खेल को खेल की तरह ही लेना चाहिए, इसमें जीत और हार तो लगी ही रहती है... जो आज है वह कल नहीं रहेगा और जो कल था वह फिर से वापस आयेगा... इस तरह के खुद को सांत्वना देने वाले और आध्यात्मिक जुमलों तक की बौछार तब होने लगती है जब कोई भी टीम अपने सबसे ऊंचे पायदान से नीचे गिरती है।
फीफा वर्ल्ड कप 2014 में विश्व फुटबॉल की सिरमौर रही स्पेन की टीम का हश्र ये बताने को काफी है कि कोई भी सफलता हो या असफलता, स्थाई नहीं होती। प्रकृति के विपरीत भला कोई कैसे जा सकता है । समय के साथ चलते हैं, इसके अपने नियम और कानून, बदलाव तो निश्चित होता है।
वर्ल्ड कप पहले भी दोहराव से उकताते रहे हैं अत: इस बार भी ब्राजील के रियो डि जेनेरियो ने अपनी इसी दोहराव को मिटाकर नई गाथा लिखी और इसका नायक बना चिली। चिली ने कल के मैच में इतिहास गढ़ते हुए 2008 और 2012 में यूरो कप और 2010 में फुटबॉल का विश्वविजेता बने स्पेन को वर्ल्डकप के पहले ही दौर में बाहर का रास्ता दिखा दिया । स्पेन का यूं वर्ल्ड कप से निकल बाहर होना पूरे स्पेनिश खेलप्रेमियों के लिए तो दुखदायी रहा ही मगर स्पेन के सम्राट जुआन कार्लोस को विदाई भी इस हार की टीस से नहीं बच सकी। इत्तिफाकन कल के ही दिन सम्राट ने गद्दी छोड़कर उसे अपने उत्तराधिकारी फिलिप 6th को कार्यभार सौंपा था।
इस मामले में स्पेनिश मीडिया की भी सराहना करनी होगी, जिसने टीम की हार के बावजूद जनता में सकारात्मक एप्रोच बनाये रखी, जिसने शर्मनाक तरीके से पहले ही दौर में बाहर हुई फुटबॉल टीम की हार की खबर को पिछले पेज पर छापा जबकि नये राजा का स्वागत करती हुई उत्साही खबरों को फ्रंट पेज पर। मकसद था कि इससे जनता के बीच गहन निराशावादी क्षणों में भी न तो टीम के प्रति गुस्सा उभरेगा और ना ही अन्य उभरते खिलाड़ियों में निराशा पननेगी। मीडिया की यह सेल्फकंट्रोलिंग एप्रोच सराही जानी चाहिए कि कैसे मीडिया हार के दुख को भी भुलाने में मदद कर सकता है।
हमेशा विश्वविजेता बने रहने के अतिविश्वास सहित प्रतिस्पर्द्धी टीमों को कमतर आंकना तथा इस सोच के कारण अपने ही द्वारा स्थापित 'टीका-टाका' शैली में समय के अनुसार कोई बदलाव न करना स्पेन को भारी पड़ गया। ये कुछ ऐसे कारण रहे जो दूसरी विश्वविजेता टीमों के लिए भी सबक हो सकते हैं। हर खेल के अपने नियम होते हैं और हर टीम की अपनी विशेष स्ट्रेटजी होती है, इसी के साथ जुड़ी होती है ये शर्त भी कि अपनी स्ट्रेटजी का पता दूसरी किसी प्रतिस्पर्द्धी टीम को न लग जाये क्योंकि ऐसा होने पर विरोधी टीम सेफगेम की अपनी अलग स्ट्रेटजी ईजाद कर लेती है । स्पेनिश टीम को अपनी छोटे छोटे पास देने वाली 'टीका-टाका' शैली पर अतिविश्वास था। हालांकि जानकारों ने उन्हें बार-बार चेतावनियां भी दीं कि उनकी इस विधा को इसी वर्ल्ड कप में कई टीमें अपना चुकी हैं यानि स्वयं स्पेन को सावधान रहना होगा अपनी ही 'टीका-टाका' शैली वाली इस स्ट्रेटजी के दोहराव से... मगर उसने किसी की सलाह पर ध्यान नहीं दिया बल्कि इसके उलट टीम के कोच विंसेंट डेल बोस्क और इकेर कैंसियास लगातार कहते रहे कि टीका-टाका ही हमारा हथियार है...विडंबना देखिए कि स्पेनिश टीम अपने हथियार की धार के आगे ही ढेर हो गई। यूरो 2008 और 2012 की चैम्पियन और मौजूदा विश्व विजेता स्पेन की टीम इस बार ग्रुप मुक़ाबले से आगे नहीं बढ़ पाई। पहले मैच में जहाँ नीदरलैंड्स ने उसे 5-1 से बुरी तरह हराया, तो चिली ने 2-0 से हराकर इस विश्व कप में उसका सफ़र ही ख़त्म कर दिया।
स्पेन टीम के कोच विसेंट डेल बॉस्क़ की टीम में उनके सुनहरे दौर के कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने फ़ुटबॉल की दुनिया में असाधारण वर्चस्व स्थापित किया। उन्होंने छोटे-छोटे पास और मूवमेंट वाले अपने 'टिकी-टाका' शैली से इस खेल को एक तरह से अपने वश में ही कर लिया था। और अब यही टिकी-टाका शैली का प्रचार उनकी कमजोर कड़ी बन गया। नतीजा देखिए कि एक ओर तो चिली की टीम ने पिछले विश्वकप में स्पेन से मिली हार का बदला ले लिया तथा विश्वकप को नये हीरो खोजने की राह पर ला खड़ा किया तो दूसरी ओर हर विश्व विजेता टीम को यह सोचने और गांठ बांध लेने की भी सीख दी है कि रणनीतियों का उजागर होना किसी भी लड़ाई को हारने का पहला कदम होता है। निश्चित रूप से इस हार से स्पेन ही नहीं, हर वो टीम सबक लेगी जो इस बार फीफा की विश्वविजेता टीम होगी।
भारी उलटफेरों से भरा रहेगा ये फीफा वर्ल्ड कप...अब देखिए ना स्पेन की हार पर लिखते लिखते उरुग्वे ने इंग्लैंड को मात दे दी...देखते हैं हर रोज का ये रोमांच कल कौन सी खबर लाता है।
- अलकनंदा सिंह
फीफा वर्ल्ड कप 2014 में विश्व फुटबॉल की सिरमौर रही स्पेन की टीम का हश्र ये बताने को काफी है कि कोई भी सफलता हो या असफलता, स्थाई नहीं होती। प्रकृति के विपरीत भला कोई कैसे जा सकता है । समय के साथ चलते हैं, इसके अपने नियम और कानून, बदलाव तो निश्चित होता है।
वर्ल्ड कप पहले भी दोहराव से उकताते रहे हैं अत: इस बार भी ब्राजील के रियो डि जेनेरियो ने अपनी इसी दोहराव को मिटाकर नई गाथा लिखी और इसका नायक बना चिली। चिली ने कल के मैच में इतिहास गढ़ते हुए 2008 और 2012 में यूरो कप और 2010 में फुटबॉल का विश्वविजेता बने स्पेन को वर्ल्डकप के पहले ही दौर में बाहर का रास्ता दिखा दिया । स्पेन का यूं वर्ल्ड कप से निकल बाहर होना पूरे स्पेनिश खेलप्रेमियों के लिए तो दुखदायी रहा ही मगर स्पेन के सम्राट जुआन कार्लोस को विदाई भी इस हार की टीस से नहीं बच सकी। इत्तिफाकन कल के ही दिन सम्राट ने गद्दी छोड़कर उसे अपने उत्तराधिकारी फिलिप 6th को कार्यभार सौंपा था।
इस मामले में स्पेनिश मीडिया की भी सराहना करनी होगी, जिसने टीम की हार के बावजूद जनता में सकारात्मक एप्रोच बनाये रखी, जिसने शर्मनाक तरीके से पहले ही दौर में बाहर हुई फुटबॉल टीम की हार की खबर को पिछले पेज पर छापा जबकि नये राजा का स्वागत करती हुई उत्साही खबरों को फ्रंट पेज पर। मकसद था कि इससे जनता के बीच गहन निराशावादी क्षणों में भी न तो टीम के प्रति गुस्सा उभरेगा और ना ही अन्य उभरते खिलाड़ियों में निराशा पननेगी। मीडिया की यह सेल्फकंट्रोलिंग एप्रोच सराही जानी चाहिए कि कैसे मीडिया हार के दुख को भी भुलाने में मदद कर सकता है।
हमेशा विश्वविजेता बने रहने के अतिविश्वास सहित प्रतिस्पर्द्धी टीमों को कमतर आंकना तथा इस सोच के कारण अपने ही द्वारा स्थापित 'टीका-टाका' शैली में समय के अनुसार कोई बदलाव न करना स्पेन को भारी पड़ गया। ये कुछ ऐसे कारण रहे जो दूसरी विश्वविजेता टीमों के लिए भी सबक हो सकते हैं। हर खेल के अपने नियम होते हैं और हर टीम की अपनी विशेष स्ट्रेटजी होती है, इसी के साथ जुड़ी होती है ये शर्त भी कि अपनी स्ट्रेटजी का पता दूसरी किसी प्रतिस्पर्द्धी टीम को न लग जाये क्योंकि ऐसा होने पर विरोधी टीम सेफगेम की अपनी अलग स्ट्रेटजी ईजाद कर लेती है । स्पेनिश टीम को अपनी छोटे छोटे पास देने वाली 'टीका-टाका' शैली पर अतिविश्वास था। हालांकि जानकारों ने उन्हें बार-बार चेतावनियां भी दीं कि उनकी इस विधा को इसी वर्ल्ड कप में कई टीमें अपना चुकी हैं यानि स्वयं स्पेन को सावधान रहना होगा अपनी ही 'टीका-टाका' शैली वाली इस स्ट्रेटजी के दोहराव से... मगर उसने किसी की सलाह पर ध्यान नहीं दिया बल्कि इसके उलट टीम के कोच विंसेंट डेल बोस्क और इकेर कैंसियास लगातार कहते रहे कि टीका-टाका ही हमारा हथियार है...विडंबना देखिए कि स्पेनिश टीम अपने हथियार की धार के आगे ही ढेर हो गई। यूरो 2008 और 2012 की चैम्पियन और मौजूदा विश्व विजेता स्पेन की टीम इस बार ग्रुप मुक़ाबले से आगे नहीं बढ़ पाई। पहले मैच में जहाँ नीदरलैंड्स ने उसे 5-1 से बुरी तरह हराया, तो चिली ने 2-0 से हराकर इस विश्व कप में उसका सफ़र ही ख़त्म कर दिया।
स्पेन टीम के कोच विसेंट डेल बॉस्क़ की टीम में उनके सुनहरे दौर के कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने फ़ुटबॉल की दुनिया में असाधारण वर्चस्व स्थापित किया। उन्होंने छोटे-छोटे पास और मूवमेंट वाले अपने 'टिकी-टाका' शैली से इस खेल को एक तरह से अपने वश में ही कर लिया था। और अब यही टिकी-टाका शैली का प्रचार उनकी कमजोर कड़ी बन गया। नतीजा देखिए कि एक ओर तो चिली की टीम ने पिछले विश्वकप में स्पेन से मिली हार का बदला ले लिया तथा विश्वकप को नये हीरो खोजने की राह पर ला खड़ा किया तो दूसरी ओर हर विश्व विजेता टीम को यह सोचने और गांठ बांध लेने की भी सीख दी है कि रणनीतियों का उजागर होना किसी भी लड़ाई को हारने का पहला कदम होता है। निश्चित रूप से इस हार से स्पेन ही नहीं, हर वो टीम सबक लेगी जो इस बार फीफा की विश्वविजेता टीम होगी।
भारी उलटफेरों से भरा रहेगा ये फीफा वर्ल्ड कप...अब देखिए ना स्पेन की हार पर लिखते लिखते उरुग्वे ने इंग्लैंड को मात दे दी...देखते हैं हर रोज का ये रोमांच कल कौन सी खबर लाता है।
- अलकनंदा सिंह
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