अधिकांश लोग जीवन में सब कुछ अपने मन के अनुसार करने के लिए अपनी बहुमूल्य ऊर्जा को नष्ट करते रहते हैं। जब ऐसा नहीं हो पाता तो मन व शरीर पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है, हावभाव बदल जाते हैं, ऐसे में तनाव होना निश्चित है। विपरीत असर को झेलने में मन व शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है और यही ऊर्जा का ह्रास हमें शक्तिहीन बनाता है।
इस शक्तिहीनता की स्थिति से बचने का एक ही उपाय है कि ऊर्जा का संचयन किया जाये। इसके लिए उन ऊर्जा स्रोतों को पहचानना होगा जो हमारे दैनंदिन उपयोगों में आते हैं ताकि संचयन के स्रोत हमें अपने आस-पास ही मिल सकें।
इस संचित ऊर्जा से न केवल शरीर शक्तिवान बनेगा बल्कि मन अपने आध्यात्मिक चरम को छू सकेगा , तनाव से जूझने का ये सबसे बेहतर उपाय है।
इस सबंध में श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि हमारे शरीर को ऊर्जा चार स्रोतों से प्राप्त होती है। पहला स्रोत भोजन होता है। भोजन का सेवन पर्याप्त मात्रा में होने से आपके शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
ऊर्जा का दूसरा स्रोत पर्याप्त मात्रा में नींद लेना है। पर्याप्त नींद से शरीर के अवयवों को प्राकृतिक विश्राम मिल जाता है ।
ऊर्जा का तीसरा स्रोत है ज्ञान। ज्ञान के कारण ही हम किसी वस्तु, परिस्थिति, घटना और भावना से खुश या परेशान एवं दुखी नहीं होते। ज्ञान के अभाव में दुखी और अधिक ज्ञान होने से अहंकार के बढ़ने की पूरी पूरी संभावना रहती है।
ऊर्जा का चौथा व प्रमुख स्रोत श्वास है जो प्राण शक्ति या आत्मा व शरीर को ऊर्जा देती है।
श्वास के प्रति समय के साथ सजग हो जाना ही जीवन की कलात्मकता है और यही सकारात्मक जीवन जीने की पद्धति बन सकती है।
श्वास के आवागमन की स्थिति को लेकर स्वामी विवेकानंद ने कहा भी है कि श्वास के संयमित रहने से मन की शक्ति सुदृढ़ होती है, जो कि शारीरिक ऊर्जा को संरक्षित करने व इसे मानसिक व आध्यात्मिक ऊर्जा में बदलने के काम आती है ।
वास्तव में हमारे शरीर का शक्तिगृह होता है मन, जो नसों के माध्यम से संकेत भेजता है और शरीर उसी के अनुसार कार्य करता है या प्रतिक्रिया करता है। हालांकि इसमें शरीर के बलों का भी योगदान रहता है। 'शरीर के बल' वे पदार्थ हैं जो हमारे अस्तित्व को भरते हैं और जो भोजन, पानी और हवा के माध्यम से चयापचय द्वारा रिचार्जिंग जारी रखते हैं।
अत: यदि हम शरीर की ऊर्जा को बचाना और जीवन को सुखी व समृद्ध बनाना चाहते हैं तो अपनी श्वास से उपजी ऊर्जा को बचाने की ओर ध्यान दें, जिससे न सिर्फ शरीर ऊर्जावान बने वरन मन भी आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाये। तनावमुक्त जीवन को जीने के लिए ऊर्जावान मन के साथ शरीर का ऊर्जावान होना अत्यंत आवश्यक है।
- अलकनंदा सिंह
इस शक्तिहीनता की स्थिति से बचने का एक ही उपाय है कि ऊर्जा का संचयन किया जाये। इसके लिए उन ऊर्जा स्रोतों को पहचानना होगा जो हमारे दैनंदिन उपयोगों में आते हैं ताकि संचयन के स्रोत हमें अपने आस-पास ही मिल सकें।
इस संचित ऊर्जा से न केवल शरीर शक्तिवान बनेगा बल्कि मन अपने आध्यात्मिक चरम को छू सकेगा , तनाव से जूझने का ये सबसे बेहतर उपाय है।
इस सबंध में श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि हमारे शरीर को ऊर्जा चार स्रोतों से प्राप्त होती है। पहला स्रोत भोजन होता है। भोजन का सेवन पर्याप्त मात्रा में होने से आपके शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
ऊर्जा का दूसरा स्रोत पर्याप्त मात्रा में नींद लेना है। पर्याप्त नींद से शरीर के अवयवों को प्राकृतिक विश्राम मिल जाता है ।
ऊर्जा का तीसरा स्रोत है ज्ञान। ज्ञान के कारण ही हम किसी वस्तु, परिस्थिति, घटना और भावना से खुश या परेशान एवं दुखी नहीं होते। ज्ञान के अभाव में दुखी और अधिक ज्ञान होने से अहंकार के बढ़ने की पूरी पूरी संभावना रहती है।
ऊर्जा का चौथा व प्रमुख स्रोत श्वास है जो प्राण शक्ति या आत्मा व शरीर को ऊर्जा देती है।
श्वास के प्रति समय के साथ सजग हो जाना ही जीवन की कलात्मकता है और यही सकारात्मक जीवन जीने की पद्धति बन सकती है।
श्वास के आवागमन की स्थिति को लेकर स्वामी विवेकानंद ने कहा भी है कि श्वास के संयमित रहने से मन की शक्ति सुदृढ़ होती है, जो कि शारीरिक ऊर्जा को संरक्षित करने व इसे मानसिक व आध्यात्मिक ऊर्जा में बदलने के काम आती है ।
वास्तव में हमारे शरीर का शक्तिगृह होता है मन, जो नसों के माध्यम से संकेत भेजता है और शरीर उसी के अनुसार कार्य करता है या प्रतिक्रिया करता है। हालांकि इसमें शरीर के बलों का भी योगदान रहता है। 'शरीर के बल' वे पदार्थ हैं जो हमारे अस्तित्व को भरते हैं और जो भोजन, पानी और हवा के माध्यम से चयापचय द्वारा रिचार्जिंग जारी रखते हैं।
अत: यदि हम शरीर की ऊर्जा को बचाना और जीवन को सुखी व समृद्ध बनाना चाहते हैं तो अपनी श्वास से उपजी ऊर्जा को बचाने की ओर ध्यान दें, जिससे न सिर्फ शरीर ऊर्जावान बने वरन मन भी आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाये। तनावमुक्त जीवन को जीने के लिए ऊर्जावान मन के साथ शरीर का ऊर्जावान होना अत्यंत आवश्यक है।
- अलकनंदा सिंह
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