सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं, श्रममूलं च वैभवम्।
न्यायमूलं सुराज्यं स्यात्, संघमूलं महाबलम्॥
इस सुभाषित के मुताबिक शक्ति स्वतन्त्रता की जड़ है, मेहनत धन-दौलत की जड़ है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड़ है। यह बात जितनी किसी समाज या संगठन विशेष के लिए उचित है, उससे कहीं अधिक किसी राष्ट्र के लिए उचित बैठती है।
निश्चित ही एक राष्ट्र तीन शक्तियों के अधीन होता है। ये शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक-दूसरे से लाभान्वित होकर अपने कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती रहती हैं। विस्तार से कहें तो पहली शक्ति है मंत्र अर्थात् योजना- यानि परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है। दूसरी शक्ति है- प्रभाव अर्थात् राजोचित शक्ति जिसके कारण तेजी से कार्य का आरम्भ होता है और तीसरी शक्ति है- उत्साह अर्थात् उत्साह पूर्वक उद्यम करने से कार्य सिद्ध होता है ।
2013 के आखिरी दिनों में सोशल मीडिया पर एक कैलेंडर सन् 1947 का बड़ी तेजी से दौड़ाया गया जिसकी सारी तारीखें हूबहू 2014 की तारीखों जैसी थीं। सोशल मीडिया पर कैलेंडर दौड़ाने वालों ने इतिहास को एक बार फिर हमारे सामने ला दिया कि जो बदलाव 1947 के बाद देश में आया अब 2014 में भी वैसा ही होता नज़र आयेगा और ऐसा ही होता भी दिख रहा है।
साल की शुरुआत में ही यानि 5 जनवरी को पूर्णस्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के उपयोग से GSLV-D-5 का प्रक्षेपण हो या कल 7 जनवरी को पृथ्वी-2 परमाणु मिसाइल का सफल परीक्षण, देश के नये अतिआधुनिक वर्चस्व की ओर बढ़ते कदम हैं जिन्होंने वर्षों पूर्व बताये गये उक्त सुभाषित के अनुसार स्वयंसिद्ध कर दिया। बतौर एक संप्रभु राष्ट्र देश के खाते में उपलब्धियों का आगमन तो हो ही चुका है वरना क्या ये संभव था कि कल तक जो एक आम नागरिक था आज वो मुख्यमंत्री है या फिर क्या ये संभव था कि सवा दो दशक तक जिस व्यक्ति को कत्लोगारद करने वाला बताया जाता रहा हो वह देश के उन्नयन के लिए न केवल अपने राज्य का विकसित मॉडल पेश करेगा बल्कि उसकी नीतियों की सराहना करने को विरोधी भी बाध्य होंगे अथवा सत्तारूढ़ पार्टी को अब स्वआंकलन करने को बाध्य होना पड़ेगा। अंतत: हम सुभाषित में बताये गये.... 'न्यायमूलं सुराज्यं स्यात्, संघमूलं महाबलम्' को इस तरह सच होते देख रहे हैं। इसके अलावा यदि हम कैलेंडर की तिथियों को भी भविष्य का आधार मानें तो देश के नये ,साफ-सुथरे और मजबूत कलेवर को हम आने वाले महीनों में देखेंगे।
यूं तो वर्ष के उत्तरार्द्ध में ही इसके पूरे दर्शन होंगे लेकिन उपर्युक्त सुभाषित के तीन बिंदुओं में से प्रथम बिंदु तो संपन्न हो ही गया है। शेष दो के लिऐ देश पूरे वर्षभर इंतज़ार करेगा। निश्चित ही 'इसरो' और 'डीआरडीओ' ने अपनी उपलब्धियों से शुभ की शुरुआत कर दी है। इन दोनों ही संस्थानों की तकनीकी स्वतंत्रता ने देश को शक्तिशाली बनाया है...जिससे राष्ट्र का वैभव बढ़ेगा...और इस तरह वर्ष के अंत तक हम अपने देश को एक नये जमाने के नये राष्ट्र के रूप में देखेंगे।
- अलकनंदा सिंह
न्यायमूलं सुराज्यं स्यात्, संघमूलं महाबलम्॥
इस सुभाषित के मुताबिक शक्ति स्वतन्त्रता की जड़ है, मेहनत धन-दौलत की जड़ है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड़ है। यह बात जितनी किसी समाज या संगठन विशेष के लिए उचित है, उससे कहीं अधिक किसी राष्ट्र के लिए उचित बैठती है।
निश्चित ही एक राष्ट्र तीन शक्तियों के अधीन होता है। ये शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक-दूसरे से लाभान्वित होकर अपने कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती रहती हैं। विस्तार से कहें तो पहली शक्ति है मंत्र अर्थात् योजना- यानि परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है। दूसरी शक्ति है- प्रभाव अर्थात् राजोचित शक्ति जिसके कारण तेजी से कार्य का आरम्भ होता है और तीसरी शक्ति है- उत्साह अर्थात् उत्साह पूर्वक उद्यम करने से कार्य सिद्ध होता है ।
2013 के आखिरी दिनों में सोशल मीडिया पर एक कैलेंडर सन् 1947 का बड़ी तेजी से दौड़ाया गया जिसकी सारी तारीखें हूबहू 2014 की तारीखों जैसी थीं। सोशल मीडिया पर कैलेंडर दौड़ाने वालों ने इतिहास को एक बार फिर हमारे सामने ला दिया कि जो बदलाव 1947 के बाद देश में आया अब 2014 में भी वैसा ही होता नज़र आयेगा और ऐसा ही होता भी दिख रहा है।
साल की शुरुआत में ही यानि 5 जनवरी को पूर्णस्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के उपयोग से GSLV-D-5 का प्रक्षेपण हो या कल 7 जनवरी को पृथ्वी-2 परमाणु मिसाइल का सफल परीक्षण, देश के नये अतिआधुनिक वर्चस्व की ओर बढ़ते कदम हैं जिन्होंने वर्षों पूर्व बताये गये उक्त सुभाषित के अनुसार स्वयंसिद्ध कर दिया। बतौर एक संप्रभु राष्ट्र देश के खाते में उपलब्धियों का आगमन तो हो ही चुका है वरना क्या ये संभव था कि कल तक जो एक आम नागरिक था आज वो मुख्यमंत्री है या फिर क्या ये संभव था कि सवा दो दशक तक जिस व्यक्ति को कत्लोगारद करने वाला बताया जाता रहा हो वह देश के उन्नयन के लिए न केवल अपने राज्य का विकसित मॉडल पेश करेगा बल्कि उसकी नीतियों की सराहना करने को विरोधी भी बाध्य होंगे अथवा सत्तारूढ़ पार्टी को अब स्वआंकलन करने को बाध्य होना पड़ेगा। अंतत: हम सुभाषित में बताये गये.... 'न्यायमूलं सुराज्यं स्यात्, संघमूलं महाबलम्' को इस तरह सच होते देख रहे हैं। इसके अलावा यदि हम कैलेंडर की तिथियों को भी भविष्य का आधार मानें तो देश के नये ,साफ-सुथरे और मजबूत कलेवर को हम आने वाले महीनों में देखेंगे।
यूं तो वर्ष के उत्तरार्द्ध में ही इसके पूरे दर्शन होंगे लेकिन उपर्युक्त सुभाषित के तीन बिंदुओं में से प्रथम बिंदु तो संपन्न हो ही गया है। शेष दो के लिऐ देश पूरे वर्षभर इंतज़ार करेगा। निश्चित ही 'इसरो' और 'डीआरडीओ' ने अपनी उपलब्धियों से शुभ की शुरुआत कर दी है। इन दोनों ही संस्थानों की तकनीकी स्वतंत्रता ने देश को शक्तिशाली बनाया है...जिससे राष्ट्र का वैभव बढ़ेगा...और इस तरह वर्ष के अंत तक हम अपने देश को एक नये जमाने के नये राष्ट्र के रूप में देखेंगे।
- अलकनंदा सिंह
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