सुप्रीम कोर्ट के जज मार्कंडेय काटजू ने सही ही कहा था कि देश में 90% लोग मूर्ख हैं, हालांकि मैं इससे पूर्णत: असहमत हूं मगर आज भी जब अफवाहों के चलते नमक लेने दौड़ पड़ते लोग दिखाई देते हैं तो काटजू की बात पर ना चाहते हुए भी विश्वास सा होने लगता है। अफवाहें हैं कि जीने ही नहीं देतीं...क्या बेपढ़े और क्या पढ़े लिखे...सभी के सभी नमक लेने को लाइन में लगे थे, क्या नज़ारा था...बड़ा अजीब लगा देखकर।
इधर बैंक के सामने पुराने 500 और 1000 के पुराने नोट, नए से बदलने वाले और कुछ ''खुल्ला कराने वाले'' लाइन में लगे थे, उधर कालाधन सफेद कराने वालों के बारे में तरह-तरह की सूचनाएं हवा में तैर रही थीं।
अव्वल तो 8 नवम्बर के बाद से सरकार ही अपनी ''बात'' समझाते-समझाते ही परेशान है, उसके बाद लोग हैं कि अफवाहें फैला रहे हैं। और उस पर विश्वास करते लोगों को देखकर गुस्सा आना स्वभाविक है।
हालांकि पोथियों में पढ़ा जाने वाला ज्ञान जब व्यवहार में उतरता है तो उसकी शक्ल ही बदल जाती है। कहीं पढ़ा था कि समाज मनोविज्ञान के अंतर्गत मनोविज्ञान और सामाजिक समस्याओं के तहत interpersonal behaviour में मनोवृत्तियों का अध्ययन कराया जाता है जिसमें motivation and cognition में पढ़ाया जाता है कि बायोलॉजिकल मोटिव्स, सोशल मोटिव्स आदि क्या होते हैं, उनके लाभ और हानि क्या होते हैं और इनके साधन क्या होते हैं। इन्हीं मोटिव्स में आती हैं अफवाहें भी। अफवाह के बारे में ठीक-ठीक ये कहा नहीं जा सकता कि ये आखिर क्यों और कैसे फैलती रहीं। कुछ लोग अफवाह के व्यापारी यानि rumour monger होते हैं जिन्हें समाज मनोविज्ञान में बीमार की श्रेणी में रखा जाता है जो interactions पर आधारित होता है।
समाज मानोविज्ञान पर ही अरुण कुमार सिंह की किताब में अफवाह को एक ऐसी कहानी या प्रस्ताव बताया गया है कि जो समुदाय के किसी ''संवेगात्मक घटना'' से सम्बन्धित होती है और जो मौखिक रूप से समुदाय के सदस्यों के बीच रंग चलते हुए फैल जाती है। इसकी सच्चाई पर लोग आँख मूँदकर विश्वास कर लेते हैँ।
अफवाह में इमोशनल एलीमेंट इतना ज्यादा होता है कि कुछ सामान्य सी बात को भी लोग सामूहिक रूप से बेहद इमोशनली होकर, उसमें अपनी पूर्ण कथात्मक क्षमता का समावेश करके नमक मिर्च लगा लगाकर परोसते रहते हैं और शिक्षित व अशिक्षित सभी उस इमोशनल बहाव में बहते चले जाते हैं।
अभी अफवाह को लेकर बढ़ रही बेचैनी ही है कि केंद्र सरकार व स्टेट के डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स को भरोसा दिलाना पड़ा है कि लोगों को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। देश में सिर्फ 60 लाख टन नमक की खपत है जबकि 220 लाख टन का प्रोडक्शन होता है, लिहाजा नमक के दाम नहीं बढ़ेंगे। लोग घबराएं नहीं। ये सिर्फ अफवाह है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही की जाएगी।
शाम होने को आई मगर यूपी के साथ-साथ मध्य प्रदेश व गुजरात, आंध्र प्रदेश के भी कई शहरों में नमक को लेकर अफवाह आती जा रही है।
अफवाह की खबरें आने पर केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने उत्तर प्रदेश में नमक की किल्लत की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि इसकी कीमत 14 से 15 रुपये प्रति किलो ही है। पासवान ने कहा कि पैनिक फैलाने वालों पर सरकार को एक्शन लेना चाहिए। राज्य सरकार एक्शन क्यों नहीं लेती हैं? कौन 200 रुपये किलो बेच रहा है। देश में न नमक, न गेंहू, ना दाल किसी की कोई कमी नहीं है। ये केंद्र सरकार को बदनाम करने की राजनीति हो रही है।
अब राज्य सरकारें एक्शन लें या नहीं, अफवाहें कितनों को मालामाल करती हैं या बेवकूफ बनाती हैं, यह तो पता नहीं मगर काटजू का कथन तो सच ही साबित हो रहा है कि हम सब (व्हाट्सएप समेत सोशल मीडिया इस ज़माने में भी) कितनी आसानी से बड़ी संख्या में मूर्ख बनाए जा रहे हैं।
जो हकीकत से दूर भागते हैं और कान के कच्चे होते हैं, वही अफवाहों का निशाना बनते हैं...
किसी शायर ने क्या खूब ही कहा है कि -
“अफवाह कभी दिल-ए-हालात बता नहीं सकते,
जो जाननी हो तबियत तो हमसे मिलते रहा करो...”
-अलकनंदा सिंह
इधर बैंक के सामने पुराने 500 और 1000 के पुराने नोट, नए से बदलने वाले और कुछ ''खुल्ला कराने वाले'' लाइन में लगे थे, उधर कालाधन सफेद कराने वालों के बारे में तरह-तरह की सूचनाएं हवा में तैर रही थीं।
अव्वल तो 8 नवम्बर के बाद से सरकार ही अपनी ''बात'' समझाते-समझाते ही परेशान है, उसके बाद लोग हैं कि अफवाहें फैला रहे हैं। और उस पर विश्वास करते लोगों को देखकर गुस्सा आना स्वभाविक है।
हालांकि पोथियों में पढ़ा जाने वाला ज्ञान जब व्यवहार में उतरता है तो उसकी शक्ल ही बदल जाती है। कहीं पढ़ा था कि समाज मनोविज्ञान के अंतर्गत मनोविज्ञान और सामाजिक समस्याओं के तहत interpersonal behaviour में मनोवृत्तियों का अध्ययन कराया जाता है जिसमें motivation and cognition में पढ़ाया जाता है कि बायोलॉजिकल मोटिव्स, सोशल मोटिव्स आदि क्या होते हैं, उनके लाभ और हानि क्या होते हैं और इनके साधन क्या होते हैं। इन्हीं मोटिव्स में आती हैं अफवाहें भी। अफवाह के बारे में ठीक-ठीक ये कहा नहीं जा सकता कि ये आखिर क्यों और कैसे फैलती रहीं। कुछ लोग अफवाह के व्यापारी यानि rumour monger होते हैं जिन्हें समाज मनोविज्ञान में बीमार की श्रेणी में रखा जाता है जो interactions पर आधारित होता है।
समाज मानोविज्ञान पर ही अरुण कुमार सिंह की किताब में अफवाह को एक ऐसी कहानी या प्रस्ताव बताया गया है कि जो समुदाय के किसी ''संवेगात्मक घटना'' से सम्बन्धित होती है और जो मौखिक रूप से समुदाय के सदस्यों के बीच रंग चलते हुए फैल जाती है। इसकी सच्चाई पर लोग आँख मूँदकर विश्वास कर लेते हैँ।
अफवाह में इमोशनल एलीमेंट इतना ज्यादा होता है कि कुछ सामान्य सी बात को भी लोग सामूहिक रूप से बेहद इमोशनली होकर, उसमें अपनी पूर्ण कथात्मक क्षमता का समावेश करके नमक मिर्च लगा लगाकर परोसते रहते हैं और शिक्षित व अशिक्षित सभी उस इमोशनल बहाव में बहते चले जाते हैं।
अभी अफवाह को लेकर बढ़ रही बेचैनी ही है कि केंद्र सरकार व स्टेट के डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स को भरोसा दिलाना पड़ा है कि लोगों को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। देश में सिर्फ 60 लाख टन नमक की खपत है जबकि 220 लाख टन का प्रोडक्शन होता है, लिहाजा नमक के दाम नहीं बढ़ेंगे। लोग घबराएं नहीं। ये सिर्फ अफवाह है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही की जाएगी।
शाम होने को आई मगर यूपी के साथ-साथ मध्य प्रदेश व गुजरात, आंध्र प्रदेश के भी कई शहरों में नमक को लेकर अफवाह आती जा रही है।
अफवाह की खबरें आने पर केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने उत्तर प्रदेश में नमक की किल्लत की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि इसकी कीमत 14 से 15 रुपये प्रति किलो ही है। पासवान ने कहा कि पैनिक फैलाने वालों पर सरकार को एक्शन लेना चाहिए। राज्य सरकार एक्शन क्यों नहीं लेती हैं? कौन 200 रुपये किलो बेच रहा है। देश में न नमक, न गेंहू, ना दाल किसी की कोई कमी नहीं है। ये केंद्र सरकार को बदनाम करने की राजनीति हो रही है।
अब राज्य सरकारें एक्शन लें या नहीं, अफवाहें कितनों को मालामाल करती हैं या बेवकूफ बनाती हैं, यह तो पता नहीं मगर काटजू का कथन तो सच ही साबित हो रहा है कि हम सब (व्हाट्सएप समेत सोशल मीडिया इस ज़माने में भी) कितनी आसानी से बड़ी संख्या में मूर्ख बनाए जा रहे हैं।
जो हकीकत से दूर भागते हैं और कान के कच्चे होते हैं, वही अफवाहों का निशाना बनते हैं...
किसी शायर ने क्या खूब ही कहा है कि -
“अफवाह कभी दिल-ए-हालात बता नहीं सकते,
जो जाननी हो तबियत तो हमसे मिलते रहा करो...”
-अलकनंदा सिंह
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