ब्रिटेन के बर्मिंघम विश्वविद्यालय में कम से कम 1370 साल पुराने कुरान की पांडुलिपि के अंश मिले हैं.
पन्नों की रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक से जांच से पता चला कि कुरान के ये पन्ने कम से कम 1370 साल पुराने हैं.
शोधकर्ताओं ने साथ ही इस बात की संभावना जताई है कि जिस शख्स ने कुरान की ये पांडुलिपि लिखी होगी वह पैगंबर मोहम्मद से मिला हो.
कुरान के ये पन्ने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में मध्य पूर्व की अन्य किताबों और दस्तावेज़ों के संग्रह के साथ करीब एक सदी तक पहचाने बग़ैर रखे रहे.
एक पीएचडी शोधार्थी अल्बा फ़देली ने इन पन्नों को ध्यान से देखा तो तो फिर इनका रेडियोकार्बन डेटिंग टेस्ट करवाने का फ़ैसला किया गया और उसके परिणाम ‘आश्चर्यजनक’ आए.
ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय की रेडियोकार्बन एक्सेलेरेटर यूनिट में किए गए परीक्षणों से पता चला कि भेड़ या बकरी की खाल पर लिखे गए कुरान के यह अंश संभवतः इस पवित्र पुस्तक के सबसे पुराने बचे हुए अंश हैं.
विश्वविद्यालय में ईसाइयत और इस्लाम के प्रोफ़ेसर डेविड थॉमस कहते हैं, “यह दस्तावेज़ हमें इस्लाम की स्थापना के कुछ सालों के अंतराल में पहुंचा सकते हैं.”
वो कहते हैं, “मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का पैगाम 610 से 632, उनकी मृत्यु का साल, के बीच ही मिला था जो कुरान का आधार बना.”
प्रोफ़सर थॉमस कहते हैं कि इससे यह भी अर्थ निकलता है कि जिस व्यक्ति ने उसे लिखा है वह पैगंबर मोहम्मद के समय ज़िंदा रहा हो.
वह कहते हैं, “वह व्यक्ति जिसने इसे वास्तव में लिखा होगा संभवतः पैगंबर मोहम्मद को जानता होगा. शायद उसने उन्हें देखा होगा, हो सकता है उसने उन्हें उपदेश देते देखा हो. ऐसा भी हो सकता है कि वह व्यक्तिगत रूप से उन्हें जानते हों और यह वास्तव में मंत्रमुग्ध करने वाला ख़याल है”.
यह पांडुलिपि ‘हिजाज़ी लिपि’ में लिखी गई है जो अरबी का एक पुराना रूप है.
हालांकि इन परीक्षणों से कई तरह की तारीखें मिलती हैं, इसलिए 95% संभावना इस बात की है कि यह अंश 568 ईस्वी से 645 ईस्वी के बीच के हैं.
- एजेंसी
पन्नों की रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक से जांच से पता चला कि कुरान के ये पन्ने कम से कम 1370 साल पुराने हैं.
शोधकर्ताओं ने साथ ही इस बात की संभावना जताई है कि जिस शख्स ने कुरान की ये पांडुलिपि लिखी होगी वह पैगंबर मोहम्मद से मिला हो.
कुरान के ये पन्ने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में मध्य पूर्व की अन्य किताबों और दस्तावेज़ों के संग्रह के साथ करीब एक सदी तक पहचाने बग़ैर रखे रहे.
एक पीएचडी शोधार्थी अल्बा फ़देली ने इन पन्नों को ध्यान से देखा तो तो फिर इनका रेडियोकार्बन डेटिंग टेस्ट करवाने का फ़ैसला किया गया और उसके परिणाम ‘आश्चर्यजनक’ आए.
ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय की रेडियोकार्बन एक्सेलेरेटर यूनिट में किए गए परीक्षणों से पता चला कि भेड़ या बकरी की खाल पर लिखे गए कुरान के यह अंश संभवतः इस पवित्र पुस्तक के सबसे पुराने बचे हुए अंश हैं.
विश्वविद्यालय में ईसाइयत और इस्लाम के प्रोफ़ेसर डेविड थॉमस कहते हैं, “यह दस्तावेज़ हमें इस्लाम की स्थापना के कुछ सालों के अंतराल में पहुंचा सकते हैं.”
वो कहते हैं, “मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का पैगाम 610 से 632, उनकी मृत्यु का साल, के बीच ही मिला था जो कुरान का आधार बना.”
प्रोफ़सर थॉमस कहते हैं कि इससे यह भी अर्थ निकलता है कि जिस व्यक्ति ने उसे लिखा है वह पैगंबर मोहम्मद के समय ज़िंदा रहा हो.
वह कहते हैं, “वह व्यक्ति जिसने इसे वास्तव में लिखा होगा संभवतः पैगंबर मोहम्मद को जानता होगा. शायद उसने उन्हें देखा होगा, हो सकता है उसने उन्हें उपदेश देते देखा हो. ऐसा भी हो सकता है कि वह व्यक्तिगत रूप से उन्हें जानते हों और यह वास्तव में मंत्रमुग्ध करने वाला ख़याल है”.
यह पांडुलिपि ‘हिजाज़ी लिपि’ में लिखी गई है जो अरबी का एक पुराना रूप है.
हालांकि इन परीक्षणों से कई तरह की तारीखें मिलती हैं, इसलिए 95% संभावना इस बात की है कि यह अंश 568 ईस्वी से 645 ईस्वी के बीच के हैं.
- एजेंसी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें