प्राचीनकाल में काल में बहने वाली सरस्वती नदी के Scientific प्रमाण मिल गए
हैं और वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय में आदि बद्री से गुजरात में कच्छ के
रण से होकर धौलावीरा तक करीब पौने पांच हजार किलोमीटर तक जमीन के भीतर
विशाल जल भंडार का भी पता चला है जिससे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तरी
गुजरात तक के क्षेत्र की प्यास बुझाई जा सकती है।
जाने-माने भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर के एस वाल्दिया की अध्यक्षता वाले एक विशेषज्ञ दल ने केन्द्रीय जल संसाधन एवं नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती को उत्तर-पश्चिम भारत में पुरावाहिकाओं की प्राक्कलन रिपोर्ट शनिवार को यहां एक कार्यक्रम में सौंपी जिसमें सरस्वती नदी के अस्तित्व में रहने की बात प्रमाणित हुई है।
इस मौके पर सुश्री भारती ने कहा कि यह विश्व की सबसे प्रामाणिक रिपोर्ट है और इससे प्रमाणित हो गया है कि गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में कभी सरस्वती नदी बहती थी जो हिमालय के आदि बद्री से निकलती थी और पश्चिम में गुजरात में हड़प्पा कालीन नगर धौलावीरा तक बहती थी।
भारती ने कहा कि वह चाहती थीं कि सरस्वती नदी का कोई अस्तित्व रहा है या नहीं, यह बात धार्मिक एवं आस्था से जुड़े विश्वास के आधार पर नहीं बल्कि ठोस वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित होनी चाहिए और उन्हें खुशी है कि विशेषज्ञ समिति में शामिल वैश्विक स्तर पर बेहद प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने व्यापक अध्ययन करके इसकी पुष्टि की है।
उन्होंने कहा कि आगे इस बारे में अध्ययन किया जाएगा कि सरस्वती की सुप्त जलधारा की क्षमता कहां कितनी है और उससे गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में सूखे का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पानी की नयी धारा को लाने की तुलना में पुरानी धारा को पुनर्जीवित करना कम खर्चीला होता है।
उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि प्रकृति एवं पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना और जैव विविधता की रक्षा करते हुए उसके उपयोग के उपाय किए जाएं। इस रिपोर्ट पर विस्तृत विचार मंथन के लिए जल्द ही एक सम्मेलन बुलाया जाएगा।
गौरतलब है कि पौराणिक सरस्वती नदी को जिंदा करने के लिए हरियाणा में पहले से ही खुदाई का काम चल रहा था। हरियाणा की खट्टर सरकार कई बार केंद्र से मदद के लिए गुहार लगा चुकी है। बाद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने एक टास्क फोर्स का गठन कर इस पर शोध किए जाने का आदेश दिया था।
कुछ महीने पहले जब हरियाणा के यमुनानगर में सरस्वती नदी की खुदाई के दौरान जल निकला तो बड़े-बड़े नेता दर्शन के लिए पहुंचे। अब हरियाणा के तीन जिलों में सरस्वती नदी का प्रवाह क्षेत्र मानते हुए 260 किलोमीटर में खुदाई की तैयारी हो रही है। हिंदू ग्रंथों में सरस्वती नदी का कई जगह जिक्र मिलता है। ऋग्वेद का पहला हिस्सा इसी नदी के किनारे लिखा गया।
महाभारत में इस नदी के गायब होने की बात लिखी गई है। नासा और इसरो को अंतरिक्ष से मिले सिग्नल भी इस नदी के रूट की गवाही देते हैं।
हरियाणा में खुदाई में जो पानी मिल रहा है वो सरस्वती नदी का है या नहीं, इसकी जांच-पड़ताल अब केंद्र सरकार का टास्क फोर्स करेगी लेकिन कहा ये भी जाता है कि करीब 10 हजार साल पहले सरस्वती नदी के किनारे लोग रहते थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 1500 किलोमीटर में बहने वाली सरस्वती नदी लुप्त कैसे हो गई?
जाने-माने भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर के एस वाल्दिया की अध्यक्षता वाले एक विशेषज्ञ दल ने केन्द्रीय जल संसाधन एवं नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती को उत्तर-पश्चिम भारत में पुरावाहिकाओं की प्राक्कलन रिपोर्ट शनिवार को यहां एक कार्यक्रम में सौंपी जिसमें सरस्वती नदी के अस्तित्व में रहने की बात प्रमाणित हुई है।
इस मौके पर सुश्री भारती ने कहा कि यह विश्व की सबसे प्रामाणिक रिपोर्ट है और इससे प्रमाणित हो गया है कि गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में कभी सरस्वती नदी बहती थी जो हिमालय के आदि बद्री से निकलती थी और पश्चिम में गुजरात में हड़प्पा कालीन नगर धौलावीरा तक बहती थी।
भारती ने कहा कि वह चाहती थीं कि सरस्वती नदी का कोई अस्तित्व रहा है या नहीं, यह बात धार्मिक एवं आस्था से जुड़े विश्वास के आधार पर नहीं बल्कि ठोस वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित होनी चाहिए और उन्हें खुशी है कि विशेषज्ञ समिति में शामिल वैश्विक स्तर पर बेहद प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने व्यापक अध्ययन करके इसकी पुष्टि की है।
उन्होंने कहा कि आगे इस बारे में अध्ययन किया जाएगा कि सरस्वती की सुप्त जलधारा की क्षमता कहां कितनी है और उससे गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में सूखे का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पानी की नयी धारा को लाने की तुलना में पुरानी धारा को पुनर्जीवित करना कम खर्चीला होता है।
उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि प्रकृति एवं पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना और जैव विविधता की रक्षा करते हुए उसके उपयोग के उपाय किए जाएं। इस रिपोर्ट पर विस्तृत विचार मंथन के लिए जल्द ही एक सम्मेलन बुलाया जाएगा।
गौरतलब है कि पौराणिक सरस्वती नदी को जिंदा करने के लिए हरियाणा में पहले से ही खुदाई का काम चल रहा था। हरियाणा की खट्टर सरकार कई बार केंद्र से मदद के लिए गुहार लगा चुकी है। बाद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने एक टास्क फोर्स का गठन कर इस पर शोध किए जाने का आदेश दिया था।
कुछ महीने पहले जब हरियाणा के यमुनानगर में सरस्वती नदी की खुदाई के दौरान जल निकला तो बड़े-बड़े नेता दर्शन के लिए पहुंचे। अब हरियाणा के तीन जिलों में सरस्वती नदी का प्रवाह क्षेत्र मानते हुए 260 किलोमीटर में खुदाई की तैयारी हो रही है। हिंदू ग्रंथों में सरस्वती नदी का कई जगह जिक्र मिलता है। ऋग्वेद का पहला हिस्सा इसी नदी के किनारे लिखा गया।
महाभारत में इस नदी के गायब होने की बात लिखी गई है। नासा और इसरो को अंतरिक्ष से मिले सिग्नल भी इस नदी के रूट की गवाही देते हैं।
हरियाणा में खुदाई में जो पानी मिल रहा है वो सरस्वती नदी का है या नहीं, इसकी जांच-पड़ताल अब केंद्र सरकार का टास्क फोर्स करेगी लेकिन कहा ये भी जाता है कि करीब 10 हजार साल पहले सरस्वती नदी के किनारे लोग रहते थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 1500 किलोमीटर में बहने वाली सरस्वती नदी लुप्त कैसे हो गई?
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