शुक्रवार, 25 मई 2018

गुलजारे दाग़, आफ्ताबे दाग़, माहतादे दाग़, यादगारे दाग़

दाग़ देहलवी: चित्र गूगल से साभार
उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग़ देहलवी का वास्तविक नाम नवाब मिर्ज़ा ख़ाँ था, आज उनका यानि 25 मई को जन्मदिन है।उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग़ देहलवी का जन्म 1831 में हुआ था। दाग़  को उर्दू जगत् में एक शायर के रूप में बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त है। उनके जीवन का अधिकांश समय दिल्ली में व्यतीत हुआ था, यही कारण है कि उनकी शायरियों में दिल्ली की तहज़ीब नज़र आती है। 
गुलजारे दाग, आफ्ताबे, दाग, माहतादे दाग तथा यादगारे दाग इनके चार दीवान हैं, जो सभी प्रकाशित हो चुके हैं। 'फरियादे दाग', इनकी एक मसनबी है। इनकी शैली सारल्य और सुगमता के कारण विशेष लोकप्रिय हुई। भाषा की स्वच्छता तथा प्रसाद गुण होने से इनकी कविता अधिक प्रचलित हुई पर इसका एक कारण यह भी है कि इनकी कविता कुछ सुरुचिपूर्ण भी है।
शरीर पर जख्म हों तो जाहिर है काफी तकलीफ होती है, जख्म भर जाने के बाद उसका दाग़ रह जाता है जो उस हादसे की याद बन जाता है। यह जख्म या दुर्घटना को याद तो दिलाता है लेकिन पर हादसे की तकलीफ नहीं देता। क्या हो गर जख्म दिल पर लगे हों? अव्वल तो ये आसानी भरते नहीं, भर भी जाएं तो इनके दाग़ जेहन से कभी मिटते नहीं और ये दाग़ ताउम्र हादसे की याद दिलाते हैं, वह भी पूरे दर्द के साथ। मशहूर शायर दाग़ देहलवी की जिंदगी कुछ ऐसे ही दागों बनी थी, भरी थी। सभी को मालूम है कि दाग़ देहलवी की शायरी इश्क़ और मोहब्बत की सच्ची तस्वीर पेश करती है।
दाग़ के हजारों लाखों मुरीद भी हैं। उनमें से कई ऐसे हैं जो ना तो शायर हैं, ना ही मशहूर हैं। उनको तमाम बड़े गज़ल गायकों ने गाया है। दाग़ का निधन 1905 में हुआ था। इनका जन्म स्थान दिल्ली के लाल किले को माना जाता था। दाग़, बहादुर शाह जफर के पोते थे। इनके पिता शम्सुद्दीन खां नवाब लोहारू के भाई थे। दाग़ के पिता का जब इंतकाल हुआ तब वह चार वर्ष के थे। बाद में दाग़ ने जौक को अपना गुरु बनाया। गुलजारे दाग़, आफ्ताबे दाग़, माहतादे दाग़, यादगारे दाग़ इनके चार दीवान हैं। फरियादे दाग़ इनकी एक मसनबी है।
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किसका था
जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया
बहार आई मेरे बाग़ में ख़िज़ाँ की तरह
…कि बराबर आग लगती
ये मजा था दिल्लगी का कि बराबर आग लगती
न तुझे करार होता, न मुझे करार होता
कोई नामो-निशां पूछे तो ऐ कासिद बता देना
तख़ल्लुस दाग है और आशिकों के दिल में रहते हैं
गजब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात कयामत का इंतजार किया
मोहब्बत ने दिल को खाक किया
जला के दागे मोहब्बत ने दिल को खाक किया
बहार आई मेरे बाग में खिजां की तरह
खुदा रक्खे मुहब्बत ने किए आबाद घर दोनों
मैं उनके दिल में रहता हूं वो मेरे दिल में रहते हैं
आती है बात बात मुझे बार बार याद
कहता हूँ दौड़ दौड़ के क़ासिद से राह में
उठती क़यामत माजरा क्या है
इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है
हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
हर दम पनाह माँगते हैं हर बला से हम
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
ख़बर सुन कर मेरे मरने की
ख़बर सुन कर मेरे मरने की वो बोले रक़ीबों से
ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियां थीं मरने वाले में
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाए ज़माना दिल का
ऐश उनको ग़म भी होते हैं
फ़लक देता है जिन को ऐश उनको ग़म भी होते हैं
जहां बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
आँख में फ़ित्नागरी दिल में शरारत आई
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का
परेशानी में कोई काम जी से हो नहीं सकता।
खुलता नहीं है राज़
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
लेते हैं दिल का काम हम अपनी ज़बान से
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
अदा-ए-मतलब-ए-दिल हम से सीख जाए कोई
उन्हें सुना ही दिया हाल दास्ताँ की तरह। 
प्रस्‍तुति : अलकनंदा सिंह

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