कभी जिसे उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि उत्तम प्रदेश कह कर राजनीतिक पार्टियां
वोट बटोर बटोर कर शासन चलाया करती थीं, अलग अलग वर्गों,जातियों और
संप्रदायों के बल पर अपनी-अपनी पीठ थपथपाया करती थीं। वे बरबाद होती कानून
व्यवस्था के बावजूद अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने के लिए कोई ना कोई
वजह ढूंढ़ लिया करती थीं, आज उसी उत्तरप्रदेश (कहीं से भी उत्तम नहीं)
की औरतें अपने इन्हीं राजनैतिक रहनुमाओं की करतूतों के आफ्टर इफेक्ट्स
झेलने को विवश हैं।
हाल ही में समाजवादी पार्टी के मुखिया से लेकर उनके तमाम अन्य पदाधिकारी बदायूं में हुई बलात्कार व हत्या के मामले में कानून व्यवस्था की धज्जियों के उड़ने से इतने परेशां नहीं हैं जितने कि लोगों और मीडिया के सवालों से। वे अपना मुंह को छिपाने को ऐसी बचकाना और बेवकूफी भरी हरकतें कर रहे हैं, ऐसे हास्यास्पद बयान दे रहे हैं कि हर उत्तरप्रदेशवासी हतप्रभ हैं, ऐसों को चुनकर सत्ता सौंपने के लिए । आमजन अब तो इन्हें गरिया भी नहीं पा रहे, बल्कि इनके संभावित हश्र पर, इनकी बयानबाजियों पर तरस खा रहे हैं, उन्हें घिन आ रही है इनकी सोच पर।
ज़रा विचार कीजिए...कि किस तरह ये ऐसे हास्यास्पद बयान देकर घर में अपने ही घर की औरतों-बच्चियों से आंखें मिला पाते होंगे ये तथाकथित माननीय। लोकसभा चुनावों के दौरान समाजवादी मुखिया द्वारा चुनाव के अति उत्साह में बोले गये वो बोल ''लड़के हैं, लड़कों से तो गलती हो जाती है। ऐसी गलती पर फांसी चढ़ाना उचित नहीं है'', आज भी जनता के जहन से जा नहीं पा रहे। यही बोल तो सपा की न केवल लोकसभा में हार का एक कारण बने बल्कि मौजूदा कानून व्यवस्थागत छीछालेदर के लिए भी जिम्मेदार माने जा रहे हैं। सपाइयों की सोच यहीं तक रहती तो गनीमत थी, अब तो मुलायम सिंह व अखिलेश और रामगोपाल यादव तो ऐलानिया तौर पर कह रहे हैं कि इन हालातों से हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला..., मीडिया को सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही रेप दिखते हैं... और हमें मालूम है क्या करना है...आप हमें मत सिखाइये...। आप अपना काम कीजिए।
बयानों की इन्हीं बेहूदा बानगियों के बीच एक हफ्ता होने जा रहा है, फिर भी प्रदेश में वीभत्सता और क्रूरता का आलम थम नहीं रहा है। बदायूं -बरेली-मुज़फ्फरनगर-सीतापुर-देवरिया-मथुरा-फिरोजाबाद...की श्रृंखला कहां जाकर थमेगी, कहा नहीं जा सकता। मगर इतना अवश्य है कि सपा ने जो ताबूत अपने लिए तैयार कर लिया है, अब उसमें खुद वही कील ठोक रहे हैं, गिनती चल रही है कीलों की। देखते जाइये... अगर अब भी यह नहीं सुधरे तो आखिरी कील भी ये खुद अपने हाथों ठोकेंगे।
बदायूं घटना की तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी निंदा की जा रही है। देश व प्रदेश के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक और क्या होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ तक चिंता जता रहा है, हालांकि संघ के सचिव बॉन की मून ने पूरे विश्व की महिलाओं की सुरक्षा पर हमलों की बावत उत्तरप्रदेश की इस घटना का भी उल्लेख किया मगर किया तो सही, यही हमारे लिए क्या डूब मरने वाली बात नहीं ?
बहरहाल, जिम्मेदार नेता कानून व्यवस्थागत कोई सबक सीखे हैं या आगे सीखेंगे, ऐसा फिलहाल के बयानों से तो नहीं लगता, अलबत्ता ये जरूर है कि अब आने वाले विधानसभा चुनावों तक ये अपनी सरकार बनाये रख पायें, यही इनके लिए उपलब्धि होगी। उत्तरप्रदेश जो कभी उत्तमप्रदेश नहीं बन पाया, अब इस गिरावट के बाद अपने उत्थान की ओर ही चलेगा,ये निश्चित है क्योंकि गिरने की भी अपनी एक सीमा होती है।
-अलकनंदा सिंह
हाल ही में समाजवादी पार्टी के मुखिया से लेकर उनके तमाम अन्य पदाधिकारी बदायूं में हुई बलात्कार व हत्या के मामले में कानून व्यवस्था की धज्जियों के उड़ने से इतने परेशां नहीं हैं जितने कि लोगों और मीडिया के सवालों से। वे अपना मुंह को छिपाने को ऐसी बचकाना और बेवकूफी भरी हरकतें कर रहे हैं, ऐसे हास्यास्पद बयान दे रहे हैं कि हर उत्तरप्रदेशवासी हतप्रभ हैं, ऐसों को चुनकर सत्ता सौंपने के लिए । आमजन अब तो इन्हें गरिया भी नहीं पा रहे, बल्कि इनके संभावित हश्र पर, इनकी बयानबाजियों पर तरस खा रहे हैं, उन्हें घिन आ रही है इनकी सोच पर।
ज़रा विचार कीजिए...कि किस तरह ये ऐसे हास्यास्पद बयान देकर घर में अपने ही घर की औरतों-बच्चियों से आंखें मिला पाते होंगे ये तथाकथित माननीय। लोकसभा चुनावों के दौरान समाजवादी मुखिया द्वारा चुनाव के अति उत्साह में बोले गये वो बोल ''लड़के हैं, लड़कों से तो गलती हो जाती है। ऐसी गलती पर फांसी चढ़ाना उचित नहीं है'', आज भी जनता के जहन से जा नहीं पा रहे। यही बोल तो सपा की न केवल लोकसभा में हार का एक कारण बने बल्कि मौजूदा कानून व्यवस्थागत छीछालेदर के लिए भी जिम्मेदार माने जा रहे हैं। सपाइयों की सोच यहीं तक रहती तो गनीमत थी, अब तो मुलायम सिंह व अखिलेश और रामगोपाल यादव तो ऐलानिया तौर पर कह रहे हैं कि इन हालातों से हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला..., मीडिया को सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही रेप दिखते हैं... और हमें मालूम है क्या करना है...आप हमें मत सिखाइये...। आप अपना काम कीजिए।
बयानों की इन्हीं बेहूदा बानगियों के बीच एक हफ्ता होने जा रहा है, फिर भी प्रदेश में वीभत्सता और क्रूरता का आलम थम नहीं रहा है। बदायूं -बरेली-मुज़फ्फरनगर-सीतापुर-देवरिया-मथुरा-फिरोजाबाद...की श्रृंखला कहां जाकर थमेगी, कहा नहीं जा सकता। मगर इतना अवश्य है कि सपा ने जो ताबूत अपने लिए तैयार कर लिया है, अब उसमें खुद वही कील ठोक रहे हैं, गिनती चल रही है कीलों की। देखते जाइये... अगर अब भी यह नहीं सुधरे तो आखिरी कील भी ये खुद अपने हाथों ठोकेंगे।
बदायूं घटना की तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी निंदा की जा रही है। देश व प्रदेश के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक और क्या होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ तक चिंता जता रहा है, हालांकि संघ के सचिव बॉन की मून ने पूरे विश्व की महिलाओं की सुरक्षा पर हमलों की बावत उत्तरप्रदेश की इस घटना का भी उल्लेख किया मगर किया तो सही, यही हमारे लिए क्या डूब मरने वाली बात नहीं ?
बहरहाल, जिम्मेदार नेता कानून व्यवस्थागत कोई सबक सीखे हैं या आगे सीखेंगे, ऐसा फिलहाल के बयानों से तो नहीं लगता, अलबत्ता ये जरूर है कि अब आने वाले विधानसभा चुनावों तक ये अपनी सरकार बनाये रख पायें, यही इनके लिए उपलब्धि होगी। उत्तरप्रदेश जो कभी उत्तमप्रदेश नहीं बन पाया, अब इस गिरावट के बाद अपने उत्थान की ओर ही चलेगा,ये निश्चित है क्योंकि गिरने की भी अपनी एक सीमा होती है।
-अलकनंदा सिंह
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