शनिवार, 11 मई 2019

मंटो मर नहीं सकता...कभी नहीं

मंटो एक जगह कहते हैं कि - "मैं उस सभ्यता, उस समाज की चोली क्या उतारुँगा जो पहले ही नंगी है।" इस कथन में मंटो ने समाज की सच्चाई पर एक व्यंग्य किया है, एक ऐसा व्यंग्य जो समाज कभी नहीं पचा सकता। मंटो पर उनकी भाषा और कहानियों की वजह से कई मुकदमे भी चले, जिनमें उनकी कहानियों को अश्लील बताकर समाज के लिये घातक बताया लेकिन यहाँ भी मंटो डटे रहे और इसके ख़िलाफ़ खुलकर लड़े।

उर्दू के जाने-माने लेखक सआदत हसन मंटो का जन्‍म 11 मई 1912 को हुआ था। 18 जनवरी 1955 को उनका देहांत हो गया। अपनी लेखनी से समाज के चेहरे को तार-तार कर देने वाले सआदत हसन ‘मंटो’ को पहले लोगों ने साहित्यकार मानने से इंकार कर दिया था।
अपनी लघु कथाओं… बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए सआदत हसन मंटो कहानीकार होने के साथ-साथ फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक तथा पत्रकार भी थे।
अपने छोटे से जीवनकाल में सआदत हसन मंटो ने 22 लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्रों के दो संग्रह प्रकाशित किए
कहानियों में अश्लीलता के आरोपों की वजह से मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और बनने के बाद, लेकिन एक भी बार उनके ऊपर आरोप साबित नहीं हो पाए। मंटो की कुछ रचनाओं का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद किया हुआ।

मंटो ने भी रूसी कथाकार आंतोन चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई
कहते हैं कि भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद मंटो पागल हो गए थे। उसी पागल दिमाग से निकली उनकी कहानी ‘खोल दो’ यथार्थ से दो-दो हाथ करती है।

मंटो ने एकबार कहा था- मैं अफ़साना नहीं लिखता, अफ़साना मुझे लिखता है। कभी-कभी हैरत होती है कि यह कौन है, जिसने इतने अच्छे अफ़साने लिखे हैं?
“मेरा कलम उठाना एक बहुत बड़ी घटना थी, जिससे ‘शिष्ट’ लेखकों को भी दुख हुआ और ‘शिष्ट’ पाठकों को भी”
दक्षिण एशिया में सआदत हसन मंटो और फैज़ अहमद फैज़ सब से ज़्यादा पढ़े जाने वाले लेखक है।

पिछले सत्तर साल में मंटो की किताबों की मांग लगातार रही है। एक तरह से वह घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया है। उनके सम्पूर्ण लेखन की किताबों की जिल्दें लगातार छपती रहती हैं, बार-बार छपती हैं और बिक जाती हैं।


यह भी सचाई है कि मंटो और पाबंदियों का चोली-दमन का साथ रहा है। हर बार उन पर अश्लील होने का इल्ज़ाम लगता रहा है और पाबंदियां लगाई जाती हैं।
-अलकनंदा सिंह

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