जीहां, UP में मदरसों की एक बड़ी सीरीज चलाने वाले संस्थान ने अब दो साल का ‘आतंकवाद विरोधी’ कोर्स शुरू किया है. ये मदरसा बरेली आला हजरत की दरगाह से संचालित होते हैं. इसमें मुफ्ती की पढ़ाने करने वाले छात्रों को पढ़ाया जाएगा कि किस तरह आतंकवादी कुरान और हदीस की गलत व्याख्या कर उसे दहशतगर्दी के लिए इस्तेमाल करते हैं. इस कोर्स में आतंकवाद का इतिहास, भारत में आतंकवाद और आतंकवाद से इस्लाम की हुई बदनामी जैसे टॉपिक भी शामिल हैं.
ये नया कोर्स रुहेलखंड के 48 मदरसों में शुरू किया गया है लेकिन इसे धीरे-धीरे पूरे मुल्क में फैलाने की योजना है. इस तरह अब इन मदरसों के छात्र इस्लाम की तालीम के साथ-साथ दहशतगर्दी के बारे में भी पढ़ेंगे, क्योंकि दहशतगर्द इस्लाम के नाम पर ही दहशतगर्दी कर रहे हैं.
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के झंडे पर भी ‘अल्लाह’ और ‘मोहम्मद’ ही लिखा है लिहाजा मुफ्ती की पढ़ाई करने वालों को पढ़ाया जाएगा कि किस तरह आतंकवादी इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं.
इस कोर्स को शुरू करने वाले बरेली के मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी कहते हैं-
सलीम नूरी ने कहा, “आतंकवादी धर्म को अफीम की तरह इस्तेमाल करते हैं. आतंकी ट्रेनिंग कैंपों में किसी नए दहशतगर्द के जेहन में उठने वाले हर सवाल का जवाब कुरान और हदीस की गलत व्याख्या कर दिया जाता है, ताकि आतंक फैलाते वक्त उसे कोई अफसोस न हो. उन्हें बताया जाता है कि काफिर को जिंदा रहने का कोई हक नहीं है. काफिर के जान-माल दोनों पर मोमिन का अख्तियार है. अल्लाह की राह में आत्मघाती हमला जायज है. बेगुनाहों की मौत पर अफसोस की जरूरत नहीं क्योंकि वे भी तुम्हारे हाथों मरकर जन्नत जाएंगे. काफिरों का कत्ल ही जिहाद है. काफिरों से लड़कर शहीद हुए तो जन्नत में हूरें मिलेंगी.”
लेकिन आतंकवाद विरोधी इस कोर्स में इन सब मुद्दों की सही व्याख्या पढ़ाई जाएगी, ताकि मुफ्ती बनने वाले छात्र आतंकवादियों के झूठ को समझ सकें. कुरान की सूरा अल काफिरून की आयत नंबर-109 पढ़ाई जाएगी जो कहती है, “मैं उसकी इबादत नहीं करता, जिसकी तुम करते हो. और तुम उसकी इबादत नहीं करते, जिसकी मैं करता हूं…तुम्हारा धर्म तुम्हारे साथ और मेरा धर्म मेरे साथ है.” और कुरान की सूरा अल बक्रा की आयत नंबर-256 भी पढ़ाई जाएगी जो कहती है, मजहब को लेकर कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है. अल्लाह सब कुछ सुनने और जानने वाला है.
मुफ्ती सलीम नूरी कहते हैं कि हम छात्रों को कुरान की दोनों व्याख्या पढ़ाएंगे. एक वह जो सही है और दूसरी वह जो आतंकवादी बताता है. फिर हम छात्रों को यह भी बताएंगे कि इसका रेफरेंस कॉन्टेक्सट (संदर्भ) क्या है. कैसे आतंकवादी कुरान की किसी आयत के अधूरे हिस्से को आउट ऑफ कॉन्टेक्सट (संदर्भ से परे) उद्धृत कर उसका मतलब बदल देता है…यह लोगों की आंखें खोलने वाला होगा.
मजहब के नाम पर जो ब्रेन वॉश किया जाता है, उसमें बताया जाता है कि असली जिंदगी मरने के बाद हासिल होगी, जब मरने के बाद जन्नत में हूरें मिलेंगी, जो हमेशा जवान रहेंगी. इस ब्रेन वॉश का एक वाकया दुबई के एक अंग्रेजी अखबार में काम करने वाले पाकिस्तानी मूल के वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि पाकिस्तान में एक आत्मघाती हमले में एक आतंकवादी जख्मी होकर बेहोश हो गया. अस्पताल के आईसीयू में जब उसे होश आया तो अपने करीब खड़ी नर्स से पूछा कि बाकी हूरें कहां हैं? अगर इस नए कोर्स की तालीम फैलाई जाए तो जरूर लोगों को समझ में आएगा कि यह इस्लाम नहीं, सिर्फ दहशतगर्दी है.
तो मुफ्ती सलीम नूरी साहब आप पर निश्चित ही इस पर मशहूर कवि- शायर दुष्यंत कुमार के कुछ अशआर एकदम फिट बैठते हैं -
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख ।
अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख ।
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख ।
ये धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख ।
राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई,
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।
अभी तो आग़ाज़ है ये देखते हैं कि इस मुहिम के राष्ट्रवादी रास्ते पर और कितने आते हैं कि कारवां बन जाए।
- अलकनंदा सिंह
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