ख़ानाबदोश एक फ़ारसी शब्द है जो भारत में काफी प्रचलित है। इस शब्द का विश्लेषण बड़ा रोचक है।
यह शब्द तीन अक्षरों से मिल कर बना है- ख़ाना ब दोश। यहाँ ख़ (ख़ाना) के नीचे नुक़्ता न भूलें क्योंकि बिना बिन्दु के ‘खाना’ का अर्थ भोजन हो जायेगा।
फ़ारसी शब्द ख़ाना अथवा ख़ाने का अर्थ होता है ‘घर या स्थान - जैसे पागलख़ाना, दवाख़ाना, गुसलखाना इत्यादि।
और दोश का मतलब है -‘कंधा’ ‘ब या बा’ सँग साथ के लिए लगता है।
इस तरह खानाबदोश वह लोग हुए जो अपना घर कंधे पर उठा कर चलते हैं।
वह कैसे?
ख़ानाबदोश कहीं पर भी स्थाई रूप से निवास नहीं करते। उनके पास बड़े बड़े तम्बू होते हैं और जो जगह उनके मनोकूल लगे वहीं तम्बू गाड़ कर रहने लगते हैं।
यह बंजारे पशु पालन, दस्तकारी इत्यादि का सुन्दर काम करते हैं। यह ऊँट, खच्चर, घोड़े, गाय इत्यादि जानवर भी पालते हैं और फिर इनके लिए चारागाह की तलाश में समान अपने जानवरों पर लाद और अपने तम्बू उखाड़ कर अपने कंधों पर रख आगे निकल जाते हैं।
जब सामान अपने जानवरों पर लादते हैं तो तम्बू भी उन पर लादने को कौन मना करता है? पर कहा यूँ जाता है कि ‘ख़ाना (घर) अपने कंधों पर लाद कर चलते हैं। कुछ भी हो बंजारे अपना घर अपने सँग लेकर चलते हैं।
हिन्दी में इनके लिए बंजारे शब्द का प्रयोग होता है एवं अंग्रेज़ी में जिप्सी कहते हैं।
अंग्रेजी में आमतौर पर जिप्सी शब्द भारत आदि देशों में ही घुमंतू जातियों के लिए प्रयोग होता है, परंतु वास्तव में जिप्सी एक अलग ही यूरोपीय जनजाति है जैसे हमारे देश में बकरवाल या भूटिया। ये लोग स्वयं को रोमानी या रोमा कहते हैं, जिप्सी कुछ अर्थों में अपमानजनक शब्द है। रोमानी और रोमा शब्द संयुक्त राष्ट्र आदि संगठन भी प्रयोग करते हैं। माना जाता है कि जिप्सी शब्द इजिप्शियन से आया, क्योंकि यूरोप पहुंचने पर इन्हें इजिप्ट का समझा गया। रोमा लोगों का मूल स्थान भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तरी भाग माना जाता है।
बंजारा शब्द भी हिंदी में घुमंतू जातियों के लिए सर्वनाम बन गया है, परंतु यह शब्द भी एक खास जनजाति का नाम है, जो मुख्यतः राजस्थान से है।
खानाबदोश के लिए उपयुक्त अंग्रेजी शब्द nomad या itinerant group होगा। हिंदी में घुमंतू कहना उपयुक्त है।
मुंबइया भाषा तक सिमटा 'चिरकुट' शब्द, आखिर क्या होता है इसका अर्थ
चिरकुट शब्द की रचना संस्कृत भाषा के दो शब्दों, चिर (कहीं-कहीं इसे चीर भी माना गया है) तथा कूट के मेल से हुई है। इसका अर्थ फटा-पुराना कपडा, चिथड़ा अथवा गुदड़ है।
जायसी ने इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार किया है :
काढ़हु कंथा चिरकुट लावा ।
पहिरहु राते दगल सुहावा ।
— जायसी
चिर — (चि + बाहुलकात् रक् ।) लम्बा समय, पुराना, स्थाई। यह विष्णु तथा शिव के नामों में भी है। लम्बे समय जीने वाले हनुमान, अश्वत्थामा आदि भी चिर कहलाते हैं।
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥
चीर — (चिनोति आवृणोति वृक्षं कटिदेशा- दिकं वा । चि + “शुसिचिमीनां दीर्घश्च ।” उणां । २ । २५ । इति क्रन् दीर्घश्च ।) वस्त्र, कपड़ा, फटा हुआ वस्त्र, छाल, एक प्रकार का लेखन आदि। यथा:
क्षौमं दुकूलमजिनं चीरं वल्कलमेव वा ।
वसेऽन्यदपि सम्प्राप्तं दिष्टभुक्तुष्टधीरहम् ॥
— शतपथ ब्राह्मण ७.१३.३९ ॥
भावार्थ :—
अपने शरीर को ढंकने के लिए, मैं जो कुछ भी उपलब्ध है, उसका उपयोग करता हूं, चाहे वह मेरे भाग्य के अनुसार सन, रेशम, कपास, कौपीन या मृगछाला हो, और मैं पूरी तरह से संतुष्ट और अविकल हूँ।)
कुट — (कुट इ वैकल्ये । इति कविकल्पद्रुमः ॥ ) इसका अर्थ है कटना, फटना, तुड़-मुड़ा, गतिहीन होना, छल करना, धूर्तता करना, बेईमानी करना आदि। (इस अर्थ में कभी-कभी दीर्घ मात्रा भी प्रयुक्त है)।
स्त्रीबालवृद्धकितव मत्तोन्मत्ताभिशस्तकाः ।
रङ्गावतारिपाखण्डि कूटकृद्विकलेन्द्रियाः ॥
— याज्ञवल्क्यस्मृतिः व्यवहाराध्यायः साक्षिप्रकरणम् २.७० ॥
इससे बना चिरकुट, जो है फटा-पुराना। किसी व्यक्ति को यह उपमा दी जाए तो अर्थ यही कि उसका व्यक्तिगत चिथड़ों की तरह बिखरा हुआ है। इसी चिरकुट को गुलजार ने चिरंजीव कर दिया, अंगूर में संजीव कुमार के मुख से कहला कर "अगर मेरा नाम चिरकुट कुमार होता तब भी? "
बहुत सुंदर विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रोचक लेख ।
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