चित्र : साभार गूगल |
हिंदी के अन्य सभी विधाओं की तुलना में अधिक लघु आकार होने के कारण यह समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब रही है क्योंकि इस विधा में सरोकार और कम शब्दों दोनों ही एकसाथ समाहित रहे हैं। माधव राव सप्रे के साथ साथ इसे आज की स्थापित ''विधा'' के तौर पर प्रख्यात श्रेणी तक पहुंचाने में रमेश बतरा, जगदीश कश्यप, कृष्ण कमलेश, भगीरथ, सतीश दुबे, बलराम अग्रवाल, विक्रम सोनी, सुकेश साहनी, विष्णु प्रभाकर, हरिशंकर परसाई आदि समकालीन लघुकथाकारों का हाथ रहा है। साथ ही कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, बलराम, कमल चोपड़ा, सतीशराज पुष्करणा आदि संपादकों का भी रहा है। इस संबंध में तारिका, अतिरिक्त, समग्र, मिनीयुग, लघु आघात, वर्तमान जनगाथा आदि लघुपत्रिकाओं के संपादकों का योगदान को भी नज़रंदाज नहीं किया जा सकता।
हिन्दी कवि और लेखक बलराम अग्रवाल अपने ब्लॉग ''सांचा: लघुकथा वार्ता'' में लिखते हैं पहली हिन्दी लघुकथा के बारे में कि हिन्दी कहानी के विधिवत जन्म लेने से काफी पहले पाश्चात्य विद्वान एडगर एलन पो(1809ई0-1849ई0), ओ0 हेनरी(1862ई0-1910ई0), गाइ द मोपांसा(1850ई0-1893ई0) तथा एन्टन पाब्लोविच चेखव(1860ई0-1904ई0) के माध्यम से कहानी अपने उत्कृष्टतम स्वरूप को प्राप्त कर चुकी थी। भारतीय भाषाओं में बंगला कहानी भी खुली हवा में अपना परचम लहरा चुकी थी।
हिन्दी में परिमार्जित कहानी के रूप में जो रचनाएँ प्रकाश में आई हैं, आमतौर पर सन 1900ई0 के आसपास प्रकाशित हुईं। अलग-अलग कारणों से, पहली हिन्दी कहानी की दौड़ में जो कहानियाँ शामिल हैं, उन्हें उनके प्रकाशन-काल के क्रम में निम्नवत प्रस्तुत किया जा सकता है:-
1 प्रणयिनी परिचय(1887) किशोरीलाल गोस्वामी
2 छली अरब की कथा(1893) संभवत: लोककथा
3 सुभाषित रत्न(1900) माधवराव सप्रे
4 इन्दुमती (1900) किशोरीलाल गोस्वामी
5 मन की चंचलता(1900) माधवप्रसाद मिश्र
6 एक टोकरी भर मिट्टी(1901) माधवराव सप्रे
7 ग्यारह वर्ष का समय(1903) रामचंद्र शुक्ल
8 लड़की की कहानी(1904) माधवप्रसाद मिश्र
9 दुलाई वाली(1907) राजेन्द्र बाला उर्फ बंग महिला
10 राखीबंद भाई(1907) वृंदावन लाल वर्मा
11 ग्राम(1911) जयशंकर प्रसाद
12 सुखमय जीवन(1911) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
13 रक्षा बंधन(1913) विश्वम्भर नाथ शर्मा ‘कौशिक’
14 उसने कहा था(1915) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
दो प्रसिद्ध लघुकथाऐं
अंगहीन धनी
एक धनिक के घर उसके बहुत-से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे। नौकर बुलाने को घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा, पर हँसता हुआ लौटा।
और नौकरों ने पूछा,“क्यों बे, हँसता क्यों है?”
तो उसने जवाब दिया,“भाई, सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उन सभों से एक बत्ती न बुझे। जब हम गए, तब बुझे।”
अद्भुत संवाद
“ए, जरा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो।”
“यह कूदेगा तो नहीं?”
“कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो सँभालो।”
“यह काटता है?”
“नहीं काटेगा, लगाम पकड़े रहो।”
“क्या इसे दो आदमी पकड़ते हैं, तब सम्हलता है?”
“नहीं।”
“फिर हमें क्यों तकलीफ देते हैं? आप तो हई हैं।”
Maya Angelou said that “There is no greater agony than bearing an untold story inside you.”
एक अनकही कहानी की मौजूदगी से बड़ा कोई दर्द नहीं हो सकता।
तो कह डालो जो कुछ भीतर छिपा बैठा है।
- अलकनंदा सिंह
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