मैं आज यहां बाबा रामदेव के पक्ष में कुछ नहीं लिख रही क्योंकि जिस तरह आधा सच नुकसान दायक होता है उसी तरह सही समय और सही मंच पर ना बोला सत्य भी गरिमाहीन हो जाता है, बाबा ने ऐसा ही सत्य बोला है।
इस पूरे घटनाक्रम में अब तक कथित “भगवानों” की संस्था “आईएमए” के भीतर की गंदगी, लोगों की सेहत से खिलवाड़ करती देशद्रोही गतिविधियां सामने आ रही हैं। ऐलोपैथी से रोगों का इलाज़ करने वाले भारतीय डॉक्टरों के प्रति जनता के “अविश्वास” को 327,207 डॉक्टरों की संस्था आईएमए के अपने रवैये ने और पुख्ता कर दिया है कि उसे बाबा के बयान पर तो घोर आपत्ति है परंतु वो उन प्रश्नों का जवाब नहीं देना चाहती जो स्वयं उसे ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।
जैसे कि-
1. सरेआम हिंदुओं का ईसाई धर्मांतरण करने में लिप्त आईएमए के मौजूदा अध्यक्ष डॉ. जॉनरोज ऑस्टीन जयलाल के बयान कि “सरकार और डॉक्टरों ने नहीं कोरोना को तो यीशु ने भगाया, इसलिए कोरोना से बचना है तो यीशु की शरण में आओ”, को क्या कहेंगे।
2. विदेशी फार्मा कंपनियों के साथ दशकों पुरानी लॉबिंग से भारी धन लेकर उनके प्रोडक्ट का प्रचार, आयुर्वेद सहित अन्य चिकित्सा पद्धतियों के प्रति घृणा और भ्रम को बढ़ाना क्या है, इसके लिए संस्था को विदेशों से भारी रकम भी प्राप्त हुई।
3. आईएमए ने 2007 में Pepsico कंपनी से 50,00,000 में उसके उत्पादों का विज्ञापन करने का करार किया जबकि ट्रॉपिकाना जूस, सीरियल, ओट्स सहित उसके सभी प्रोडक्ट भारी कैलोरीज, बच्चों की लंबाई कम करने और मोटापा बढ़ाने वाले साबित हुए। #CorporateDalals की भंति ब्रिटिश कंपनी Reckitt के उत्पाद Dettol Soap, Dettol व Lyzol को प्रचारित किया, इसी कड़ी में Dabur, ICICI , procter & gamble , Abbott india भी तो हैं।
4. इसी तरह एलईडी बल्ब, वॉल पेंट, पंखे, साबुन, तेल, वाटर प्यूरीफायर आदि को सर्टिफिकेट बांटना है? दरअसल रामदेव की वजह से उनकी दुकान बंद है, जिनकी स्थानीय/विदेशी कंपनियां पैसे से सर्टिफिकेट बांट रही हैं।
5. इसके अलावा प्लाईवुड, कोलगेट, टायलेट क्लीनर आदि प्रोडक्ट्स को बैक्टीरिया फ्री, वायरस फ्री और अमका फ्री ढिमका फ्री का सर्टिफिकेट भी तो आईएमए ही बांट रही है।
6. संस्था पदाधिकारी सहित कमोवेश सभी ऐलोपैथिक डॉक्टर्स विदेश यात्रायें, बच्चों की पढ़ाई और मीटिंग्स,कॉ्रेंसेस तक स्पांसर कराते हैं, आखिर ये उसे कैसे जायज ठहरायेंगे। उनके पास फार्मा कंपनी के साथ साथ पैथ लैब्स, मेडिकल रिप्रिजेंटेटिव, मेडिकल स्टोर्स के साथ साथ स्वयं की ऊंची फीस व हर स्टेप पर कमीशनखोरी से होने वाली अतिरिक्त कमाई के व्यवसायिक मॉडल पर है कोई जवाब।
आईएमए के लिए बाबा का मौजूदा बयान तो बहाना बन गया क्योंकि बाबा के देशी प्रोडक्ट इस संस्था के ईसाई धर्मांतरण मानसिकता वाले अध्यक्ष डॉ. जॉनरोज ऑस्टीन जयलाल को वैयक्तिक रूप से और संस्था से जुड़े विदेशी ब्रांड्स को आर्थिकरूप से नुकसान पहुंचा रहे थे, सो ये तो पुरानी खुन्नस है, निकलनी ही थी।
बाबा का कुसूर इतना था कि उन्होंने बड़बोलापन दिखाते हुए आचार्य सुश्रुत द्वारा “निदान स्थानम” में लिखी बात ही दोहरा दी थी कि-
“यदि कोई एक चिकित्सा उपचार, बीमारी (जैसे कि कोरोना) के कारण का इलाज करने में विफल रहता है और इसके अपने दुष्प्रभाव (sideeffect) होते हैं जिससे कई अन्य बीमारियां (Black fungus) जन्म लेती हों तो वह एक “असफल चिकित्सा पद्धति” है।
ज़ाहिर है कि लगभग 7000 cr के कोविड धंधे में हजारों करोड़ के प्राइवेट हॉस्पिटल, जिनका एक-एक दिन का चार्ज लाखों मेें होता है, की अगर कोई ऐसे पोल खोलेगा तो बुरा तो लगेगा ही ना, आईएमएम को भी लग गया और ठोक दिया बाबा पर मुकद्दमा, देखते हैं अब ऊँट किस करवट बैठता है।
- अलकनंदा सिंंह
http://legendnews.in/the-filth-inside-the-gods-organization-has-started-coming-out/
वाकई लेकिन इसमें आम लोग क्या करें, केवल इनकी बहस सुनें या सच को देखने और खोजने की शुरुआत अपने मन से करें।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा संदीप जी, अब हमें अपनी जड़ों की ओर देखना होगा, योग,व्यायाम,घरेलू उपचार पद्धतियां पुन: सामने लानी होंगी ताकि इल बाजारवादी संस्थाओं के चंगुल से बचा जा सके, हमारी "इंस्टेंट" पाने वाली आदत का ही तो लाभ इन्होंने उठाया है, स्वयं मेरा अनुभव है सालों से अस्पतालों से बचे रहने का,शायद इसीलिए मैं इतने विश्वास के साथ लिख भी पा रही हूं
हटाएंअलकनन्दा जी,आज आपका शोधत्मक लेख पढ़कर इतना अच्छा लगा जिसे मैं शब्दों में बया नहीं कर सकती।
हटाएंआपकी एक-एक बात सतप्रतिशत सत्य है "अब हमें अपनी जड़ों की ओर देखना होगा"
अब इसे समझना ही होगा ये एक मात्र विकल्प है। "इंस्टेंट" की चाहत हमें यह तक ले आई है। चिकित्सा पद्धति कोई भी खराब नही है,खराब हो गई है तो मानसिकता जो हमें दलदल में धसाये लिये जा रही है। मेरा भी अनुभव ऐसा ही है मैं भी डॉक्टर की चक्कर में कम ही पड़ती हूँ। साधुवाद आपको
अरे वाह कामिनी जी, आपका हृदय से आभार कि आपने मेरी हौसलाअफजाई की और बहुत खुशी हो रही है यह जानकर कि आप भी डॉक्टरों से दूर रहने के स्वयं ही उपाय करती हैं। धन्यवाद
हटाएंकितना आभार व्यक्त करें, आपके इस आँख खोलने वाले आलेख का! बस कलाम यूँ ही चलती रहे।
जवाब देंहटाएंप्रणाम विश्वमोहन जी, हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंआईएमए को इंडियन मिशनरी एसोसिएशन बोला जाए तो कुछ गलत नही है। हर्षवर्धन जी को जयलाल के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए तो बाबा रामदेव से माफी मंगवाने में लगे हुए है। बाकी ये जयलाल शक्तिमान धारावाहिक के जयकाल से कम थोड़ी है।
जवाब देंहटाएंमैने भी लिखा है कुछ इसी पर😅
धन्यवादशिवम जी, मैंने देखाआपने तो बहुत ही अच्छा लिखा है--बहुत ख्ाूब
हटाएंअच्छा आलेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंबहुत परिश्रम और शोध का परिणाम, आपका ये लेख सामाजिक चेतना को बढ़ावा देगा, हमें हर चीज का तुरंत फायदा के लालच में अपनी और पीढ़ियों की जिंदगी दांव पर लगा चुके हैं ,आँख खुल जाते तो अच्छा है।
जवाब देंहटाएंवैसे भी घसीट ही रहें हैं जिंदगी और घिसटती चलेगी।
चिंतन देती पोस्ट।
धन्यवाद कुसुम जी
हटाएंसही और सटीक पत्रकारिता, सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी
हटाएंबहुत ही शानदार और सत्य को उजागर करता लेख,मैं सच कहूं,अलकनंदा जी, मैं अभी सपरिवार कोविड से उबरी हूं,और मैं प्रतिदिन पतंजलि का कोरोनिल किट का अणु तेल नाक में डालती रही उसने मुझे इतना सुकून दिया शब्दो में कहना मुश्किल है,मुझे नींद नहीं आती थी,मैं सुबह जैसे ही तेल डालूं,थोड़ी देर बाद में गला हल्का साफ हो जाय और मुझे झपकी आ जाती थी । और वो झपकी मुझे बड़ा ही आराम दे देती थी । ऐसा सुकून एलोपैथी नहीं दे सकती,वह देगी पर आपको गैस की शिकायत हो जाएगी । हमें आयुर्वेद और योग को बहुत गहरे से समझने की जरूरत है,अगर उसे सही से जीवन में अपनाया जाय तो नब्बे प्रतिशत बीमारी ऐसे ही खत्म हो जाय,मुझे तो बड़ा पछतावा है, कि हमने अपने जीवन का बहुत समय गलत इलाज में गुजर दिया,और शुरू से अपनी पुरानी चिकित्सा पद्धति को नकारकर । वैसे मैं भी अस्पतालों के ज्यादा चक्कर नहीं लगाती,छोटे मोटे इलाज घरेलू पद्धति से करना पसंद करती हूं,जिसका फायदा मुझे कोविडव्पीरियड में भी मिला । आपके सार्थक लेखन के लिए आपको बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी, बहुत बहुत आभार कि आपने दिल से लिखी है ये टिप्पणी, हमें लगातार ऐसे प्रयास करते रहने होंगे जो कि हमारे ही "दबाए गए ज्ञान" को न केवल उभार सके बल्कि आमजन में फिर से वो विश्वास पैदा कर सके जिसे एलोपैथी की भेड़चाल ने कहीं गहरे दबा दिया है। धन्यवाद जिज्ञासा जी
हटाएंसटीक व सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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