जीवन में सब कुछ जैसा हम चाहें या कल्पना करें वैसा ही नहीं होता। सभी कुछ हमारे सोचे हुये समय पर घटित नहीं होता। घटित होने वाले निश्चित क्षण होते हैं जिसके लिए प्रतीक्षा करनी होती है। समय है जिसकी राह देखनी होती है। अवसर है जिसके लिए रुकना पड़ता है। इसे किन्हीं भी आयामों में देखा जाये, नतीजा एक ही आता है कि तमाम स्वतंत्रताओं के बाद आज भी हम समय के आधीन हैं। हमारे ग्रंथों से लेकर आज तक 'समय' के इस एकमेव आधिपत्य से कोई नहीं बच सका, स्वयं राम और कृष्ण जैसे हमारे ग्रंथों के महानायक भी नहीं। वे अपने समय से जूझे अवश्य परंतु उसकी अवहेलना करके नहीं वरन उसकी प्रतीक्षा को कसौटी बनाकर। प्रतीक्षा करके ही समय के उस निश्चित क्षण को पाया भी जा सकता है, उसका आनंद लिया जा सकता है।
समय की प्रतीक्षा का सबसे सटीक उदाहरण है अहिल्या का, जो नाम था शुद्धता का। ऋषि गौतम जैसे मन के तम को भी शुद्ध कर देने वाले ज्ञानी पति के हुये भी समय के प्रतिकूलन का शिकार बनी । पति के अविश्वास का दंश झेलने और सही समय की प्रतीक्षा में पत्थर हो गई । उसका पत्थर हो जाना , सारी चेष्टाओं का निष्क्रिय हो जाना, राम की प्रतीक्षा करना अर्थात् एक निश्चित 'समय' की प्रफुल्लता के लिए प्रतीक्षा करते करते पत्थर की तरह जड़ हो गई स्त्री, सबकुछ गंवाने का भय के साथ मन-तन से अचेतन... जड़ता के प्रभाव से वो पड़ी हुई स्त्री पत्थर ही तो हो गई होगी।
यूं तो पत्थर हो जाना कवि की कल्पना है जो चेतनावस्था की निष्क्रियता दर्शाती है। ऐसा व्यक्ति जो क्रियाशील नहीं है, वह जड़ हो जाता है वह पत्थर हो जाता है मगर वह स्त्री है अहिल्या...जो राम से खिल पायेगी,राम के स्पर्श से ही खिल पायेगी... वह तो जब तक राम ना मिलें तब तक पत्थर ही रहती है। ऐसा नहीं है कि अहिल्या कोई शिला बनकर ही पड़ी थी । वह तो कवि का 'मेटाफर' है बस..समय की प्रतीक्षा और उसका एक्ज़िस्टेंस दिखाने के लिए ।
अहिल्या की कहानी और कवि की कल्पना का निचोड़ सिर्फ इतना है कि जो स्त्री राम के स्पर्श से जीवित हो सकती है, चेतना बन सकती है, किसी और का स्पर्श तो उसे जड़ ही बना छोड़ेगा ना...फिर चाहे वह पुन: मिले ऋषि गौतम ही क्यों ना हों । हरेक की अपनी प्रतीक्षा है ... हरेक की अपनी अवेटिेंग है...। निश्चित क्षण आये बिना वह घटित नहीं होती, ना कभी हुई है। प्रतीक्षा में एक उत्सुकता का जन्म स्वाभाविक ही है और यदि उत्सुकता है तो प्रतीक्षा समाप्ति पर मिलने वाला आनंद भी उच्चभाव का ही होगा ना। एक अहिल्या ही क्यों समय की प्रतीक्षा के उदाहरण तो चारों ओर बिखरे पड़े हैं। कारण कोई भी रहे हों परंतु अपने हिस्से के समय की प्रतीक्षा तो सभी को करनी पड़ी। आज भी सही समय की प्रतीक्षा करना ही हमारे भीतर बैठे धैर्य का परिचय हमसे करवाता है, यही निश्चित है ।
- अलकनंदा सिंह
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