मीदवारों को अपनी ओएमआर उत्तर पुस्तिकाओं के लिए आरटीआई लगाने और पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन देने को कहा। उन्होंने ऐसा ही किया। अधिकारियों ने तब कथित तौर पर कुछ उम्मीदवारों के अंक बढ़ाकर उन्हें मेरिट में स्‍थान दे दिया और फिर ओएमआर शीट में हेराफेरी की। उन्होंने असफल उम्मीदवारों को नियुक्ति सूची में लाने के लिए कथित तौर पर जाली अंक भी बनाए।
अंक बदलने के बाद ओएमआर शीट को कथित तौर पर नष्ट कर दिया गया। उम्मीदवारों के स्कोर को बढ़ाने के लिए आरटीआई का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया गया।
पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोगन (WBSSC) के पूर्व सलाहकार के कहने पर कार्यक्रम अधिकारी समरजीत आचार्य ने ग्रुप सी के असफल उम्मीदवारों के लिए 381 अनुशंसा पत्र तैयार किए। इनमें से लगभग 250 तो मेरिट लिस्ट में भी नहीं थे। इसी तरह ग्रुप डी में 609 असफल उम्मीदवारों के पक्ष में नियमों को ताक पर रखा गया। चार-पांच बार में फर्जी रिकमंडेशन लेटर WBBSE अध्यक्ष गांगुली को दिए। गांगुली ने इस लेटर्स के आधार पर अपॉइंटमेंट लेटर तैयार करने के निर्देश दिए। उन्होंने प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए ये लेटर बोर्ड के नियुक्ति सेक्शन को भी नहीं भेजे।
पूर्व और वर्तमान अध‍िकारियों पर मुकद्दमा
स्कूल शिक्षा विभाग में ग्रुप सी और ग्रुप डी पदों की भर्ती में कथित घोटाले की जांच करने वाली न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजीत बाग समिति ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) के चार अधिकारियों, पूर्व और वर्तमान और एक वरिष्ठ के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की। कलकत्ता हाई कोर्ट ने शिक्षकों की भर्ती में घोटाले की CBI जांच का आदेश दिया। शिक्षा विभाग के अधिकारी पर आपराधिक साजिश का आरोप समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय जांच ब्यूरो CBI ने पांचों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। इस मामले में सीबीआई राज्‍य के श‍िक्षा मंत्री परेश अध‍िकारी से पूछताछ कर चुकी है।
12 मई को कलकत्ता उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट में समिति की रिपोर्ट के आधार पर डब्ल्यूबीएसएससी के पूर्व अध्यक्षों प्रोफेसर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की सिफारिश की। सौमित्र सरकार और अशोक कुमार साहा, संगठन के पूर्व सलाहकार, डॉ शांति प्रसाद सिन्हा, कार्यक्रम अधिकारी समरजीत आचार्य और पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (WBBSE) के अध्यक्ष डॉ कल्याणमय गांगुली पर मामला दर्ज करने की सिफारिश की। 
सीबीआई ने समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार, साहा, सिन्हा और गांगुली के खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया। इसने सिन्हा और आचार्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 465 (जालसाजी), 417 (धोखाधड़ी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और 34 (सामान्य इरादे से कई लोगों द्वारा किए गए कार्य) को भी लागू किया।
सीबीआई के साथ ईडी ने भी शुरू की जांच
सीबीआई के अलावा मामले की जांच की ज‍िम्‍मेदार ईडी को दी गई। मंत्री पार्थ चटर्जी पहले राज्‍य के श‍िक्षा मंत्री थे और अब वाण‍िज्‍य मंत्री हैं। ईडी उनके पहले भी इस मामले में पूछताछ कर चुकी है। उनसे इस मामले से जुड़ी विभिन्न जानकारियां और दस्तावेज मांगे गये थे। जांचकर्ताओं का दावा है कि इस नियुक्ति में करोड़ों रुपये का गबन किया गया है। नौकरी में भ्रष्टाचार के मामले में वित्तीय लेन-देन हुआ है। हालांक‍ि इस मामले में विधानसभा में ममता बनर्जी ने साफ कर दिया था कि उनकी सरकार पार्थ चटर्जी के साथ खड़ी है।
श‍िक्षा मंत्री की बेटी को लौटानी पड़ी थी 41 महीने की सैलेरी
कोलकाता हाई कोर्ट ने शिक्षा मंत्री परेश अध‍िकारी की बेटी अंकिता अध‍िकारी की स्‍कूल टीचर की नियुक्‍ति को अवैधर करार दे दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है क‍ि अंकिता से 41 महीने की सैलेरी दो किस्‍तों में वसूली जाये।

- Compiled by Legend News