शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

खुशवंत सिंह स्मृति पुरस्कार के लिए 5 नाम

कसौली में आयोजित वार्षिक खुशवंत सिंह साहित्य समारोह के दौरान खुशवंत सिंह  स्मृति पुरस्कार के लिए 5 कवियों को चुना गया है। अंतिम विजेता को 21 से 25 जनवरी 2015  को होने वाले ज़ी जयपुर साहित्य समारोह में पुरस्कृत किया जाएगा। 5 चयनित किताबों में श्रीदल स्वामी की ‘एस्केप आर्टिस्ट’, रंजीत होस्कोटे की ‘सेंट्रल टाइम’, अरुंधति  सुब्रमण्यम की ‘वेन गॉड इज एक ट्रैवलर’, केकी एन दारूवाला की ‘फायर अल्टर’ और संपूर्णा चटर्जी  द्वारा अनुवादित जॉय गोस्वामी की ‘सलेक्टेड पोयम्स’ हैं।
2 लाख रुपए की राशि वाले इस पुरस्कार की स्थापना इस साल सुहेल सेठ ने दिवंगत सरदार  खुशवंत सिंह की स्मृति में की थी और यह उन भारतीय कवियों के लिए है, जो अंग्रेजी में लिखते हैं  या विभिन्न भारतीय भाषाओं में रचना करने वाले वे कवि जिनकी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद  हुआ है।
सेठ ने कसौली साहित्य समारोह में प्रतिष्ठित निर्णायक मंडल के निर्णय के आधार पर चयनित इन  कवियों के नामों की घोषणा की। निर्णायक मंडल में अशोक वाजपेयी, जीत ताईल, नमिता गोखले,  पवन के. वर्मा और सोली सोराबजी शामिल थे।
-एजेंसी

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

अभी तो कहानी शुरू हुई है... मंगलयान...कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोप...के आगे क्‍या

मंगलयान की सफलता से उत्‍साहित हमारे देश के वैज्ञानिकों  ने जैसे हर वो रिाकॉर्ड तोड़ने की ठान ली है जिसे विदेशी वैज्ञानिक हाई-फाई माहौल में अंजाम देते हैं। करोड़ों से लेकर अरबों रुपये तक खर्च कर दिये जाते हैं, नोबेल पुरस्‍कार तक से सम्‍मानित किया जाता है,  तब जाकर यह निष्‍कर्ष निकलता है कि याददाश्‍त को चुनौती देने वाली बीमारी अल्‍ज़ाइमर के इलाज के लिए दिमाग के सूचनातंत्र को लेकर कुछ अभिनव संकेत मिले हैं जिन्‍हें 30 साल की खोज के बाद दिमाग में मौजूद 'जीपीएस ' की खोज बताया जा रहा है । निश्‍चित ही यह खोज अपने अंजाम को हासिल करने के लिए तमाम कोणों और तमाम उच्‍चस्‍तरीय शोधों के रास्‍ते तय करेगी , मगर इससे हटकर हमारे देशी वैज्ञानिकों ने जो कर दिखाया है , वह अपने आप में अनूठा 'हासिल' है।
पब्‍लिक प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोग्राम के तहत उच्‍च प्रौद्योगिकी वाली सीएसआईआर ( वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद) के वैज्ञानिकों ने सेंट्रल ग्‍लास एंड सेरेमिक रिसर्च इंस्‍टीट्यूट कोलकाता व तिरूवनंतपुरम की  विनिश कंपनी के संयुक्‍त सहयोग से 3-डी इमेजिंग टैक्‍नोलॉजी से लैस एक 'ब्रॉड स्‍पेक्‍ट्रम कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोप' को बनाकर लाइफ साइंस के क्षेत्र में एक नहीं कई कई मील के पत्‍थर स्‍थापित किये हैं।
पहला - जो प्रयोग साढ़े चार करोड़ में अस्‍तित्‍व में आ पाता वह मात्र डेढ़ करोड़ में हमारे वैज्ञानिकों ने सामने ला दिया।
दूसरा- इसे खालिस देशी उपकरणों के माध्‍यम से बनाया गया।
तीसरा- इसकी 3-डी तकनीक अस्‍पतालों, डायगनोस्‍टिक सेंटरों और शोध प्रयोगशालाओं में आसानी से प्रयुक्‍त हो सकेगी, इसके लिए ट्रेनिंग सेशन्‍स भी चलाये जायेंगे ताकि अप्रशिक्षण कहीं भी इसके प्रयोग में बाधा ना बने।
चौथा - अभीतक 2 डायमेंशनल इमेज ही ली जा  सकती थी, परंतु अब इसकी मदद से 3- डी इमेजिंग की जा सकती है।
जी हां, यह आमजन के लिए जानना जरूरी है कि नैनो तत्‍वों, कणों, जैव पदार्थों की स्‍टडी के लिए प्रयोग किया जाने वाला यह 'ब्रॉड स्‍पेक्‍ट्रम कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोप' एक नैनोमीटर तक के पदार्थ को  देख सकता है। चूंकि एक नैनोमीटर , एक मीटर का एक अरबवां हिस्‍सा होता है तो अंदाजा लगाना मुश्‍किल नहीं कि शरीर में होने वाली बीमारियों के सूक्ष्‍म से अतिसूक्ष्‍म तक अध्‍ययन और उसके इलाज के लिए परफेक्‍शन को पाना कितना आसान हो जाएगा।
अब वैज्ञानिकों को इस ब्रॉड स्‍पेक्‍ट्रम कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोप के ज़रिये तत्‍वों की स्‍पेक्‍ट्रोस्‍कोपिक बिहेवियर को समझने में आसानी होगी। इसका सुपर कांटीनम लाइट वाला नेचर कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोपी के लिए बेहद मुफीद होगा वहीं अपनी तेज व चमकदार तरंगों के माध्‍यम से फ्लोरेसेंस इमेजिंग तैयार करने की विशेषता भी इसमें होगी।
सीजीसीआरआई के डायरेक्‍टर कमल दासगुप्‍ता के अनुसार कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोप जिस सुपर कांटीनम लाइट के सोर्स से इमेजिंग करता है , उसको विश्‍व में कुछ ही मैन्‍यूफैक्‍चरर्स द्वारा प्रयोग में  लाया जाता है इसीलिए कॉनफोकल माइक्रोस्‍कोप बनाने वाले भी कम ही हैं।
यही वजह है कि यह काफी महंगा है।
इसके महंगे होने की वजह लेजर -रे टेक्‍नीक भी है । इस माइक्रोस्‍कोप में  किसी भी ऑब्‍जेक्‍ट पर फोकस करने के लिए लेजर टेक्‍नॉलॉजी का प्रयोग किया जाता है , क्‍योंकि इसमें पिनहोल से निकलने वाली लेजर-रे की वजह से ही लाइट सीधी सीधी ऑब्‍जेक्‍ट पर पड़ती हैं, वह भी बिना छितरे हुए।
इससे पहले यह माइक्रोस्‍कोप हमारे देश में मौजूद  थे मगर ये बेहद महंगे और देश के बड़े नामी गिरामी और गिने चुने अस्‍पतालों में ही इनसे इलाज में सहयोग लिया जा रहा था। इसके अलावा ये विदेश से ही खरीदे जा सकते थे, वह भी 2 डायमेंशनल टेक्‍नीक वाले , परंतु अब 3-डी इमेजिंग सुविधा होने और बेहद कम कीमत होने इसका व्‍यापक प्रयोग हो सकेगा।
अभी तक जानलेवा बीमारियों का पता लगने में होने वाली 'देरी' भी उनके लाइलाज हो जाने के पीछे एक मुख्‍य कारण हुआ करती थी परंतु अब इस माइक्रोस्‍कोप के ज़रिये इससे आसानी से पार पाया जा सकता है।  बीमारी की मौजूदगी, उसकी विकरालता और इलाज के लिए जरूरी कंडीशन्‍स तक सब कुछ का  बारीकी से अध्‍ययन करना इस माइक्रोस्‍कोप से आसान हो जायेगा।
यूं तो फिलहाल यह तिरूवनंतपुरम की एक कंपनी विनिश  टैक्‍नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा व्‍यवसायिक तौर पर बनाया जायेगा परंतु कंपनी ने इसके इस्‍तेमाल के लिए बेहतर प्रशिक्षण देने और इसे उचित मूल्‍य पर अस्‍पतालों , शोध प्रयोगशालाओं और डायगनोस्‍टिक सेंटर्स को मुहैया कराने पर प्रतिबद्धता जताई है , परंतु इस उत्‍साही योजना के लिए असली ज़मीन तो ''इसरो'' के मंगलयान की सफलता से रखी जा चुकी है । कम से कम लागत में सर्वोत्‍कृष्‍ट कर दिखाने का जज्‍़बा तो  हमारे वैज्ञानिकों ने अभी शुरू किया है...अभी तो बहुत आगे आगे जाना है । निश्‍चित ही ये संकेत, देश को विश्‍व का सिरमौर बनाने के ही तो हैं।
- अलकनंदा सिंह

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

रूह तक जाने वाली आवाज को श्रद्धांजलि

रूह तक उतर जाये, ऐसा संगीत और एक सदी बाद भी कोई उतना ही शिद्दत से याद किया जाये तो मन बेहद भर-भर आता है। केंद्र सरकार ने आज संगीत की एक स्‍तंभ और महान गायिका मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख्त़र की याद में दो स्मारक सिक्के जारी किए। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्रीपद नाइक ने बेगम अख्त़र की जन्मशती के मौके पर राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, जनपथ से 100 रुपए और 5 रुपए के स्‍मारक सिक्‍के जारी करने के साथ ही बेगम अख्‍़तर का जन्‍मसदी समारोह शुरू हो गया।
इस मौके पर दादरा गायि‍का डॉ. रीता गांगुली और ठुमरी गायक श्री शशांक शेखर तथा गज़ल गायि‍का श्रीमती प्रभाती मुखर्जी ने प्रभावशाली कार्यक्रम पेश कि‍ए।
कभी बहज़ाद लखनवी की ग़ज़ल
''दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे...
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे...
ऐ देखने वालों, मुझे हंस हंस के न देखो...
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझ सा न बना दे..." से गायिकी का सफर शुरू करने वाली मात्र 11 साल की बच्‍ची अख्‍तर बाई फैजाबादी को हम बेगम अख्‍तर नाम से जानते हैं।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 07 अक्टूबर 1914 में जन्‍मी अख्‍़तरी गज़ल, दादरा और ठुमरी गायि‍का थीं। उन्‍हें गायि‍का के रूप में संगीत नाटक अकादमी पुरस्‍कार प्रदान कि‍ए गए और मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्‍हें पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्‍मानि‍त कि‍या। उन्‍हें मल्‍लि‍का-ए-गज़ल का खि‍ताब भी प्रदान कि‍या गया।
बेगम अख्‍़तर को इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्‍या होगी कि नई पीढ़ी को उनकी विरासत से परिचित कराये जाने का प्रयास किया जा रहा है।
इस प्रति‍भाशाली गायि‍का के 100 वर्ष की होने पर भारत सरकार ने इस मौके को यादगार बनाने का फैसला कि‍या। इस उद्देश्‍य से एक राष्‍ट्रीय समि‍ति‍ गठि‍त की गई है जि‍सके अध्‍यक्ष केन्‍द्रीय संस्‍कृति‍ मंत्री हैं। यह समि‍ति‍ वर्ष भर मनाए जाने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करेगी।
बेगम अख्‍तर के सम्‍मान में दि‍ल्‍ली, लखनऊ, हैदराबाद, भोपाल और कोलकाता में कार्यक्रम आयोजि‍त कि‍ए जाएंगे। उनकी कृति‍यों के वेब-पोर्टल, डीज़ि‍टाइज़ेशन/ डॉक्‍यूमेंटेशन इत्‍यादि‍ तैयार कि‍ए जाएंगे और प्रदर्शनि‍यां, प्रकाशन, वि‍चार गोष्‍ठि‍यों का आयोजन कि‍या जाएगा तथा युवा कलाकारों को छात्रवृत्‍त‍ियां‍ दी जाएंगी।
अक्टूबर में जन्‍मी बेगम साहिबा 1974 में अक्तूबर के ही आखिरी दिन इस दुनिया को अलविदा कह गई।अजब इत्‍तिफाक था कि अपनी मौत से सात दिन पहले बेगम अख्तर ने कैफी  आज़मी की गजल...
''सुना करो मेरी जान उनसे उनके अफसाने, सब अजनबी है यहां कौन किसको पहचाने।''  गाकर मानो यह बता दिया था कि अब बस चंद सांसें ही और हैं इस सफर में बाकी....
बहरहाल परदे के पीछे चले गये गजल गायिकी के इस दौर में जब रीमिक्‍स और रैप-पॉप का माहौल गर्म है तब बेगम अख्‍़तर को दी जाने वाली श्रद्धांजलि सचमुच नई पीढ़ी को उसकी रूह तक जाने वाले सुरों से अवगत कराने की कोशिश तो है ही।
- अलकनंदा सिंह

शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

संघ प्रमुख का दूरदर्शन पर आना


हमारे नीति वाक्‍यों में कहा गया है कि आलोचना के लिए ज्ञान होना अत्‍यधिक  आवश्‍यक है और निंदा के लिए सिर्फ शब्दकोश ही काफी होता है। आलोचना करने  वालों के पास समाधान का सर्वथा अभाव ही होता है इसीलिए आलोचना किसी की  भी की जा सकती है मगर समाधान करना हर किसी के बस की बात नहीं।
हमेशा की तरह कल भी विजयदशमी पर आरएसएस का 89वां स्थापना दिवस  मनाया गया। इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का दूरदर्शन पर एक घंटे तक भाषण दिखाया गया। इसके बाद से विरोधी पार्टियों द्वारा सरकारी प्रसारक माध्‍यम का दुरुपयोग किये जाने संबंधी धड़ाधड़ बयान आने लगे और लगभग सभी प्राइवेट चैनलों के प्राइम टाइम में पैनलिस्‍ट बहस करते रहे कि सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए।
उनका विरोध करना बनता भी है क्‍योंकि पहली बार रटी-रटाई तर्ज़ से परे राष्‍ट्रीय  चेतना और मुद्दों की बात की गई। राजनीति से परे पहली बार सामाजिक व  राष्‍ट्रीय मुद्दों पर दूरदर्शन से कुछ बोला गया, यह अनपेक्षित था। हजम करना  आसान भी नहीं होगा, लीक पर चलने वालों को।
यूं तो भारतीय जनता पार्टी के सत्‍ता में आने के बाद से ही राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक  संघ का विरोधियों के निशाने पर आ जाना लाजिमी था परंतु हर बात का विरोध  सिर्फ इसलिए किया जाये कि विरोध करना जरूरी है, तो यह ठीक नहीं होगा।
हां, भागवत का विरोध किया जा सकता है कि वो राष्‍ट्रीय प्रसारण के माध्‍यम  दूरदर्शन पर एक घंटे तक दिखाये गये, मगर गौवध और मांस के निर्यात पर पूर्ण  प्रतिबंध, चीन के उत्पाद खरीदना बंद करने की अपील या केरल और तमिलनाडु में  जिहादी गतिविधियां बढ़ने की बात पर हमें देशहित में उनसे सहमत होना चाहिए।  मोहन भागवत की इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिम बंगाल,  असम और बिहार में बांग्लादेश से अवैध रुप से आने वाले लोगों के कारण हिन्दू  समाज का जीवन प्रभावित हो रहा है।
दरअसल अभी तक हम समाजवादी सोच को ही प्रगति के लिए आदर्श मानते रहे  मगर ये भूल गये कि ये समाजवाद दरअसल स्‍वयं में ही अधूरी व्‍याख्‍या के साथ  खड़ा है जिसमें परिवार की बात तो की जाती है मगर उसमें अनुशासन गायब हो  चुका है। जहां कोई नियामक नहीं है, कोई मुखिया नहीं है, ऐसी समाजवादी सोच  'सबको सब-कुछ देने' का कोई प्रॉपर रोडमैप नहीं दिखा पाई नतीजा ये हुआ कि  समाज भी नहीं बंधा और राजनैतिक अनुशासन भी छिन्‍न भिन्‍न हो गया।
राष्‍ट्र की बात करने वाले को हम अपने-अपने चश्‍मे से देखने के इतने आदी हो  चुके हैं कि अच्‍छी बात को भी संशय के साथ देखा जाता है।
देश के हर नागरिक को अपनी स्‍वतंत्र सोच रखने का अधिकार है मगर इस स्‍वतंत्र  सोच ने अब तक देश की सामाजिक व सांस्‍कृतिक ढांचे को किस स्‍तर तक ध्‍वस्‍त  कर दिया है, यह भी तो सोचा जाना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत मजबूत बनकर उभर रहा है। दुनिया को भारत की  जरूरत है। लोगों के दिलों में उम्मीद की नई किरण जगी है। ऐसे में हमें छोटी  छोटी बातों को छोड़ वृहद सोच व लक्ष्‍य रखने चाहिए। कोई दूरदर्शन पर बोले या  कतई मुंह सीं कर बैठा रहे, बात तो सोच और लक्ष्‍य की है। यदि बोलने वाले का  लक्ष्‍य देशहित है तो उसकी आलोचना में कोई दम नहीं रह जाता।
जो भी हो... जिस दूरदर्शन से आम और यहां तक कि खासजन भी दूर हो चुके थे,  उस दूरदर्शन पर संघ प्रमुख के भाषण को लेकर की जा रही तीखी प्रतिक्रिया ने  एक बात तो साबित कर ही दी कि मोदी की करिश्‍माई कार्यप्रणाली से दूरदर्शन भी  अछूता नहीं रहा और इसीलिए दूरदर्शन का प्रसारण भी अब पैनल डिस्‍कशन का  विषय बन गया है।
संघ प्रमुख के भाषण पर लकीर पीटने वाले शायद इस बात से भी परेशान होंगे कि  मोदी अपने एक और मकसद में सफल हो गये।

- अलकनंदा सिंह