अराजकता का पोषण करने वाले मुख्यमंत्री ही जब लोकसभा चुनाव की बिसात पर प्रदेश की जनता की सुरक्षा का दांव लगाने लग जायें तो बलवाइयों के हौसले बढ़ना लाज़िमी है।
उत्तर प्रदेश की सरकार को अभी सत्ता हासिल किये हुये दूसरा साल ही चल रहा है मगर दंगों का रिकॉर्ड तो देखो एवरेज हर महीने एक दंगा, उस पर भी बचकाना बयान खुद मुख्यमंत्री का, कि ये सब सांप्रदायिक ताकतें करवा रही हैं ।
धर्म-धर्म का विभेद करने वाले तो सांप्रदायिक कहे जा सकते हैं मगर लड़की छेड़ने वाले शोहदों का विरोध करना कहीं से किसी भी धर्म में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। मुज़फ्फरनगर में जो कुछ घटा उसे दुखद तो कहा जा सकता है मगर पहली नज़र में सांप्रदायिक कतई नहीं कहा जा सकता। यह तो महज भाइयों द्वारा अपनी बहन को बचाने के लिए शोहदों के खिलाफ बोलने का मामला था। छेड़ने वालों का दुस्साहस कितना था कि वे न सिर्फ लड़की को छेड़ने पर आमादा थे बल्कि उन भाइयों को भी जान से मार दिया जो अपनी बहन को बचा रहे थे। इसमें मुख्यमंत्री को कौन सी सांप्रदायिकता नज़र आई...।
दंगों से लेकर अपराधों के बोलबाले वाले केस बताते हैं कि प्रदेश की पुलिसिंग कई खेमों में बंट गई है जिन्हें बाकायदा निर्देश दिये गये हैं कि लोकसभा चुनाव होने तक राजनैतिक मनीषियों द्वारा अल्पसंख्यक कहे जाने वाले संप्रदायों की आपराधिक गतिविधियों को नज़रंदाज करना है। इन्हीं निर्देशों के आधार पर पोषित किये जा रहे हैं अपराधी तत्व और नतीजे के रूप में सामने आता है फिर से एक नया दंगा।
क्या अखिलेश इससे भी अंजान हैं कि प्रदेश में आतंक का एक ऐसा माहौल तैयार हो चुका है जहां औरतों की सुरक्षा तो छोड़िये, किसी भी वर्ग का कोई भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं है।
प्रदेश सरकार के हर कदम विवादास्पद होता है चाहे वह उसकी नीति हो या फिर दिल्ली तक पहुंचने की महात्वाकांक्षा। इसी महात्वाकांक्षा में पोषित किये जा रहे हैं अपराधी और दंडित हो रहे हैं अफसर...।
कुल मिलाकर हर महीने प्रदेश की आबोहवा वीभत्स रूप में हमारे सामने आ जाती है।
बेहतर होता कि मुख्यमंत्री महोदय, अपनी नाकाम नीतियों और सरकार में ''यहां हर कोई मुकद्दम है'' वाली प्रवृत्ति को रोक लगा पाते... बजाय इसके कि हर खासोआम परेशानी का ठीकरा सांप्रदायिकता के नाम फोड़ दिया जाये। मायावती हों या भाजपा व कांग्रेस...यूं ही नहीं कह रहे कि प्रदेश सरकार को कई मुख्यमंत्री चला रहे हैं.... । ज्यादा सच जानना हो तो हालिया मामला साहित्यकार कंवल भारती का ही ले लीजिये...फिल्मी विलेन की तरह उन्हें सताया जा रहा है।
- अलकनंदा सिंह
उत्तर प्रदेश की सरकार को अभी सत्ता हासिल किये हुये दूसरा साल ही चल रहा है मगर दंगों का रिकॉर्ड तो देखो एवरेज हर महीने एक दंगा, उस पर भी बचकाना बयान खुद मुख्यमंत्री का, कि ये सब सांप्रदायिक ताकतें करवा रही हैं ।
धर्म-धर्म का विभेद करने वाले तो सांप्रदायिक कहे जा सकते हैं मगर लड़की छेड़ने वाले शोहदों का विरोध करना कहीं से किसी भी धर्म में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। मुज़फ्फरनगर में जो कुछ घटा उसे दुखद तो कहा जा सकता है मगर पहली नज़र में सांप्रदायिक कतई नहीं कहा जा सकता। यह तो महज भाइयों द्वारा अपनी बहन को बचाने के लिए शोहदों के खिलाफ बोलने का मामला था। छेड़ने वालों का दुस्साहस कितना था कि वे न सिर्फ लड़की को छेड़ने पर आमादा थे बल्कि उन भाइयों को भी जान से मार दिया जो अपनी बहन को बचा रहे थे। इसमें मुख्यमंत्री को कौन सी सांप्रदायिकता नज़र आई...।
दंगों से लेकर अपराधों के बोलबाले वाले केस बताते हैं कि प्रदेश की पुलिसिंग कई खेमों में बंट गई है जिन्हें बाकायदा निर्देश दिये गये हैं कि लोकसभा चुनाव होने तक राजनैतिक मनीषियों द्वारा अल्पसंख्यक कहे जाने वाले संप्रदायों की आपराधिक गतिविधियों को नज़रंदाज करना है। इन्हीं निर्देशों के आधार पर पोषित किये जा रहे हैं अपराधी तत्व और नतीजे के रूप में सामने आता है फिर से एक नया दंगा।
क्या अखिलेश इससे भी अंजान हैं कि प्रदेश में आतंक का एक ऐसा माहौल तैयार हो चुका है जहां औरतों की सुरक्षा तो छोड़िये, किसी भी वर्ग का कोई भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं है।
प्रदेश सरकार के हर कदम विवादास्पद होता है चाहे वह उसकी नीति हो या फिर दिल्ली तक पहुंचने की महात्वाकांक्षा। इसी महात्वाकांक्षा में पोषित किये जा रहे हैं अपराधी और दंडित हो रहे हैं अफसर...।
कुल मिलाकर हर महीने प्रदेश की आबोहवा वीभत्स रूप में हमारे सामने आ जाती है।
बेहतर होता कि मुख्यमंत्री महोदय, अपनी नाकाम नीतियों और सरकार में ''यहां हर कोई मुकद्दम है'' वाली प्रवृत्ति को रोक लगा पाते... बजाय इसके कि हर खासोआम परेशानी का ठीकरा सांप्रदायिकता के नाम फोड़ दिया जाये। मायावती हों या भाजपा व कांग्रेस...यूं ही नहीं कह रहे कि प्रदेश सरकार को कई मुख्यमंत्री चला रहे हैं.... । ज्यादा सच जानना हो तो हालिया मामला साहित्यकार कंवल भारती का ही ले लीजिये...फिल्मी विलेन की तरह उन्हें सताया जा रहा है।
- अलकनंदा सिंह
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