भारत के महान महाकाव्य का दूसरा पक्ष भी हो सकता है इसको अपनी कल्पना व तथ्यों को नए रूप में प्रस्तुत करती है अजय।
आनन्द नीलाकान्तन की दूसरी पुस्तक - अजय पार्ट 1- रोल ऑफ दि डाइस, जय या सामान्य रूप से विख्यात महाभारत की कहानी है लेकिन इसमें कुछ अलग बात है। इतिहास को विजेताओं द्वारा लिखा जाता है और हारने वाली पक्ष को निंदा सहनी पड़ती है और उसे चुप करा दिया जाता है। अजय- रोल ऑफ डाइस में सुयोधन (जिसे तिरस्कृत रूप से दुर्योधन के रूप में जाना जाता है)- हस्तिनापुर के युवराज, कौरव वंश, उसके समर्थक जो कि अपने-अपने विश्वास के अनुसार मृत्यु तक लड़ते रहे, के पक्ष को मजबूती से पेश किया गया है।
पुस्तक की शुरूआत कौरवों और पांडवों के बाल्यकाल से होती है जिस दौरान प्रत्येक बालक द्वारा अपने अपने स्वभाव और कौशल को दिखाया जाता है, जिन्हें भावी घटनाओं में बड़ी भूमिकाएं निभानी हैं। भीम के पास शारीरिक और बाहुबल है लेकिन उसके पास दिमाग की कमी है। सुयोधन, मूर्खतापूर्ण दुस्साहस तक जोशीला तथा जिद्दी है। ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठर वह ब्राह्मण विचारधाराओं और मान्यताओं के रंग में रंगा हुआ था। राजकुमारों के बड़े होने के साथ साथ हस्तिनापुर के राजमहल में साजिश और भी गहरी होती चली जाती है, इसीकी छाया में उनकी शक्तिशाली माताओं की द्वन्द्वात्मक महत्वकाक्षाएं तथा शासक के प्रभुत्वशाली प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले भीष्म द्वारा लागू कड़ी क्षत्रिय आचार संहिताएं भी निहित थीं। निहित स्वार्थों के हाथों में भाग्य के मोहरे, चचेरे भाई तथा उनके संगी साथी, अपरिहार्य रूप से परस्पर विंध्वंसकारी द्वन्द्व तथा परम अराजकता की ओर अग्रसर होते हैं।
गुरू द्रोणाचार्य को आमतौर पर ब्राह्मण वंश के महान योद्धा के रूप में अभिकल्पित किया जाता है परंतु हमें यहां पर उसकी कुछ मूलभूत कमजोरियों या कमियों तथा उसकी कठोर विचारधारायें भी देखने को मिलती हैं जिनके कारण वह कमजोर तथा घमंडी दोनों ही बन जाता है।हमारे देश में एकलव्य की कहानी तथा द्रोण के शिष्य बनकर एक कुशल धनुर्धर बनने की उसकी ललक से सभी परिचित हैं। अंतत:, द्रोण उसे गुरूदक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा काट कर देने के लिए कहते हैं। आमतौर पर इस बात का संबंध स्थापित नहीं किया जाता है कि द्रोण द्वारा इस भयावह अनुरोध को क्यों किया गया था। उसने कुन्ती से यह वादा किया था वह अर्जुन को इस धरा का सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाएगा। एकलव्य, जो कि एक गरीब निषाद (निम्न जाति) से संबंधित था, उसके रास्ते का रोड़ा था। कुरूओं ने, द्रोण की जीविका तथा उसके पुत्र के भविष्य को अपने हाथों में रखा था। उनकी कृपाओं के कारण ही द्रोण ने एकलव्य की प्रतिभा का हनन किया और उसे क्षत्रिय राजकुमार अर्थात अर्जुन को सौंप दिया।
आनन्द नीलकान्तन ने महाभारत काल की सोच, जीवनशैली तथा जातिगत प्रभुत्व को बहुत ही शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है जिसमें दक्षतापूर्वक युद्ध से पूर्व घटनाओं तथा चुनौतियों की श्रृंखलाओं को दक्षतापूर्वक बुना गया है जो अंतत: एक नाटकीय रूप से दुखद घटना से सहबद्ध हो जाती हैं। महाभारत के परम्परागत व्याख्याकार उन तथ्यों की उपेक्षा करते हैं जिन्हें लेखक ने कुशलतापूर्वक अपने व्याख्यान में शामिल किया है; अर्जुन वह पहला व्यक्ति नहीं था जिसने द्रौपदी के स्वयम्बर में मछली की आंख में तीर मारा था, बल्कि ऐसा कर्ण, अंग के राजा ने किया था; कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा के दिल में सुयोधन के प्रति नफरत तथा अर्जुन के प्रति प्रेम पैदा किया था जिसके कारण उसने सुयोधन को छोड़कर कर अर्जुन से शादी की थी; वैदिक कानून के अनुसार एक महिला चार पुरूषों से शादी कर सकती है लेकिन इसके बाद उसे वेश्या माना जाता था। इसके ठीक उलट पांडवों के बीच में शत्रुता को रोकने के लिए कुन्ती ने इस कानून के प्रति आंखें मूंद लीं तथा द्रौपदी को पांच भाइयों की एक पत्नी बनने के लिए मजबूर किया गया।
पुस्तक में सुयोधन द्वारा उन मानकों के प्रति प्रश्नों का उल्लेख किया गया है जिनमें कुछ लोगों के उत्थान तथा शेष लोगों को निर्धनता की ओर धकेल दिया जाता है। उन्हें वरिष्ठ जातियों की मनमानियों के आधार पर जीवित रहने के लिए मजूबर किया जाता है। एक विरल तथा पारदर्शी रूप से पुस्तक में उसे दृढ़ प्रतिबद्धताओं को मानने वाला व्यक्ति दर्शाया गया है। यहां तक कि जब अर्जुन द्वारा उसके पहली प्रेमिका अर्थात सुभद्रा को छीन लिया जाता है, वह विरोध नहीं करता है तथा इस बात को समझता है कि सुभद्रा ऐसा चाहती होगी न कि उसके चचेरे भाई की ऐसी चाहत रही होगी। सुयोधन को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है जो कि दृढ़तापूर्वक इस बात पर यकीन करता है कि शिक्षा, पुरस्कार तथा मान्यता का आधार गुण होने चाहिए न कि जाति। वह परम्परागत व्यहार के युग में अकेला ही अपनी बात को कहता है। पुस्तक के चरम बिन्दु पर, शिक्षा अध्ययन की समाप्ति पर, जब अर्जुन जाति के आधार पर कर्ण से द्वन्द्व करने के लिए इंकार कर देता है, तो इसी सुयोधन द्वारा हर मानक को तोड़ा जाता है और वह कर्ण को अर्जुन के समकक्ष बनाने के लिए उसे अंग देश का सम्राट नियुक्त कर देता है जिसके कारण उसे कुलीन वर्ग तथा पुरोहितों दोनो की ही नाराज़गी का सामना करना पड़ता है
शकुनि, जो गंधार का राजकुमार है तथा पारिवारिक लड़ाई-झगड़े पुरोधा है। उसे आमतौर पर परम्परागत व्याख्याकारों द्वारा न उठाई गई अनेक बुराईयों के साथ प्रस्तुत किया गया है। जीवन्तता के साथ, हम यह देखते हैं कि किस प्रकार से भारत को नष्ट करके उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रहती है और उसके द्वारा उठाए गए हर कदम के पीछे यही बदले की आग काम करती है कि किस प्रकार से भीष्म ने उसके स्वयं के देश गंधार को नष्ट किया था, उसकी बहन राजकुमारी गंधारी का अपहरण किया था ताकि उसे हस्तिनापुर के नेत्रहीन राजकुमार धृतराष्ट्र की पत्नी बनाया जा सके। वह बहुत ही चतुर तथा समझदार है, और वह सुयोधन को युधिष्ठर, जो कि जुआ खेलने का शौकीन है, को द्युतक्रीड़ा में चुनौती देने का सुझाव देता है। उसके पिता की हड्डियों से बने हेरफेर किए जा सकने वाले पांसों के साथ खेलते हुए, शकुनि द्वारा कौरवों की तरफ से तब तक जीत हासिल की जाती है, जब तक कि पांडव अपना सबकुछ –जमीन, सम्पत्ति, जाति तथा यहां तक कि उन सभी की एक पत्नी द्रौपदी को भी नहीं हार जाते हैं। जब द्रौपदी को कौरव वंश के सामने लाए जाने का आदेश दिया जाता है, तो पुस्तक यहीं समाप्त होती है जबकि द्रौपदी का भाग्य अब कौरवों के हाथ में होता है।
यही समीक्षात्मक व्याख्या ''अजय'' बुक के दूसरे पार्ट अर्थात् 'राइज ऑफ काली' के साथ जारी रहेगी, संभवत: जिसे 2014 में जारी किया जाना है।
Book- AJAYA- Role of the Dice
Author- Anand Neelkantan
Publication- Leadstart publication
आनन्द नीलाकान्तन की दूसरी पुस्तक - अजय पार्ट 1- रोल ऑफ दि डाइस, जय या सामान्य रूप से विख्यात महाभारत की कहानी है लेकिन इसमें कुछ अलग बात है। इतिहास को विजेताओं द्वारा लिखा जाता है और हारने वाली पक्ष को निंदा सहनी पड़ती है और उसे चुप करा दिया जाता है। अजय- रोल ऑफ डाइस में सुयोधन (जिसे तिरस्कृत रूप से दुर्योधन के रूप में जाना जाता है)- हस्तिनापुर के युवराज, कौरव वंश, उसके समर्थक जो कि अपने-अपने विश्वास के अनुसार मृत्यु तक लड़ते रहे, के पक्ष को मजबूती से पेश किया गया है।
पुस्तक की शुरूआत कौरवों और पांडवों के बाल्यकाल से होती है जिस दौरान प्रत्येक बालक द्वारा अपने अपने स्वभाव और कौशल को दिखाया जाता है, जिन्हें भावी घटनाओं में बड़ी भूमिकाएं निभानी हैं। भीम के पास शारीरिक और बाहुबल है लेकिन उसके पास दिमाग की कमी है। सुयोधन, मूर्खतापूर्ण दुस्साहस तक जोशीला तथा जिद्दी है। ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठर वह ब्राह्मण विचारधाराओं और मान्यताओं के रंग में रंगा हुआ था। राजकुमारों के बड़े होने के साथ साथ हस्तिनापुर के राजमहल में साजिश और भी गहरी होती चली जाती है, इसीकी छाया में उनकी शक्तिशाली माताओं की द्वन्द्वात्मक महत्वकाक्षाएं तथा शासक के प्रभुत्वशाली प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले भीष्म द्वारा लागू कड़ी क्षत्रिय आचार संहिताएं भी निहित थीं। निहित स्वार्थों के हाथों में भाग्य के मोहरे, चचेरे भाई तथा उनके संगी साथी, अपरिहार्य रूप से परस्पर विंध्वंसकारी द्वन्द्व तथा परम अराजकता की ओर अग्रसर होते हैं।
गुरू द्रोणाचार्य को आमतौर पर ब्राह्मण वंश के महान योद्धा के रूप में अभिकल्पित किया जाता है परंतु हमें यहां पर उसकी कुछ मूलभूत कमजोरियों या कमियों तथा उसकी कठोर विचारधारायें भी देखने को मिलती हैं जिनके कारण वह कमजोर तथा घमंडी दोनों ही बन जाता है।हमारे देश में एकलव्य की कहानी तथा द्रोण के शिष्य बनकर एक कुशल धनुर्धर बनने की उसकी ललक से सभी परिचित हैं। अंतत:, द्रोण उसे गुरूदक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा काट कर देने के लिए कहते हैं। आमतौर पर इस बात का संबंध स्थापित नहीं किया जाता है कि द्रोण द्वारा इस भयावह अनुरोध को क्यों किया गया था। उसने कुन्ती से यह वादा किया था वह अर्जुन को इस धरा का सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाएगा। एकलव्य, जो कि एक गरीब निषाद (निम्न जाति) से संबंधित था, उसके रास्ते का रोड़ा था। कुरूओं ने, द्रोण की जीविका तथा उसके पुत्र के भविष्य को अपने हाथों में रखा था। उनकी कृपाओं के कारण ही द्रोण ने एकलव्य की प्रतिभा का हनन किया और उसे क्षत्रिय राजकुमार अर्थात अर्जुन को सौंप दिया।
आनन्द नीलकान्तन ने महाभारत काल की सोच, जीवनशैली तथा जातिगत प्रभुत्व को बहुत ही शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है जिसमें दक्षतापूर्वक युद्ध से पूर्व घटनाओं तथा चुनौतियों की श्रृंखलाओं को दक्षतापूर्वक बुना गया है जो अंतत: एक नाटकीय रूप से दुखद घटना से सहबद्ध हो जाती हैं। महाभारत के परम्परागत व्याख्याकार उन तथ्यों की उपेक्षा करते हैं जिन्हें लेखक ने कुशलतापूर्वक अपने व्याख्यान में शामिल किया है; अर्जुन वह पहला व्यक्ति नहीं था जिसने द्रौपदी के स्वयम्बर में मछली की आंख में तीर मारा था, बल्कि ऐसा कर्ण, अंग के राजा ने किया था; कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा के दिल में सुयोधन के प्रति नफरत तथा अर्जुन के प्रति प्रेम पैदा किया था जिसके कारण उसने सुयोधन को छोड़कर कर अर्जुन से शादी की थी; वैदिक कानून के अनुसार एक महिला चार पुरूषों से शादी कर सकती है लेकिन इसके बाद उसे वेश्या माना जाता था। इसके ठीक उलट पांडवों के बीच में शत्रुता को रोकने के लिए कुन्ती ने इस कानून के प्रति आंखें मूंद लीं तथा द्रौपदी को पांच भाइयों की एक पत्नी बनने के लिए मजबूर किया गया।
पुस्तक में सुयोधन द्वारा उन मानकों के प्रति प्रश्नों का उल्लेख किया गया है जिनमें कुछ लोगों के उत्थान तथा शेष लोगों को निर्धनता की ओर धकेल दिया जाता है। उन्हें वरिष्ठ जातियों की मनमानियों के आधार पर जीवित रहने के लिए मजूबर किया जाता है। एक विरल तथा पारदर्शी रूप से पुस्तक में उसे दृढ़ प्रतिबद्धताओं को मानने वाला व्यक्ति दर्शाया गया है। यहां तक कि जब अर्जुन द्वारा उसके पहली प्रेमिका अर्थात सुभद्रा को छीन लिया जाता है, वह विरोध नहीं करता है तथा इस बात को समझता है कि सुभद्रा ऐसा चाहती होगी न कि उसके चचेरे भाई की ऐसी चाहत रही होगी। सुयोधन को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है जो कि दृढ़तापूर्वक इस बात पर यकीन करता है कि शिक्षा, पुरस्कार तथा मान्यता का आधार गुण होने चाहिए न कि जाति। वह परम्परागत व्यहार के युग में अकेला ही अपनी बात को कहता है। पुस्तक के चरम बिन्दु पर, शिक्षा अध्ययन की समाप्ति पर, जब अर्जुन जाति के आधार पर कर्ण से द्वन्द्व करने के लिए इंकार कर देता है, तो इसी सुयोधन द्वारा हर मानक को तोड़ा जाता है और वह कर्ण को अर्जुन के समकक्ष बनाने के लिए उसे अंग देश का सम्राट नियुक्त कर देता है जिसके कारण उसे कुलीन वर्ग तथा पुरोहितों दोनो की ही नाराज़गी का सामना करना पड़ता है
शकुनि, जो गंधार का राजकुमार है तथा पारिवारिक लड़ाई-झगड़े पुरोधा है। उसे आमतौर पर परम्परागत व्याख्याकारों द्वारा न उठाई गई अनेक बुराईयों के साथ प्रस्तुत किया गया है। जीवन्तता के साथ, हम यह देखते हैं कि किस प्रकार से भारत को नष्ट करके उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रहती है और उसके द्वारा उठाए गए हर कदम के पीछे यही बदले की आग काम करती है कि किस प्रकार से भीष्म ने उसके स्वयं के देश गंधार को नष्ट किया था, उसकी बहन राजकुमारी गंधारी का अपहरण किया था ताकि उसे हस्तिनापुर के नेत्रहीन राजकुमार धृतराष्ट्र की पत्नी बनाया जा सके। वह बहुत ही चतुर तथा समझदार है, और वह सुयोधन को युधिष्ठर, जो कि जुआ खेलने का शौकीन है, को द्युतक्रीड़ा में चुनौती देने का सुझाव देता है। उसके पिता की हड्डियों से बने हेरफेर किए जा सकने वाले पांसों के साथ खेलते हुए, शकुनि द्वारा कौरवों की तरफ से तब तक जीत हासिल की जाती है, जब तक कि पांडव अपना सबकुछ –जमीन, सम्पत्ति, जाति तथा यहां तक कि उन सभी की एक पत्नी द्रौपदी को भी नहीं हार जाते हैं। जब द्रौपदी को कौरव वंश के सामने लाए जाने का आदेश दिया जाता है, तो पुस्तक यहीं समाप्त होती है जबकि द्रौपदी का भाग्य अब कौरवों के हाथ में होता है।
यही समीक्षात्मक व्याख्या ''अजय'' बुक के दूसरे पार्ट अर्थात् 'राइज ऑफ काली' के साथ जारी रहेगी, संभवत: जिसे 2014 में जारी किया जाना है।
Book- AJAYA- Role of the Dice
Author- Anand Neelkantan
Publication- Leadstart publication
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