शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

शारदीय नवरात्र: जीवित स्त्र‍ियों को जूते में पानी पिला कर किस शक्ति की आराधना करें हम ?

ज़रा सोच कर देख‍िए कि आप शारदीय नवरात्र आरम्भ होने पर पूजा संपन्न करने के बाद कोई ऐसी खबर दिखाई दे कि वह आपकी पूरी की पूरी आस्था को ही हिला दे और यह सोचने पर बाध्य कर दे कि क्या सचमुच ईश्वर अस्तित्व में है या क्या हमारा सबके लिए सद्बुद्धि मांगना सार्थक हुआ।
आज ऐसी ही एक खबर ने आस्था और मनुष्यता के बीच संबंधों की कलई खोल दी।
आज मुझे अंधविश्वास के ख‍िलाफ लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर जैसे व्यक्तित्व की कमी बहुत अखर रही है। अश‍िक्षा और रुढि़यां आत्मसम्मान को कुचल देती हैं। विवशता उनका हथ‍ियार बन जाती है मजलूमों पर कहर ढाने के लिए।

मनुष्यता को हिला देने वाली ये खबर कुछ यूं है...कि

राजस्थान के भीलवाड़ा में अंधविश्वास को लेकर हालात आज भी नहीं बदले हैं। घटना के अनुसार यहां के ''बंकाया माता'' मंदिर में भूत का साया भगाने के नाम पर महिलाओं को जूतों में भरकर महिलाओं को पानी पिलाया जाता है। यहां भूत उतारने के नाम पर महिलाओं को जूते सिर पर रखकर चलने को कहा जाता है। यही नहीं, उन्हें गंदे जूतों में पानी भरकर पीने को मजबूर भी किया जाता है। ऐसा दशकों से चला आ रहा है, लेकिन किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की।
झाड़-फूंक के नाम पर मंदिर का पुजारी मनमानी हरकतें करवाता है। औरतों को जूते सिर पर रखकर कई किलोमीटर तक चलाया जाता है। वहीं एक हौद में पानी भरा रहता है। आस्था का हवाला देकर वहां का पानी जूतों में भरकर पीने को मजबूर किया जाता है। ऐसी महिलाओं को बाल पकड़कर 200 सीढ़ियों पर घसीटा जाता है और पुरुष देखते रहते हैं।
यकीन नहीं होता ना... कि महिलाओं के साथ किया जाने वाला यह अमानवीय बर्ताव 21वीं सदी की सोच से परे है।
भारत में भी महिला सशक्तिकरण की ना जाने कितनी बातें कितने कसीदे रोज बरोज गढ़े जाते हैं मगर ऐसी रूढि़यों के लिए आगे आने की हिम्मत नहीं की जाती।
ये सब ठीक उसी दिन पता चलना हृदय को कोंच गया जब कि आज से ही शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हुआ है और ''बंकाया माता'' मंदिर में भूत भगाने का यह ''कुत्सित'' कार्यक्रम अगले नौ दिनों तक चलेगा भी।
एक आश्चर्य इस बात का भी है कि ये भूत भी जेंडर देखकर आते हैं यानि महिला पर ही आते हैं, पुरुषों पर नहीं। और ये जेंडरवाइज ही उतारे भी जाते हैं, हालांकि पुजारी के अनुसार ये भूत अपना असर कम कर देते हैं मगर पूरी तरह से नहीं जाते।
अर्थात् प्रताड़ना का ये सिलसिला बदस्तूर '' पीडि़त'' महिला के जीवित रहने तक जारी रहता है।

पूरी तरह मानसिक विक्षोभ को भूत कहकर जिस तरह औरतों के साथ दरिंदगी की जाती है, उसका एक और उदाहरण- पीडि़त महिला को मंदिर में बुलाए जाने से पहले तीन दिन तक पानी नहीं दिया जाता, ऐसा  उस ''भूत'' को दंडित करने के लिए किया जाता है ताकि वह मंदिर में आने से पहले कमजोर हो जाए और ''उतारे जाते'' समय वह किसी को नुकसान ना पहुंचाने पाए।

जाहिर है प्यासी महिला को जब कई किलोमीटर तक पैदल चलाकर पानी की हौद में उतारा जाता है तो वह पानी पीने के लिए किसी भी शर्त को मानने को तैयार रहती है, फिर चाहे वह जूते में ही पानी क्यों ना पीना पड़े,  प्यास के आगे वह अश‍िक्षित महिला विवश हो जाती है और पुजारी इसी विवशता फायदा उठाते हुए अपना सिक्का जमा लेता है उसके परिजनों पर।

बहरहाल...  शारदीय नवरात्र शुरू होने पर आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू हो गई जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होगी । आज प्रथम दिन की देवी मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है। शैलपुत्री के पूजन करने से 'मूलाधार चक्र' जाग्रत होता है जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं... आदि धार्मिक प्रवचन , आख्यानों पर राजस्थान की इस एक खबर ने
शैलपुत्री के प्रतीकात्मक स्वरूप में '' मौजूद'' होने और हमारे द्वारा स्त्री को देवी मानने की खोखली रवायत की असलियत खोल दी है।

आख‍िर हम इन जीवित स्त्र‍ियों को जूते में पानी पिला पिला कर किस शक्ति की आराधना कर रहे हैं , और यदि कर रहे हैं तो क्या ये सचमुच फलीभूत हो सकेगी.. .. मेरा संशय बढ़ रहा है। मंत्रों की शक्ति को पुजारी अपनी धूनी भरी मुठ्ठी में जोर से पकड़ कर उस पीडि़त महिला पर फेंक रहा ... है... और मैं जोर जोर से दोहरा रही हूं...

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

- अलकनंदा सिंह








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