पुरानी कहावत है कि कबूतर के आंख मूंद लेने से उसके ऊपर बिल्ली का खतरा टल नहीं जाता, वह उसे मारकर खा ही जाती है। यूं भी विपत्ति जब सामने हो तो उससे मुंह चुराना अक्लमंदी नहीं, कायरता है। तब्लीगी जमात द्वारा जिस तरह कोरोना संक्रमण को फैलाया जा रहा है, जानबूझकर संक्रमितों द्वारा इकठ्ठा होकर नमाज़ पढ़ी जा रही हैं, सरकारों द्वारा ताकीद किए जाने के बाद भी स्वयं मौलाना ऐसा करते सरेआम दिख रहे हैं, ये कोई जाहिलाना हरकत या अनजाने में किया गया अपराध नहीं हैं बल्कि सोच समझकर बिछाई गई बिसात है, जिसके हम सब मोहरे बने हुए हैं।
तब्लीगी जमात पर क्या अब भी हम आंखें मूंदे रहेंगे
ज़रा सोचिए कि अब तक सारे जमाती अंडरग्राउंड क्यों हैं, सामने क्यों नहीं आ रहे हैं, उन्हें पुलिस को क्यों खोजना पड़ रहा है, वे आज भी ग्रुप में इकठ्ठा होकर नमाज़ क्यों पढ़ रहे हैं, वे क्वारंटाइन या इलाज के दौरान मेडीकल स्टाफ या पुलिस के साथ बदतमीजी क्यों कर रहे हैं। ड्रोन द्वारा निगरानी के दौरान मस्जिदों की छत पर भारी तादाद में ईंट पत्थर इकठ्ठा क्यों पाए गए। इंदौर में कोरोना संक्रमित जमातियों के लिए उनकी औरतें ही शील्ड क्यों बन गईं।
माना कि ये समय धर्म के बहाने आतंक के इस नए रूप पर चर्चा करने का नहीं हैं परंतु अभी भी 75 प्रतिशत मामले अगर तब्लीगी से जुड़े सामने आ रहे हैं तो सोचना पड़ रहा है कि आखिर इस वायरस को फैलाने के लिए तब्लीगी जमात का ही नाम क्यों… किसी सिख, ईसाई, पारसी, जैन या हिंदू संगठन का नाम क्यों नहीं सामने आ रहा। हम कितना भी बचें ये कहने से कि इस्लाम में ये नहीं… वो नहीं.. परंतु सत्य तो यही है कि जो अपने पेट पर बम बांधकर दूसरों को फ़ना करने के आदी हों, उनसे इंसानी जिंदगियों को बचाने की आशा रखना ”आंखबंद कबूतर” के जैसी है। बेशक मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग तब्लीगी जमात की हरकतों से न सिर्फ शर्मिंदा है, साथ ही गुस्से से भरा हुआ भी है और इसलिए उन्हें अपराधी करार देने से नहीं हिचक रहा किंतु सवाल ये पैदा होने लगा है कि क्या अब सिर्फ उन्हें कोसने से काम चल जाएगा। क्या बिना कठोर कानूनी कार्यवाही के जमाती बाहर निकल आएंगे?
बेशक मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग तब्लीगी जमात की हरकतों से न सिर्फ शर्मिंदा है, साथ ही गुस्से से भरा हुआ भी है और इसलिए उन्हें अपराधी करार देने से नहीं हिचक रहा किंतु सवाल ये पैदा होने लगा है कि क्या अब सिर्फ उन्हें कोसने से काम चल जाएगा। क्या बिना कठोर कानूनी कार्यवाही के जमाती बाहर निकल आएंगे?
बेशक मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग तब्लीगी जमात की हरकतों से न सिर्फ शर्मिंदा है, साथ ही गुस्से से भरा हुआ भी है और इसलिए उन्हें अपराधी करार देने से नहीं हिचक रहा किंतु सवाल ये पैदा होने लगा है कि क्या अब सिर्फ उन्हें कोसने से काम चल जाएगा। क्या बिना कठोर कानूनी कार्यवाही के जमाती बाहर निकल आएंगे?
अलकायदा के हवाले से 2011 की एक खोजी रिपोर्ट के अनुसार तब्लीगी जमात को आतंकी संगठनों का बेस तैयार करने, भर्ती रंगरूटों को आतंकी ट्रेनिंग देने और हवाला व स्लीपर सेल के जरिये भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में आतंक फैलाने की जिम्मेदारी दी गई थी।
एक और बात बेहद महत्वपूर्ण है कि देवबंदी सुन्नियों से ताल्लुक रखने वाले तब्लीगी जमात के साढ़े आठ करोड़ अनुयायियों के लिए अभी तक देवबंद से कोई फतवा क्यों नहीं आया जबकि जानकारों के अनुसार जब तक देवबंद फतवा जारी नहीं करता तब तक ये ना तो सरकार के सामने आऐंगे और ना ही अपना इलाज़ करायेंगे। देवबंद की चुप्पी हमें बहुत कुछ बताती है खासकर उन लोगों और संगठनों को जो आतंक में धर्म को ढूढ़ते हैं। तब्लीगी जमात के मामले में अब वे भी मौन हैं। आखिर क्यों ? क्या इसलिए कि अब उनके सरोकार कोरोना महामारी से हर कदम पर जूझने वाले देश के हित में अपना अहित देख रहे हैं।
जमात के फिदायीनों की एक लंबी लिस्ट है जो जैव आतंकवाद के लिए गांव-मजरे तक फैली हुई है। यह जानबूझकर फैलाया जा रहा आतंकवाद हमारे सामने अनेक प्रश्नों को खड़ा कर चुका है, अब जरूरत है तो बस इतनी कि इसे धर्म के चश्मे से न देखा जाए। हम कायर थे तभी तो धर्मनिरपेक्ष बने रहे और तब्लीगी जैसे संगठन अपनी विषबेल फैलाते रहे। तब्लीगी का ये कुकर्म उसके लिए आखिरी पैगाम लेकर आया है और अब तक उसका जो भी साम्राज्य फैलना था फैल लिया, अब और नहीं।
हम सीधे सीधे देवबंदी, बरेलवी या इस्लाम के अन्य संगठनों के मन में भरे ज़हर को नज़रंदाज़ करते रहे और कबूतर ही बने रहकर हमने देश की अस्मिता को फिदायीनों के हाथों तक पहुंचा दिया, जमातियों की इस कारगुजारी के लिए हम भी इस अपराध की एक कड़ी हैं।
-अलकनंदा सिंंह
जवाबदेही तय होनी चाहिये। कोई भी हो।
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से सही कहा आपने जोशी जी, परंतु जवाबदेही तय होते ही कथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी ही सबसे पहले ऐसे मानव बमों के खैरख्वाह बनकर रुदाली बन जाते हैं और तो और सुप्रीम कोर्ट तक उनके पक्ष में कुतर्क करने से बात नहीं आते वरना आज जमातिियों की इतनी हिम्मत ही नहीं होती । धन्यवाद
हटाएंयह तो सीधे हत्या का मामला बनता है। उपद्रवी जमातियों को तो देखते ही गोली मार देना चाहिए, क्योंकि वह कोई आम विरोध प्रदर्शन नहीं है। डॉक्टर को मारना, पुलिस और स्वास्थ्य कर्मी पर हमला करना, महिला डॉक्टर और नर्स से घिनौनी हरकत करन, बीमारी फैलने के लिए थूक फेंकना- यह जघन्य अपराध है। इन्हें देखते ही गोली मार देना ही उचित इलाज है। यह मज़हब इंसानियत के लिए नासूर बनता जा तहा है। हिंदुस्तान के लिए तो अब यह टभकता घाव बन गया है। मज़हब के नाम पर गुंडागर्दी कतई बर्दाश्त नहीं कि जा सकती।
जवाब देंहटाएंकहते हैं ना कि हर अति अपना इलाज स्वयं साथ लेकर चलती हैं तो विश्वमोहन जी आप सही कह रहे हैं और अब इनकी अति ही इन्हें एक्सपोज कर गई । शेष रही इनके इलाज की बात तो शुरू हो चुका है। मेरी ब्लॉगपोस्ट के मर्म पर इतनी प्रतिक्रिया देने पर आपका धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुन्द और सामयिक आलेख।
जवाब देंहटाएंधर्मान्धों के प्रति सॉफ्ट कार्नर नहीं होना चाहिए।
सत्यवचन शास्त्री जी । धन्यवाद
हटाएंआदरणीय अलकनंदा जी, आपने जितनी बारीकी से चरमपंथियों की आतंकी नीतियों व उनके कारगुजारी पर चर्चा की है वह वस्तुतः आँखें खोल देने वाली हैं ।हमें इन बिंदुओं पर गहराई से विचार करने तथा तात्कालिक सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए वर्ना इनके दूरगामी विनाशक परिणाम सामने आ सकते हैं । मानवता व हमारे अस्तित्व की यह परीक्षा की घड़ी है।
जवाब देंहटाएंइस सार्थक आलेख हेतु साधुवाद व नमन।
धन्यवाद सिन्हा साहब, अभी तक आंखें मूंदे ही तो रहे , हालांकि पॉलिटिकल भाषा में इसे वोटबैंक कह सकते हैं परंतु यह भी पूरा सच नहीं हैं, हर बुराई के लिए राजनीति जिम्मेदार नहीं हो सकती ना, हां हम उसकी आड़ लेकर अपनी वैचारिक नाकामी को छुपाते अवश्य रहते हैं... इसीलिए मैं ये हेंडिंग डालने को विवश हुई
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