रविवार, 31 मार्च 2019

Court martial: क्‍या है और कैसे होता है, जिसका सामना कर रहे हैं मेजर गागोई

बॉलीवुड फिल्मों के चलते हमारे दिमाग में court martial की बहुत फिल्मी छवि है जबकि कोई मिलिट्री कोर्ट अपने किसी आर्मीपर्सन के खिलाफ जब ट्रायल शुरू करता है उसे ही court martial कहा जाता है. इसके बाद मिलिट्री कोर्ट अपने मिलिट्री लॉ के हिसाब से उसके अपराध के मामले में सजा देते हैं. मिलिट्री लॉ में 70 तरह के अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है.
लगभग सारे ही देशों की मिलिट्री में कोर्ट मार्शल का सिस्टम है. अक्सर इसे तब काम में लाया जाता है जब सैनिक किसी मिलिट्री से जुड़े अनुशासन का कभी उल्लंघन होता है. कुछ देशों में जब युद्ध न चल रहा हो, ऐसे वक्त कोर्ट मार्शल का कोई प्रावधान नहीं है. फ्रांस और जर्मनी ऐसे ही उदाहरण हैं जहां पर ऐसे मामलों में ही आम अदालतें सैनिकों के मामलों की भी सुनवाई करती हैं.
court martial का इस्तेमाल युद्ध बंदियों पर युद्ध अपराध के केस चलाने के लिेए भी किया जाता है. जेनेवा कन्वेंशन में यह तय किया गया था कि युद्ध बंदी जिन पर युद्ध अपराध का केस है. उनकी सुनवाई भी वही अदालत करेगी जो आर्मी के अपना जवानों के मामलों में केस की सुनवाई करती है.
चार तरह का होता है कोर्ट मार्शल
जनरल कोर्ट मार्शल : इसमें आर्मी के जवान से लेकर अफसर तक सारे लोग आते हैं. इसकी सुनवाई करने वाले लोगों में जज के अलावा 5 से 7 आर्मी पर्सन का पैनल होता है. इस सुनवाई के बाद उसे आजीवन प्रतिबंध, सैन्य सेवा से बर्खास्त किए जाने से लेकर फांसी तक की सजा सुनाई जा सकती है. मिलिट्री लॉ के अनुसार युद्ध के दौरान अपनी पोस्ट छोड़कर भागने वाले आर्मी पर्सन को फांसी की सजा देने का प्रावधान है.
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल : इस कोर्ट मार्शल में सिपाही से लेकर जेसीओ लेवल तक के आर्मीपर्सन आते हैं. इन मामलों की सुनवाई 2 या 3 मेंबर की बेंच करती है. ऐसे मामलों में अधिकतम 2 साल तक की सजा हो सकती है.
समरी जनरल कोर्ट मार्शल : जम्मू-कश्मीर जैसे प्रमुख फील्ड इलाके, जहां अक्सर सेना तैनात रहती हो में अपराध करने वाले आर्मी पर्सन के खिलाफ इस तरह की सुनवाई होती है.
समरी कोर्ट मार्शल : यह सैन्य अपराधों के लिए सबसे निचली अदालत होती है. इसमें सिपाही से लेकर एनसीओ लेवल के आर्मी पर्सन पर इसमें केस चलता है. इसमें भी अधिकतम 2 साल की सजा दिए जाने का प्रावधान है.
किन मामलों में कोर्ट मार्शल नहीं हो सकता
आर्मी कोर्ट को दुष्कर्म, हत्या और गैर इरादतन हत्या जैसे मामलों की सुनवाई का अधिकार नहीं है. फील्ड इलाकों में भी अगर सैन्यकर्मी का कोई अपराध सामने आता है तो उसकी जांच सेना सिविल पुलिस को सौंप देना होता है. हालांकि अपवाद स्वरूप कई बार ऐसे मामलों में भी सेना सुनवाई कर चुकी है. वैसे जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में ऐसे मामले सामने आते हैं तो सेना उन्हें अपने हाथों में ले सकती है. इसमें त्वरित सुनवाई कर आरोपी को सजा देने का प्रावधान है.
दो चरणों के बाद होता है कोर्ट मार्शल
1. कोर्ट ऑफ इंक्वायरी
सेना में किसी तरह का अपराध या अनुशासनहीनता होने पर सबसे पहले कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश जारी होते हैं. जांच में आर्मीपर्सन पर लगाए गए आरोप प्रमाणित होने और गंभईर मामला होने पर जांच अधिकारी तुरंत ही सजा दे सकता है. इसके अलावा बड़ा मामला होने पर केस समरी ऑफ एविडेंस को रिकमेंड कर दिया जाता है.
2. समरी ऑफ एविडेंस
प्रारंभिक जांच में दोषी सिद्ध होने पर सक्षम अधिकारी मामले और सबूत जुटाने के लिए जांच करता है. इस आधार पर तुंरत सजा देने का भी प्रावधान है. इस दौरान सभी कानूनी दस्तावेज इकट्ठा किए जाते हैं. इनकी जांच के बाद अधिकारी तुरंत सजा या कोर्ट मार्शल के लिए रिकमेंडेशन करता है.
3. कोर्ट मार्शल
कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू होते ही आरोपी आर्मीपर्सन उसके खिलाफ आरोपों की प्रति देकर वकील नियुक्त करने का अधिकार दिया जाता है.
सजा के बाद निचली अदालत में हो सकती है सुनवाई
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल में अगर किसी आर्मी पर्सन को सजा हुई है तो वह इसे सेशन कोर्ट में चुनौती दे सकता है. वहीं कोर्ट मार्शल में सुनाए गए फैसले को आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल (एएफटी) में चुनौती दी जा सकती है. एएफटी के फैसले से अगर अभियुक्त संतुष्ट नहीं होता तो फैसले को वह हाईकोर्ट में चुनौती दे सकता है.
सिविल कोर्ट ही नियम होते हैं फॉलो
मिलिट्री कोर्ट में ऑफिसर्स की जूरी इस मामले की सुनवाई करती है. यह सुनवाई भी सिविल कोर्ट जैसी ही होती है. आरोपी यहां भी ऑब्जेक्शन ले सकता है. अपने सबूत पेश कर सकता है. वकील रख सकता है. कोर्ट मार्शल की कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए इसमें एक एडवोकेट जनरल होता है. यह आर्मी का लीगल ब्रांच अफसर होता है.
सिविल कोर्ट की तरह ही ज्यूरी भी वैसे ही सबूतों की जांच के बाद अपराध के लिए सजा तय करती है. अगर ऊपर की कोर्ट में अपील के बाद भी आर्मीपर्सन की सजा बनी रहती है तो आरोपी इसके खिलाफ चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ या राष्ट्रपति के पास अपील कर सकता है.
किस-किस सजा का है प्रावधान?
1. कोर्ट मार्शल की सुनवाई में फांसी और उम्रकैद की सजा भी दी जा सकती है.
2. आर्मीपर्सन को उसकी नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है.
3. रैंक कम करके लोअर रैंक और ग्रेड किया जा सकता है. यह एक तरह का डिमोशन होता है.
4. वेतन में बढ़ोत्तरी और पेंशन रोकी जा सकती है. आर्मी पर्सन के अलाउंसेज खत्म किए जा सकते हैं. इसके अलावा आर्मीपर्सन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
5. इनके अलावा कई मामलों में सैनिक की नौकरी छीनी जा सकती है. आर्मी की नौकरी से उसे भविष्य में होने वाले फायदे जैसे पेंशन, कैंटीन की सुविधा, एक्स सर्विसमैन होने के फायदे आदि खत्म किए जा सकते हैं.

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-04-2019) को "चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है" (चर्चा अंक-3293) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    अन्तर्राष्ट्रीय मूख दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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