समान नागरिक संहिता (UCC) भारत के लिए एक कानून बनाने की मांग करती है, जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा. इसको लेकर देश में विवाद छिड़ा हुआ है. विधि आयोग एक रिपोर्ट भी तैयार कर रहा है.
इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दिये जा रहे हैं. पक्षधर इसके फायदे गिना रहे हैं जबकि विरोेध करने वालों की नजर में इससे देश के अंदर धार्मिक आजादी को खतरा होगा. संवैधानिक प्रावधानों में धर्म निरपेक्षता प्रभावित होगी. क्योंकि इससे यानी हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा निजी कानून खत्म हो जाएंगे.
दरअसल विधि आयोग इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड मतलब एक समान नागरिक संहिता से है, इसके तहत पूरे देश में सभी के लिए एक कानून तय करना है. इसके मुताबिक सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों मसलन संपत्ति, विवाह, विरासत, गोद लेने आदि में भी समान कानून लागू होगा. आइए 5 अहम सवाल और उसके जवाब जानने की कोशिश करते हैं.
UCC के बारे में संविधान क्या कहता है?
संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, भारतीय राज्य नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास कर सकता है. मतलब संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों को लेकर एक कानून बनाने का निर्देश दे सकता है जो मौजूदा समय में उनके व्यक्तिगत कानून के दायरे में हैं. और यही वजह है कि विपक्ष दल इसका विरोध कर रहे हैं. उनके मुताबिक देश की विविधता इससे खतरे में पड़ जाएगी. जबकि केंद्र सरकार के मुताबिक समानता जरूरी है और समय की मांग है.
राज्य आधारित यूसीसी व्यावहारिक तौर पर कितना संभव?
वास्तव में यह राज्य का नीति निर्देशक सिद्धांत से जुड़ा मामला है. यानी यह सभी राज्यों में एक जैसा लागू करने लायक नहीं है. उदाहरण के लिए अनुच्छेद 47 के तहत कोई राज्य नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर रोक लगाता है. लेकिन दूसरे कई राज्यों में शराब धड़ल्ले से बेची जाती है.
किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता लाने की शक्ति को लेकर कानूनी विशेषज्ञ बंटे हुए हैं. कुछ का कहना है कि चूंकि विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं. यह 52 विषयों की सूची है, केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं. राज्य सरकारों के पास भी इसे लागू करने की शक्ति है.
क्या यूसीसी केवल इस्लाम के खिलाफ है?
इसका जवाब है – नहीं. क्योंकि जब यूसीसी लागू होता है तो सभी धर्म, जाति के लिए लागू होता है. इसके तहत मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम ही नहीं बल्कि हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम भी खत्म हो जाएंगे. यहां तक कि विरासत और गोद लेने की प्रथा भी समुदाय विशेष पर आधारित नहीं रहेगी.
आदिवासी समुदायों पर भी लागू होगा यूसीसी?
प्रावधान के मुताबिक ऐसा ही माना गया है. राष्ट्रीय स्तर यूसीसी के लागू होने पर सभी इसकी जद में आएंगे. उनके भी विवाह, विवाह-विच्छेद या संपत्ति को लेकर निजी कानून निरस्त हो जाएंगे. हालांकि जनजातीय समुदाय में इसको लेकर रोेष भी देखा गया है.
समुदाय ने कोर्ट में कहा था उनके समाज के लोकाचार, रीति-रिवाज और धार्मिक प्रथाएं प्रभावित होंगी. आदिवासी हितों की रक्षा करने वाली राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद ने कोर्ट से उनके रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं की सुरक्षा की मांग की है. गौरतलब है कि आदिवासी समाज में भी बहुविवाह और बहुपतित्व का रिवाज है.
क्या कहीं लागू है यूसीसी ?
देश में फिलहाल एकमात्र राज्य गोवा में यूसीसी लागू है. चूंकि गोवा को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है. संसद ने बकायदा कानून गोवा में पुर्तगाली यूसीसी लागू किया था. इसे गोवा सिविल कोड के नाम से जाना जाता है. हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सबके लिए एक समान कानून लागू है. जिसमें शादी, उत्तराधिकार से लेकर गोद लेने की प्रथा तक शामिल है.
यूसीसी के संबंध उम्दा और सारगर्भित जानकारी ।
जवाब देंहटाएं