बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

ये पोस्ट उनके ल‍िए जो #RatanTata का अंधसमर्थन कर ब‍िछे जा रहे हैं


 रतन टाटा के हाथ में जब टाटा समूह का नेतृत्व आया तो उन्होंने आर्ट के नाम पर 'न्यूड‍िटी'  को प्रमोट करने वाले  #PAG यानी "प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप" को खुले हाथ से संरक्षण द‍िया और भारतीय संस्कृत‍ि को आर्ट के जर‍िए प्रदर्श‍ित करने वाले  #बंगाल_स्कूल_ऑफ_आर्ट को खत्म कर दिया । 

इसी प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के पेंटर थे, हेब्बार, शुजा, रजा और मकबूल फिदा हुसैन। यह सत्य टाटा स्टील चेयरमैन रूसी मोदी ने बताया था, ज‍िन्हें बाद में नाइत्तफिाकी के चलते रतन टाटा ने टाटा स्टील से न‍िकाल बाहर क‍िया था। 

ये देख‍िए उन प्रोग्रेस‍िव कलाकारों की कुछ कलाकृत‍ियां जो अरबप‍ितयों के ड्रॉइंग रूम्स की शोभा बनीं। 



F. N. Souza, Self Portrait,1949, Oil on board.
 












.N Souza, Mithuna 

 
Akbar Padamsee. Lovers, 1952. Oil on board. H. 62 x W. 32 in. (157.5 x 81.3 cm). Collection Amrita Jhaveri.







F.N. Souza. Temple Dancer, 1957



नई पीढ़ी को यह सच भी जानना जरूरी है 

इसी प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के पेंटर्स द्वारा अध‍िकतम न्यूड पेंट‍िंग्स बनाई गईं और ज‍िनकी कीमत लाखों से शुरू होकर करोड़ों तक में गई। उस समय आर्थ‍िक अपराध के ल‍िए मनीलॉड्र‍िंग जैसा शब्द आमजन के जुबान पर नहीं था और सांस्कृत‍िक सोच भी वामपंथ की कैद में थी इस ल‍िए इन सभी च‍ित्रकारों को कला के नाम पर भगवान की तरह पूजा जाने लगा। हम भारतीय सभ्यता को न्यूड‍िटी के हाथों कुचलता देखते रहे एकदम शून्य भाव से। हम नहीं समझ सके क‍ि ये प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट दरअसल कला का पराभव है। 

अपनी सफाई में इन्होंने हमेशा खजुराहो को सामने कर द‍िया परंतु ये नहीं बताया क‍ि वे काम क्रीड़ा के आसन थे जो योग की श्रेणी में आते हैं।


बहरहाल क‍िसी भी शख्स‍ियत के दो चेहरे होते हैं, रतन टाटा के भी थे, हमें उन दोनों चेहरों को देखकर अपना आंकलन स्वयं करना चाह‍िए क‍ि हम कहां तक इसे देश, संस्कार, और भारतीय सभ्यता के ह‍ित में देखते हैं।   

K.H. Ara, Untitled (Large Nude), 1965. Oil on canvas. H. 68 7/8 x W. 27 1/2 in. (175 x 70cm). Collection of Jamshyd and Pheroza Godrej. Courtesy of the lender. - अलकनंदा स‍िंंह


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