शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

वजूद को बचाने की नाकाम कोशिश: TTP-JA

सनक से उपजी हताशा जब अपनी उपस्‍थिति आमो-खास में दर्ज़ कराने पर आमादा होती है, तब वह किसी भी घातक तरीके का इस्‍तेमाल करती है ताकि वह लोगों की नजर में आ सके और इस तरह अपने मिटते वजूद को फिर से खबरों में लाया जा सके। मगर हताश व्‍यक्‍ति अपनी कमजोरी छुपाने और स्‍वयं को श्रेष्‍ठ बताने के लिए पागलपन की हद तक कोशिश करता है। कुछ ऐसा ही कर रहे हैं वो आतंकी संगठन जो भारत के चौतरफा बढ़ते कूटनीतिक प्रभाव से घबरा गये हैं। संभवत: यही कारण है कि अब वह सोशल मीडिया का इस्‍तेमाल कर अपने वजूद को बचाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं।
कुछ दिन पूर्व वाघा बॉर्डर पर हुए आत्‍मघाती बम ब्‍लास्‍ट के ठीक बाद माइक्रो ब्‍लॉगिंग साइट ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक धमकीभरा मैसेज उभरा जिसके अर्थ ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिये हैं। #नरेंद्र मोदी# हैशटैग के साथ साइट पर उभरे इस धमकी भरे मैसेज में प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा गया है- "u r the killer of hundreds of muslim," Tehreek-e-Taliban Pakistan Jamaat Ahrar(TTP-JA)spokesperson- 'Ehsanullah Ehsan'....इसके कुछ ही घंटे बाद एक और मैसेज उभरा जिसमें वाघा बॉर्डर पर किये गये विस्‍फोट की  जिम्‍मेदारी ले गई थी और यह भी एहसानउल्‍लाह एहसान के नाम से जारी किया गया था,यह कुछ इस तरह था- "We w(il) take the revenge of innocent people of Kashmir and Gujrat "(sic).
पाकिस्‍तान के नौर्थ-वेस्‍ट के संघर्षरत क्षेत्र से उभरे TTP-JA का यूं तो उदय तहरीके तालिबान से हुआ, जो पाकिस्‍तान के इन क्षेत्रों में शांति के लिए आतंकवादी गतिविधियों को विराम देने पर मूल तालिबानियों से अलहदा सोच रखता था। वह पाकिस्‍तानी सरकार के साथ बातचीत करके आपसी सहमति के आधार पर शांति का कॉमन एजेंडा तय करने की बात भी करता है, मगर भारत के बढ़ते अंतर्राष्‍ट्रीय प्रभाव से वह खासा बेचैन है और इस बेचैनी के चलते वह अपनी मूल प्रवृत्‍ति (दहशतगर्दी) को ही हथियार बना रहा है।
दहशतगर्दी से जुड़ी इधर कुछ घटनाएं भारत में भी हुईं जिनमें मुज़फ़्फरनगर के दंगाप्रभावित क्षेत्र से युवकों का बड़ी संख्‍या में गुम हो जाना, मोदी की पटना सभा व गया में ब्‍लास्‍ट होना। ऐसी घटनाओं की कड़ी अब बर्द्धमान से जुड़ रही हैं जिनके तहत अलकायदा के रीजनल चीफ के भारतीय होने जैसी खबरें आई हैं, तब ऐसे में TTP-JA का उक्‍त संदेश ट्विटर पर दिया जाना यह बताता है कि उनके असली मकसद कुछ और है ।
पाकिस्‍तान में बताये गये TTP-JA के कथित शांति वाले मुखौटे के पीछे उनका मकसद आईएस की भांति खबरों में रहने के लिए दहशत फैलाना ही है। ज़ाहिर है कि दहशत फैलाने वाले संगठन अब हताशा से घिरे हुए हैं।  यदि वो हताश न होते तो कश्‍मीर की कथित आजादी के लिए तब घड़ियाली आंसू न बहाते जब वहां बाढ़ की विभीषिका से लोग जूझ रहे थे। उन्‍हें कश्‍मीर की चिंता होती तो वे अपना राहत कार्य चलाते, बाढ़ में सब-कुछ बहा चुके परिवारों के आंसू पोंछते। ट्विटर पर आये ये संदेश बताते हैं कि राहत कार्य से जी चुराना व कश्‍मीर के विकास की बात को सिरे से नकार कर उनके नापाक इरादे नाकाम हुए और इसी नाकामी से उभरी है ये ट्विटरीय हताशा।
हकीकत तो यह है कि अल-कायदा हो या आईएस अथवा भारत में स्‍लीपर मॉड्यूल के रूप में पलने वाले आतंकवादी, सबके सब अब यह बाखूबी जान गये हैं कि मौजूदा भारतीय कूटनीति उनके वजूद को हमेशा हमेशा के लिए मिटा सकती है, और इसी हताशा में वे अब हर वो माध्‍यम इस्‍तेमाल कर रहे हैं जिससे ये जाहिर भी ना हो कि वे भयभीत हो रहे हैं और उनकी उपस्‍थिति का अंदाजा भी होता रहे। उनके इन्‍हीं माध्‍यमों में स्‍लीपर मॉड्यूल के साथ साथ अब महिलाओं और बच्‍चों को भी इस्‍तेमाल किया जा रहा है।
आतंकी संगठनों में ये हताशा आने की वजह एक खबर और भी है। वो ये कि अभी दो दिन पहले ही खबर आई कि पीओके (पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर) के वाशिंदे वापस भारत के साथ जुड़ने का मन बना रहे हैं।
शांति एवं सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए काम करने वाला मुस्लिम संगठन अंजुमन मिन्हाज ए रसूल के अध्यक्ष मौलाना सैयद अतहर देहलवी के अनुसार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अगर जनमत संग्रह होता है तो 99 फीसदी से ज्यादा लोग भारत का हिस्सा बनने के लिए वोट देंगे। जम्मू-कश्मीर के बाढ़ प्रभावित इलाकों के पांच दिवसीय दौरे के बाद स्‍थानीय लोगों की मंशा बताते हुए देहलवी ने कहा कि कश्मीर में अलगाववादियों का आधार खत्म हो गया है और घाटी के लोग सुशासन, विकास और शिक्षा जैसे मुद्दों पर बात कर रहे हैं, उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि मुट्ठी भर लोग क्या कहते हैं। बाढ़ प्रभावित लोगों ने सेना द्वारा चलाए गए राहत एवं बचाव कार्यों की प्रशंसा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी जम्मू-कश्मीर एवं देश में ‘लोक समर्थक’ नीतियों की प्रशंसा से आतंकी संगठन घबरा गये हैं।
गौरतलब है कि अंजुमन-ए-रसूल ही एकमात्र इस्लामी संगठन है जिसने अलकायदा एवं अन्य आतंकवादी समूहों के खिलाफ आवाज उठाई और जब कश्मीरी पंडितों को जबरन कश्मीर से बाहर किया गया तो जेद्दा में ओआईसी में आपत्ति जताई थी।
बहरहाल, जम्‍मू कश्‍मीर की राजनैतिक परिस्‍थितियां क्‍या रहती हैं...वहां बाढ़ के बाद के हालात क्‍या घाटी को फिर से वो रौनक वापस दे पायेंगे या नहीं, ये तो समय ही बतायेगा मगर इतना अवश्‍य है कि भारतीय प्रशासनिक सुदृढ़ता और नरेंद्र मोदी की राजनैतिक व सांगठनिक कुशलता ने भारत के विरुद्ध सोचने वालों व आतंकवादियों
के हौसले इस हद तक पस्‍त कर दिये हैं कि अब उन्‍हें अपने बचाव का कोई रास्‍ता नज़र नहीं आ रहा। जिस कश्‍मीर पर उनकी सारी योजनायें टिकी होती थीं, अब उस कश्‍मीर सहित पीओके में भी दहशत के पांव उखड़ना और अब ये ट्विटर पर धमकी देना उनकी मनोदशा को बताता है कि उनकी सनक ने न केवल वाघा बॉर्डर पर इतने लोगों की जान ले ली बल्‍कि उनके जो भी आका या समर्थक हैं उन्‍हें भी आइना दिखाया है।
- अलकनंदा सिंह

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