कवि जयशंकर प्रसाद की एक कविता है ‘पाखंड की प्रतिष्ठा’, इस कविता के माध्यम से उन्होंने भलीभांति बताया है कि किस तरह कोई पाखंडी अपने देश, अपनी संस्कृति तथा आमजन का जीवन दांव पर लगा कर उन्हें त्राहि-त्राहि करते देख आनंदित होता है। कविता में कहा गया है कि –
स्मृतियों के शोर में अब से मौन मचाया जायेगा,
धुर वैचारिक अट्टहास में सुस्मित गाया जायेगा,
कुंठा के आगार में किंचित मुक्ति बांधी जाएगी,
भय आच्छादित मेड़ लगाकर प्रेम उगाया जायेगा.
स्वतंत्रता से पहले हो या उसके बाद हमारे देश में सदैव से ऐसे तत्व मौजूद रहे हैं जिन्हें सिर्फ और सिर्फ अपने प्रोपेगंडा से वास्ता रहा, फिर चाहे इसकी कीमत आमजन को भले ही क्यों ना चुकानी पड़ी हो। ऐसी ही पूरी की पूरी एक जमात अब वैक्सीन पर हायतौबा कर रही है। इस जमात ने पहले वैक्सीन निर्माण पर और अब इसके निर्यात पर बावेला मचा रखा है कि… वैक्सीन का निर्यात रोको।
पत्रकार तवलीन सिंह ने तो पीएम नरेंद्र मोदी को ‘नीरो’ ही बना दिया, जो ”सिर्फ अपनी छवि विदेशी नेताओं के समक्ष” चमकाने में लगे हैं और इसीलिए वैक्सीन निर्यात की जा रही है। वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि प्राकृतिक रूप से ही खत्म हो रहा है कोरोना संक्रमण, तो फिर निजी वैक्सीन कंपनियों को सरकारी मदद क्यों।
इन प्रोपेगंडा जीवियों को सोशल मीडिया पर लाखों लोग फॉलो करते हैं। वैक्सीन निर्यात पर हायतौबा मचाने से पहले इन्होंने वैक्सीन लगाने को लेकर भी डर फैलाया, लोगों को गुमराह किया, वैक्सीन की दक्षता पर प्रश्न खड़े किए जिससे लोगों के मन में शंका पैदा हुई। जब टीकाकरण शुरू हुआ तो इन लोगों ने सबसे पहले जाकर वैक्सीन का डोज लिया और फ्री में वैक्सीन उपलब्ध कराने की माँग करने लगे। चुपके से अपना वैक्सीनेशन कराने वाले पत्रकार संदीप चौधरी हों या कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य और पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी, इन्होंने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के खिलाफ अभियान चला रखा है।
अब बात करते हैं वैक्सीन निर्यात की, कि अपनी जरूरतें पूरी करने के साथ-साथ हमारे लिए इसका निर्यात क्यों जरूरी है। भारत ने अपने ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम के जरिए करीब 83 देशों को स्वदेशी कोरोना वैक्सीन भेजकर मदद की। दूसरे देशों को टीकों की आपूर्ति करना अपने देश में पर्याप्त उपलब्धता होने पर ही संभव है। इसकी लगातार निगरानी एक सशक्त समिति कर रही है। इसके अलावा भारत को वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चा माल आयात करना पड़ता है, दुनिया भर से कच्चा माल लेकर हम वैक्सीन निर्यात पर रोक नहीं लगा सकते।
ये प्रोपेगंडाजीवी जानबूझकर इस तथ्य को छिपा रहे है कि वैश्विक साझा सहयोग की नीति के तहत अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने के नतीजे क्या हो सकते हैं? इसीलिए कोरोना की दूसरी लहर के निपटने को दूसरे देशों से लगातार मदद ऑफर की जा रही है। सार्वभौम है कि शक्ति हो तो सब साथी होते हैं… वैक्सीन प्रकरण पर भारत यही नीति अपना रहा है और आज जो ऑक्सीजन व दवाइयों की खेप की खेप भारत आ रही है, वह भी इसी का परिणाम है। यूं भी कॉमर्शियल ऑब्लिगेशन को तोड़ना आसान नहीं होता।
वैक्सीन निर्यात से नुक्सान पर रोने वालों के लिए तो मैं पुन: कवि जयशंकर प्रसाद की उसी कविता को उद्धृत करना चाहूंगी कि –
स्मृतियों के शोर में अब से मौन मचाया जायेगा
कलम थमा दी जाएगी अब विक्षिप्तों के हाथों में,
मन का मैल… कलम से बहकर… सूखे श्रेष्ठ क़िताबों में,
चिंतन के विषयों में विष का घोल मिलाया जायेगा,
ले लेकर चटकार कलेजा मां का खाया जायेगा।
तो शपथ लें कि हम भारत मां का कलेजा चीरने वाले ऐसे बुद्धिजीवियों की असली सूरत सामने लाते रहेंगे।
– अलकनंदा सिंंह
कलम थमा दी जाएगी अब विक्षिप्तों के हाथों में,
जवाब देंहटाएंमन का मैल… कलम से बहकर… सूखे श्रेष्ठ क़िताबों में,
चिंतन के विषयों में विष का घोल मिलाया जायेगा,
ले लेकर चटकार कलेजा मां का खाया जायेगा।----वाह बेहद गहन और चीखते हुए इस दौर को आपने लिख दिया है...।
बहुत बहुत धन्यवाद संदीप जी
हटाएंप्रोपोगेंडा जीवियो पर करवाई करनी चाहिए। खुला छुट देना ठीक नही है। ये लोग हर जगह मनहुसियत फैलाते है.. झूठ कपास बकवास इनके खून में है। कौन है ये प्रशांत भूषण कौन है? मुंह पर पैसा फेकिए नाचने लग जायेगा..! संदीप तो चौधरी धड़ा धड़ झूठ बोलता है...
जवाब देंहटाएंबाकी आपने तो इनका पोल खोल दिया हैं। बहुत बढ़िया👌
बहुत बहुत धन्यवाद शिवम
हटाएंबेहद गहन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -5-21) को "कल हो जाता आज पुराना" '(चर्चा अंक-4062) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
धन्यवाद कामिनी जी
हटाएंअजीब हाल है । बेकार का हाय-तौबा मचाने वालों में से आज कुछ माननीयों के द्वारा जो मांग रखी गई है यदि कभी मान ली जाती है तो आने वाले समय में वैक्सीन तो हर गली-नुक्कड़ पर बनने लगेगा । बेचारी बीमारी ही असली-नकली की पहचान नहीं कर पाएगी । तब भी रूदालियों का रुदन जारी रहेगा ।
जवाब देंहटाएंआप सही कह रही हैं अमृता जी, धन्यवाद टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुंदर आलेख
जवाब देंहटाएंतवलीन और प्रशांत जैसे लोग जो अपने वार्थ के हिसाब के हिसाब से पाले बदलते हैं वो यही चाहते हैं ... देश की परवा कई कई लोगों को नहीं है आज ... दुर्भाग्य रहा है देश का की हर समय कोई तोड़ने वाला गिरोह इकठ्ठा हो जाता है और वो अपना मंसूबा पूरा भी कर लेते हैं ...
जवाब देंहटाएंसही कहा नासवा जी , परन्तु अब यदि हम चेत जाते हैं तो ये षड़यंत्र कुछ तो कम हो ही सकते हैं , धन्यवाद
हटाएंसटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, अनीता जी
हटाएंस्थितियों पर सटीक प्रकाश डालता सुंदर लेख।
जवाब देंहटाएंसामायिक सार्थक।
धन्यवाद कुसुम जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सामायिक लेख।
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