गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

देश के बाजार पर हलाल इकॉनॉमी का कब्‍ज़ा...घातक है ये समानांतर अर्थव्‍यवस्‍था

 पूरे देश में हलाल प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने, ऐसे उत्पादों को बाजार से वापस लेने और 1974 से जारी हलाल सर्टिफिकेट को शून्य घोषित करने के निर्देश देने की मांग करने वाली एक याचिका वकील विभोर आनंद और रवि कुमार तोमर की ओर से #SupremeCourt में विगत सप्‍ताह दाखिल की गई है।

याचिका के अनुसार 1974 से पहले ये व्यवस्था नहीं थी, 1974 से 1993 तक हलाल सर्टिफिकेशन सिर्फ मीट प्रोडक्ट के लिए दिया जाता था परंतु अब तो यह तेल, साबुन, शैम्‍पू, आटा, दाल, मैदा, चावल तक पहुंच गया है। याचिका में अन्य बातों के साथ-साथ कहा गया है कि 15% जनता की खातिर "85% जनता हलाल उत्पादों का उपभोग करने के लिए मजबूर हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के हनन के लिए रचा गया एक ऐसा कुचक्र है जिसे व्‍यापारिक आवश्‍यकता का नाम दिया गया है, अत: हलाल प्रमाणित उत्पादों पर लगाम लगाई जाए।

इस याचिका के अतिरिक्‍त भी जो सूचनायें हैं वे देश की अर्थव्‍यवस्‍था में बड़ा छेद कर चुकी हैं। मुस्‍लिम देशों की बात तो छोड़ दें क्‍योंकि वहां यह सर्टिफिकेट सरकारें देती हैं परंतु हमारे देश में हलाल सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया न केवल व्‍यापार विरोधी बल्‍कि देश विरोधी भी है क्‍योंकि यह सर्टिफिकेट सरकार द्वारा नहीं दिया जाता बल्‍कि केवल हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलेमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट जैसे प्राइवेट संस्थान ही देते हैं जो स्‍वयं को देश के कानून के प्रति जवाबदेह नहीं मानते। भला धार्मिक संस्थाऐं मजहब के नाम पर कारोबार के लिए परमिट कैसे बांट सकती हैं। और जो जायज़ और नाजायज़ की परिभाषा निर्धारित कर ये संस्‍थाऐं कलमा पढ़ा हुआ मांस खिलाकर हिन्दू और सिख धर्म के अनुयाइयों की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन कर रही हैं, सो अलग।

मीट कारोबार को छोड़कर बाकी कारोबारों के लिए यह वैधता से ज्‍यादा ''व्‍यापारिक बाध्‍यता'' बना दी गई है। भारतीय रेल, विमानन सेवा, फाइव स्टार होटल से लेकर मैकडोनाल्ड डोमिनोज़, जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं।

ग्लोबली हलाल प्रोडक्ट का कारोबार 4.2 बिलियन डॉलर्स के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है जिसमें भारत भी बड़ा हिस्सेदार है। भारत के सभी होटलों में मांसाहारी भोजन के लिए मसाला तक सभी हलाल सर्टिफाइड होता है और यह ग्राहकों को बिना उनकी जानकारी के परोसा जा रहा है।

स्‍वयं हलाल इंडिया के अनुसार इस समय भारत में 6 प्रकार के उद्योगों में हलाल सर्टिफिकेट बांटा जा रहा है जिसमें मेडिकल, रेस्टोरेंट, टूरिज्म, खाद्य सामग्री, ट्रेनिंग व वेयरहाउस शामिल है। ऐसे क्षेत्रों में हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त करने के बाद यह सुनिश्चित किया जाता है कि काम करने वाला व्यक्ति मुस्लिम ही हो। जैसे हलाल मीट में यह तय किया जाता है कि मीट को काटते समय कुरान की आयतें पढ़ी जा रही हों व काटने वाला व्यक्ति मुसलमान हो। हलाल इंडिया के अधिकारी ने बताया कि यह सब इस्लामिक क़ानून के हिसाब से तय किया जाता है, हलाल एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है कि यहाँ सब कुछ शरिया क़ानून के नियमों के आधार पर तय होता है कि कौन सा खाद्य पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक है और कौन सा नहीं। हलाल इंडिया सारी प्रक्रिया ‘शरिया बोर्ड’ की निगरानी में पूरी करता है। उसका कहना है कि अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी उसके द्वारा मान्यता प्राप्त खाद्य पदार्थों व उत्पादों को अपने-अपने देशों में मान्यता देती है।

बात यहां ये आती है कि जब औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क, कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसेस्ड फल उत्पाद जैसे जैम अचार के लिए एफपीओ, सोने के लिए हॉलमार्क आदि भारत सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं तो फिर ये अलग से हलाल सर्टिफिकेट का पुछल्‍ला क्‍यों।

जाहिर है कि शरिया कानून के नाम पर एक समानांतर अथर्व्‍यवस्‍था चलाई जा रही है, जिसके धन का उपयोग हम कभी दंगाइयों की पैरवी कभी धर्मांतरण तो कभी सीएए-एनआरसी जैसे विरोध प्रदर्शनों में किया जाता है।
देश में ''व्‍यापारिक बाध्‍यता'' के नाम पर खाद्य कंपनियों द्वारा हलाल सर्टिफिकेट लेने को दी गयी फीस का प्रयोग इस्लाम की बढ़ोत्तरी के लिए होता ही है, इसके साथ ही हलाल सर्टिफिकेट लेते समय एक क्‍लॉज जुड़ा होता है कि कंपनियां कुछ भी इस्लाम विरोधी नहीं कर सकती। इसीलिए अधिकाँश कंपनियां अपने प्रोडक्‍ट के विज्ञापन भी बनाते समय इस्लामिक आस्थाओं का ध्यान रखती हैं क्योंकि उनका पैसा जुड़ा हुआ है।

षडयंत्र की पराकाष्‍ठा देखिए कि केरल के पश्चिमी कोच्चि में स्थित एक रियल स्टेट कंपनी ने तो हलाल सर्टिफाइड अपार्टमेंट्स बनाए हैं जिसमें दावा किया गया है कि ये शरियत से अप्रूव है।

देश में सरकारी तंत्र को ठेंगा दिखाते हुए हलाल इंडस्ट्री का अपना ही अलग देश चल रहा है। इसने पूरी अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ाकर देश की अर्थव्यवस्था के पैरेलल अपनी एक अन्य अर्थव्यवस्था खड़ी कर दी है जिसका न ही कोई ऑडिट होता है न ही कोई रिकॉर्ड। साथ में वो रिपोर्ट भी डराती हैं कि हलाल इंडस्ट्री का पैसा आतंकी गतिविधियों में उपयोग किया जा रहा है। हलाल सर्टिफिकेशन के ज़रिए यह धार्मिक अर्थव्यवस्था अब तक 3 ख़रब रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी इस धार्मिक अर्थव्यवस्था को न आज कोई पूछने वाला है और न कोई हिसाब लेने वाला है।

निश्‍चित ही कोर्ट में याचिका आने के बाद समानांतर रूप से चलाई जा रही इस अवैध अर्थव्‍यवस्‍था के बारे बातें शुरू हुई हैं, लोगों ने अपने अपने अनुभव साझा करने शुरू किए हैं तो उम्‍मीद भी बंधी है कि...अब बात निकली है तो दूर तलक भी जाएगी भी....।

 -अलकनंदा सिंंह

रविवार, 10 अप्रैल 2022

रामनवमी पर व‍िशेष: ऐसे थे न‍िराला के राम और राम की शक्तिपूजा


 आज रामनवमी है और इस अवसर पर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित काव्य राम की शक्तिपूजा के राम की बात यद‍ि हम ना करें तो रामनवमी का द‍िन सार्थक नहीं होगा। राम की शक्तिपूजा का प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र ‘भारत’ में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को हुआ था। इसका मूल निराला के कविता संग्रह ‘अनामिका’ के प्रथम संस्करण में छपा।

तब से लेकर आज तक हर कोई राम के व्यक्तित्व की व्याख्या अपनी अपनी तरह से करता रहता है। यहां तक क‍ि बिना रामायण के किसी भी संस्करण को पढ़े और राम के व्यक्तित्व पर चिंतन किए बिना कई कथित बुद्धिजीवी, विशेषकर फेमिनिस्ट (नारीवादी) प्रायः राम पर सीता का त्याग करने के लिए निशाना साधते रहते हैं और ब‍िना सोचे व‍िचारे क्षमायाचक (अपॉलोजेटिक) बने हिंदू उनका अनुसरण भी करते रहते हैं।

‘राम की शक्ति पूजा’ नामक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता में राम के कुछ ऐसे भी मनोभाव देखने को मिलते हैं जो शायद रामचर‍ित मानस में भी उल्लि‍खित नहीं हैं क्याेंक‍ि इसमें राम-रावण युद्ध को साधने के लिए राम द्वारा की गई शक्ति पूजा का भी उल्लेख है जिसका संदर्भ भले ही पुराणों में मिलता है लेकिन वाल्मीकि या तुलसी रामायण में नहीं।

शक्ति पूजा से पूर्व राम देवी के विधान से निराश हैं। उनकी निराशा इस बात से है कि अधर्मी होने के बावजूद वे रावण का साथ क्यों दे रही हैं। वे अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं कि शक्ति के प्रभाव के कारण उनकी सेना निष्फल हुई और स्वयं उनके हस्त भी शक्ति की एक दृष्टि के कारण बाण चलाते-चलाते रुक गए थे।

निराला ने अपने शब्दों में राम की पूरी ”वो पूजा” जो शक्त‍ि आराधना को समर्प‍ित थी, को हमारे सामने ऐसे उदाहरण की तरह पेश क‍िया जो पूरे के पूरे मानवीय आदर्श को नई पीढ़ी के ल‍िए एक प्रेरणा के तौर रखेगा।

राम की शक्तिपूजा का एक अंश

रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा
अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।
आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,
शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,
प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूह
राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह,
विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण,
लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान,
राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,
उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,
अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव,
विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव,
रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल,
मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल,
वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध,
गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध,
उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर,
जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर।
लौटे युग दल। राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल।
वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न।

‘राम की शक्तिपूजा’ की कुछ अन्तिम पंक्तियाँ देखिए

“साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !”
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

- अलकनंदा सिंंह

24 वर्ष पूर्व: 'रामनवमी' पर ही हुआ था 'लीजेण्ड न्यूज़' का प्रवेशांक प्रकाशित



 24 वर्ष पूर्व आज के ही दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव 'रामनवमी' पर 'लीजेण्ड न्यूज़' का प्रवेशांक प्रकाशित किया था। हालांकि उस दिन तारीख 05 अप्रेल थी किंतु दिन 'रविवार' ही था।

प्रिंट मीडिया से लेकर वेब मीडिया तक की इस यात्रा में खट्टे, मीठे, तीखे और यहां तक कि बहुत से कड़वे अनुभव भी हुए लेकिन पत्रकारिता की मर्यादा बनाए रखने का पूरा प्रयास किया गया। पता नहीं इस बीच कोई मील का पत्थर स्थापित किया या नहीं, किंतु ऐसी कोशिश अवश्य रही कि सत्य का यथासंभव साथ निभाया जा सके।


ये कोशिश आगे भी जारी रहेगी, चाहे परिस्थितियां अनुकुल हों या प्रतिकूल। बेशक, फेक न्यूज़ और फेक विचारों के इस दौर में 'पत्रकारिता' एक अत्यंत दुरूह कार्य हो चुकी है परंतु यही असल परीक्षा भी है। परिणाम जो भी हो, परीक्षा से मुंह कभी नहीं मोड़ेंगे।

इसी वचनबद्धता के साथ आप सभी को 'रामनवमी' के पावन पर्व की हार्दिक शुभकमानाएं और

बधाई
- अलकनंदा सिंंह