सीमा…जी हां, सीमा देश की हो…, संबंधों की हो…आचरण की हो …प्रेम अथवा दुश्मनी की हो.. सीमा विरोध की हो या अभिव्यक्ति की, सभी में व्यक्ति को मर्यादा का भान होना जरूरी होता है। देश-काल अथवा मानवीय विचारों की अभिव्यक्ति में बहुत काम आती हैं ये सीमाएं परंतु जब इन्हीं का अतिक्रमण किया जाने लगे तब…?
तब यही होता है जो पिछले किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को लाल किले पर दिखा, सीमाओं के अतिक्रमण तो कल भी दिखा जब विदेशी सेलीब्रिटीज (पॉप सिंगर रिहाना, पॉलिटिकल, एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग, और तो और पॉर्न स्टार मिया खलीफा तक) द्वारा ट्विटर के माध्यम से भारत के आपसी व अंदरूनी मामले में दखल दिया गया। इसे हमारे देश के जिन ”राजनैतिक व बुद्धिजीवियों” ने किसान के हित में प्रचारित किया… क्या ये सही था।
अपनी सीमा का अतिक्रमण तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर ने भी किया, कि प्रधानमंत्री के खिलाफ ”किसान नरसंहार” वाले हैशटैग्स को जानबूझकर पहले तो ”षडयंत्रकारियों” द्वारा चलाने दिया, फिर सरकार द्वारा आपत्ति किए जाने पर मात्र एक घंटे के लिए अकाउंट सस्पेंड कर खानापूरी कर पुन: उन्हीं वैमनस्यकारी हैशटैग को आगे बढ़ाने की छूट दे दी ताकि अराजकता फैले।
ट्विटर के माध्यम से रोहित वेमुला प्रकरण, सीएए-एनआरसी, दिल्ली दंगों, बेंगलुरू हिंसा, जेएनयू में हिंसक विरोध, कश्मीर को देश में जोड़ने का विरोध और अब किसान आंदोलन के बहाने विदेशियों का कुप्रचार … अभिव्यक्ति की सारी सीमायें तोड़ने का ही तो उदाहरण है।
सीमाओं के अतिक्रमण से ही विवाद पैदा कर कमाई करने वाले ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम हों या फिर व्हाट्सएप जैसे अन्य कोई माध्यम…हमें देशहित में इनके हर प्रोपेगंडा पर निगाह रखनी होगी।
हो सकता है सरकार के राजनैतिक विरोधी ये सोच रहे हों कि उन्होंने विरोध के लिए ट्विटर को माध्यम बनाया जबकि है इसका उल्टा ही… दरअसल, ये ट्विटर के टूल बने हुए हैं क्योंकि ये डिजिटल माध्यम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर स्वयं तो पैसा बना रहे हैं और भारत जैसे लोकतंत्र में ज़हर घोल रहे हैं…। सीधी सी बात है जितना ज़हर घुलेगा..उतना ही इनके व्यूज बढ़ेंगे और व्यूज़ की अधिकता इन्हें धन दिलाएगी इसलिए कल ट्विटर पर कार्यवाही की चेतावनी सरकार की ओर से तो दी गई है, हमें अर्थात् आम नागरिक को भी यह ध्यान रखना होगा कि कोई भी विरोध सरकार के विरोध तक सीमित रहे, कहीं वह देश का विरोध ना बन जाए।
किसान आंदोलन का सच हम सब पढ़ ही रहे हैं जहां विरोध की सब सीमायें टूट कर लालकिले तक पहुंच गईं, इसीलिए तो कोरोना वैक्सीन की सफलता तक पर दुष्प्रचार किया गया। जब हम ही अपने देश की उपलब्धियों पर शक करेंगे तो हर तरह की सीमाओं के अतिक्रमणकारी क्यों न इसका फायदा उठायेंगे। अभिव्यक्ति के नाम पर ये समय सावधान रहने और किसी का टूल ना बनने का है।
- अलकनंदा सिंंह
जिनका अपना दामन पाक नहीं,
जवाब देंहटाएंवो आज भारत की ठेकेदारी करने लगे हैं।
निन्दनीय है।
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंसुन्दर सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिन्हा साहब
हटाएंहमें अर्थात् आम नागरिक को भी यह ध्यान रखना होगा कि कोई भी विरोध सरकार के विरोध तक सीमित रहे, कहीं वह देश का विरोध ना बन जाए
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक एवं विचारणीय लेख।....
धन्यवाद सुधा जी
हटाएंदेश तोड़ने की बहुत बड़ी साजिश रची जा रही है। सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए..। अमेरिका ने भारत के कृषि कानून का समर्थन किया है बाकी विपक्ष के लिए तो रिहाना, मिया खलीफा ही जानकर है... रही बात ग्रेटा की वह ट्विटर पर ही अपनी खिल्ली उड़वा ली पूरा पोल खुल गया। इसमें ब्रिटिश सांसद , कनाडा का भी कोई खालिस्तानी नेता और भी बहुत लोग मिले हुए है.
जवाब देंहटाएंविपक्ष तो सत्ता पाने के लिए इतना आतुर है कि कुछ भी कर सकता है..
पर इतना याद रहे चिंगारी का खेल बहुत बुरा होता है दूसरो के घर जलाने का सपना अपने घर में ही पूरा होता है..!
धन्यवाद शिवम जी, आपने तो पूरा कच्चा चिठ्ठा ही खोल दिया ..बहुत खूब
हटाएंजिन्हें शायद यह भी ना मालुम हो कि भारत दुनिया के किस कोने में है, उन्हें अचानक किस अलौकिक प्रेणना की वजह से ऐसा दिव्य ज्ञान हासिल हो गया ! बात साफ़ है कि वह अलौकिक प्रेणना उन्हें ''भौतिक प्रसाद'' के रूप में उपलब्ध हुई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शर्मा जी
हटाएंविरोध के हर घृणास्पद स्वर का मुखरता से विरोध होना ही चाहिए ।
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