ताजिकिस्तान के वाशिंदे और पूरी दुनिया के दार्शनिक कवि जलालुद्दीन रूमी का आज जन्मदिन है, इस अवसर पर Brad Gooch के प्रयासों की बात किए बिना कवि के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकती।
फारसी के मशहूर शायर और सूफी दिग्गज जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी की लोकप्रियता इतनी है कि 800 सालों बाद भी कविता प्रेमियों के बीच वो सबसे मशहूर कवि माने जा रहे हैं। रूमी का जन्म 1207 में ताजिकिस्तान के एक गांव में हुआ था। उनके जन्म के 800 से ज़्यादा साल बाद भी अमेरिका में उनकी रूबाईयों और ग़ज़लों की किताबों की लाखों प्रतियां बिक रही हैं।
सारी दुनिया के एक बड़े भूभाग पर दानव की तरह फैल चुकी भूख के लिए कभी रूमी ने कहा था कि -
''भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है''
भूख सब दवाओं की है सुल्तान ,खबरदार
उसे कलेजे से लगा के रख, मत दुत्कार।
बेस्वाद सब चीजें भूख लगने पर देती मजा,
मगर पकवान सारे बिन भूख हो जाते बेमजा।
कभी कोई बन्दा भूसे की रोटी था खा रहा
पूछा किसी ने तुझे इसमें कैसे मजा आ रहा।
बोला कि सबर से भूख दुगुनी हो जाती है
भूसे की रोटी मेरे लिये हलवा हो जाती है।''
रूमी की जीवनी लिख रहे ब्रैड गूच कहते हैं, "रूमी का सभी संस्कृतियों पर असर दिखता है।" गूच ने रूमी की जीवनी पर काम करने के लिए उन तमाम मुल्कों की यात्रा की है, जो किसी ना किसी रूप में रूमी से जुड़े रहे।
गूच कहते हैं, "रूमी का जीवन 2500 मील लंबे इलाके में फैला हुआ है। रूमी का जन्म ताजिकिस्तान के वख़्श गांव में हुआ। इसके बाद वे उज्बेकिस्तान में समरकंद, फिर ईरान और सीरिया गए। रूमी ने युवावस्था में सीरिया (शाम) के दमिश्क और एलेप्पो में अपनी पढ़ाई पूरी की।" इसके बाद उन्होंने जीवन के 50 सालों तक तुर्की के कोन्या को अपना ठिकाना बनाया और वहीं रूमी का निधन हुआ था।
कुछ किस्से सुने अनसुने से
ऐसा बताया जाता है कि एक रोज रूमी के किसी मुरीद ने कहा कि लोग इस बात पर एतराज करते हैं कि मसनवी को कुरान कहा जा रहा है तो रूमी के बेटे सुल्तान वलेद ने टोंक दिया कि असल में मसनवी कुरान नहीं कुरान की टीका है। तो रूमी थोड़ी देर तो चुप रहे फ़िर कहने लगे,” कुरान क्यों नहीं है, कुत्ते? कुरान क्यों नहीं है, गधे? अबे रंडी के बिरादर, कुरान क्यों नहीं है मसनवी? ये जानो कि रसूलों और फ़कीरों के कलाम के बरतन में खुदाई राज के अलावा और कुछ नहीं होता। और अल्लाह की बात उनके पाक दिलों से होकर उनकी जुबान के जरिये बहती है।”
माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है
रूमी में एक तरफ़ तो माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है; और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले मोती हैं। रुमी सिर्फ़ कवि ही नहीं हैं , वे सूफ़ी हैं, वे आशिक हैं, वे ज्ञानी हैं और सब से बढ़कर वे गुरु हैं।
हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को।
और यह भी:
पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके।
रूमी की नजर में इंसाफ़-
इंसाफ़ क्या? किसी को सही जगह देना
जुल्म क्या है? उस को गलत जगह देना।
बनाया जो भी खुदा ने बेकार नहीं कुछ है
गुस्सा है, जज्बा है, मक्कारी है, नसीहत है।
इन में से कोई चीज अच्छी नहीं पूरी तरह,
इनमें से कोई चीज बुरी नहीं पूरी तरह।
आशिक और माशूक के रिश्ते को भी रूमी कुछ इस तरह कहते हैं।
अपने आशिक को माशूक़ ने बुलाया सामने
ख़त निकाला और पढ़ने लगा उसकी शान में
तारीफ़ दर तारीफ़ की ख़त में थी शाएरी
बस गिड़गिड़ाना-रोना और मिन्नत-लाचारी
माशूक़ बोली अगर ये तू मेरे लिए लाया
विसाल के वक़त उमर कर रहा है ज़ाया
मैं हाज़िर हूं और तुम कर रहे ख़त बख़ानी
क्या यही है सच्चे आशिक़ों की निशानी?
जीवन दर्शन में रूमी के फलसफे पूरी दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। जैसे कि-
रूमी ने एक दिन अपने शिष्यों को एक दफा कहा कि तुम मेरे साथ आओ, तुम कैसे हो, मैं तुम्हें बताता हूं। वह अपने शिष्यों को ले गया एक खेत में, वहां आठ बड़े-बड़े गङ्ढे खुदे थे, सारा खेत खराब हो गया था। रूमी ने कहा, देखो इन गङ्ढों को। यह किसान पागल है, यह कुआं खोदना चाहता है, यह चार-आठ हाथ गङ्ढा खोदता है, फिर यह सोच कर कि यहां पानी नहीं निकलता, दूसरा खोदता है। चार हाथ, आठ हाथ खोद कर, सोच कर कि यहां पानी नहीं निकलता, यह आठ गङ्ढे खोद चुका है। पूरा खेत भी खराब हो गया, अभी कुआं नहीं बना। अगर यह एक गङ्ढे पर इतनी मेहनत करता, जो इसने आठ गङ्ढों पर की है, तो पानी निश्चित मिल गया होता।
संकल्प करें, आप कुछ खोद कर लाएं, तो फिर हम और गहरी खुदाई कर सकें। स्मरण रखें कि ध्यान एक भीतरी खुदाई है, जिसको सतत जारी रखना जरूरी है। रूमी हमारे जीवन के उन क्षणों को भी छू जाते हैं जो हम अपनी आत्मा तक से छुपाए रखते हैं, संभवत: इसीलिए वे आज तक इतने करीब हैं जन ज जन के।
- अलकनंदा सिंह
फारसी के मशहूर शायर और सूफी दिग्गज जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी की लोकप्रियता इतनी है कि 800 सालों बाद भी कविता प्रेमियों के बीच वो सबसे मशहूर कवि माने जा रहे हैं। रूमी का जन्म 1207 में ताजिकिस्तान के एक गांव में हुआ था। उनके जन्म के 800 से ज़्यादा साल बाद भी अमेरिका में उनकी रूबाईयों और ग़ज़लों की किताबों की लाखों प्रतियां बिक रही हैं।
सारी दुनिया के एक बड़े भूभाग पर दानव की तरह फैल चुकी भूख के लिए कभी रूमी ने कहा था कि -
''भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है''
भूख सब दवाओं की है सुल्तान ,खबरदार
उसे कलेजे से लगा के रख, मत दुत्कार।
बेस्वाद सब चीजें भूख लगने पर देती मजा,
मगर पकवान सारे बिन भूख हो जाते बेमजा।
कभी कोई बन्दा भूसे की रोटी था खा रहा
पूछा किसी ने तुझे इसमें कैसे मजा आ रहा।
बोला कि सबर से भूख दुगुनी हो जाती है
भूसे की रोटी मेरे लिये हलवा हो जाती है।''
रूमी की जीवनी लिख रहे ब्रैड गूच कहते हैं, "रूमी का सभी संस्कृतियों पर असर दिखता है।" गूच ने रूमी की जीवनी पर काम करने के लिए उन तमाम मुल्कों की यात्रा की है, जो किसी ना किसी रूप में रूमी से जुड़े रहे।
गूच कहते हैं, "रूमी का जीवन 2500 मील लंबे इलाके में फैला हुआ है। रूमी का जन्म ताजिकिस्तान के वख़्श गांव में हुआ। इसके बाद वे उज्बेकिस्तान में समरकंद, फिर ईरान और सीरिया गए। रूमी ने युवावस्था में सीरिया (शाम) के दमिश्क और एलेप्पो में अपनी पढ़ाई पूरी की।" इसके बाद उन्होंने जीवन के 50 सालों तक तुर्की के कोन्या को अपना ठिकाना बनाया और वहीं रूमी का निधन हुआ था।
कुछ किस्से सुने अनसुने से
ऐसा बताया जाता है कि एक रोज रूमी के किसी मुरीद ने कहा कि लोग इस बात पर एतराज करते हैं कि मसनवी को कुरान कहा जा रहा है तो रूमी के बेटे सुल्तान वलेद ने टोंक दिया कि असल में मसनवी कुरान नहीं कुरान की टीका है। तो रूमी थोड़ी देर तो चुप रहे फ़िर कहने लगे,” कुरान क्यों नहीं है, कुत्ते? कुरान क्यों नहीं है, गधे? अबे रंडी के बिरादर, कुरान क्यों नहीं है मसनवी? ये जानो कि रसूलों और फ़कीरों के कलाम के बरतन में खुदाई राज के अलावा और कुछ नहीं होता। और अल्लाह की बात उनके पाक दिलों से होकर उनकी जुबान के जरिये बहती है।”
माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है
रूमी में एक तरफ़ तो माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है; और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले मोती हैं। रुमी सिर्फ़ कवि ही नहीं हैं , वे सूफ़ी हैं, वे आशिक हैं, वे ज्ञानी हैं और सब से बढ़कर वे गुरु हैं।
हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को।
और यह भी:
पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके।
रूमी की नजर में इंसाफ़-
इंसाफ़ क्या? किसी को सही जगह देना
जुल्म क्या है? उस को गलत जगह देना।
बनाया जो भी खुदा ने बेकार नहीं कुछ है
गुस्सा है, जज्बा है, मक्कारी है, नसीहत है।
इन में से कोई चीज अच्छी नहीं पूरी तरह,
इनमें से कोई चीज बुरी नहीं पूरी तरह।
आशिक और माशूक के रिश्ते को भी रूमी कुछ इस तरह कहते हैं।
अपने आशिक को माशूक़ ने बुलाया सामने
ख़त निकाला और पढ़ने लगा उसकी शान में
तारीफ़ दर तारीफ़ की ख़त में थी शाएरी
बस गिड़गिड़ाना-रोना और मिन्नत-लाचारी
माशूक़ बोली अगर ये तू मेरे लिए लाया
विसाल के वक़त उमर कर रहा है ज़ाया
मैं हाज़िर हूं और तुम कर रहे ख़त बख़ानी
क्या यही है सच्चे आशिक़ों की निशानी?
जीवन दर्शन में रूमी के फलसफे पूरी दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। जैसे कि-
रूमी ने एक दिन अपने शिष्यों को एक दफा कहा कि तुम मेरे साथ आओ, तुम कैसे हो, मैं तुम्हें बताता हूं। वह अपने शिष्यों को ले गया एक खेत में, वहां आठ बड़े-बड़े गङ्ढे खुदे थे, सारा खेत खराब हो गया था। रूमी ने कहा, देखो इन गङ्ढों को। यह किसान पागल है, यह कुआं खोदना चाहता है, यह चार-आठ हाथ गङ्ढा खोदता है, फिर यह सोच कर कि यहां पानी नहीं निकलता, दूसरा खोदता है। चार हाथ, आठ हाथ खोद कर, सोच कर कि यहां पानी नहीं निकलता, यह आठ गङ्ढे खोद चुका है। पूरा खेत भी खराब हो गया, अभी कुआं नहीं बना। अगर यह एक गङ्ढे पर इतनी मेहनत करता, जो इसने आठ गङ्ढों पर की है, तो पानी निश्चित मिल गया होता।
संकल्प करें, आप कुछ खोद कर लाएं, तो फिर हम और गहरी खुदाई कर सकें। स्मरण रखें कि ध्यान एक भीतरी खुदाई है, जिसको सतत जारी रखना जरूरी है। रूमी हमारे जीवन के उन क्षणों को भी छू जाते हैं जो हम अपनी आत्मा तक से छुपाए रखते हैं, संभवत: इसीलिए वे आज तक इतने करीब हैं जन ज जन के।
- अलकनंदा सिंह
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