हनुमान जयंती के अवसर पर -
आज ही के दिन अर्थात् चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान का जन्म हुआ था। बल , बुद्धि और अनुशासन के संग भक्ति व निरअहंकारी शक्ति वाले भक्त हनुमान का सनातन धर्म और भगवान श्रीराम के अनुयाइयों में एक विशेष स्थान है, हनुमान श्रीराम के बिना और श्रीराम हनुमान के बिना अधूरे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर भगवान श्रीराम की सेवा के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्र ने अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है परंतु भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी इसीलिए हनुमान को पवनपुत्र कहा गया।
शक्ति और भाव का ऐसा अद्भुत संयोग कि जिसमें बल भी हो और बुद्धि भी, अनुशासन भी हो और चंचलता भरी भक्ति भी, जिसमें अपार बल हो परंतु कतई निरअहंकार का भाव भी...वही हनुमान हैं। इन गुणों का इतना अद्भुत साम्य हनुमान के अतिरिक्त और किसी के लिए नहीं बताया गया।
श्री हनुमान की शक्तियों का आध्यात्मिक पक्ष जानना कोई बहुत मुश्किल नहीं हैं इसीलिए जो अपने जीवन के 'अंतश्चतुष्टय' को जान पाया, बता पाया ...वही हनुमान है । सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी जान सकता है कि ये 'अंतश्चतुष्टय' क्या है ?अर्थात् मन, चित्त व बुद्धि तीन अवयवों के 'साथ' और इन तीनों के 'बीच' उपस्थित रहने वाला चौथा अवयव जो अहंकार है, उस अहंकार को जिसने सोऽहमस्मि तक पहुंचाया, जिसने अहं को आत्मा में विलीन कर दिया...वह हनुमान है।
अब देखिए ना, अहंकार ही तो वह विभाजक अवयव है जो रामायण काल में दो बलिष्ठ पात्रों को एक दूसरे के विपरीत खड़ा करता है... और वे हैं हनुमान तथा रावण ।
रावण अहंकारी है, कहता है -
‘मेरी इन बड़ी भुजाओं ने कैलाश पहाड़ उठाया है,
दानव मय इंद्र, कुबेर, वरुण, इन बाणों से थर्राया है।’
अर्थात् सफलता का हर पक्ष अहं से सराबोर है। दूसरी ओर हनुमान हैं जो प्रत्येक सफलता के पीछे ईश्वरीय कृपा को श्रेय देते कहते हैं-
‘लांधि सिंधु हाटक पुर जारा, निशिचर गन विधि विपिन उजारा,
सो सब तब कृपालु प्रभुताई, नाथ न कछू मोर प्रभुताई।’
प्रत्येक कार्य के लिए निर्धारित है हमारी भूमिका, हम जो कि निमित्तमात्र हैं परंतु अहंकार में मनसा, वाचा, कर्मणा जो भी सोचते हैं, उसके कारण स्वयं के अस्तित्व में निहित ईश्वरीय सत्ता के महत्व को नहीं समझ पाते। निश्चित ही ‘अहं’ मन, बुद्धि और चित्त से ऊपर है, बलशाली भी और प्रभावी भी इसीलिए यह प्रश्न हमेशा बना रहा कि क्या अहंकार मिट सकता है? मन, बुद्धि, चित्त जितने महत्वपूर्ण हैं... उतना ही महत्वपूर्ण अहं है । अहं यानी 'मैं' और मैं को आत्म-तत्व में विलीन कर देना अर्थात अहं का एकात्म ही ‘सोऽहमस्मि’ बना देता है । जब तक 'मैं' को शरीर तक सीमित माना गया, तब तक अहं रावण की तरह शक्ति को क्षीण करने वाला तत्व रहा । जब वही अहं आत्मतत्व में समाहित हुआ,‘सोऽहमस्मि’ बन गया.. तो हनुमानजी के लिए शक्ति संवर्द्धक हो गया और अहं ही देवत्व हो गया।
आज हनुमान जयंती पर अहं के संदर्भ और भक्ति के मूलतत्व को जानने का संकल्प लिया जाये ताकि मैं, मेरा मान-अभिमान, मेरा सुखदुख, मेरा अपमान, मेरे अपने से निकल सर्वत्र ईश्वर को देख पाने का भाव जाग सके। हनुमान के माध्यम से परमात्मा ने यह संदेश हमें दिया कि जब भगवान शिव की प्रचंड रौद्र शक्ति को मानवीय हित के लिए प्रयुक्त करना हो तो उसके लिए ‘सोऽहमस्मि’ तक की यात्रा करना ज़रूरी है ताकि विश्व कल्याण की बात सोची जा सके।
- अलकनंदा सिंह
आज ही के दिन अर्थात् चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान का जन्म हुआ था। बल , बुद्धि और अनुशासन के संग भक्ति व निरअहंकारी शक्ति वाले भक्त हनुमान का सनातन धर्म और भगवान श्रीराम के अनुयाइयों में एक विशेष स्थान है, हनुमान श्रीराम के बिना और श्रीराम हनुमान के बिना अधूरे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर भगवान श्रीराम की सेवा के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्र ने अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है परंतु भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी इसीलिए हनुमान को पवनपुत्र कहा गया।
शक्ति और भाव का ऐसा अद्भुत संयोग कि जिसमें बल भी हो और बुद्धि भी, अनुशासन भी हो और चंचलता भरी भक्ति भी, जिसमें अपार बल हो परंतु कतई निरअहंकार का भाव भी...वही हनुमान हैं। इन गुणों का इतना अद्भुत साम्य हनुमान के अतिरिक्त और किसी के लिए नहीं बताया गया।
श्री हनुमान की शक्तियों का आध्यात्मिक पक्ष जानना कोई बहुत मुश्किल नहीं हैं इसीलिए जो अपने जीवन के 'अंतश्चतुष्टय' को जान पाया, बता पाया ...वही हनुमान है । सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी जान सकता है कि ये 'अंतश्चतुष्टय' क्या है ?अर्थात् मन, चित्त व बुद्धि तीन अवयवों के 'साथ' और इन तीनों के 'बीच' उपस्थित रहने वाला चौथा अवयव जो अहंकार है, उस अहंकार को जिसने सोऽहमस्मि तक पहुंचाया, जिसने अहं को आत्मा में विलीन कर दिया...वह हनुमान है।
अब देखिए ना, अहंकार ही तो वह विभाजक अवयव है जो रामायण काल में दो बलिष्ठ पात्रों को एक दूसरे के विपरीत खड़ा करता है... और वे हैं हनुमान तथा रावण ।
रावण अहंकारी है, कहता है -
‘मेरी इन बड़ी भुजाओं ने कैलाश पहाड़ उठाया है,
दानव मय इंद्र, कुबेर, वरुण, इन बाणों से थर्राया है।’
अर्थात् सफलता का हर पक्ष अहं से सराबोर है। दूसरी ओर हनुमान हैं जो प्रत्येक सफलता के पीछे ईश्वरीय कृपा को श्रेय देते कहते हैं-
‘लांधि सिंधु हाटक पुर जारा, निशिचर गन विधि विपिन उजारा,
सो सब तब कृपालु प्रभुताई, नाथ न कछू मोर प्रभुताई।’
प्रत्येक कार्य के लिए निर्धारित है हमारी भूमिका, हम जो कि निमित्तमात्र हैं परंतु अहंकार में मनसा, वाचा, कर्मणा जो भी सोचते हैं, उसके कारण स्वयं के अस्तित्व में निहित ईश्वरीय सत्ता के महत्व को नहीं समझ पाते। निश्चित ही ‘अहं’ मन, बुद्धि और चित्त से ऊपर है, बलशाली भी और प्रभावी भी इसीलिए यह प्रश्न हमेशा बना रहा कि क्या अहंकार मिट सकता है? मन, बुद्धि, चित्त जितने महत्वपूर्ण हैं... उतना ही महत्वपूर्ण अहं है । अहं यानी 'मैं' और मैं को आत्म-तत्व में विलीन कर देना अर्थात अहं का एकात्म ही ‘सोऽहमस्मि’ बना देता है । जब तक 'मैं' को शरीर तक सीमित माना गया, तब तक अहं रावण की तरह शक्ति को क्षीण करने वाला तत्व रहा । जब वही अहं आत्मतत्व में समाहित हुआ,‘सोऽहमस्मि’ बन गया.. तो हनुमानजी के लिए शक्ति संवर्द्धक हो गया और अहं ही देवत्व हो गया।
आज हनुमान जयंती पर अहं के संदर्भ और भक्ति के मूलतत्व को जानने का संकल्प लिया जाये ताकि मैं, मेरा मान-अभिमान, मेरा सुखदुख, मेरा अपमान, मेरे अपने से निकल सर्वत्र ईश्वर को देख पाने का भाव जाग सके। हनुमान के माध्यम से परमात्मा ने यह संदेश हमें दिया कि जब भगवान शिव की प्रचंड रौद्र शक्ति को मानवीय हित के लिए प्रयुक्त करना हो तो उसके लिए ‘सोऽहमस्मि’ तक की यात्रा करना ज़रूरी है ताकि विश्व कल्याण की बात सोची जा सके।
- अलकनंदा सिंह
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