क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
मदरसा बनने की राह पर है? ऐसी शिकायत वहां के स्टुडेंट्स की है।
यूनिवर्सिटी के कैंपस में फिलहाल जैसा माहौल है, उसमें स्टुडेंट्स दो ग्रुप
में बंट गए हैं। एक वैसा ग्रुप है जो चाहता है कि कैंपस में उदार माहौल हो
और स्टुडेंट्स पर कुछ भी थोपा न जाए। दूसरा ग्रुप वह है जो कैंपस को
इस्लामिक कायदों से चलाना चाहता है। यह ग्रुप चाहता है स्टुडेंट्स हर हाल
में इस्लामिक परंपरा के मुताबिक रहें। इसमें लड़कियों के लिए बुरका और दिन
में पांच बार नमाज अदा करने की बात है।
वैचारिक टकराव से कैंपस में स्टुडेंट्स की बीच लकीरें खींच गई हैं। सबसे दिलचस्प वाकया तो अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हुआ। इस मौके पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। सेमिनार में महिला ऐक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर आमंत्रित थीं। उन्हें महिला सशक्तीकरण पर बोलना था लेकिन कैंपस में एक ग्रुप द्वारा पोस्टर लगाकर फरमान जारी किया गया था कि महिला स्टुडेंट्स सेमिनार में बुरका पहनकर ही जाएं। जब वृंदा ग्रोवर को कैंपस में ऐसी कट्टर गतिविधियों को बारे में पता चला तो उन्होंने खुद को उस सेमिनार से अलग कर लिया।
एएमयू में साहब अहमद लॉ फोर्थ इयर के स्टुडेंट हैं। वह कैंपस में बढ़ते इस्लामिक कट्टरता से परेशान हैं। उन्हें लगता है कि कैंपस में उदार स्पेस हर हाल में बची रहनी चाहिए। वह सवाल करते हैं कि क्यों लोग एएमयू को मदरसा बनाने पर तुले हैं? क्या इसे अलीगढ़ मिल्लत यूनिवर्सिटी बन जाना चाहिए? खुदा के लिए इसे बख्श दें, क्योंकि यह सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। कैंपस में अहमद की तरह कई लोग इसी तरह सोचते हैं। होस्टेल में लड़के शॉर्ट कपड़े पहनते हैं तो उन्हें टॉर्चर किया जाता है। यहां तक कि कुरता पहनना भी लोगों को नागावार गुजर रहा है। लड़कियां भी स्लीवलेस कपड़े और कैप्रीज नहीं पहन सकतीं। जाहिर है वह कैंपस में डांस भी नहीं कर सकतीं। यहां तक कि होस्टेल में रात में भी डांस पर पाबंदी है। इन पहनावों को कैंपस में अश्लीलता से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में कोई भी ऐसी ड्रेस पहनकर मुश्किलों को दावत नहीं देना चाहता।
कैंपस में लिबरल ग्रुप पब्लिक स्पेस पर धार्मिक गतिविधियों के खिलाफ है। जैसे होस्टेल और कॉमन रूम में मजहबी गतिविधियां 'तजवीद', 'दवाह' और कुरान पाठ पर इस ग्रुप को आपत्ति है। इस बारे में शिकायत भी की गई है। एक दूसरे स्टुडेंट ने कहा कि मुस्लिम स्टुडेंट्स होस्टेल रूम के बगल में नमाज अदा करते हैं लेकिन कॉमन रूम में भी ऐसी गतिविधियां जारी हैं। छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी को कैंपस में लिबरल स्पेस की फिक्र होनी चाहिए। एक स्टुडेंट ने बताया कि कॉमन रूम में लोग आकर टीवी बंद कर देते हैं और बाहर निकलने का निर्देश देते हैं। वीकेंड के मौके पर कैंपस में और पब्लिक स्पेस पर जमात के लोगों की ऐसी हरकतें आम हैं।
लेकिन दूसरी तरफ स्टुडेंट्स ऑफ एएमयू के मेंबर अब्दुल राउफ अपने ग्रुप की इन गतिविधियों को जायज ठहराते हुए कहते हैं कि किसी के साथ कुछ भी जबरन नहीं किया जाता। वह उलटा सवाल पूछते हैं कि यदि ऐसा है तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ऐक्शन क्यों नहीं लेता? कैंपस में कट्टर गतिविधियों से उदार पसंद स्टुडेंट्स काफी आहत हैं। उनका कहना है कि एएमयू होस्टेल में जैसी धार्मिक गतिविधियां जारी हैं, उनसे कई सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने बताया कि होस्टेल में कट्टर ग्रुप महिलाओं को लेकर प्रवचन देता रहता है। यह ग्रुप महिलाओं को हिजाब पहनाने, धीमी आवाज में बात करने और पुरुषों से दूरी बनाकर रखने की नसीहतें देता है। उसका यह भी कहना है कि शरिया लागू करने से ही रेप की वारदात पर लगाम लग सकती है।
-एरम आगा
वैचारिक टकराव से कैंपस में स्टुडेंट्स की बीच लकीरें खींच गई हैं। सबसे दिलचस्प वाकया तो अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हुआ। इस मौके पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। सेमिनार में महिला ऐक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर आमंत्रित थीं। उन्हें महिला सशक्तीकरण पर बोलना था लेकिन कैंपस में एक ग्रुप द्वारा पोस्टर लगाकर फरमान जारी किया गया था कि महिला स्टुडेंट्स सेमिनार में बुरका पहनकर ही जाएं। जब वृंदा ग्रोवर को कैंपस में ऐसी कट्टर गतिविधियों को बारे में पता चला तो उन्होंने खुद को उस सेमिनार से अलग कर लिया।
एएमयू में साहब अहमद लॉ फोर्थ इयर के स्टुडेंट हैं। वह कैंपस में बढ़ते इस्लामिक कट्टरता से परेशान हैं। उन्हें लगता है कि कैंपस में उदार स्पेस हर हाल में बची रहनी चाहिए। वह सवाल करते हैं कि क्यों लोग एएमयू को मदरसा बनाने पर तुले हैं? क्या इसे अलीगढ़ मिल्लत यूनिवर्सिटी बन जाना चाहिए? खुदा के लिए इसे बख्श दें, क्योंकि यह सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। कैंपस में अहमद की तरह कई लोग इसी तरह सोचते हैं। होस्टेल में लड़के शॉर्ट कपड़े पहनते हैं तो उन्हें टॉर्चर किया जाता है। यहां तक कि कुरता पहनना भी लोगों को नागावार गुजर रहा है। लड़कियां भी स्लीवलेस कपड़े और कैप्रीज नहीं पहन सकतीं। जाहिर है वह कैंपस में डांस भी नहीं कर सकतीं। यहां तक कि होस्टेल में रात में भी डांस पर पाबंदी है। इन पहनावों को कैंपस में अश्लीलता से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में कोई भी ऐसी ड्रेस पहनकर मुश्किलों को दावत नहीं देना चाहता।
कैंपस में लिबरल ग्रुप पब्लिक स्पेस पर धार्मिक गतिविधियों के खिलाफ है। जैसे होस्टेल और कॉमन रूम में मजहबी गतिविधियां 'तजवीद', 'दवाह' और कुरान पाठ पर इस ग्रुप को आपत्ति है। इस बारे में शिकायत भी की गई है। एक दूसरे स्टुडेंट ने कहा कि मुस्लिम स्टुडेंट्स होस्टेल रूम के बगल में नमाज अदा करते हैं लेकिन कॉमन रूम में भी ऐसी गतिविधियां जारी हैं। छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी को कैंपस में लिबरल स्पेस की फिक्र होनी चाहिए। एक स्टुडेंट ने बताया कि कॉमन रूम में लोग आकर टीवी बंद कर देते हैं और बाहर निकलने का निर्देश देते हैं। वीकेंड के मौके पर कैंपस में और पब्लिक स्पेस पर जमात के लोगों की ऐसी हरकतें आम हैं।
लेकिन दूसरी तरफ स्टुडेंट्स ऑफ एएमयू के मेंबर अब्दुल राउफ अपने ग्रुप की इन गतिविधियों को जायज ठहराते हुए कहते हैं कि किसी के साथ कुछ भी जबरन नहीं किया जाता। वह उलटा सवाल पूछते हैं कि यदि ऐसा है तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ऐक्शन क्यों नहीं लेता? कैंपस में कट्टर गतिविधियों से उदार पसंद स्टुडेंट्स काफी आहत हैं। उनका कहना है कि एएमयू होस्टेल में जैसी धार्मिक गतिविधियां जारी हैं, उनसे कई सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने बताया कि होस्टेल में कट्टर ग्रुप महिलाओं को लेकर प्रवचन देता रहता है। यह ग्रुप महिलाओं को हिजाब पहनाने, धीमी आवाज में बात करने और पुरुषों से दूरी बनाकर रखने की नसीहतें देता है। उसका यह भी कहना है कि शरिया लागू करने से ही रेप की वारदात पर लगाम लग सकती है।
-एरम आगा
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