नाना ने आज 'कलाकार देश के सामने खटमल हैं' बोलकर जिस तरह बेबाकी से बॉलीवुड के कथित ''कलाकारों '' का सच बयान किया है, वह अंधों के शहर को आइना दिखाने जैसी बात है। मैं नाना की फिल्मों की ही नहीं बल्कि उनकी निभाई सामाजिक भूमिकाओं की भी फैन हूं मगर उनकी ये बेबाकी बॉलीवुड के कई घिनौने सच सामने ला देती है। जिन कलाकारों की भूमिकाओं को हम एंज्वाय करते हैं, उनकी बेवकूफाना बातें बतातीं हैं कि उनकी फिल्मों का ''सुपरहिट तत्व'' कितना खोखला होता है।
भारत द्वारा PoK में घुसकर आतंकियों पर Surgical Strike करने के बाद आतंकी वारदातों और आतंकी समूहों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलने वाले पाकिस्तानी एक्टर्स के उस सच को सामने ला दिया है जो बरसों से भारतीय फिल्म जगत में घुसपैठ तो कर रहा था लेकिन उसके खिलाफ कोई मुखर होकर बोलता नहीं था। गायक अभिजीत भट्टाचार्य ने आवाज बुलंद की तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और अब पाकिस्तानी एक्टर्स व सिंगर्स की मंशा सामने आ रही है कि वह बॉलीवुड तथा भारत को अपने लिए सिर्फ और सिर्फ एक मंडी समझते रहे हैं।
जहां तक मुझे जानकारी है पाकिस्तानी गायकों व कलाकारों को सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि रियेलिटी शो में भी भारतीय फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के ऐसे कॉकस का साथ मिला हुआ है जो भारतीय प्रतिभाओं के न सिर्फ पेट पर लात मार रहे थे बल्कि अवांछित गतिविधियों में भी लिप्त हैं।
प्रसिद्ध गायक राहत फतेह अली खान इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिन्हें मनी लांड्रिंग केस में भारत आने से ही रोक दिया गया था।
फिल्म इंडस्ट्री के प्रोड्यूसर्स की सबसे पुरानी संस्था आईएमपीपीए ने पाकिस्तानी कलाकारों पर बॉलीवुड में काम करने की पाबंदी लगाने के बाद सलमान खान, करन जौहर, महेश भट्ट जैसों के बयान बता रहे हैं कि उनके पाकिस्तानी फेवर के पीछे सब कुछ इतना सीधा- साधा नहीं है, सच की परतें अभी और भी हैं जो पाकिस्तान से वाया दुबई यहां आ रही हैं।
ये बॉलीवुड इंवेस्टमेंट का वो अंडरवर्ल्ड है, जो अपनी लक्ष्मन रेखा में किसी कलाकार को घुसने नहीं देता, जो खेमों और कैंपों में बंटा हुआ है, उसे पाकिस्तानी कलाकार इसीलिए भाते हैं कि वो इन कैंप्स के लिए ''बेस्ट पपेट'' साबित होते हैं। जो टूरिस्ट वीजा पर आते हैं और यहां जो भी कमाते हैं, उसका खुलासा करने को बाध्य नहीं किए जाते लिहाजा बॉलीवुड की ब्लैक कमाई का चक्रव्यूह बदस्तूर चलता रहता है।
इसके ठीक विपरीत नाना पाटेकर का पत्रकारों से ये कहना कि देश पहले है, बाक़ी सब बाद में, यह बताता है कि जो देश के भीतर बैठकर देश की जड़ें कुतरने की कोशिश में हैं, वे चाहे हिंदुस्तानी कलाकार हों या पाकिस्तानी, अब मुखौटों में नहीं छुप पाऐंगे।
नाना पाटेकर ने कहा, "मुझे लगता है पाकिस्तान, कलाकार ये बातें बाद में, पहले मेरा देश. देश के अलावा मैं किसी को जानता नहीं और न मैं जानना चाहूंगा."
"हम कलाकार देश के सामने खटमल की तरह इतने से हैं, हमारी क़ीमत कोई नहीं है, पहले देश है."
पाकिस्तानी कलाकारों के मुद्दे पर बॉलीवुड में राय बंटी होने पर उन्होंने कहा, "बॉलीवुड क्या कहता है मैं नहीं जानता, मैंने ढाई साल सेना में गुज़ारे हैं तो मुझे मालूम है कि हमारे जो जवान हैं उनसे बड़ा हीरो कोई हो नहीं सकता दुनिया में."
उन्होंने कहा, "हमारे असली हीरो सेना के जवान हैं, हम तो बहुत मामूली और नकली लोग हैं. हम जो बोलते हैं .उस पर ध्यान मत दो."
पाटेकर ने पत्रकारों से कहा, "तुम्हें समझ में आया मैं किनके बारे में बोल रहा हूँ तो मैं उन्हीं के बारे में बोल रहा हूँ."
उन्होंने कहा, "हम जो पटर-पटर करते हैं उस पर ध्यान मत दो, इतनी अहमियत मत दो किसी को. उनकी औक़ात नहीं है उतनी अहमियत की."
निश्चित ही जो नाना ने कहा, कभी उसकी तस्दीक जावेद अख्तर कर चुके हैं।
इस मसले पर भारत के कुछ बुद्धिजीवी भी पाकिस्तानी कलाकारों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं, वह भी इस तर्क के साथ कि कला और आतंकवाद को अलग करके देखा जाना चाहिए। इन बुद्धिजीवियों को कौन समझाए कि कोई कला कभी राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती। राष्ट्र की कीमत पर कला को बढ़ाने की वकालत करने वालों को यह बात समझनी होगी ।
अदनान सामी जैसे कलाकार, तारिक फतह जैसे बुद्धिजीवी जो सच पाकिस्तान का बयां करते हैं, वह हमारे इन ''कथित बॉलीवुड के अमनपसंदों और बातचीत के पैरोकरों'' को कब दिखाई देगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, अलबत्ता नाना पाटेकर जैसे राष्ट्रभक्त कलाकार इनकी आंखों को किरकिरा अवश्य करते रहेंगे।
अब मामला कमाई का ही नहीं, और ना ही दुबई कनेक्शंस व इंवेस्टमेंट कॉकस का रह गया है, यह चार कदम आगे बढ़कर राष्ट्र और इस पर आए आतंकवाद के खतरे से जुड़ गया है। हमारे सुपरस्टार्स के ''ऊंचे कदों'' के लिए ये ताकीद है कि अब बस, बहुत हो गया ढोंगों का बाजार ... ।
अब या तो इस बाजार की आड़ में अपनी काली कमाई के लिए राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने का घिनौना खेल बंद कर दो अन्यथा जिस जनता ने आज सिर-आंखों पर बैठाकर सितारों का दर्जा दिलवा रखा है, वही उस मुकाम तक ले जाएगी जहां बड़े-बडे सितारे इस कदर गर्दिश में समा जाते हैं कि इतिहास भी उन्हें दोहराने की जहमत नहीं उठाता।
- अलकनंदा सिंह
भारत द्वारा PoK में घुसकर आतंकियों पर Surgical Strike करने के बाद आतंकी वारदातों और आतंकी समूहों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलने वाले पाकिस्तानी एक्टर्स के उस सच को सामने ला दिया है जो बरसों से भारतीय फिल्म जगत में घुसपैठ तो कर रहा था लेकिन उसके खिलाफ कोई मुखर होकर बोलता नहीं था। गायक अभिजीत भट्टाचार्य ने आवाज बुलंद की तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और अब पाकिस्तानी एक्टर्स व सिंगर्स की मंशा सामने आ रही है कि वह बॉलीवुड तथा भारत को अपने लिए सिर्फ और सिर्फ एक मंडी समझते रहे हैं।
जहां तक मुझे जानकारी है पाकिस्तानी गायकों व कलाकारों को सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि रियेलिटी शो में भी भारतीय फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के ऐसे कॉकस का साथ मिला हुआ है जो भारतीय प्रतिभाओं के न सिर्फ पेट पर लात मार रहे थे बल्कि अवांछित गतिविधियों में भी लिप्त हैं।
प्रसिद्ध गायक राहत फतेह अली खान इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिन्हें मनी लांड्रिंग केस में भारत आने से ही रोक दिया गया था।
फिल्म इंडस्ट्री के प्रोड्यूसर्स की सबसे पुरानी संस्था आईएमपीपीए ने पाकिस्तानी कलाकारों पर बॉलीवुड में काम करने की पाबंदी लगाने के बाद सलमान खान, करन जौहर, महेश भट्ट जैसों के बयान बता रहे हैं कि उनके पाकिस्तानी फेवर के पीछे सब कुछ इतना सीधा- साधा नहीं है, सच की परतें अभी और भी हैं जो पाकिस्तान से वाया दुबई यहां आ रही हैं।
ये बॉलीवुड इंवेस्टमेंट का वो अंडरवर्ल्ड है, जो अपनी लक्ष्मन रेखा में किसी कलाकार को घुसने नहीं देता, जो खेमों और कैंपों में बंटा हुआ है, उसे पाकिस्तानी कलाकार इसीलिए भाते हैं कि वो इन कैंप्स के लिए ''बेस्ट पपेट'' साबित होते हैं। जो टूरिस्ट वीजा पर आते हैं और यहां जो भी कमाते हैं, उसका खुलासा करने को बाध्य नहीं किए जाते लिहाजा बॉलीवुड की ब्लैक कमाई का चक्रव्यूह बदस्तूर चलता रहता है।
इसके ठीक विपरीत नाना पाटेकर का पत्रकारों से ये कहना कि देश पहले है, बाक़ी सब बाद में, यह बताता है कि जो देश के भीतर बैठकर देश की जड़ें कुतरने की कोशिश में हैं, वे चाहे हिंदुस्तानी कलाकार हों या पाकिस्तानी, अब मुखौटों में नहीं छुप पाऐंगे।
नाना पाटेकर ने कहा, "मुझे लगता है पाकिस्तान, कलाकार ये बातें बाद में, पहले मेरा देश. देश के अलावा मैं किसी को जानता नहीं और न मैं जानना चाहूंगा."
"हम कलाकार देश के सामने खटमल की तरह इतने से हैं, हमारी क़ीमत कोई नहीं है, पहले देश है."
पाकिस्तानी कलाकारों के मुद्दे पर बॉलीवुड में राय बंटी होने पर उन्होंने कहा, "बॉलीवुड क्या कहता है मैं नहीं जानता, मैंने ढाई साल सेना में गुज़ारे हैं तो मुझे मालूम है कि हमारे जो जवान हैं उनसे बड़ा हीरो कोई हो नहीं सकता दुनिया में."
उन्होंने कहा, "हमारे असली हीरो सेना के जवान हैं, हम तो बहुत मामूली और नकली लोग हैं. हम जो बोलते हैं .उस पर ध्यान मत दो."
पाटेकर ने पत्रकारों से कहा, "तुम्हें समझ में आया मैं किनके बारे में बोल रहा हूँ तो मैं उन्हीं के बारे में बोल रहा हूँ."
उन्होंने कहा, "हम जो पटर-पटर करते हैं उस पर ध्यान मत दो, इतनी अहमियत मत दो किसी को. उनकी औक़ात नहीं है उतनी अहमियत की."
निश्चित ही जो नाना ने कहा, कभी उसकी तस्दीक जावेद अख्तर कर चुके हैं।
इस मसले पर भारत के कुछ बुद्धिजीवी भी पाकिस्तानी कलाकारों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं, वह भी इस तर्क के साथ कि कला और आतंकवाद को अलग करके देखा जाना चाहिए। इन बुद्धिजीवियों को कौन समझाए कि कोई कला कभी राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती। राष्ट्र की कीमत पर कला को बढ़ाने की वकालत करने वालों को यह बात समझनी होगी ।
अदनान सामी जैसे कलाकार, तारिक फतह जैसे बुद्धिजीवी जो सच पाकिस्तान का बयां करते हैं, वह हमारे इन ''कथित बॉलीवुड के अमनपसंदों और बातचीत के पैरोकरों'' को कब दिखाई देगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, अलबत्ता नाना पाटेकर जैसे राष्ट्रभक्त कलाकार इनकी आंखों को किरकिरा अवश्य करते रहेंगे।
अब मामला कमाई का ही नहीं, और ना ही दुबई कनेक्शंस व इंवेस्टमेंट कॉकस का रह गया है, यह चार कदम आगे बढ़कर राष्ट्र और इस पर आए आतंकवाद के खतरे से जुड़ गया है। हमारे सुपरस्टार्स के ''ऊंचे कदों'' के लिए ये ताकीद है कि अब बस, बहुत हो गया ढोंगों का बाजार ... ।
अब या तो इस बाजार की आड़ में अपनी काली कमाई के लिए राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने का घिनौना खेल बंद कर दो अन्यथा जिस जनता ने आज सिर-आंखों पर बैठाकर सितारों का दर्जा दिलवा रखा है, वही उस मुकाम तक ले जाएगी जहां बड़े-बडे सितारे इस कदर गर्दिश में समा जाते हैं कि इतिहास भी उन्हें दोहराने की जहमत नहीं उठाता।
- अलकनंदा सिंह
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