शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

बदलाव की बेहद अच्छी शुरुआत हैं सुप्रीम कोर्ट के ये दो न‍िर्णय…


 पूरे देश में अपराध संबंधी आंकड़े जुटाने वाली एजेंसी एनसीआरबी के आंकड़े देखकर तो कभी-कभी ऐसा लगता है क‍ि भारत एक झगड़ालू देश है परंतु अब इन्हीं आंकड़ों को कम करने के ल‍िए सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में द‍िए गए दो न‍िर्णयों से बड़ी राहत म‍िलने वाली है।

कानूनी पचड़ेबाजी में पड़े व्यक्त‍ि के ल‍िए न्याय की अंत‍िम आस सुप्रीम कोर्ट होता है, सो उसके ये न‍िर्णय न‍िश्च‍ित ही पूरे देश को बड़ा लाभ पहुंचाने वाले हैं।

पहला मामला ये है
कल सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी मुकद्दमों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण आदेश द‍िया क‍ि यद‍ि ‘वादी पक्ष’ रज़ामंदी से ‘आउट ऑफ कोर्ट’ सेटलमेंट करने यान‍ि केस को आपसी सहमत‍ि से न‍िपटाने का इच्छुक हो तो उसकी कोर्ट फीस पूरी की पूरी वापस कर दी जाएगी। चूंक‍ि स‍िव‍िल मुकद्दमों की फीस ‘कोर्ट फीस मुकद्दमा वैल्यू एक्ट” के ह‍िसाब से तय की जाती है इसलिए कोर्ट इसे 10% से लेकर 25% तक जमा कराता है लेकिन दशकों तक घ‍िसटने वाले दीवानी मुकद्दमे की कोर्ट फीस कभी वापस नहीं म‍िलती थी।
इस फैसले से जहां ‘आउट ऑफ कोर्ट’ सेटलमेंट करने को प्रोत्साहन म‍िलेगा वहीं बेवजह सालों साल घ‍िसटने वाले और कोर्ट पर बोझ बढ़ाने वाले ऐसे मामलों की संख्या में कमी भी आएगी। ज़ाह‍िर है क‍ि ये एक न‍िर्णय कोर्ट्स का क‍ितना बोझ कम करेगा, इसका स‍िर्फ अंदाज़ा लगाकर ही बेहद खुशी हो रही है।

दूसरा मामला
क‍िसी भी समाज और खासकर लोकतांत्र‍िक समाज में स्वयंसेवी संगठन यान‍ि एनजीओ का बहुत योगदान होता है परंतु जब यही योगदान गलत कारणों से संदेहों और स्वार्थ में घ‍िरकर कानून का दुरुपयोग करने लगे तो वही होता है जो सुप्रीम कोर्ट ने क‍िया। खबर हालांक‍ि 5 द‍िन पुरानी है परंतु है सबक देने वाली क‍ि एक एनजीओ सुराज़ इंडिया ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में लगातार 64 जनहित याच‍िकायें दाख‍िल कीं और सभी बेबुन‍ियाद व‍िषयों पर।

5 दिसम्बर 2017 को पहली सुनवाई जस्ट‍िस खेहर ने की थी ज‍िसमें उनपर 25 लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया गया था। इसका पटाक्षेप अब 17 फरवरी 2021 को तब हुआ, जब तीन घंटे की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने NGO के अध्यक्ष राजीव दह‍िया पर न केवल 25 लाख का जुर्माना लगा रहने द‍िया बल्क‍ि उन्हें आजीवन कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने से भी उन्हें बैन कर दिया। इतना ही नहीं ज़ुर्माना न भरने के कारण दह‍िया के ख‍िलाफ ज़मानती वारंट भी जारी क‍िया।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने इस सुराज इंडिया ट्रस्ट बनाम भारत संघ मामले में NGO के अध्यक्ष राजीव दह‍िया से कहा क‍ि “आप हमारा वक्त बर्बाद मत कीजिए। आप रुकावट पैदा कर रहे हैं। आपने कोर्ट में 64 जनहित याचिकाएं दाखिल कींं। कोर्ट के पास और भी काम हैं। लोग जेल में हैं। क्या सड़क हादसों में मारे गए लोग इंसाफ के हकदार नही हैं, महिलाओं, बच्चों और गरीब लोगों का क्या जो इंसाफ के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, महिलाएं और बच्चे मोटर वाहन क्लेम का इंतजार कर रहे हैं।

ये एक बड़ा सबक है उन संस्थाओं और व्यक्त‍ियों के ल‍िए जो अपनी स्वार्थपूर्त‍ि के ल‍िए सुप्रीम कोर्ट को याच‍िकाओं से पाटे जा रहे हैं। सोचने वाली बात है क‍ि जहां प्रत‍िद‍िन सैकड़ों केस सुनवाई और न‍िर्णय की आस में सुप्रीम कोर्ट की ओर देखते हों वहीं एक के बाद एक लगातार 64 याच‍िकाएं आख‍िर क्यों और क‍िस मानस‍िकता के तहत दाख‍िल की गईं।

न‍िश्च‍ित ही सुप्रीम कोर्ट के उक्त दोनों न‍िर्णय कोर्ट की कार्यप्रणाली और लंब‍ित मुकद्दमों के ल‍िए अच्छी ‘शुरुआत’ कहा जा सकता परंतु अभी स‍िर्फ शुरुआत है। आम आदमी को समय से न्याय अब भी टेढ़ी खीर है, ज‍िस पर खरा उतरने के ल‍िए कई मील के पत्थर पार करने होंगे।

- अलकनंदा स‍िंंह 

17 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक निर्णय और सही जानकारी। आभार।

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  2. स्व विवेक खो चुके लोगों को अब कानून का डंडा ही कुछ समझा सकता है लेकिन लंबित मामलों में कोर्ट को भी लंबा नहीं खींचना चाहिए । समय रहते कड़ा फैसला लिया जाए तो ऐसी स्थिति कम उत्पन्न होगी ।

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    1. धन्यवाद अमृता जी, फ‍िलहाल ऐसा लग रहा है क‍ि सुप्रीम कोर्ट ''कुछ'' प्रयास करता द‍िख रहा है, आगे देखते हैं क‍ि यह प्रयास कहां तक पहुंचेगा...आपकी ट‍िप्प्णी मेरे ल‍िए बहुमूल्य है।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का"   (चर्चा अंक- 3985)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
     आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  4. बहुत अच्छी पहल
    वे संस्थाएं और व्यक्त‍ि जो अपनी स्वार्थपूर्त‍ि के ल‍िए बेमतलब की याचिकाएं दायर करने से बाज नहीं आते, उन्हें अब तो समझ लेना ही होगा कि कोर्ट भी उनके इरादे समझ गयी है
    बहुत अच्छी सार्थक प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद कव‍िता जी, आपकी ट‍िप्पणी बहुमूल्य है

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  5. वाकई ये दोनों अच्छे सुधार हैं

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  6. हजारों-हजार ऐसी बेसिर-पैर की याचिकाएं गैर जिम्मेदाराना लोगों द्वारा दाखिल की हुई हैं ! ऐसे लोगों पर अंकुश ही नहीं दंड का भी प्रावधान होना जरुरी है

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  7. अलकनंदा जी, आपके लेखों को पढ़कर मेरे सामान्य ज्ञान और सामाजिक ज्ञान में निश्चित रूप से वृद्धि होती है। सादर आभार।

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