जो किसी का नहीं, वो शिव का और जो शिव का उसे फिर क्या चाहिए, जी हां आज ऐसे ही औघड़दानी की आराधना पूरा देश ही नहीं, विश्वभर में की जा रही है। विश्वभर में जहां जहां सनातन की उपस्थिति है, वहां वहां शिव भी उपस्थित हैं।
ब्रजभूमि पर आज शिवचतुर्दशी…शिवरात्रि…शिवविवाह का दिन…शिव महिमा गायन का दिन है, इसीलिए ब्रज में बरसाना की प्रसिद्ध लठामार होली की पहली चौपाई गोस्वामी समाज द्वारा आज ही से निकाली जाएगी, जिसे लाड़ली महल से निकाल कर रंगीली गली के शिव मंदिर ”रंगेश्वर” तक लाया जाएगा और ब्रज में 40 दिवसीय होली का जो जोर बसंत पंचमी से शुरू हुआ था वह अपने चरम की ओर बढ़ता जाएगा। गोस्वामी समाज द्वारा किए जाने वाले समाज गायन की कड़ी इस ”चौपाई गायन” में भक्तिकालीन रसिक कवियों के पद का गायन किया जाता है जिसके माध्यम से श्रीकृष्ण के योगी बनकर सखियों के बीच जाने की लीला का वर्णन होगा। भभूत रमाए शिव और योगी बनकर आए श्री कृष्ण का सखियों के बीच आना प्रेम तत्व का परम नहीं तो क्या है। पूरा का पूरा ब्रज क्षेत्र श्रीकृष्ण और शिव के इस परमयोग का साक्षी रहा है, आज भी इसकी अनुभूति कदम कदम पर की जा सकती है।
शिव जैसा भोला भंडारी जो नाचता है तो नटराज और गाता है तो विशिष्ट रागों का निर्माता, योगसाधना में रत हो तो 112 विधियों को प्रतिपादित कर दे और प्रेमी तो ऐसा कि जो विरह में संपूर्ण ब्रहमांड को उथलपुथल ही कर दे… परंतु ब्रजवासी भलीभांति जानते हैं शिव और श्री कृष्ण के इस युग्म का सानिध्य पाना कितना सहज है।
शिव को लेकर यही सहजता आदि गुरू शंकराचार्य ने भी प्रगट की, जब अपने गुरु से प्रथम भेंट हुई तो उनके गुरु ने बालक शंकर से उनका परिचय मांगा। बालक शंकर ने अपना परिचय किस रूप में दिया ये जानना ही एक सुखद अनुभूति बन जाता है…
यह परिचय ‘निर्वाण-षटकम्’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ
मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु:
चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||
अर्थात्
मैं मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ, न मैं कान, जिह्वा, नाक और आँख हूँ। न मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु ही हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…।
तो ऐसी है शिव की सहज प्राप्ति जो धर्म, गुरुओं और उनकी उंगली पकड़ने वालों के लिए एक सबक भी हो सकती है।
शिव के जिस रूप को पाने के लिए हम इतने लालायित रहते हैं, वो हमारे ही भीतर घुला हुआ है, हर श्वास-नि:श्वास में है, उसे हम विलग नहीं कर सकते। और जो ऐसा करते हैं वह कोरा नाटक रचते हैं।
शिव की सहजता को लेकर पं.विद्यानिवास मिश्र ने क्या खूब कहा है कि मूर्तिरूप में विष्णु सोने, तांबे और शिला के बनाए जाते हैं परंतु शिव तो मिट्टी का पार्थिव बनकर ही प्रसन्न हैं, पार्थिव बनाया और पीपल के नीचे ढुलका दिया, न रुद्री
… ना स्नानार्घ्य, न फूल ना धूप-अगर, कुछ भी तो आवश्यक नहीं..।
तो आइये हम भी ऐसे ही शिव की आराधना करें..जो सहज है, सरल है और आदिगुरु शंकराचार्य की भांति कह सकें… शिवोहम् शिवोहम् ।
- अलकनंदा सिंंह
बहुत सुन्दर।
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महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंशिव के जिस रूप को पाने के लिए हम इतने लालायित रहते हैं, वो हमारे ही भीतर घुला हुआ है, हर श्वास-नि:श्वास में है, उसे हम विलग नहीं कर सकते। और जो ऐसा करते हैं वह कोरा नाटक रचते हैं।
जवाब देंहटाएंपूरा लेख ज्ञानवर्धक . सुन्दर
धन्यवाद आदरणीया संगीता जी , आपकी टिप्प्णी बहुमूल्य है
हटाएंज्ञानवर्धक
जवाब देंहटाएंहर कण में शिव।
नई रचना
धन्यवाद रोहितास जी
हटाएंहर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव
हटाएंउसी औघड़दानी के लिए क्या क्या प्रपंच रच रहे हैं लोग जो भाव का भूखा है वैभव का नहीं | सुंदर प्रेरक लेख |
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्री की मंगल कामनाएं अलकनंदा जी |
धन्यवाद रेणु जी, आपको भी हार्दिक शुभकामनाऐं
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
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