स तन्मयो ह्यमृत ईशसंस्थो ज्ञ: सर्वगो भुवनस्यास्य गोप्ता।
य ईशेस्य जगतो नित्यमेव नान्यो हेतुर्विद्यत ईशनाय।।
यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै ।
तं ह देवमात्मबुद्धिप्रकाशं मुमुक्षुर्वै शरणमहं प्रपद्ये ।।
---'वह विश्व की आत्मा है ; वह अमर है ; उसीका शासकत्व है ; वह सर्वज्ञ, सर्वगत और इस भुवन का रक्षक है, जो सर्वदा इस जगत् का शासन करता है; क्योंकि इस जगत् का चिरन्तन शासन करने के लिए और कोई समर्थ नहीं है।'
---'जिसने सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा (सार्वभौम चेतना) को उत्पन्न किया और जिसने उसके लिए वेदों को प्रवृत्त किया, आत्मबुद्धि को प्रकाशित करने वाले उस देव की मैं मुमुक्षु शरण ग्रहण करता हूं।'
साभार: श्वेताश्वतरोपनिषद् ।। 6 । 17-8 ।।
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