लीजिए, एक और बहस का प्लेटफॉर्म तैयार हो गया...कल फिर से खाप चर्चा में आ गई, मसौदा था... क्या सगोत्री से शादी किये जाने पर परिणाम घातक होते हैं ?
'किन्नर तब पैदा होते हैं जब एक ही गोत्र के लोग आपस में शादी करते हैं' जी हां, हैरान करने वाला ये बयान दिया है खाप पंचायतों के कुछ नेताओं ने । बयान उस वक्त आया है जब वैज्ञानिक उन्हें यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि गोत्र और खून का रिश्ता दो अलग-अलग चीजें हैं । गोत्र के सभी सदस्य आपस में भाई-बहन नहीं हो सकते । हरियाणा में महिला बाल विकास मंत्रालय की ओर से किये जा रहे जागरूकता वाले इन प्रयासों से खाप ख़फा हैं।
हरियाणा हो या पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दोनों ही क्षेत्र की जाट बाहुल्य खाप पहले भी अपने समाज सुधारक निर्णयों को लेकर कम, अपने अड़ियल रुख के कारण ज्यादा चर्चा में रही हैं। ऐसे में उनके द्वारा किसी भी ऐसे फैसले को हास्यास्पद ही कहा जायेगा जो कि कानून, विज्ञान, आध्यात्म और समाज के सभी स्तरों पर सिर्फ और सिर्फ प्रताड़ना का पर्याय बन गया है।
समाज को एक नियत कानून और मर्यादाओं में बांधने के लिए ..एक निश्चिंत जीवन जीने के लिए.. कभी जिन अलंबरदारों (खापों) के हाथों समाज सुधार की बागडोर सौंपी गई, समय के साथ उसमें क्षरण होता गया और आज हालात ये हैं कि अपने निर्णयों और स्थापित कथित सुधारवादी नियमों की आड़ में यही खाप वीभत्सता को जायज़ ठहराती रही हैं।
नई पीढ़ी पर रौब गालिब करने को और अपने अस्तित्व को बचाये रखने की मजबूरी के तहत अब इन खापों ने अपनी सोच को विज्ञान की तमाम दलीलों के संग भी जायज ठहराना शुरू कर दिया है । वह भी तब जबकि नई पीढ़ी जेनेटिक्स को विभिन्न सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़कर अपनी वैज्ञानिक विचारधारा को आगे बढ़ा रही है। वह यह अच्छी तरह जान रही है कि किन्नरों की पैदाइश को सगोत्री शादियों से जोड़कर दुष्प्रचार किया जा रहा है, वह भी बिना किसी ऑथेंटिक रिसर्च के।
जेनेटिकली एजूकेटेड पीढ़ी यह जानने के लिए प्रयासरत व शोधरत भी है कि क्या सिर्फ कीन मैरिजेज यानि क्लोज रिलेशन्स या सगोत्री शादी से पैदा होने वाले बच्चों में ही ''डॉरमेंट ट्रेट्स'' का खतरा रहता है । क्या पेरेंट्स के वो ''रिसेसिव जीन्स'' भी ऐक्टिव होने की संभावना इन्हीं बच्चों में ज्यादा होती है क्योंकि जेनेटिकली पेरेंट्स के रेसेसिव जीन्स कई ''डॉरमेंट ट्रेट्स'' के लिए उत्तरदायी माने गये हैं । क्या ऐसे में खराब या इफेक्टेड कैरक्टर्स के उभरने के चांस भी ज्यादा रहते हैं, जिससे बच्चों में बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
बेशक सगोत्री शादी या कीन मैरिजेज में इसका रिस्क फैक्टर बढ़ जाता है लेकिन 1000 में से किसी एक कैरक्टर के खराब होने के ही चांसेस रहते हैं। हालांकि ऐसा ब्लड रिलेशंस में ही देखा गया है मगर जहां ब्लड रिलेशंस नहीं हैं वहां भी ''डॉरमेंट ट्रेट्स'' के केसेस आये हैं जिन्होंने गर्भधारण के समय सही काउंसलिंग लेकर बच्चे को कोई नुकसान होने से बचाया है । जाहिर है कि इसके लिए जेनेटिक काउंसिलर को बड़े सरकारी हॉस्पिटल्स में खासतौर पर अपॉइंट किया गया है। कीन मैरिजेज से पैदा हुये बच्चों में कुछ वंशानुगत बीमारियां मसलन सफेद दाग, जीरोडर्मा पिंगमेंटेशन, हीमोफीलिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं मगर ये जेनेटिक डिस्ऑर्डर्स अलग-अलग गोत्रों के बीच हुई शादियों में भी होते हैं। तो खाप का ये कहना कि सगोत्री शादी से किन्नर यानि फिजिकली-इंपोटेंट की पैदाइश का खतरा रहता है, फिलहाल तो केवल युवाओं में भय बैठाने के लिए अपनाया गया एक ऐसा साइकोलॉजिकल टूल है जिस पर बेवजह वैज्ञानिक मुहर लगाई गई है।
रही बात समाजशास्त्र की तो हमारे समाज में एक ही जाति में शादी करने पर जोर दिया जाता है, वहीं एक ही गोत्र के होने पर उन्हें भाई-बहन का दर्जा देना कितना अजीब है? अगर 100 पीढ़ी पीछे की बात करें तो एक ही जाति के लोगों का कहीं न कहीं कोई करीबी रिश्ता जरूर निकलेगा। ऐसे में एक गोत्र वालों को भाई-बहन के रिश्ते का नाम देना तर्कसंगत नहीं है। यह एक रूढि़वादी सोच है कि एक ही गोत्र में शादी नहीं होनी चाहिए।
खापों को अब समझना होगा कि समाज के नियम-कायदे इसलिए बनाए जाते हैं ताकि लोगों का उससे भला हो सके। ये नियम-कायदे लोगों की जिंदगी में अड़चनें पैदा करने के लिए नहीं बनाए जाते।
कानूनी तौर पर भी एक ही गोत्र में विवाह करना हिंदू मैरिज एक्ट में निषेध नहीं है। हां, अगर किसी ने सपिंडा श्रेणी में शादी कर ली है तो वह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-5 में वर्जित है। सपिंडा श्रेणी का मतलब होता है कि कोई भी शख्स अपने पिता के खानदान की पांच पीढ़ियों और मां के खानदान की तीन पीढ़ियों के भीतर आने वाले दूसरे शख्स से शादी नहीं कर सकता।
आज के ग्लोबल समय में नई पीढ़ी के सामने कहां तक इन खापों की बातें अपना प्रभाव जमाकर रख पायेंगीं, कल के इस वाकये ने स्वयं खापों के वज़ूद को घेरे में ला दिया है। अच्छा होगा कि समय रहते गलत को सही साबित करने के लिए ये खापें विज्ञान को बख्श दें और खुद को बचायें...नई पीढ़ी अब इनके फि़जूल हथकंडों से नहीं बदलेगी।
-अलकनंदा सिंह
'किन्नर तब पैदा होते हैं जब एक ही गोत्र के लोग आपस में शादी करते हैं' जी हां, हैरान करने वाला ये बयान दिया है खाप पंचायतों के कुछ नेताओं ने । बयान उस वक्त आया है जब वैज्ञानिक उन्हें यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि गोत्र और खून का रिश्ता दो अलग-अलग चीजें हैं । गोत्र के सभी सदस्य आपस में भाई-बहन नहीं हो सकते । हरियाणा में महिला बाल विकास मंत्रालय की ओर से किये जा रहे जागरूकता वाले इन प्रयासों से खाप ख़फा हैं।
हरियाणा हो या पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दोनों ही क्षेत्र की जाट बाहुल्य खाप पहले भी अपने समाज सुधारक निर्णयों को लेकर कम, अपने अड़ियल रुख के कारण ज्यादा चर्चा में रही हैं। ऐसे में उनके द्वारा किसी भी ऐसे फैसले को हास्यास्पद ही कहा जायेगा जो कि कानून, विज्ञान, आध्यात्म और समाज के सभी स्तरों पर सिर्फ और सिर्फ प्रताड़ना का पर्याय बन गया है।
समाज को एक नियत कानून और मर्यादाओं में बांधने के लिए ..एक निश्चिंत जीवन जीने के लिए.. कभी जिन अलंबरदारों (खापों) के हाथों समाज सुधार की बागडोर सौंपी गई, समय के साथ उसमें क्षरण होता गया और आज हालात ये हैं कि अपने निर्णयों और स्थापित कथित सुधारवादी नियमों की आड़ में यही खाप वीभत्सता को जायज़ ठहराती रही हैं।
नई पीढ़ी पर रौब गालिब करने को और अपने अस्तित्व को बचाये रखने की मजबूरी के तहत अब इन खापों ने अपनी सोच को विज्ञान की तमाम दलीलों के संग भी जायज ठहराना शुरू कर दिया है । वह भी तब जबकि नई पीढ़ी जेनेटिक्स को विभिन्न सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़कर अपनी वैज्ञानिक विचारधारा को आगे बढ़ा रही है। वह यह अच्छी तरह जान रही है कि किन्नरों की पैदाइश को सगोत्री शादियों से जोड़कर दुष्प्रचार किया जा रहा है, वह भी बिना किसी ऑथेंटिक रिसर्च के।
जेनेटिकली एजूकेटेड पीढ़ी यह जानने के लिए प्रयासरत व शोधरत भी है कि क्या सिर्फ कीन मैरिजेज यानि क्लोज रिलेशन्स या सगोत्री शादी से पैदा होने वाले बच्चों में ही ''डॉरमेंट ट्रेट्स'' का खतरा रहता है । क्या पेरेंट्स के वो ''रिसेसिव जीन्स'' भी ऐक्टिव होने की संभावना इन्हीं बच्चों में ज्यादा होती है क्योंकि जेनेटिकली पेरेंट्स के रेसेसिव जीन्स कई ''डॉरमेंट ट्रेट्स'' के लिए उत्तरदायी माने गये हैं । क्या ऐसे में खराब या इफेक्टेड कैरक्टर्स के उभरने के चांस भी ज्यादा रहते हैं, जिससे बच्चों में बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
बेशक सगोत्री शादी या कीन मैरिजेज में इसका रिस्क फैक्टर बढ़ जाता है लेकिन 1000 में से किसी एक कैरक्टर के खराब होने के ही चांसेस रहते हैं। हालांकि ऐसा ब्लड रिलेशंस में ही देखा गया है मगर जहां ब्लड रिलेशंस नहीं हैं वहां भी ''डॉरमेंट ट्रेट्स'' के केसेस आये हैं जिन्होंने गर्भधारण के समय सही काउंसलिंग लेकर बच्चे को कोई नुकसान होने से बचाया है । जाहिर है कि इसके लिए जेनेटिक काउंसिलर को बड़े सरकारी हॉस्पिटल्स में खासतौर पर अपॉइंट किया गया है। कीन मैरिजेज से पैदा हुये बच्चों में कुछ वंशानुगत बीमारियां मसलन सफेद दाग, जीरोडर्मा पिंगमेंटेशन, हीमोफीलिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं मगर ये जेनेटिक डिस्ऑर्डर्स अलग-अलग गोत्रों के बीच हुई शादियों में भी होते हैं। तो खाप का ये कहना कि सगोत्री शादी से किन्नर यानि फिजिकली-इंपोटेंट की पैदाइश का खतरा रहता है, फिलहाल तो केवल युवाओं में भय बैठाने के लिए अपनाया गया एक ऐसा साइकोलॉजिकल टूल है जिस पर बेवजह वैज्ञानिक मुहर लगाई गई है।
रही बात समाजशास्त्र की तो हमारे समाज में एक ही जाति में शादी करने पर जोर दिया जाता है, वहीं एक ही गोत्र के होने पर उन्हें भाई-बहन का दर्जा देना कितना अजीब है? अगर 100 पीढ़ी पीछे की बात करें तो एक ही जाति के लोगों का कहीं न कहीं कोई करीबी रिश्ता जरूर निकलेगा। ऐसे में एक गोत्र वालों को भाई-बहन के रिश्ते का नाम देना तर्कसंगत नहीं है। यह एक रूढि़वादी सोच है कि एक ही गोत्र में शादी नहीं होनी चाहिए।
खापों को अब समझना होगा कि समाज के नियम-कायदे इसलिए बनाए जाते हैं ताकि लोगों का उससे भला हो सके। ये नियम-कायदे लोगों की जिंदगी में अड़चनें पैदा करने के लिए नहीं बनाए जाते।
कानूनी तौर पर भी एक ही गोत्र में विवाह करना हिंदू मैरिज एक्ट में निषेध नहीं है। हां, अगर किसी ने सपिंडा श्रेणी में शादी कर ली है तो वह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-5 में वर्जित है। सपिंडा श्रेणी का मतलब होता है कि कोई भी शख्स अपने पिता के खानदान की पांच पीढ़ियों और मां के खानदान की तीन पीढ़ियों के भीतर आने वाले दूसरे शख्स से शादी नहीं कर सकता।
आज के ग्लोबल समय में नई पीढ़ी के सामने कहां तक इन खापों की बातें अपना प्रभाव जमाकर रख पायेंगीं, कल के इस वाकये ने स्वयं खापों के वज़ूद को घेरे में ला दिया है। अच्छा होगा कि समय रहते गलत को सही साबित करने के लिए ये खापें विज्ञान को बख्श दें और खुद को बचायें...नई पीढ़ी अब इनके फि़जूल हथकंडों से नहीं बदलेगी।
-अलकनंदा सिंह
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