सबसे पहले एक quote :
Alireza Asghari says “Camera is the third eye and Scond Heart of A Real Photographer ”
कुछ तस्वीरों ने मुझे इस तरह अपनी बात लिखने को बाध्य किया।
शुरुआत करती हूं कोलाज नं. 1 से।
27 दिसम्बर को गुजरी मिर्ज़ा ग़ालिब की एक और सालगिरह से- हर सालगिरह के खत्म होने पर उसमें लगने वाली गिरह (गांठ) और बढ़ जाती हैं, हर साल की तरह इस साल भी 1797 को जन्मे मिर्ज़ा की याद उनके चाहने वालों ने एक और गिरह लगाकर मनाई। इस अवसर पर उनकी एक रियल पिक्चर दिखाई दी जो गालिब के दोस्त बाबू शिव नारायण की परपोती श्रीमति संतोष माथुर के हवाले से सामने आई।
मिर्जा साहब के ही साथ संलग्न दूसरी पिक्चर है केरल के वुडवर्क की जिसमें लगभग भुलाई जा चुकी केरल की ऐतिहासिक काष्ठ कला को कलाकार ने कुछ म्यूरल्स बनाकर फिर से जीवंत बनाने के लिए बहुत ही अद्भुत प्रयास किया है।
कोलाज नं. 2 में पहली पिक्चर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिसमें वे दिव्यांग युवक की व्हीलचेयर को अपने हाथों से आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं, भारत में किसी राजनेता का यह प्रयास जनता में भरोसा जगाने वाला है कि राजनीति इतनी भी बुरी नहीं जितनी हमें दिखाई गई … देश बदल रहा है, सचमुच।
इन्हीं के साथ संलग्न हैं चार और पिक्चर्स जो पाकिस्तान के गुजरांवाला में स्थित महाराजा रणजीत सिंह की हवेली की हैं , जिन्हें हाल ही में पाकिस्तान की सरकार ने गिराने का आदेश दिया है। भारत के लिए भी महत्वपूर्ण इस धरोहर को इस तरह ज़मींदोज़ किए जाने की खबर सचमुच हम सबके लिए दुखद है। अपने इतिहास को दफनाने का पाप हमें विरासतों से दूर ले जाएगा। एक ओर हम अपने इतिहास को ज़मीन के नीचे से खोज रहे हैं और दूसरी ओर विरासतों को ज़मींदोज़ करना, कैसी विडंबनाओं में जी रहे हैं हम।
इसी कोलाज में नीचे महाराष्ट्र के तदोबा टाइगर रिजर्व की एक पिक्चर है जहां से गुड न्यूज़ आ रही है कि वहां टाइगर की संख्या बढ़ रही है।
साथ में लगी पिक्चर है उत्तराखंड के मसूरी में कभी पाए जाने वाले पक्षी अद्भुत पक्षी माउंटेन क्वेल की, जो इस बार भी दिखाई नहीं दिया मगर इसे देखने का क्रेज ऐसा कि लगातार 140 से इसे देखने के लिए पक्षी प्रेमी ‘राजपुर नेचर फेस्टिवल-2016’ के तहत मसूरी पहुंचते हैं। पक्षी प्रेमियों को इस बार भी हिमालयन माउंटेन क्वेल (पहाड़ी बटेर) नहीं दिखाई दिया। इसे आज से 140 साल पहले मसूरी के झाड़ीपानी और सुवाखोली में देखा गया था। 140 साल से लगातार इस पक्षी की तलाश में पक्षी प्रेमी हर साल मसूरी का रुख करते हैं, लेकिन लंबे वक्त से उनकी उम्मीदों को धक्का लग रहा है मगर दीवानगी इनकी अब भी बनी हुई है।
कोलाज नं. 3 हालांकि इसमें सिर्फ दो पिक्चर हैं जो सामाजिक दशा और सोच में पनप रही अपना मत दूसरों पर थोपने की प्रवृत्ति की सूचक हैं । इन ‘ऑटोज’ को देखिए जो कथित जेहादियों का पब्लिसिटी टारगेट बने हुए हैं, प्रगति के इस समय में देश की मुस्लिम महिलाओं को बुरके में रखने के लिए एक ऐसा अभियान चलाए हुए हैं जिसे भयभीत करने वाला कहा जा सकता है और जो कट्टरवाद की ओर तेजी से बढ़ रहा है। तीन तलाक जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए नकाब में रहने के आदेश महिलाओं को उस बूढ़ी सदी में भेजने वाले हैं , जहां सिर्फ जहालत रहा करती थी।
कोलाज नं. 4 में वो बच्चे शामिल हैं जो हमारे देश- दुनिया के विकसित होते जाने पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं कि हमारे दावे उनकी मासूमियत के सामने कहीं नहीं टिकते।
फिर भी जहां कश्मीर के भयभीत करने वाले दृश्य हमें बचपन को बचाने के लिए सोचने पर विवश करते हैं वहीं सूडान से ली गई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त भुखमरी की पिक्चर जिसमें एक भूख से मरते हुए बच्चे को यानि ”अपने भोजन” को गिद्ध देख रहा है। इसी के साथ दो बच्चियों का प्रेम और बड़ी बहन द्वारा छोटी की सुरक्षा, वह भी अभावों के बीच शेयरिंग का अच्छा उदाहरण नहीं है बल्कि यह भी बताता है कि बेटियां हमेशा ही अपने भीतर इन गुणों को रखती हैं ।
नीचे एक बच्ची स्वच्छ भारत अभियान में अपना योगदान दे रही है।
पूरी दुनिया में भुखमरी, गरीबी, बेजारी से सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हुए हैं। इसी बीच लद्दाख की दो पिक्चर्स कठिन वक्त में शिक्षा, जीवन और बचपन दोनों की जद्दोजहद को दिखाती हैं, आप भी देखिए….इन्हें।
इसी कोलाज के दाहिने तरफ मशहूर शायर वसीम बरेलवी का अपने दस्तखत के साथ एक शेर है-
” वह चहता है कि दामन ज़रा बचा भी रहे।
दियों की लौ से मगर खेलने की छूट भी हो।।”
यूं तो इन जैसी अनगिनत पिक्चर्स हैं जो अपनी दास्तां सुनाने के लिए हमारे किसी शब्द की मोहताज नहीं , फिर भी अपना पूरा काम कर जाती हैं।
और अंत में इन पिक्चर्स को जो वजूद में लाए और हमें इनसे रूबरू कराया, उनके लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि-
Photography is a love affair with life because emotional content is an image’s most important element, regardless of the photographic technique. images retain their strength and impact over the years, regardless of the number of times they are viewed.
- सभी पिक्चर्स साभार ली गई हैं ।
– अलकनंदा सिंह
Alireza Asghari says “Camera is the third eye and Scond Heart of A Real Photographer ”
कुछ तस्वीरों ने मुझे इस तरह अपनी बात लिखने को बाध्य किया।
शुरुआत करती हूं कोलाज नं. 1 से।
27 दिसम्बर को गुजरी मिर्ज़ा ग़ालिब की एक और सालगिरह से- हर सालगिरह के खत्म होने पर उसमें लगने वाली गिरह (गांठ) और बढ़ जाती हैं, हर साल की तरह इस साल भी 1797 को जन्मे मिर्ज़ा की याद उनके चाहने वालों ने एक और गिरह लगाकर मनाई। इस अवसर पर उनकी एक रियल पिक्चर दिखाई दी जो गालिब के दोस्त बाबू शिव नारायण की परपोती श्रीमति संतोष माथुर के हवाले से सामने आई।
मिर्जा साहब के ही साथ संलग्न दूसरी पिक्चर है केरल के वुडवर्क की जिसमें लगभग भुलाई जा चुकी केरल की ऐतिहासिक काष्ठ कला को कलाकार ने कुछ म्यूरल्स बनाकर फिर से जीवंत बनाने के लिए बहुत ही अद्भुत प्रयास किया है।
कोलाज नं. 2 में पहली पिक्चर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिसमें वे दिव्यांग युवक की व्हीलचेयर को अपने हाथों से आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं, भारत में किसी राजनेता का यह प्रयास जनता में भरोसा जगाने वाला है कि राजनीति इतनी भी बुरी नहीं जितनी हमें दिखाई गई … देश बदल रहा है, सचमुच।
इन्हीं के साथ संलग्न हैं चार और पिक्चर्स जो पाकिस्तान के गुजरांवाला में स्थित महाराजा रणजीत सिंह की हवेली की हैं , जिन्हें हाल ही में पाकिस्तान की सरकार ने गिराने का आदेश दिया है। भारत के लिए भी महत्वपूर्ण इस धरोहर को इस तरह ज़मींदोज़ किए जाने की खबर सचमुच हम सबके लिए दुखद है। अपने इतिहास को दफनाने का पाप हमें विरासतों से दूर ले जाएगा। एक ओर हम अपने इतिहास को ज़मीन के नीचे से खोज रहे हैं और दूसरी ओर विरासतों को ज़मींदोज़ करना, कैसी विडंबनाओं में जी रहे हैं हम।
इसी कोलाज में नीचे महाराष्ट्र के तदोबा टाइगर रिजर्व की एक पिक्चर है जहां से गुड न्यूज़ आ रही है कि वहां टाइगर की संख्या बढ़ रही है।
साथ में लगी पिक्चर है उत्तराखंड के मसूरी में कभी पाए जाने वाले पक्षी अद्भुत पक्षी माउंटेन क्वेल की, जो इस बार भी दिखाई नहीं दिया मगर इसे देखने का क्रेज ऐसा कि लगातार 140 से इसे देखने के लिए पक्षी प्रेमी ‘राजपुर नेचर फेस्टिवल-2016’ के तहत मसूरी पहुंचते हैं। पक्षी प्रेमियों को इस बार भी हिमालयन माउंटेन क्वेल (पहाड़ी बटेर) नहीं दिखाई दिया। इसे आज से 140 साल पहले मसूरी के झाड़ीपानी और सुवाखोली में देखा गया था। 140 साल से लगातार इस पक्षी की तलाश में पक्षी प्रेमी हर साल मसूरी का रुख करते हैं, लेकिन लंबे वक्त से उनकी उम्मीदों को धक्का लग रहा है मगर दीवानगी इनकी अब भी बनी हुई है।
कोलाज नं. 3 हालांकि इसमें सिर्फ दो पिक्चर हैं जो सामाजिक दशा और सोच में पनप रही अपना मत दूसरों पर थोपने की प्रवृत्ति की सूचक हैं । इन ‘ऑटोज’ को देखिए जो कथित जेहादियों का पब्लिसिटी टारगेट बने हुए हैं, प्रगति के इस समय में देश की मुस्लिम महिलाओं को बुरके में रखने के लिए एक ऐसा अभियान चलाए हुए हैं जिसे भयभीत करने वाला कहा जा सकता है और जो कट्टरवाद की ओर तेजी से बढ़ रहा है। तीन तलाक जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए नकाब में रहने के आदेश महिलाओं को उस बूढ़ी सदी में भेजने वाले हैं , जहां सिर्फ जहालत रहा करती थी।
कोलाज नं. 4 में वो बच्चे शामिल हैं जो हमारे देश- दुनिया के विकसित होते जाने पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं कि हमारे दावे उनकी मासूमियत के सामने कहीं नहीं टिकते।
फिर भी जहां कश्मीर के भयभीत करने वाले दृश्य हमें बचपन को बचाने के लिए सोचने पर विवश करते हैं वहीं सूडान से ली गई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त भुखमरी की पिक्चर जिसमें एक भूख से मरते हुए बच्चे को यानि ”अपने भोजन” को गिद्ध देख रहा है। इसी के साथ दो बच्चियों का प्रेम और बड़ी बहन द्वारा छोटी की सुरक्षा, वह भी अभावों के बीच शेयरिंग का अच्छा उदाहरण नहीं है बल्कि यह भी बताता है कि बेटियां हमेशा ही अपने भीतर इन गुणों को रखती हैं ।
नीचे एक बच्ची स्वच्छ भारत अभियान में अपना योगदान दे रही है।
पूरी दुनिया में भुखमरी, गरीबी, बेजारी से सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हुए हैं। इसी बीच लद्दाख की दो पिक्चर्स कठिन वक्त में शिक्षा, जीवन और बचपन दोनों की जद्दोजहद को दिखाती हैं, आप भी देखिए….इन्हें।
इसी कोलाज के दाहिने तरफ मशहूर शायर वसीम बरेलवी का अपने दस्तखत के साथ एक शेर है-
” वह चहता है कि दामन ज़रा बचा भी रहे।
दियों की लौ से मगर खेलने की छूट भी हो।।”
यूं तो इन जैसी अनगिनत पिक्चर्स हैं जो अपनी दास्तां सुनाने के लिए हमारे किसी शब्द की मोहताज नहीं , फिर भी अपना पूरा काम कर जाती हैं।
और अंत में इन पिक्चर्स को जो वजूद में लाए और हमें इनसे रूबरू कराया, उनके लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि-
Photography is a love affair with life because emotional content is an image’s most important element, regardless of the photographic technique. images retain their strength and impact over the years, regardless of the number of times they are viewed.
- सभी पिक्चर्स साभार ली गई हैं ।
– अलकनंदा सिंह