कल एक ही खबर दो अलग अलग समाचारपत्र में पढ़ीं, पहली थी ”नई शिक्षा नीति में अब इंजीनियरिंग करने वालों के लिए भौतिकी, रसायन शास्त्र और गणित अनिवार्य नहीं होंगे बल्कि वैकल्पिक होंगे तो इसके ठीक विपरीत दूसरे समाचारपत्र में इसी खबर को एआईसीटीई का ‘यू-टर्न’ बताते हुए इन विषयों को इंजीनियरिंग के लिए अनिवार्य बता दिया गया। इस कारस्तानी के बाद बिना पूरी खबर पढ़े मृणाल पांडेय जैसी वरिष्ठ पत्रकार और उनके पूरे ग्रुप ने तुरंत नई शिक्षानीति पर तंज़ कस अपनी भड़ास भी निकाल डाली, इतना ही नहीं एआईसीटीई को मानसिकरूप से दिवालिया लोगों का संस्थान बता इसपर भगवाकरण का आरोप भी मढ़ दिया कि ये लोग देश को पोंगापंथी युग में ले जाना चाहते हैं।
हकीकत ये है कि ये विषय वैकल्पिक हैं परंतु सिर्फ बायोटैक्नोलॉजी, एग्रीकल्चरल इंजीनिरिंग और इंटीरियर डिजाइनिंग जैसे विषयों के लिए जिनमें कि इनका सामान्य स्कूली ज्ञान ही काफी होगा, तो बच्चों पर अनावश्यक बोझा क्यों डाला जाये। अभी तक इस बोझ ने शोध, बुद्धिमत्ता व व्यवहारिक ज्ञान को कुंद करते हुए डिग्रीधारियों की जमात ही तो खड़ी की। कोरोना काल ने ऐसे डिग्रीधारियों का सच सामने ला दिया किसी चाय की टपरी खोली तो कोई खेती करने लगा, आखिर क्यों ? इसका जवाब यही है कि शिक्षा का अधिकतम हिस्सा, ज़मीनी हकीक़त नहीं सिखाता। क्या इस शिक्षा नीति की आलोचना सिर्फ इसलिए की जानी चाहिए कि वह हमें हमारी प्राचीन ज्ञान की थातियों की ओर मुड़कर देखने को कहती है, उन्हें हू-ब-हू अपनाने की नहीं उसमें और इज़ाफा करने को कहती है।
निश्चित रूप से नई शिक्षा नीति पर भी मंथन हो और इससे जो भी अमृत या विष निकले उस पर भी चर्चा हो बशर्ते हम क्वांटम, अणु, वैदिक गणित, ज्योतिषीय गणना देने वाले भारत को आगे ले जाना चाहें। ज्ञान और शिक्षा में फर्क करना सीखें, नैतिक शास्त्र, दर्शन और सामाजिक दायित्व का बोध इसके केंद्र में हो। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ साल पहले तक योग को भी हमारे पत्रकार साथी मुंह बिचकाकर ही देखते थे। पत्रकारिता से जुड़े लोगों पर वृहत्तर दायित्व है परंतु जब ये ही पक्षपाती होंगे और भ्रम फैलायेंगे तो … । इस पर भी सोचना होगा।
- अलकनंदा सिंह
बहुत सुन्दर और विचारणीय।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-03-2021) को "अपने घर में ताला और दूसरों के घर में ताँक-झाँक" (चर्चा अंक-4008) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
"ज्ञान और शिक्षा में फर्क करना सीखें, नैतिक शास्त्र, दर्शन और सामाजिक दायित्व का बोध इसके केंद्र में हो। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ साल पहले तक योग को भी हमारे पत्रकार साथी मुंह बिचकाकर ही देखते थे।"
जवाब देंहटाएंबेहद गंभीर और विचारणीय विषय जो आज अत्यंत आवश्यक हो गया है।
बेहतरीन लेख अलकनंदा जी,सादर नमन आपको
धन्यवाद कामिनी जी मैं अपने प्रोफेशन में आई इस अबूझता के लिए आप जैसे सुधि पाठकों से माफी भी मांगती हूं
हटाएंविचारणीय.. आधा सच ही घातक होता है... आधा सच की खूबी भी यही है कि व्यक्ति का काम भी हो जाता है और उसके ऊपर कोई जिम्मेदारी आयद भी नहीं होती है... और इसी का फायदा नेताओं से लेकर मीडिया तक उठाता है...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद विकास जी
हटाएंआपने बिल्कुल सत्य कहा आदरणीय देश की जनता को आधा-अधूरा सच बताकर यह मीडिया सदा भटकाता रहता है। वाकई में बदलाव और वो भी बुनियादी बदलाव लाने के जनता को पूरे सत्य से अवगत कराने की जिम्मेदारी ये कब उठाएंगे।सादर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिलाषा जी
हटाएंविचारणीय।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंकभी कभी तो बिल्कुल अधकचरा ज्ञान परोस देता है मीडिया, परंतु मीडिया में भी बड़े ज़िम्मेदार लोग हैं, हमारे देश में,हर क्षेत्र में आपको ज्ञान देने वाले मिल जाएँगे, परंतु मीडिया की बहुत बड़ी ज़िम्मेदार इस लिए बनती है, क्योंकि वहाँ से सूचनाएँ जनमानस तक पहुँचती हैं,फ़िलहाल अभी यहाँ बदलाव नामुमकिन है, क्योंकि सफलता के लिए सतत प्रयास भी होने चाहिए,जो बहुत कम दिखाई देता है,और जो प्रयास होता है,उसमें मीडिया वाले ही कमी निकालने लगते हैं,। सारगर्भित लेखन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएँ और नमन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी , कोशिश जारी रहनी चाहिए...
हटाएं