बीते 2013 में राजनैतिक उथलपुथल और सरोकारों से लड़ते देश के मतदाताओं ने
जहां निष्ठाओं से लेकर भाग्यों के बदलने को देखा, वहीं जाते जाते 2013
राजनैतिज्ञों के हाथों में कुछ ऐसी मजबूरियां थमा गया कि वे कुंए और खाई
के बीच से ही रास्ता निकालने को विवश हो गये।
अब जबकि 2014 आ गया तब पूरे देश में सरकारों और विपक्षियों द्वारा अचानक अपनी 'जनता' पर मेहरबानियां लुटाई जा रही हैं। अचानक से ऐसा लग रहा है कि शासक वर्ग में दयालुता का महासागर फूट पड़ा है..चारों ओर उत्सवी माहौल है।
राजनैतिक रंगमंच पर रहमदिली का प्रदर्शन जोरों पर है, सब के सब नायक बनने की होड़ लगाये बैठे हैं। भाजपा प्रोजेक्टेड नरेंद्र मोदी के गुड गवर्नेंस के प्रयोग से चलकर अरविंद केजरीवाल के रूटबेस्ड गवर्नेंस तक के प्रयोग इसी रंगमंच पर किये जा रहे हैं। इसी बीच में कभी कभी तिलूले की तरह तीसरे मोर्चे की भी आमद इसी रंगमंच पर तैरती हुई आ जाती है।
इन सबके बीच जो दृष्टा है, वही मतदाता आज कन्फ्यूज्ड है। मतदाता को जो अभीतक मंदबुद्धि, कम याददाश्त वाला समझे बैठे थे उनके लिए केजरीवाल ने नमूना सामने रख दिया सबक के लिए, फिर भी कुछ पारंपरिक जोड़ तोड़ और
ढर्रे पर चलने वाले राजनेता बदलाव के लिए कतई तैयार नहीं हैं उनमें ही हैं एक हैं समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह। प्रदेश के अराजक माहौल के लिए वे सारी दूसरी पार्टियों को, उनकी नीतियों को तो ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं मगर पूरे प्रदेश में जो उनके अनुचर कहर ढा रहे हैं, उसके परिणाम अभी से नज़र आने लगे हैं। प्रदेश की जनता ने तो समाजवादी पार्टी के लिए पॉलिटकल आफ्टरइफेक्ट्स भी लगभग तय कर दिये हैं। पूरे प्रदेश का हाल उस अंधे की तरह हो गया है जिसके पास लाठी तो है मगर आंखों के अभाव में वह अपनी ही लाठी से अपने ही पांव घायल कर बैठता है। उस पर भी तुर्रा यह कि उसके अंधत्व से जलने वालों ने उसकी लाठी का इस्तेमाल घायल करने को किया।
बहरहाल 'राज' के लिए मच रही ये धमाचौकड़ी देश की सत्ता किसके हाथों में सौंपेंगी,अभी तो कयास ही लगाये जा सकते हैं मगर इतना अवश्य है कि राजनैतिक रंगमंच की ये कठपुतलियां तमाशा जरूर बहुत मनोरंजक तरीके से दिखा रही हैं।
अब जबकि 2014 आ गया तब पूरे देश में सरकारों और विपक्षियों द्वारा अचानक अपनी 'जनता' पर मेहरबानियां लुटाई जा रही हैं। अचानक से ऐसा लग रहा है कि शासक वर्ग में दयालुता का महासागर फूट पड़ा है..चारों ओर उत्सवी माहौल है।
राजनैतिक रंगमंच पर रहमदिली का प्रदर्शन जोरों पर है, सब के सब नायक बनने की होड़ लगाये बैठे हैं। भाजपा प्रोजेक्टेड नरेंद्र मोदी के गुड गवर्नेंस के प्रयोग से चलकर अरविंद केजरीवाल के रूटबेस्ड गवर्नेंस तक के प्रयोग इसी रंगमंच पर किये जा रहे हैं। इसी बीच में कभी कभी तिलूले की तरह तीसरे मोर्चे की भी आमद इसी रंगमंच पर तैरती हुई आ जाती है।
इन सबके बीच जो दृष्टा है, वही मतदाता आज कन्फ्यूज्ड है। मतदाता को जो अभीतक मंदबुद्धि, कम याददाश्त वाला समझे बैठे थे उनके लिए केजरीवाल ने नमूना सामने रख दिया सबक के लिए, फिर भी कुछ पारंपरिक जोड़ तोड़ और
ढर्रे पर चलने वाले राजनेता बदलाव के लिए कतई तैयार नहीं हैं उनमें ही हैं एक हैं समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह। प्रदेश के अराजक माहौल के लिए वे सारी दूसरी पार्टियों को, उनकी नीतियों को तो ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं मगर पूरे प्रदेश में जो उनके अनुचर कहर ढा रहे हैं, उसके परिणाम अभी से नज़र आने लगे हैं। प्रदेश की जनता ने तो समाजवादी पार्टी के लिए पॉलिटकल आफ्टरइफेक्ट्स भी लगभग तय कर दिये हैं। पूरे प्रदेश का हाल उस अंधे की तरह हो गया है जिसके पास लाठी तो है मगर आंखों के अभाव में वह अपनी ही लाठी से अपने ही पांव घायल कर बैठता है। उस पर भी तुर्रा यह कि उसके अंधत्व से जलने वालों ने उसकी लाठी का इस्तेमाल घायल करने को किया।
बहरहाल 'राज' के लिए मच रही ये धमाचौकड़ी देश की सत्ता किसके हाथों में सौंपेंगी,अभी तो कयास ही लगाये जा सकते हैं मगर इतना अवश्य है कि राजनैतिक रंगमंच की ये कठपुतलियां तमाशा जरूर बहुत मनोरंजक तरीके से दिखा रही हैं।
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