cartoon coutesy: MANJUL |
ये वही नेता हैं जिन्हें सच्चर कमेटी के अल्पसंख्यकों को सोशल, इकोनॉमिक और एजूकेशनल स्तर पर बेहतर सुविधायें देने वाले सुझाव भी खासे नागवार गुजरे क्योंकि जस्टिस राजिंदर सच्चर की उस रिपोर्ट में इन्हीं कथित 'मुस्लिम हितकारियों' के प्रयासों का सारा सच सामने आ गया था कि आखिर किस तरह अल्पसंख्यकों और खासकर मुस्लिमों के लिए हजारों करोड़ रुपयों की योजनायें बनाई गई..उनमें फंड्स भी रिलीज हुये मगर ये उन तक कभी पहुंचे ही नहीं जो इनके तलबगार थे, कुछ योजनायें तो अभी भी कागजों से बाहर ही नहीं आ सकीं और ये नेता कह रहे हैं कि वे ही मुसलमानों के सच्चे हितैषी हैं, क्या नेताओं का ये रवैया माफ करने लायक हैं?
केंद्र में सत्ताधारी यूपीए गवर्नमेंट से लेकर उत्तरप्रदेश की समाजवादी गवर्नमेंट तक सब जुटे हैं मुसलमानों को रिझाने में । कहीं सच्चर कमेटी के निष्कर्षों पर काम करने की बात की जा रही है तो कोई दंगों में सिर्फ मुसलमानों को ही पीड़ित बताकर हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाइयां खोदे चला जा रहा है। जहां अबतक शांति रहती आई है वहां भी अब शक की लकीरें बनाई जा रही हैं ताकि वोटबैंक पक्का हो सके। वोटवैंक की खातिर पगलायी समाजवादी पार्टी ने तो हद ही कर दी, देश की सुरक्षा के लिए खतरा बने अपराधियों की कारगुजारियों को नज़रंदाज करती हुई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई, सिर्फ इसलिए कि वे मुसलमान थे और जिन्हें सुरक्षा एजेंसियों द्वारा बमुश्किल जेल में डाला जा सका। वोट के इन सौदागरों ने देश की सुरक्षा को तो मज़ाक बनाकर रख ही दिया है बल्कि ये उस पूरी की पूरी कौम पर भी प्रश्नचिन्ह लगाये दे रहे हैं जो अब भी इस ''शक और लांछन'' के दौर से नहीं निकल पाई है कि ''हर मुसलमान आतंकी नहीं होता मगर हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होता है.''..इन नेताओं के लिए देश के मुसलमान इस देश के नागरिक नहीं महज वोटबैंक है...और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं, एक ऐसा वोटबैंक जिसे तमाम तरह की लॉलीपॉप्स से पाट दिया गया है...मगर इन्हीं लॉलीपॉप्स का स्वाद उन्हें नहीं चखने दिया गया ।
ये मुसलमानों के हितकारी नेता सच्चाई से मुंह नहीं छुपा रहे हैं बल्कि भलीभांति जानते हैं कि देश की सुरक्षा के लिए जो नासूर बन चुके हैं वे सभी अपराधिक सोच वाले होते हैं। उनके लिए न देश मायने रखता है ना कौम और ना ही धर्म । देश का ल्रगभग हर चौथा शहर आतंकियों का निशाना बन चुका है। हजारों युवक लव जिहाद में लगे हुये हैं,हर शहर और दूरदराज के गांवों तक मौजूद हैं इनके स्लीपिंग मौड्यूल...फिर भी सुप्रीम कोर्ट तक उन्हें बचाने के लिए प्रयास जारी है । आखिर क्यों ? उत्तरप्रदेश सरकार हर कदम से अपने दिमागी कोढ़ को उजागर कर रही है। क्या समाजवादी मुखिया बता सकते हैं कि जब उनके मुताबिक ये कथित ''निर्दोष''युवक जेलों में डाले जा रहे थे तब वो खुद कहां सोये थे और अब जब ''उन निर्दोषों'' को सालों गुजर गये जेल में ,तब पहले विधानसभा चुनाव जीतने के लिए फिर अब लोकसभा चुनाव जीतने के लिए उन्हें इनकी बेगुनाही याद आई। जब आतंकी वारदात हुईं और बासुबूत इन्हें सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पकड़ा गया तब मुलायम सिंह कहां थे?आज भी ये हकीकत है कि अकेले पूर्वांचल से ही तमाम बेरोजगार युवकों को पैसों की जरूरत आतंकी संगठनों तक ले जा रही है मगर इस खुफिया और उजागर हो जाने वाली जानकारी के बावजूद प्रदेश सरकार ने इन्हीं अल्पसंख्यकों के लिए रोजगार के कोई साधन उपलब्ध नहीं कराये। हां, हर रोज प्रधानमंत्री पद की गुहार लगा रहे मुलायम सिंह मुज़फ्फ़रनगर दंगों में अपनी सरकार की नाकामी पर सफाई अवश्य दे रहे हैं।
यहांतक कि अल्पसंख्यकों के लिए घोषित हुईं हजारों करोड़ की उद्धारक योजनाओं का पैसा पार्टी की रैलियों पर लुटाया जा रहा है और कहा ये जा रहा है कि मुसलमानों के बिना देश का कोई भविष्य नहीं , कोई सरकार नहीं बन सकती। अजीब बेशर्मी है ये...कि जिनके हक़ पर ऐश हो रहा है और उन्हें ही छद्म सांत्वना के तमाम कसीदों में सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है कि गोया वे खुद तंगहाल रहें मगर सरकार को लोकसभा तक पहुंचा दें।
धर्म आधारित घृणा वाली राजनीति का फंडा अब स्वयं मुसलमान भी समझ चुके हैं और हिन्दू भी, सो बेहतर होगा कि राजनीतिज्ञ अपनी रणनीतियों में इस फंडे को शामिल ना ही करें क्योंकि मुज़फ्फ़रनगर का आइना इन नताओं के सूरत और सीरत दोनों के ही अक्स को नंगा दिखा गया ।इसी बात पर फ़राज साहब के दो शेर याद आते हैं-
यह कौन है सरे साहिल कि डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं,
अभी तक तो न कुंदन हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं....।
- अलकनंदा सिंह
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