सोमवार, 17 सितंबर 2018

Junior Doctors: कौन कहता है कि ये …धरती पर दूसरे भगवान हैं

हम लोग अकसर यह सुनते हुए बड़े हुए हैं कि डॉक्‍टर तो धरती पर भगवान का दूसरा रूप होते हैं, परंतु होटल में शराब पीने से रोकने पर शनिवार रात को आगरा के Junior-Doctors ने जो हंगामा मचाया उसने उन्‍हें जनसामान्‍य से मिली इस उपाधि से तिलांजलि दिलवा दी।
तमाम अविश्‍वास अर्जित करके आमजन के दिलों से तो डॉक्‍टर्स पहले ही उतर चुके हैं, अब वे किसी भी स्‍तर का अपराध करने से नहीं चूक रहे। आगरा एस. एन. मेडीकल कॉलेज के Junior-Doctors ने तो चार कदम आगे बढ़कर ये साबित भी कर दिया।
यूं तो चिकित्‍सा क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों से पेशेगत संवेदनशीलता का अभाव और अधिक से अधिक पैसा कमाने की लिप्‍सा इस कदर सिर चढ़कर बोली है कि डॉक्‍टर अब भगवान तो दूर, उल्‍टे कसाई की भूमिका में आ गये हैं। निजी क्षेत्र के डॉक्‍टर्स की बात तो जाने दीजिये, वहां तो एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक किसी मरीज की जि़ंदगी पैसों से तोली जाती है।
बाकायदा पैकेज पर चल रहे निजी क्षेत्र के अस्‍पतालों को मरीज इंसान कम, कमर्शियल सब्‍जेक्‍ट अधिक नज़र आता है। निजी क्षेत्र में लोगों की सेहत का ”व्‍यापार” चला रहे इन डॉक्‍टर्स के अधिकारों और व्‍यापारिक हितों के लिए तो पूरी की पूरी एक संस्‍था है ”इंडियन मेडीकल ऐसोसिएशन” परंतु कभी इनके कर्तव्‍यों को लेकर या मानवीय हितों के लिए इस संस्‍था ने कुछ भी किया हो, ऐसा उदाहरण मेरी तो समझ में नहीं आता।
विश्‍वास ना हो तो किसी भी प्राइवेट अस्‍पताल, नर्सिंग होम, मल्‍टीस्‍पेशिएलिटी हॉस्‍पीटल जाकर वहां कतारबद्ध बैठे मरीजों और उनके तीमारदारों से पूछ कर देख लीजिए, पूरा व्‍यापार समझ में आ जाऐगा। खालिस गिव एंड टेक पर टिका निजी चिकित्‍सा क्षेत्र का ये उसूल कि जैसा पैसा दोगे, वैसा ही इलाज़ मिलेगा। इस पर हालांकि काफी कुछ पहले भी लिखा जा चुका है परंतु फिलहाल मामला आगरा मेडीकल कॉलेज के जूनियर डॉक्‍टर्स के आततायी होने का है।
डॉक्‍टरों के आतंक की हालिया घटना के अनुसार शनिवार देर रात आगरा के अशोका होटल में एक साथी डॉक्‍टर का जन्‍मदिन मनाने गए जूनियर डॉक्‍टर्स ने पहले तो बार बंद होने पर हंगामा किया, होटल स्‍टाफ से मारपीट की और फिर सूचना पर पहुंची पुलिस के साथ भी मारपीट कर पुलिसकर्मियों की वर्दी तक फाड़ दी व उनके स्‍टार्स नोंच दिए। इसके बाद गिरफ्तार किए गए जूनियर डॉक्‍टर्स को छुड़ाने के लिए दबाव बनाने को कल यानि रविवार के दिन उनके साथी डॉक्‍टर्स ने नारेबाजी करते हुए सैकड़ों मरीजों को मेडीकल कॉलेज से बाहर निकाल दिया। मरीज फुटनाथ पर सोने को विवश रहे, वे गिड़गिड़ाते रहे। इसी बीच एक बच्‍चे ने दम तोड़ दिया किंतु डॉक्‍टर्स नहीं पसीजे।
इतने पर भी जी नहीं भरा तो हड़ताल कर दी। अभी तक 25 जूनियर डॉक्‍टर्स जेल में हैं…आगे क्‍या होगा पता नहीं, परंतु असंवेदनशील जूनियर डॉक्‍टर्स की इस हरकत ने ये तो पक्‍का कर ही दिया कि अब ये रिवाज़ हर जनसामान्‍य पर खासकर उस वर्ग पर जो सरकारी चिकित्‍सा के भरोसे है, के लिए जानलेवा हो रहा है।
इससे पहले जुलाई में मानदेय को दोगना कर 65000 करने को लेकर पूरे मध्‍यप्रदेश के जूनियर डॉक्‍टर्स हड़ताल पर गए थे, इसी तरह बीआरडी मेडीकल कॉलेज गोरखपुर के जूनियर डॉक्‍टर्स ने सजर्री के औज़ारों से ही मरीजों व उनके तीमारदारों पर जानलेवा हमला कर दिया था…ये तो अभी-अभी के उदाहरण हैं।
इन जूनियर डॉक्‍टर्स के लिए ना तो एस्‍मा (आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून) का कोई अर्थ रह गया है और ना ही उस शपथ (Hippocratic Oath) का जो ज़िंदगी बचाने के लिए दिलवाई जाती है।
जूनियर डॉक्‍टर्स में स्‍थापित हो चुकी स्‍वार्थी प्रवृत्‍ति अब आपराधिक रूप में हमारे सामने है, इस पराकाष्‍ठा से हमें ही जूझना होगा। इसके लिए जरूरी है कि इन छद्म अपराधियों के लिए स्‍थापित परिभाषाएं बदली जाएं।
इन भगवानों की बदरंग सूरत को उजागर करके जनकल्‍याण के लिए नासूर बने इस पेशे की स्‍याह तस्‍वीर का पूरा सच सामने आना चाहिए वरना धरती के कथित भगवान कसाईखाने की मानिंद हर रोज हमारे टैक्‍स से हमें ही जिबह करते रहेंगे और हम…मुंह टापते रह जाऐंगे?
सोचना तो होगा ही…कि आगरा हो या गोरखपुर अथवा मध्‍यप्रदेश की घटनायें अब आगे और ना होने पायें।
-अलकनंदा सिंह

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

My Lord, आप भी सोचिए कि मॉब लिंचिंग पर कानून की जरूरत ही क्‍यों पड़ी ?

सुप्रीम कोर्ट अकसर गंभीर मामलों पर ”स्‍वत: संज्ञान” लेता रहता है मगर आपने कभी सुना है कि उसने न्‍यायव्‍यवस्‍था के भीतर पनप चुके दलदल की बावत स्‍वत: संज्ञान लिया हो।
मुकद्दमों के अंबार, तारीख पर तारीख, विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा, अपीलों के चक्रव्‍यूह से जूझते आम आदमी की व्‍यथा पर उसने कभी स्‍वत: संज्ञान लिया हो। ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं आता। कभी सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश क्‍यों नहीं दिया कि इस ”निश्‍चित समय” में ” इतने मुकद्दमे” हर हाल में निपटा ही दिये जाएं और नहीं निपटाने पर कोर्ट के सम्‍माननीय न्‍यायाधिकारियों को ”ठोस कारण बजाने के लिए तैयार” रहना होगा…या सुप्रीम कोर्ट ने कभी इस बावत स्‍वत: संज्ञान लिया कि क्‍यों उसके आदेश ज़मीन पर नहीं उतर पाते, क्‍यों वे सिर्फ बड़े लोगों और सरकारों द्वारा ”आड़” लेने के काम आते हैं।
अपनी इस ”स्‍वत:संज्ञानी” प्रवृत्‍ति की ओर सुप्रीम कोर्ट ने कभी नहीं सोचा, वरना जिस मॉब लिंचिंग के लिए वह सरकारों से कानून बनाने को कह रहा है, वह और कुछ नहीं स्‍वयं न्‍यायव्‍यवस्‍था के भीतर पैदा हो चुकी सड़ांध ही है जिसने कानून के राज पर से विश्‍वास हटा दिया है और लोग भीड़तंत्र के ज़रिए अपना फैसला स्‍वयं करने लगे हैं।
भीड़ में इकठ्ठे हुए लोग अब अपना आक्रोश दबा नहीं पा रहे बल्‍कि निकाल रहे हैं, कानूनों के अंबार में उन्हें न्‍याय की आशा अपने लिए कहीं दिखाई ही नहीं देती। जेलों में बढ़ती भीड़ न्‍याय व्‍यवस्‍था को अपने भीतर झांकने की चेतावनी देती रही है मगर इसे अनसुना ही किया जाता रहा। काश! इस अराजक स्‍थिति की ओर कभी सुप्रीम कोर्ट ने स्‍वत: संज्ञान लिया होता तो लोगों में आशा बंधती कि निश्‍चित समय में उन्‍हें न्‍याय मिल जाएगा और अपराधी को सजा।
कल जब सुप्रीमकोर्ट मॉब लिंचिंग पर अपने कथित ”कड़े-रुख” से सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा था, ठीक उसी समय बिहार के बेगूसराय में भीड़ ने चार हथियारबंद अपराधियों को उनके किये की सजा दे भी दी। ना तारीख… ना गवाह और फैसला ऑन द स्‍पॉट। यहां भीड़ ने उन चार में से दो को तो पीट-पीट कर ही मार डाला, तीसरे को पुलिस बचाकर ले गई और चौथा फरार हो गया। ये चारों बदमाश दो मोटरसाइकिलों पर हथियार लहराते हुए एक छात्रा को खोजते-खोजते न सिर्फ स्‍कूल तक जा पहुंचे बल्‍कि टीचर की कनपटी पर कट्टा रखकर धमकाने लगे। यह माज़रा देख बच्‍चों ने शोर मचाया तो पास ही खेतों में काम कर रही मजदूर-किसान महिलायें आईं और बदमाशों को घेर लिया। फिर पुरुषों द्वारा बदमाशों की पिटाई कर उन्‍हें उनके अंजाम तक पहुंचा दिया गया।
अब करते रहिये मॉब लिंचिंग पर बहस दर बहस, तलाशते रहिए भीड़ में से उन 8-10 लोगों को और ढूंढ़ते रहिए गवाह। अगर कानून बनाना ही है तो मॉब लिंचिंग से पहले स्‍वयं न्‍यायव्‍यवस्‍था के ”अलंबरदारों” को अपने लिए बनाना होगा ताकि आमजन में यह विश्‍वास जाग सके कि कोर्ट आधी रात को सिर्फ ”पहुंच वालों” के लिए ही नहीं खुलतीं बल्‍कि उन आमजनों के मामले निपटाने को भी गंभीरता से निपटाती हैं जो सालोंसाल कोर्ट-वकील-गवाह-तारीख-फैसला और फिर से अपील-तारीख-फैसला में ज़िंदगी जाया कर देते हैं। कई बार तो पीढ़ियां हो जाती हैं मगर न्‍याय नहीं मिलता, विचाराधीन रहते हुए ही जेलों में ही मर-खप जाते हैं।
यहां भीड़ के इस वहशियाने तरीके को जायज नहीं ठहरा जा सकता मगर आखिर ये अराजक स्थिति आई कैसे कि कानून पर विश्‍वास की बजाय लोग स्‍वयं फैसला करने लगे हैं। उन्‍हें कोर्ट के चक्रव्‍यूह से ज्‍यादा आसान लग रहा है भीड़ बनकर मामले को ‘निपटाना’। दरअसल जबतक हम समस्‍या की जड़ तक नहीं पहुंचेंगे तब तक इसके लिए कितने भी कानून बना लिए जायें, कुछ भी हासिल नहीं होने वाला क्‍योंकि कानून बना दिये जाने के बाद भी न्‍याय के लिए आना तो कोर्ट की शरण में ही पड़ेगा ना।
कोर्ट तक पहुंचने की लंबी प्रक्रिया और उसमें भी अगर सुबूत ना मिलें (या तलाशे ना जायें) तो अपराधी के हित में फैसला आने जैसी स्‍थितियां ही भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने का कारक बनीं हैं।
हकीकत तो ये है कि सुप्रीम कोर्ट की आत्‍ममुग्‍धता उसे न्‍याय व्‍यवस्‍था की इस सड़ांध को देखने ही नहीं दे रही। ये आत्‍ममुग्‍धता ही है कि सरकारों के खिलाफ आदेश पर आदेश देने में तो सुप्रीम कोर्ट रातदिन एक किये है मगर चरमराई न्‍याय व्‍यवस्‍था उसे दिखाई नहीं देती, और अब यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के अधिकांश आदेश सरकारी फाइलों में तो रहते हैं, ज़मीन पर दिखाई नहीं देते।
-अलकनंदा सिंह

बुधवार, 5 सितंबर 2018

चेतन भगत ने नए अंदाज में किया नई किताब The Girl in Room 105 का खुलासा

चेतन भगत उन चंद युवा लेखकों में से हैं जो जानते हैं कि चर्चा में बने रहने के लिए कब, क्या और कैसे करना चाहिए। पिछले दिनों जन्माष्टमी पर उन्होंने अनोखे अंदाज में यह खुलासा किया कि उनकी नई किताब द गर्ल इन रूम 105 (The Girl in Room 105) के पात्र का नाम भी कान्हा के ही नाम पर है।
दरअसल, चेतन के हर उपन्यास में नायक का नाम श्रीकृष्ण के पर्यायवाची नाम पर है।
चेतन ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी कि हरि (five point someone), श्याम (one night @ the call center), गोविंद(3 mistakes of my life), क्रिश (2 states), गोपाल(Revolution 2020), माधव (Half Girlfriend) राधिका, ब्रजेश (One Indian Girl) और अब केशव…. मेरी सारी किताबों के नायक कृष्ण हैं, जन्माष्‍टमी की शुभकामनाएं…
अपनी नई किताब ‘द गर्ल इन रूम 105’ के लिए अपना चिरपरिचित बाजार तैयार करने के लिए वे इन हथकंडों को भी अपना रहे हैं। दरअसल अपने पाठकों से किताब का परिचय कराने के लिए चेतन ने बाकायदा इसका ट्रेलर लांच किया है। अभिनेता विक्रांत मैसी इस ट्रेलर में अपनी कहानी बता रहे हैं।
माना जा रहा है कि इस सबके पीछे फिल्म निर्माता मोहित सूरी का हाथ है। कहीं इस पर वेब सीरिज या फिल्म बनाने का इरादा तो नहीं है… पाठक समझदार हैं और वे चेतन से इस संबंध में तीखे सवाल भी कर रहे हैं। पाठकों ने चेतन को बधाई दी है तो कुछ ने उनके मार्केट स्ट्रेटजी पर तंज भी कसे हैं।
ट्रेलर देखने के बाद भगत का यह उपन्यास उनके पिछले रोमांटिक उपन्यास की तरह नहीं नजर आ रहा है। उन्होंने इसे एक अलग टैगलाइन ‘एन अनलव स्टोरी’ दी है।
क्या है कहानी
चेतन के इस उपन्यास की कथा केशव राजपुरोहित (निसंदेह, आईआईटी के पूर्व) के आसपास घूमती है, जो एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाता है और अपनी पूर्व गर्लफ्रेंड जारा को भुलाने की कोशिश कर रहा है।
जारा एक कश्मीरी मुस्लिम लड़की है, जबकि केशव संघ के एक बड़े नेता का बेटा है। कहानी का प्लॉट कश्मीर और आतंकवाद के आसपास का नजर आता है। चेतन ने अपनी किताब के बारे में लोगों के सवालों का जवाब देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। यह भी बताया कि पहले की तरह अपनी कहानी के लिए मुख्य किरदार का नाम कृष्ण के नाम पर ही रखा है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि उनकी किताब के ट्रेलर को काफी पसंद किया जा रहा है। यू-ट्यूब पर जारी इस ट्रेलर के नीचे आ रहे कमेंट मिलेजुले हैं। यहां एक तरह की जंग भी मिल रही है और चेतन को पसंद करने वाले पाठकों का प्यार भी…
यह किताब अक्टूबर में बाजार में आ जाएगी। लेखक का दावा है कि यह ‘चेतन भगत की चिरपरिचित लव स्टोरी से थोड़ी अलग है।

-Alaknanda Singh